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अफगानिस्तान,सीरिया..2021 में इन देशों ने जंग और भूख देखी, 2022 भी आशंकाओं से भरा

मानवीय संकट से गुजर रहे इन देशों में किस तरह से गुजर रही है लोगों की जिंदगी

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पिछले कई सालों से हिंसात्मक गतिविधियों में झुलस रहे सीरिया (Syria) और यमन (Yemen) में इस वर्ष भी लगभग स्थिति खराब ही रही. दूसरी ओर अफगानिस्तान (Afghanistan), म्यांमार (Myammar), सूडान (Sudan) और इथियोपिया (Ethiopia) जैसे देशों में नई तरह की अशांति व अस्थिरता पैदा होती नजर आई. इंटरनेशनल रेस्क्यू कमेटी (IRC) की इमरजेंसी वॉचलिस्ट दुनिया भर में हुए मानवीय संकटों की ओर इशारा करती है. रिपोर्ट्स में संभावना जताई गई है कि आने वाले वर्षों के दौरान इन देशों में स्थित और ज्यादा खराब हो सकती है.

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आईआरसी (International Rescue Committee) के अध्यक्ष और सीईओ डेविड मिलिबैंड ने जोर देते हुए कहा कि विस्थापित परिवारों और विशेष रूप से महिलाएं व लड़कियां विभिन्न देशों में पैदा हुए संकटों से बुरी तरह प्रभावित हुई हैं.

आइए जानते हैं उन देशों के बारे जिन्होंने पिछले साल या फिर एक दशक में संघर्ष के दिन देखे हैं. इन देशों में पैदा हुए आंतरिक संघर्ष के कारण कोरोना महामारी और क्लाइमेट चेंज जैसी ग्लोबल चुनौतियों से लड़ने में नागरिकों को काफी ज्यादा मुश्किलों का सामना करना पड़ा है.

1- अफगानिस्तान: संघर्ष के बाद का संकट

अगस्त 2021 में अफगानिस्तान पर तालिबान ने अपना कब्जा जमा लिया और देश के राष्ट्रपति अशरफ गनी देश छोड़कर चले गए. इसी के साथ करीब पिछले 20 सालों से तैनात अमेरिकी सेना ने भी वहां से अपने पैर पीछे की ओर खींचने का फैसला किया.

अफगानिस्तान पर तालिबान के कब्जे से पहले ही देश में हिंसात्मक गतिविधियां देखी गई थीं.

महिलाओं और बच्चों के सामने चुनौतियां

2021 के मई महीने में काबुल स्थित लड़कियों के एक स्कूल पर बम विस्फोट की घटना हुई. इस दौरान कम से कम 60 लोगों की मौत हो गई, जिसमें पढ़ने वाली लड़कियां भी शामिल थीं.

जुलाई में जारी की गई एक रिपोर्ट के मुताबिक 2021 के पहले छह महीनों में, अफगानिस्तान में मारे जाने वाली महिलाओं और बच्चों आंकड़े 2009 के बाद, एक साल में सबसे अधिक है.

इस बीच, अफगानिस्तान के नागरिकों को सूखे और COVID-19 की संभावित चौथी लहर का सामना करना पड़ रहा है.

रिपोर्ट्स के मुताबिक अनुमान लगाया गया है कि 2022 के मध्य तक अफगानिस्तान में सार्वभौमिक गरीबी 97 प्रतिशत के करीब पहुंच सकती है. देश के 90 प्रतिशत से अधिक हेल्थ क्लीनिकों के बंद होने, कोरोना के खतरे, बीमारी के प्रकोप और कुपोषण से देश के सामने एक बड़ा संकट मंडरा रहा है.

दिसम्बर में यूएन फूड प्रोग्राम ने राजनीति से इतर एक सम्भावित आपदा को रोकने के लिये अन्य देशों से समर्थन बढ़ाने की अपील की है.

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2- सूडान: क्षेत्रीय सूखे और संघर्ष के बीच राजनीतिक तनाव

साल 2019 में सूडान के पूर्व राष्ट्रपति ओमार अल बशीर के सत्ता से हटने के बाद, देश में सेना और राजनैतिक नेताओं के बीच सत्ता के बंटवारे को लेकर किया गया समझौता, 2021 के अक्टूबर महीने में सैन्य तख्तापलट के बाद टूट गया. यूएन के विशेष दूत ने सुरक्षा परिषद को बताया है कि इस स्थिति में फिर से भरोसा बहाल कर पाना एक चुनौती बना हुआ है.

अंतरिम सरकार चलाने वाली परिषद के चीफ जनरल अब्देल फतह अल बुरहान ने तख्ता पलट होने के बाद देश को संबोधित करते हुए सेना और जनता के प्रतिनिधियों के बीच सत्ता की साझेदारी के समझौते को तोड़ने और मंत्रिमंडल को भंग करने का ऐलान किया.

