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नेटफ्लिक्स की ‘लीला’ प्रयाग अकबर की किताब से कितनी अलग है?

भविष्य की चेतावनी देती नेटफ्लिक्स की नई सीरीज ‘लीला’ हर तरफ छाई हुई है.

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भविष्य की चेतावनी देती नेटफ्लिक्स की नई सीरीज 'लीला' हर तरफ छाई हुई है. 2017 में आई प्रयाग अकबर की नॉवेल 'लीला' पर बनी इस वेब सीरीज में हुमा कुरैशी, शालिनी नाम की एक महिला का किरदार निभाती नजर आती है. वहीं सिद्धार्थ, सूर्यनारायण भानू नाम के एक आर्यावर्त गार्ड का रोल करते नजर आते हैं. ये एक मां की कहानी है, जो अलगाववादी दुनिया में अपनी बेटी को ढूंढ़ने की कोशिश कर रही है.

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‘लीला’ एक ऐसी दुनिया हमारे सामने लाती है, जहां रिसोर्स खत्म हो रहे हैं और लोग धर्म के नाम पर किसी की भी चीज की बलि चढ़ाने को तैयार हैं. इस वेब सीरीज की ज्यादातर चीजें प्रयाग अकबर की नॉवेल से मेल खाती हैं, लेकिन कुछ चीजें किताब से अलग भी है.

ये चीजें है किताब से अलग

1. शालिनी की किडनैपिंग

शो में शालिनी को कुछ गुंडे उसके घर से किडनैप कर लेते है. हिंसा के बावजूद, सीरीज में इस घटना पर ज्यादा ध्यान नहीं दिया गया. शो सिचुएशन के साथ जस्टिफाई नहीं कर पाया है, जबकि ब्रेक-इन और सेट-अप की वजह काफी हद तक एक ही है.

दूसरी तरफ, प्रयाग अकबर के नॉवेल में गुंडे एक पार्टी में आते हैं, जिसे शालिनी और उसके पति ने ऑर्गनाइज किया है. साथ ही शालिनी को जबरन घर से ले जाने वाले सीन में अपमान और लाचारी का इमोशन नजर नहीं आता.

2. जब शालिनी आर्यावर्त के पास से भाग जाती है

शो में हुमा कुरैशी का किरदार काफी विद्रोही है. प्योरिटी टेस्ट, लेबर कैंप और बार-बार आर्यावर्त रिजीम से भागने की कोशिश दिखाती है कि कैसे शालिनी हर चुनौती से लड़ना चाहती है.

हालांकि किताब में, शालिनी का रोल इससे पूरा अलग है. किताब में वो अपनी बेटी को ढूंढ़ना चाहती है, लेकिन वो अपनी ड्यूटी और काउंसिल की पावर को भी समझती है. उसका एकमात्र उद्देश्य है, प्योरिटी कैंप के जरिए एक अच्छी जॉब, जिससे वो टावर तक पहुंच सके और लीला की खोज जारी रख सके.

3. भानु और विद्रोही आर्मी

प्रयाग अकबर की किताब में आर्यावर्त रिजीम के अंदर ही अंदर एक विद्रोही समूह बनने की केवल एक झलक दिखाई जाती है. दूसरी ओर, नेटफ्लिक्स के शो में आर्यावर्त के खिलाफ एक विद्रोही समूह बन गया है. इस समूह को भानू लीड कर रहा है, जबकि किताब में दूर-दूर तक भानू का कोई जिक्र नहीं है.

4. शालिनी का प्योरिटी कैंप में बिताया समय

शो में शालिनी प्योरिटी कैंप में सिर्फ कुछ साल बिताती है, जबकि किताब में वो पूरे 16 साल बिताती है. इस दौरान उसका मानसिक स्वास्थ्य काफी बिगड़ जाता है. टाइम लाइन के इस अंतर से लीला की उम्र में भी फर्क देखा जा सकता है. शो में जब शालिनी को लीला वापस मिलती है, तब वो बच्ची ही होती है, लेकिन किताब में जब शालिनी कैंप से निकलती है, तब लीला 19 साल की हो चुकी होती है.

5. सामाजिक-राजनीतिक माहौल

नेटफ्लिक्स की लीला भारत के वर्तमान सामाजिक-राजनीतिक माहौल को दिखाती है. इसमें संस्कृत मिश्रित हिंदी का इस्तेमाल किया गया है, जिसे हिंदू टेक्स्ट से लिया गया है, जबकि प्रयाग अकबर ने ऐसे किसी शब्द का इस्तेमाल नहीं किया है. उन्होंने भविष्य की बुराइयों को दिखाते सामान्य शब्द- जैसे काउंसिल, टॉवर, सेक्टर, का इस्तेमाल किया है.

6. शालिनी को लीला कैसे वापस मिली?

प्रयाग अकबर की लीला नेटफ्लिक्स वाली लीला से बहुत सिंपल है. सीरीज में शालिनी बहुत ट्विस्ट एंड टर्न के बाद लीला को ढूंढ़ती है. वो अपने भाई-भाभी की हरकतों पर नजर रखने के लिए चाइल्ड ट्रैफिकिंग एजेंसी के पास जाती है.

वहीं नॉवेल में, शालिनी रिकॉर्ड टावर तक पहुंचती है और उस क्षेत्र के उन बच्चों को ट्रैक करती है, जो उसकी बेटी की उम्र के हैं. किताब में उसका तरीका एकदम साफ-सुथरा और आत्मनिर्भर है.

7. हुमा कुरैशी का सेंटर स्टेज कैरेक्टर

प्रयाग अकबर की लीला में, शालिनी स्पेशल नहीं है. अपने आस-पास की दुनिया की तरह वो नॉन-स्पेसिफिक है. किताब में हम, इस दुनिया में उसकी जद्दोजहद, उम्मीद भरी नजरों से देखते हैं.

वहीं नेटफ्लिक्स के वर्जन में, शालिनी अपने आस-पास के माहौल में नहीं ढ़लती. सिस्टम से लड़ती है, सवाल करती है, और तो और निडरता के साथ लोगों को ट्रिक भी करती है.

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