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विनोद खन्‍ना: अभिनेता से संत, फिर संत से राजनेता बनने की कहानी

शुरुआत में विनोद खन्‍ना सिर्फ एक अच्‍छे दिखने वाले खलनायक थे.

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(अभिनेता और राजनेता विनोद खन्‍ना के जन्‍मदिन 6 अक्‍टूबर पर भावना सोमैया बॉलीवुड को उनके अतुलनीय योगदान को याद कर रही हैं.)

कहा जाता है कि जब सुनील दत्‍त ने विनोद खन्‍ना को पहली बार देखा, तो जिस चीज ने सबसे पहले उन्‍हें इस युवा की ओर आकर्षित किया, वह पाकिस्‍तान के पेशावर को लेकर था. सुनील दत्‍त ने विनोद खन्‍ना और अपने छोटे भाई सोम दत्‍त को अपनी होम प्रोडक्‍शन वाली फिल्‍म 'मन का मीत' (1968) से लॉन्‍च करने का फैसला किया.

शुरुआत में विनोद खन्‍ना सिर्फ एक अच्‍छे दिखने वाले खलनायक (विलेन) थे. लेकिन चाहे उनका रोल अच्‍छा हो या बुरा, वे सभी फिल्‍मों में सराहे गए थे, चाहे 1970 की मनोज कुमार के साथ 'पूरब और पश्चिम' हो या राजेश खन्‍ना के साथ 'सच्‍चा और झूठा'.

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साल 1971 उनके करियर के लिए एक अहम पड़ाव साबित हुआ, क्‍योंकि उन्‍हें तीन फिल्‍मों में विभिन्‍न भूमिकाओं में पेश किया गया. सुनील दत्‍त की 'रेशम और शेरा', जिससे अमिताभ बच्‍चन को भी लॉन्‍च किया गया, गुलजार की 'मेरे अपने', जिसने उन्‍हें ए‍क अभिनेता के रूप में पहचान दी और राज खोसला की डकैतों पर आधारित 'मेरा गांव मेरा देश', जिसमें उन्‍होंने सुनील दत्‍त और धर्मेंद जैसे कलाकारों के साथ स्‍क्रीन शेयर की.

व्‍यक्तिगत तौर पर विनोद खन्‍ना ने अपने बचपन के प्‍यार गीतांजलि‍ से शादी की और आने वाले सालों में दो हैंडसम बच्‍चों, अक्षय और राहुल के पिता बने.

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70 का दशक मल्‍टी स्‍टारर फिल्‍मों का दौर था और विनोद खन्‍ना उसमें एक महत्‍वपूर्ण हिस्‍सा थे. उन्‍होंने अमिताभ और अन्‍य कई कलाकारों के साथ काम किया. ऐसे ही रणधीर कपूर के साथ 'हाथ की सफाई' और अमिताभ के साथ 'खून पसीना', 'परवरिश' और 'अमर अकबर एंथनी' थी.

जब मैं विनोद खन्‍ना से 1978 में पहली बार मिला, वह पहले से ही ओशो रजनीश के संपर्क में थे और शूटिंग पर नारंगी रंग का कुर्ता और गले में माला डालकर आए थे. उन्होंने पूरे स्‍टूडियो का चक्‍कर लगाया और अपने कंधे से लटके नारंगी रंग के एक थैले के साथ बैठ गए और शॉट के तैयार होने तक कास्‍टूयम पहनने में थोड़ा इंतजार किया.

इस दौरान मैंने उनसे कई एक सवाल किए और अच्‍छे से याद है कि आप उनसे कोई भी सवाल पूछ लें, उनके पास रजनीश की फिलॉसफी से जुड़ा जवाब तुरंत तैयार होता था.

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तब मुंबई में (उस समय बॉम्‍बे) वह सोमवार से शुक्रवार तक शूटिंग करते थे और सप्‍ताह के आखिरी में रजनीश के साथ समय बिताने के लिये वे पुणे (तब पूना) के लिए बिस्‍तर बांध लेते थे. प्रोड्यूसर उनके रजनीश के साथ लगाव को देखकर थोड़ा चिंतित थे, लेकिन विनोद खन्‍ना अपने आसपास से बेखबर खुश थे.

जैसे-जैसे महीने गुजरते गए, काम में उनकी अरुचि‍ खुलकर सामने आ चुकी थी. तभी एक अहम घटना घटी. रजनीश के पूना के रिसॉट में कुछ समस्‍या थी, जिसके कारण ओशो रात भर में ही पूना से अमेरिका के ओरैगन चले गए और वे चाहते थे कि उनका पसंदीदा शिष्‍य भी उनके पीछे आये.
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1980 के साल में विनोद खन्‍ना लोगों की आंखों के तारे थे. 'द बर्निंग ट्रेन' का एक्‍शन हीरो और सुप्रसिद्ध 'कुर्बानी' का दिल तोड़ने वाला कलाकार. क्‍या विनोद खन्‍ना अपने गुरु को सुनने के लिये अपनी सफलता के चरम को दांव पर रखते?