सूडान में अंतरिम सरकार का तख्ता पलट कर दिया गया और देश की बागडोर सेना के हाथों में आ गई. इसके बाद सेना ने इमरजेंसी का ऐलान करते हुए देश के प्रधानमंत्री और दूसरे नेताओं को गिरफ्तार कर लिया.

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आर्मी की इस कार्रवाई के विरोध में राजधानी खार्तूम में लोग विरोध करते हुए सड़कों पर उतर आए और राजधानी में भगदड़ हुई और साथ में गोलियां भी चलीं.

1956 में देश को स्वतंत्रता मिलने के बाद से ही सूडान में राजनीतिक अस्थिरता बनी हुई है और इससे पहले तख्तापलट की लगातार कई कोशिशें हुईं थीं.

बुरी तरह से प्रभावित हुए नागरिक

इस साल देश में राजनीतिक अशांति होने की वजह से लोगों को अपने घरों को छोड़कर तुनैदबा शिविर जैसी जगहों पर जाने के लिए मजबूर होना पड़ा.

राजनीतिक अस्थिरता पैदा होने की वजह से मानवीय जोखिम भी देखने को मिला. रिपोर्ट्स के मुताबिक दारफुर, दक्षिण कोर्डोफन और ब्लू नाइल में शांति दिखती नहीं नजर आ रही है.

देश में मंहगाई आसमान छू रही है और मौजूदा वक्त में डेबिट रिलीफ को रद्द किया जा सकता है.

जलवायु परिवर्तन की वजह से देश में बाढ़ और सूखे जैसी स्थिति की संभावना बनती दिखाई पड़ रही है. इसी के साथ टिड्डियों की वजह से खतरा सामने आता दिख रहा और खाद्य असुरक्षा देश के लगभग 6 मिलियन लोगों को प्रभावित कर सकती है.

सूडान देश की कुल जनसंख्या 44.9 मिलियन है, जिसमें से तीन मिलियन नागरिक आंतरिक रूप से विस्थापित हुए हैं.

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3- सीरिया: एक दशक के युद्ध और आर्थिक संकट से देश का बुरा हाल

सीरिया करीब एक दशक से संघर्ष और असुरक्षा से जूझ ही रहा था कि हाल ही में कृषि आग, कोरोना महामारी से देश में आर्थिक तबाही मच गई, जिससे नागरिकों के सामने नई-नई चुनौतियां नजर आने लगीं.

भारतीय वैश्विक परिषद की रिपोर्ट के मुताबिक सीरिया में क्षेत्रीय कॉम्पटीशन बढ़ा है और कई तरह के हस्तक्षेपों की वजह से यह सम्प्रदायवादी, वैचारिक, कट्टरपंथी लोगों के लिए एक रणनीतिक केन्द्र तथा विद्रोह में हवा देने की एक जगह बनता जा रहा है.

हेल्थ और एजुकेशन सिस्टम पूरी तरह से ध्वस्त

रिपोर्ट्स के मुताबिक सीरिया में हुए गृहयुद्ध की वजह से अब तक लगभग 3 लाख से अधिक लोग मारे जा चुके हैं. देश में हेल्थ और एजुकेशन सिस्टम पूरी तरह से ध्वस्त हो चुकी है, 88 प्रतिशत हॉस्पिटल्स सेवाएं खत्म हो चुकी हैं और मानव अधिकार संगठन से संबंद्ध हजारों डॉक्टरों की हत्याएं की जा चुकी हैं.

मौजूदा वक्त में सीरिया में शिया इस्लाम की एक ब्रांच अलवाइन सोसायटी में टॉप पर है. आबादी में सुन्नी की जनसंख्या 75 प्रतिशत के साथ सबसे ज्यादा है.

ह्यूमन राइट वॉच तथा अरब ऑर्गनाइजेशन्स के मुताबिक सीरिया की हालत युगोस्लाविया में हुए 1990 के गृहयुद्ध से भी ज्यादा खतरनाक है.
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इंटरनेशनल रेस्क्यू कमेटी की रिपोर्ट के मुताबिक देश की कुल जनसंख्या 21.7 मिलियन में से 6.8 मिलियन लोग आंतरिक रूप से विस्थापित हुए हैं. देश में खाद्य असुरक्षा और मंहगाई में तेजी आने के बाद देश के नागरिक आर्थिक संकट का सामना कर रहे हैं.

‘सीरिया में संकटों की सुनामी’

यूएन के विशेष दूत गेयर पैडरसन ने साल 2021 के दौरान कई बार सीरिया में मानवीय स्थिति व सुरक्षा हालात पर वास्तविक टिप्पणी की, उन्होंने कहा कि सीरिया संकटो की एक धीमी सुनामी से जूझ रहा है.

