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Bard of Blood: रफ्तार है, लेकिन अंजाम का अंदाजा भी लग जाता है

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Bard of Blood

Bard of Blood: रफ्तार है, लेकिन अंजाम का अंदाजा भी लग जाता है

(ये एक स्पॉयलर फ्री रिव्यू है)

Bard of Blood में एक सीन है, जिसमें एक भारतीय एजेंट को तालिबान पकड़ लेता है. एजेंट को जानबूझकर गुस्सा दिलाया जाता है. आतंकवादी उसकी जमकर पिटाई करते हैं, फिर उस पर कई तरह के आरोप लगाते हैं. इस तरह के सीन में दर्शक भरपूर दिलचस्पी लेते हैं और वो पूरे ध्यान से सीन देखते हैं. इस शो में ज्यादातर ऐसे ही सीन हैं. बेहतरीन सस्पेंस बनाएं गए हैं, लेकिन अक्सर दर्शकों को उनके अंजाम का अंदाजा हो जाता है.

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शो बलूचिस्तान में तैयार हुआ है.
(फोटो साभार: नेटफ्लिक्स)

यहां देखिए ट्रेलर -

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ये शो बिलाल सिद्दीकी के उपन्यास The Bard of Blood पर आधारित है. बिलाल जब कॉलेज में थे, उसी वक्त उन्होंने ये उपन्यास लिखा था. संक्षेप में कहा जाए तो शो में रॉ का एक पूर्व एजेंट कबीर आनंद (इमरान हाशमी) है, जिसका कोड नाम ओडोनिस है (ये कोड नाम क्यों है, किसी को समझ नहीं आया). तीन लोगों की टीम के साथ वो बलूस्चिस्तान में भारतीय जासूसों को बचाने के मिशन पर निकला है. उसकी टीम में सीनियर एनालिस्ट के रुप में इशा खन्ना (शोभिता धुलिपाला) हैं, जो फील्ड में जाना तो चाहती हैं, लेकिन महिला होने के कारण उन्हें इजाजत नहीं मिलती (स्टीरियोटाइप या सच्चाई, ये फैसला आपके ऊपर). टीम के दूसरे सदस्य वीर (विनीत कुमार सिंह) हैं, जो सात साल से अफगानिस्तान में अंडरकवर हैं और घर लौटने को बेताब हैं.

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वीर के रोल में विनीत कुमार सिंह
(फोटो साभार: नेटफ्लिक्स)
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सीनियर अनालिस्ट के किरदार में शोभिता धुलिपाला
.(फोटो साभार: नेटफ्लिक्स)

शो का फिल्मांकन संवेदनशील जगह हुआ है. हम जानते हैं कि बलूचिस्तान आजादी पाने के लिए हर तरह से दबाव डाल रहा है. इसी कारण पड़ोसी देशों का भी वहां दबाव बना रहता है. फिर भी निर्देशक रिभु दासगुप्ता और स्क्रीनप्ले राइटर मयंक तिवारी शो की जरूरत के मुताबिक कई जगह उसकी रफ्तार बनाए रखने में कामयाब रहते हैं. लिहाजा आप राजनीति में दिलचस्पी रखते हैं, लेकिन आपका सामना कबीर और उसके सहयोगियों से होता है, जो अगले हमले से बचने के लिए संघर्ष कर रहे होते हैं. उदाहरण के लिए, एक सीन में एक शख्स कबीर और ईशा को चाय देने के लिए आता है. अगले ही पल उनके घर में पुलिस दरवाजा तोड़कर घुस जाती है. दर्शक सकते में आ जाते हैं, लेकिन कुल मिलाकर पेस बना रहता है.

