देश का सबसे बड़ा घोटाला बताए जाने वाले 2-जी स्पेक्ट्रम केस में कोर्ट ने फैसला सुना दिया है. इस मामले में कॉरपोरेट, राजनेता समेत सभी आरोपियों को सीबीआई कोर्ट ने बरी कर दिया है. सीबीआई कोर्ट में सबूत पेश करने में नाकाम रही.
आइए आपको बताते हैं क्या है 2-जी घोटाले का पूरा मामला.
क्या है 2-जी स्पेक्ट्रम घोटाला?
ये घोटाला पहली बार साल 2010 में सामने आया जब भारत के महालेखाकार और नियंत्रक यानी सीएजी ने अपनी एक रिपोर्ट में साल 2008 में किए गए टेलीकॉम स्पेक्ट्रम आवंटन पर सवाल खड़े किए. इस आवंटन में टेलीकॉम कंपनियों को नीलामी की बजाय ‘पहले आओ और पहले पाओ’ की नीति पर लाइसेंस दिए गए थे.
सीएजी का दावा था कि नियमों की अनदेखी कर हुए इस आवंटन की वजह से सरकारी खजाने को एक लाख 76 हजार करोड़ रूपए का नुकसान हुआ था. इस रिपोर्ट ने तत्कालीन यूपीए सरकार और पूरे देश को हिलाकर रख दिया था. सीएजी की रिपोर्ट में दिए गए 1.76 लाख करोड़ रुपए के आंकड़े पर विवाद भी खूब हुआ लेकिन तब तक ये घोटाला राजनीतिक विवाद की शक्ल ले चुका था और सुप्रीम कोर्ट तक में याचिका दायर कर दी गई थी. इसके बाद फरवरी 2012 में सुप्रीम कोर्ट ने सभी 122 लाइसेंस रद्द कर दिए थे.
किन कंपनियों के लाइसेंस रद्द हुए?
कोर्ट ने कुल 122 लाइसेंस रद्द किए थे जो 8 टेलीकॉम कंपनियों को दिए गए थे. इन कंपनियों में आइडिया को छोड़कर बाकी सभी टेलीकॉम कंपनियां अपना कारोबार समेट चुकी हैं. जो लाइसेंस रद्द किए गए वो इस प्रकार थे:
- कंपनी लाइसेंस की संख्या
- यूनिटेक 22
- सिस्टमा 21
- लूप मोबाइल 21
- वीडियोकॉन 21
- एतिसलात-डीबी (स्वान) 15
- आइडिया 13
- एस-टेल 06
- टाटा टेली 03
किन पर हैं 2-जी स्पेक्ट्रम घोटाला में शामिल होने के आरोप
इस घोटाले की आंच यूपीए सरकार के मुखिया यानी तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और वित्त मंत्री पी. चिदंबरम तक पहुंची. लेकिन मुख्य रूप से आरोप लगे तत्कालीन संचार मंत्री ए राजा समेत कई बड़े सरकारी अफसरों और कॉरपोरेट हस्तियों पर.
केंद्रीय जांच ब्यूरो यानी सीबीआई ने इस घोटाले की वजह से सरकारी खजाने को 30,984 करोड़ रुपए के नुकसान का अंदाजा लगाया और ए राजा पर आरोप लगाया कि उन्होंने साल 2001 में तय की गई दरों पर स्पेक्ट्रम बेचा. राजा पर रिश्वत लेकर अपनी पसंदीदा कंपनियों को तरजीह देने का आरोप लगा. उनके साथ तमिलनाडू के पूर्व मुख्यमंत्री एम करूणानिधि की बेटी और सांसद कनिमोई, पूर्व टेलीकॉम सेक्रेटरी सिद्धार्थ बेहुरा और ए राजा के निजी सचिव आर के चंदोलिया पर भी आरोप तय किए गए.
कॉरपोरेट हस्तियों में स्वान टेलीकॉम के प्रोमोटर शाहिद बलवा और डायरेक्टर विनोद गोयनका, यूनिटेक के डायरेक्टर संजय चंद्रा, आसिफ बलवा, राजीव अग्रवाल, शरद कुमार और रिलायंस कम्युनिकेशंस के वरिष्ठ अफसरों गौतम दोषी, सुरेंद्र पिपारा और हरि नायर के नाम सामने आए. एस्सार ग्रुप के रवि रुइया और अंशुमान रुइया और लूप टेलीकॉम के किरण खेतान और आई पी खेतान के नाम भी घोटाले में शामिल पाए गए.
जांच एजेंसियों ने क्या पता लगाया?
सीबीआई ने अपनी चार्जशीट में बताया था कि कुछ खास टेलीकॉम कंपनियों को लाइसेंस देने के लिए कटऑफ की तारीख को बदल दिया गया था.
ये बदलाव संचार मंत्री ए राजा के निर्देश पर किए गए थे. वहीं प्रवर्तन निदेशालय यानी ईडी ने अपनी जांच में पाया कि 2जी घोटाले के दौरान 200 करोड़ रुपये की हेराफेरी की गई. ईडी की चार्जशीट में आरोप लगाया गया कि आरोपियों ने जिन 200 करोड़ की हेराफेरी की थी, वो रिश्वत का पैसा था जो ए राजा को नियमों के विपरीत लाइसेंस देने के एवज में मिला था.
अब तक क्या सजा मिली थी
ज्यादातर आरोपी कुछ महीनों की जेल के बाद जमानत पर रिहा हो गए थे. ए राजा और सिद्धार्थ बेहुरा 15 महीनों तक जेल की सजा काट चुके हैं. वहीं आर के चंदोलिया 11 महीने तक जेल में रह चुके हैं. शाहिद बलवा को 10 महीनों तक जेल में रहने के बाद जमानत मिली, वहीं संजय चंद्रा, गौतम दोशी और विनोद गोयनका को 7-7 महीने तक जेल में रहना पड़ा. कनिमोई को भी 6 महीने जेल में बिताने पड़े हैं.
किन धाराओं के तहत लगे आरोप?
आरोपियों पर भ्रष्टाचार निरोधक कानून और प्रिवेंशन ऑफ मनी लॉन्डरिंग एक्ट के तहत चार्ज लगाए गए हैं. साथ ही आईपीसी की धारा 120 बी ( आपराधिक साजिश रचना), 409 ( आपराधिक धोखाधड़ी कर विश्वास तोड़ना), 420 (धोखा देना), 468 (कागजातों के साथ जालसाजी करना) और 471 (गलत दस्तावेजों को सही बताकर पेश करना) भी उन पर लगाई गई थी. कोर्ट में सुनवाई के दौरान पूर्व अटॉर्नी जनरल गुलाम वाहनवती और रिलायंस एडीए ग्रुप के प्रमुख अनिल अंबानी को भी गवाह के रूप में बुलाया गया था.
स्पेशल कोर्ट का फैसला क्या रहा?
21 दिसंबर को कोर्ट ने अपने फैसले में सभी आरोपियों को बरी कर दिया. कोर्ट का कहना था कि सीबीआई अपने आरोप साबित करने में नाकाम रही है.
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