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शहीद-ए-आजम भगत सिंह को हिंदी सिनेमा ने कुछ ऐसे किया है सलाम

1954 में आई ‘शहीद-ए-आजम’ से 2006 में आई ‘रंग दे बसंती’ तक बदल गए कई भगत सिंह, लेकिन उनका जज्बा नहीं बदला.

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मेरी कलम भी वाकिफ है मेरे जज्बातों से.. मैं इश्क भी लिखना चाहूं तो इंकलाब लिखा जाता है.

ये शब्द शहीद-ए-आजम भगत सिंह की कलम से लिखे गए हैं. वो भगत सिंह, जिसने देश को आजाद कराने में अपनी जान की भी परवाह नहीं की. वो भगत सिंह, जिस पर क्रांति का रंग सर चढ़कर बोलता था. वो भगत सिंह, जो आशिक तो था, लेकिन उसके लिए आशिकी सिर्फ देश की आजादी के लिए थी. जब तक जिया सर उठा कर जिया, और 23 मार्च 1931 को हंसते-हंसते फांसी के फंदे को चूमकर देश के लिए कुर्बान हो गया.

भगत सिंह के जन्मदिन पर हम आपको मिलवाते हैं बॉलीवुड के भगत सिंह से.

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शहीद-ए-आजम भगत सिंह (1954)

सबसे पहले भगत सिंह की कहानी को फिल्म डायरेक्टर जगदीश गौतम ने लोगों तक पहुंचाया. फिल्म 1952 में बनी और फिल्म में भगत सिंह का किरदार प्रेम अबीद ने निभाया. प्रेम का साथ दिया उस वक्त की मशहूर अदाकारा स्मृति बिस्वास और अशिता मजूमदार ने.

शहीद भगत सिंह (1963)

शहीद भगत सिंह भले ही इतनी जानी मानी फिल्म ना हो, लेकिन ये फिल्म भी भगत सिंह के बलिदान की कहानी कहती है. फिल्म को 1963 में केएन बंसल ने बनाया था और फिल्म में भगत सिंह के किरदार में शम्मी कपूर थे.

शहीद (1965)

शहीद फिल्म में मनोज कुमार ने भगत सिंह का किरदार निभाया था. फिल्म को एस राम शर्मा ने डायरेक्ट किया था. ये फिल्म 1965 की सुपरहिट फिल्म साबित हुई और फिल्म के गानों में देशभक्ति की भावना कूट-कूट कर भरी थी.

फिल्म शहीद के बाद 2002 में भगत सिंह पर एक साथ 3 फिल्में बनीं. फिल्म इंडस्ट्री ने ये साल भगत सिंह के नाम लिख दिया.

भगत सिंह का 22 मार्च 1931 को लिखा गया आखिरी खत!

साथियों, स्वाभाविक है जीने की इच्छा मुझमें भी होनी चाहिए. मैं इसे छिपाना नहीं चाहता हूं, लेकिन मैं तभी जिंदा रह सकता हूं जब कैद होकर या पाबंद होकर न रहूं. मेरा नाम हिन्दुस्तानी क्रांति का प्रतीक बन चुका है. क्रांतिकारी दलों के आदर्शों ने मुझे बहुत ऊंचा उठा दिया है, इतना ऊंचा की जीवित रहने की स्थिति में मैं इससे ऊंचा नहीं हो सकता था. मेरे हंसते-हंसते फांसी पर चढ़ने की सूरत में देश की माताएं अपने बच्चों के भगत सिंह होने की उम्मीद करेंगी. इससे आजादी के लिए कुर्बानी देने वालों की तादाद इतनी बढ़ जाएगी कि क्रांति को रोकना नामुमकिन हो जाएगा. आजकल मुझे खुद पर बहुत गर्व है. अब तो बड़ी बेताबी से अंतिम परीक्षा का इंतजार है. कामना है कि यह और नजदीक हो जाए
शहीद भगत सिंह

द लीजेंड ऑफ भगत सिंह (2002)

‘दी लीजेंड ऑफ भगत सिंह’ और मनोज कुमार की ‘शहीद’ 7 जून को रिलीज हुईं हालांकि साल अलग थे. ये महज एक इत्तेफाक ही है. फिल्म में लीड रोल अजय देवगन ने निभाया है. फिल्म में गानों को सुखविंदर और सोनू निगम ने आवाज देकर इंकलाब को जीवंत कर दिया. कहा जाता है कि भगत सिंह का किरदार निभाने के बाद अजय देवगन के विचारों में भी काफी परिवर्तन आया था. कुछ लोग ‘द लीजेंड ऑफ भगत सिंह’ को भगत सिंह पर बनी अब तक की सबसे अच्छी फिल्म मानते हैं.

23 मार्च 1931: शहीद (2002)

23 मार्च 1931 शहीद, गुड्डू धानोवा ने बनाई थी. फिल्म भगत सिंह और उनके साथियों की फांसी पर बनी थी. फिल्म में भगत सिंह का किरदार बॉबी देओल ने निभाया था और सनी देओल चन्द्रशेखर आजाद के रूप में नजर आए थे.

शहीद-ए-आजम (2002)

इस फिल्म में सोनू सूद ने भी भगत सिंह का किरदार बखूबी निभाया है. फिल्म में भगत सिंह और उनके साथी राजगुरु और सुखदेव की दोस्ती को दिखाया गया है.

रंग दे बसंती (2006)

फिल्म ‘रंग दे बसंती’ यूं तो आजाद भारत के 21वीं सदी के कुछ दोस्तों की कहानी है, जिनकी जिंदगी में न तो कोई मकसद है और न ही देश के लिए प्यार. लेकिन ब्रिटेन से आई एक लड़की भगत सिंह और उनके साथियों पर डॉक्यूमेंट्री बनाती है, जिसमें ये सभी लोग किरदार निभाते हैं और देखते-देखते वे सभी किरदार उन लोगों की असल जिंदगी में आ जाते हैं और उन्हें जिंदगी का एक मकसद मिल जाता है.

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