एक तरफ अलग-अलग कई पहचान पत्र की जगह एक आधार कार्ड (Aadhaar Card) होने की सहूलियत तो दूसरी तरफ सरकारी मशीनरी के हाथों हमारी निजता के उल्लंघन का खतरा- बुद्धिजीवी वर्ग से लेकर आम लोगों के बीच बहस का यह मुद्दा नया नहीं है. लेकिन अबकी जब दिल्ली पुलिस ने आधार की मदद से आरोपी की पहचान के लिए हाई कोर्ट का दरवाजा खटखटाया है तो यह सवाल फिर जीवंत हो उठा है.
दिल्ली पुलिस एक मर्डर केस में आरोपी की पहचान के लिए आधार डेटाबेस तक पहुंच की मांग के साथ हाई कोर्ट पहुंची है. दिल्ली पुलिस ने कहा है कि कोर्ट भारतीय विशिष्ट पहचान प्राधिकरण (UIDAI) को यह निर्देश दे कि वह आधार डेटाबेस के साथ एक संदिग्ध की तस्वीर और घटनास्थल से बरामद फिंगर-प्रिंट का मिलान करे और आरोपी की पहचान करने में मदद करें.
UIDAI ने दिल्ली पुलिस को कहा ना
हाई कोर्ट में दिल्ली पुलिस की याचिका का विरोध करते हुए UIDAI ने गुरुवार, 17 फरवरी को कहा कि कानून उसे किसी के साथ भी आधार से जुड़ी कोर बायोमेट्रिक जानकारी साझा करने से रोकता है.
यह स्वीकार करते हुए कि UIDAI पुलिस को बायोमेट्रिक डेटाबेस तक पहुंच की इजाजत नहीं दे सकती, जस्टिस मुक्ता गुप्ता ने पूछा कि क्या UIDAI खुद संदिग्ध की पहचान करने के लिए जांच एजेंसी के पास उपलब्ध सबूतों का उपयोग कर सकती है.
"बेशक आप इसकी (बायोमेट्रिक डेटाबेस) आपूर्ति नहीं करेंगे. आप इसे शेयर नहीं करेंगे. वो आपको बायोमेट्रिक और फिंगर प्रिंट देंगे. यदि यह आपके डेटाबेस में मैच करता है, तो आप कहेंगे कि यह इस व्यक्ति के साथ मेल खा रहा. आप उनके साथ (बायोमेट्रिक जानकारी) साझा नहीं करेंगे, निश्चित रूप से नहीं.”जस्टिस मुक्ता गुप्ता
दिल्ली हाई कोर्ट ने UIDAI को चार सप्ताह के भीतर रिपोर्ट दाखिल कर यह बताने को कहा है कि क्या आधार अधिनियम उसे यह जानकारी किसी जांच एजेंसी के साथ शेयर करने की अनुमति देता है. मामले की अगली सुनवाई 28 अप्रैल को होगी.
आधार: सुरक्षा बनाम निजता का मुद्दा
सबसे पहले आपको बता दें कि आधार एक्ट 2016 के तहत, UIDAI आधार नामांकन और प्रमाणीकरण (ऑथेंटिकेशन) के लिए जिम्मेदार है. UIDAI के दायित्वों में आधार के सभी चरणों के संचालन, प्रबंधन, व्यक्तियों को आधार नंबर जारी करने के लिए पॉलिसी, प्रक्रिया और प्रणाली विकसित करना और पहचान की जानकारी की सुरक्षा शामिल है.
अब आते हैं आधार के लाभ और उससे जुड़े मुद्दों पर.
जहां एक तरफ आधार को राशन कार्ड,पैन कार्ड, वोटरकार्ड और ऐसे तमाम पहचानपत्र की जगह एक सार्वभौमिक पहचानपत्र के रूप में स्थापित होने के लिए जाना जाता है वहीं इसने डाइरेक्ट बेनिफिट ट्रांसफर की मदद से सरकार के लिए अंतिम पायदान तक योजनाओं के लाभ को पहुंचाने का विकल्प उपलब्ध कराया.
हालांकि इस तमाम लाभों के साथ-साथ सरकार के हाथ में देश के लगभग हर इंसान की बायोमेट्रिक जानकारियों का पूरा डेटाबेस हाथ लगा. दूसरी तरफ आम जनता की निजता के उल्लंघन का डर:
आइडेंटिटी थेफ्ट (पहचान की चोरी), सरकारी मशीनरी के द्वारा बिना सहमति के पहचान, सरकार द्वारा अवैध सर्विलांस और ट्रैकिंग का खतरा और डाटा के प्रयोग से जुड़ी पॉलिसी में अस्पष्टता जैसे कई मुद्दों पर आधार का विरोध किया गया. आधार की संवैधानिकता को सुप्रीम कोर्ट में भी चुनौती दी गयी.
क्या कहता है आधार अधिनियम 2016, कब सौंपनी होगी बायोमेट्रिक जानकारी
UIDAI ने दिल्ली हाई कोर्ट में सही कहा है कि वह आधार डेटाबेस से पुलिस को बायोमेट्रिक डिटेल्स देने के लिए अधिकृत नहीं है.