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अंतरा लाहिड़ी, नितिन बैद और संगीत वर्गिस की एडिटिंग भी काबिल-ए-तारीफ है. चितरंजन दास ने बेहतरीन कैमरा किया है. रेगिस्तान के विजुअल्स शानदार हैं.  
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कीर्ति कुल्हारी एक छोटे, लेकिन प्रभावशाली किरदार में हैं
(फोटो साभार: नेटफ्लिक्स)

मेरे लिए शो के दो सबसे दिलचस्प कैरेक्टर्स जन्नत मेरी (कीर्ति कुलहारी) और तनवीर शहजाद (जयदीप अहलावत) हैं. कीर्ति का किरदार राहत देता है. उसे बलूचिस्तान से प्यार है. जयदीप वहां ISA के लिए काम करता है. वो सौम्य स्वभाव का भी है और निर्दयी भी. दोनों रूपों के साथ वो स्क्रीन पर ज्यादा देर तक नहीं आए, लेकिन जितनी देर के लिए आए, अपना प्रभाव छोड़ गए.

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शहजाद के किरदार में जयदीप अहलावत
(फोटो साभार: नेटफ्लिक्स)
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Bard of Blood में ‘बच्चा बाजी’ जैसे पारंपरिक पहलुओं को भी दिखाया गया है. इस परंपरा में बूढ़े मुस्लिम पुरुषों के सामने बच्चे नाचते हैं और अक्सर यौन गुलाम बन जाते हैं. ये परंपरा आतंकवादियों के चरित्र का भी बखान करती है. आंखों में सूरमा लगाए और हर वक्त उत्तेजना से भरे लोगों के चरित्र में गहराई नहीं होती. सिर्फ उनका मुल्ला नेता अस्वाभाविक रूप से शांत रहता है, जिसका चेहरा समुद्री डाकू की तरह दिखता है. शायद ये उस नैरेटिव को मजबूत बनाने के लिए है, जिसमें इमरान बचाव के लिए बलूचिस्तान पहुंचे हैं.

शो की रफ्तार कभी-कभी जरूरत से ज्यादा तेज लगती है, तो कभी लगता है कि घटनाओं को कुछ ज्यादा ही सरल बना दिया गया. कबीर को सूडोकू के जरिये अपने मृत मेंटर से मालूम होता है कि उसे एक मिशन पर जाना है. वो सोचता है कि हो सकता है कि ये संदेश सिर्फ उसके लिए हो, क्योंकि वहां और भी एजेंट हैं. लिहाजा उसे जल्द जाना चाहिए. एक जगह एक हमले से पहले वीर पूछता है, “बहुत रिस्की है?” और कबीर उसे जवाब देता है, “हुह, ये तालिबान है, जिनसे लड़ने के लिए तुम यहां आए हो.”

शो में हंसोड़ पल भी हैं. रिभु के निर्देशन में कहानी में कुछ ताजगी है. ये भोले-भाले आम लोगों की तरह भी बर्ताव करते हैं. वो सुपरहीरो नहीं हैं, कई बार मात खाते हैं, उम्मीद छोड़ देते हैं फिर अपना उत्साह बढ़ाते हैं. इन सबसे पीछे उनकी बेवकूफियां छिप जाती हैं.

इमरान हाशमी का अभिनय बेहतरीन है. उनमें आम लोगों की तरह और साथ ही एक हीरो की रूप में व्यवहार करने की अद्भुत क्षमता है. वो शेक्सपीयर और कैसाब्लांका का जिक्र करता है, तो कभी-कभी अनजाने में मजाक भी कर बैठता है, जो बिलकुल स्वाभाविक लगता है.  
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इमरान हाशमी का बेहतरीन अभिनय
(फोटो साभार: नेटफ्लिक्स)

शो का क्लाइमैक्स दर्शकों के रोंगटे खड़े कर देता है. हालांकि हर एपिसोड का अंत बेहतरीन है, लेकिन क्लाइमैक्स बेमिसाल है. कुल मिलाकर कहें तो Bard of Blood एक मिशन इम्पॉसिबल को एजेंटों की वास्तविक ज़िंदगी के साथ बेहतरीन तरीके से गुंथा गया है, जिसमें बलिदान है, दर्द है, और फिर भी मुस्कुराते हुए जिंदगी को जीने की ललक है.

Bard of Blood नेटफ्लिक्स पर 27 सितम्बर से स्ट्रीम हो रहा है.

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