जैसे ही यह खबर लोगों के कानों में पड़ी, किसी ने भी इसे गंभीरता से नहीं लिया और एक झूठी अफवाह समझकर नकार दिया. लेकिन धीरे-धीरे, जैसे-जैसे दिन बीते, निर्देशकों को विश्‍वास होने लगा कि उन्‍होंने अपने सभी नए प्रोजेक्‍ट अनिश्चित समय तक के लिये रोक दिए हैं. प्रोड्यूसरों ने बताया कि विनोद खन्‍ना साइनिंग एमाउण्‍ट को लौटा रहे हैं. यह सचमुच गंभीर था.
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उनके सह-कलाकर सकते में थे और उनके वितरक गुस्‍से में. मीडिया जानना चाहता था कि आखिर क्‍या चल रहा है. आखिरी में अपने मैनेजर (तब सेक्रेटरी) की सलाह पर विनोद खन्‍ना से एक प्रेस कॉन्‍फ्रेंस बुलवाई गई. जगह थी नई लॉन्‍च हुई सेंटौर (आज तुलिप स्‍टार होटल). उनकी पहली पत्‍नी गीतांजलि‍ और उनके दोनों लड़के भी इस कॉन्‍फ्रेंस का हिस्‍सा थे.

आने वाले हफ्तों में विनोद खन्‍ना ओरैगन चले गए. अगर कहानियों पर विश्‍वास किया जाए, तो रजनीशपुरम आश्रम के एक योग्‍य रखवाले के तौर पर खुद को बदल लिया. प्रत्‍येक सुबह वो जागते और पौधों को पानी देते और फूलों को गाना सुनाते. वह खुश थे. कुछ साल बीत गए. विनोद खन्‍ना शायद मुश्किल से ही भारत आए हों. मीडिया से उनका संपर्क तब तक के लिए टूटा था, जब तक कि उन्‍हें 1985 में उनके तलाक की खबर सुनाई पड़ी.

अपने लंबे निर्वासन के बाद विनोद खन्‍ना एक पॉपुलर मैगजीन के मुख्‍य पृष्‍ठ पर सफेद दाढ़ी के साथ नजर आए. वह फिल्‍म इंडस्‍ट्री के लिए खुशखबरी भरा संदेश था और प्रोड्यूसर उनके घर के बाहर लाइन में जमा होने लगे. अपने अध्‍यात्मिक जीवन से उनका पहला नाता 'इंसाफ' में डिंपल कपाड़‍िया के साथ काम करके टूटा, जिसके बाद इन्‍होंने फिरोज खान के साथ 'दयावान' की. वह अब भी बहुत आकर्षक थे और 'सिंथॉल' जैसे ब्रांड का ऐड करने वालों में सबसे पहले अभिनेता थे. उन्‍होंने यश चोपड़ा के साथ 'चांदनी' और महेश भट्ट के साथ 'जुर्म' का करार किया.

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90 का दशक प्रोफेशनली उनके लिए मंदी का दौर था, लेकिन जब उन्‍होंने कविता से शादी करने का फैसला लिया, तो उनके पास खुशियां मनाने के लिए बहुत कुछ था. 1997 में विनोद खन्‍ना ने अपने लड़के अक्षय खन्‍ना को अपनी होम प्रोडक्‍शन फिल्‍म 'हिमालय पुत्र' से लॉन्‍च किया, लेकिन यह फिल्‍म बहुत बुरी तरह से असफल साबित हुई. सौभाग्‍य से, इसी साल वे भारतीय जनता पार्टी से जुड़ गए और पंजाब में गुरदासपुर लोकसभा क्षेत्र से विजय हुए.

1999 में विनोद खन्‍ना फिर इसी क्षेत्र से दोबारा विजयी हुए, लेकिन अब तक खन्‍ना ने दोनों दुनिया को संभालना सीख लिया था.

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उनकी दो फिल्‍मों, 'क्रान्ति' और 'दीवानापन' के रिलीज होने के बाद मुझे एक समारोह में उन्‍हें जानने का मौका मिला. उन्‍होंने कहा कि उन्‍होंने राजनीति को जिया है, लेकिन ए‍क रचनात्‍मक मौहाल में बने रहने की भी आवश्‍यकता महसूस की है.

2009 में लोकसभा चुनाव हारने के बाद 2014 के आम चुनाव से वे वापस लौटे. एक संत के लिए, जो अपनी मर्सडीज बेचकर एक माली बन गया, एक अभिनेता/राजनेता, जो लोकप्रियता खोने के भय को लेकर अपने जीवन में कई उतार-चढ़ाव से होकर गुजरा.

जहां तक मैं समझती हूं, विनोद खन्‍ना को अब कोई भय नहीं है. वे अब हर एक दिन को भरपूर जीते हैं.

(भावना सोमैया सिनेमा पर 30 वर्षों से लिख रही हैं और 12 बुक्‍स की लेखिका हैं.)

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