आधार अधिनियम 2016 के सेक्शन 29 के सब-क्लॉज 1 के अनुसार "इस अधिनियम के तहत एकत्र या तैयार कोई भी कोर बायोमेट्रिक जानकारी- (A) किसी भी कारण से किसी के साथ साझा नहीं की जाएगी, या (B) इस अधिनियम के तहत आधार नंबर और प्रमाणीकरण (ऑथेंटिकेशन) के अलावा किसी अन्य उद्देश्य के लिए उपयोग की नहीं की जाएगी."
आधार अधिनियम 2016 के अनुसार गैर-बायोमेट्रिक जानकारी को साझा किया जा सकता है, लेकिन उसके लिए भी अदालत का आदेश जरूरी है.
हालांकि सिर्फ और सिर्फ एक ही स्थिति है जहां आधार अधिनियम की धारा 33 (2) के अनुसार UIDAI को बायोमेट्रिक जानकारी सौंपने के लिए कहा जा सकता है- यदि कोई अधिकारी, जो केंद्र सरकार के संयुक्त सचिव के पद से नीचे का न हो और जिसे इसके लिए विशेष रूप से अधिकार दिए गए हों, वो राष्ट्रीय सुरक्षा के हित में ऐसा अनुरोध करता है.
आधार पर सुप्रीम कोर्ट का फैसला
सुप्रीम कोर्ट की 5 सदस्यीय बेंच ने 26 सितंबर 2018 को 4:1 के फैसले के साथ आधार की संवैधानिक वैधता को बरकरार रखा था. तात्कालिक CJI दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली संविधानिक पीठ ने कहा कि आधार का मतलब समाज के हाशिए के वर्गों तक पहुंचने में मदद करना है और यह न केवल व्यक्तिगत, बल्कि सामुदायिक दृष्टिकोण से भी लोगों की गरिमा को ध्यान में रखता है.
हालांकि कोर्ट ने आधार की संवैधानिक वैधता को कुछ शर्तों के साथ बरकरार रखा था. इसमें कहा गया है कि धारा 33 (2) के अनुसार आधार की जानकारी के प्रकटीकरण के लिए राष्ट्रीय सुरक्षा अपवाद को भी समाप्त कर दिया गया है.
बावजूद इसके जब सरकार पर इजरायली स्पाईवेयर पेगासस की मदद से अपने राजनीतिक विरोधियों से लेकर पत्रकारों और यहां तक कि अदालत के कर्मचारियों की जासूसी का आरोप हो वहां सिविल सोसाइटी का एक वर्ग आधार के डेटाबेस के कारण अपनी निजता पर खतरा महसूस कर रहा है.
विदेशों में सुरक्षा मामलों में बायोमेट्रिक्स का उपयोग
अमेरिका सहित दुनिया के कई ऐसे देश हैं जहां सुरक्षा मामलों में बायोमेट्रिक्स का उपयोग किया जाता है.
अमेरिका के होमलैंड सिक्योरिटी विभाग में, बायोमेट्रिक्स का उपयोग यू.एस. में अवैध प्रवेश का पता लगाने और रोकने के लिए किया जाता है. साथ ही उचित आव्रजन (इमिग्रेशन) लाभ प्रदान करने और मैनेज करने, पुनरीक्षण और क्रेडेंशियल, वैध यात्रा और व्यापार को सुविधाजनक बनाने तथा संघीय कानूनों को लागू करने के लिए बायोमैट्रिक्स का उपयोग किया जाता है.
इसके अलावा अमेरिकी रक्षा विभाग द्वारा एकत्रित बायोमेट्रिक्स को रक्षा फोरेंसिक और बायोमेट्रिक्स एजेंसी (DFBA) द्वारा नियंत्रित किया जाता है. इनका उपयोग रक्षा विभाग आतंकियों की पहचान करने और मुकदमों में उन्हें दोषी निर्दोष सिद्ध करने के लिए करता है.
इजरायल में बायोमेट्रिक डेटाबेस लॉ नाम का एक कानून है जिसे केसेट (संसद) ने दिसंबर 2009 में पारित किया था. इसके अनुसार सभी इजरायली निवासियों से उंगलियों के निशान और फोटो का डेटाबेस तैयार किया गया.
इसका उपयोग व्यक्तियों की पहचान करना और कानून प्रवर्तन अधिकारियों द्वारा आपराधिक गतिविधि के संदिग्ध व्यक्तियों का पता लगाने के लिए किया जाता है.
रूस में 90 दिनों से अधिक की अवधि के लिए रोजगार के उद्देश्य से आने वाले विदेशी नागरिकों के लिए मेडिकल टेस्ट के अलावा अनिवार्य फिंगरप्रिंट और फोटो देना होता है. 29 दिसंबर 2019 से लागू इन नए नियमों पर भी कई बार निजता के उल्लंघन और बायोमेट्रिक्स का पुतिन सरकार द्वारा गलत इस्तेमाल का आरोप लगता रहा है.
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