रिपोर्ट्स के मुताबिक सीरिया में नए संविधान पर सहमति के लिये अक्टूबर में कोशिशें शुरू की गईं लेकिन कोई अच्छा रिजल्ट नहीं निकल सका.

गेयर पैडरसन ने देश में बने हुए मौजूदा हालात को बेहद चिंताजनक माना है लेकिन कॉन्स्टीट्यूशनल कमेटी के सदस्यों से अपना काम जारी रखने का आग्रह किया है.

वाटिकन न्यूज की रिपोर्ट के मुताबिक सीरिया में मानव अधिकारों पर नजर रखने वाले बताते हैं कि नए आंकड़ों के मुताबिक सीरिया के उत्तरी क्षेत्रों में इस साल चल रहे संघर्ष में 3 हजार से अधिक लोग मारे गए हैं, जो अब तक की एक साल में हुई सबसे कम मृत्यु है. इस संघर्ष में कुल करीब 5 लाख लोग मारे गए हैं. यह द्वितीय विश्व युद्ध के बाद से लोगों का सबसे बड़ा विस्थापन है.

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4- म्यांमार: हिंसक गतिरोध से देश में शांति व सुरक्षा की चुनौती

म्यांमार में तख्तापलट होने और सेना के सत्ता में आने के बाद से पूरे देश में संघर्ष और नागरिक अशांति फैल गई है. देश में 2021 के दौरान 2 लाख 20 हजार नागरिक विस्थापित हुए हैं.

सेना ने फरवरी में देश के शीर्ष पॉलिटिकल लीडर्स और सरकारी अधिकारियों को तख्तापलट के दौरान हिरासत में ले लिया, जिनमें स्टेट काउंसलर आंग सान सू ची और राष्ट्रपति विन म्यिन्त भी थे.

देश में गरीबी आने की खतरनाक आशंका

म्यांमार में फरवरी 2021 तख्तापलट होने की वजह से सशस्त्र संघर्षों और हिंसा का एक संकट देखन को मिला, जिससे देश भर में कई जगहों पर विस्थापन हुआ. देश में पैदा हुई इस अस्थिरता से आर्थिक रूप से देश को नुकसान हुआ तथा कोरोना वायरस के प्रभाव के साथ आने वाले साल 2022 में लाखों नागरिकों में गरीबी का खतरनाक प्रभाव देखा जा सकता है.

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यूएन न्यूज ऑर्गनाइजेशन की रिपोर्ट के मुताबिक देश में आपातकाल लागू किये जाने के बाद विरोधी सुर तेज करने वाले प्रदर्शनकारियों के विरुद्ध बड़े स्तर पर कार्यवाई की गई और प्रदर्शन के दौरान बड़ी संख्या में लोगों के मारे जाने की बात कही गई.

फिजिशियन फॉर ह्यूमन राइट्स ने फरवरी और अक्टूबर 2021 के बीच स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं और सुविधाओं के खिलाफ लगभग 300 हमलों और खतरों की सूचना दी, जिनमें से अधिकांश को सेना द्वारा अंजाम दिया गया.

देश में हेल्थ सर्विसेज तक लोगों की पहुंच गंभीर रूप से सीमित है या देश भर में कई लोगों की पहुंच से बाहर है, खासकर संघर्ष से प्रभावित क्षेत्रों में.

यूएन ने म्यांमार में मौजूदा संकट के समाधान के लिये तत्काल रूप से अन्तरराष्ट्रीय कार्रवाई का आग्रह किया है, जिससे मौजूदा वक्त में बनी स्थिति की वजह से दक्षिण-पूर्व एशिया में किसी भी तरह की त्रासदी न हो, लेकिन सितम्बर आते-आते सेना की पकड़ मज़बूत हो चुकी थी.

2021 का आखिरी वक्त आते-आते दिसम्बर महीने में, यूएन मानवाधिकार कार्यालय ने चेतावनी दी कि देश में मानवाधिकारों की स्थिति बेहद खराब होती जा रही है.

5- नाइजीरिया: संघर्ष से देश भर में बढ़ती असुरक्षा

नाइजीरिया में 12 साल से अधिक समय से चल रहे संघर्ष और उग्रवादी गतिविधियों ने पूरी दुनिया का ध्यान अपनी ओर आकर्षित किया है, लेकिन देश के अन्य हिस्सों में भी अशांति और असुरक्षा फैल रही है. उत्तर-पश्चिम में आपराधिक गतिविधि और संघर्ष ने एक बढ़ते मानवीय संकट को जन्म दिया है, और दक्षिण-पूर्व में अलगाववादी गतिविधियां तेजी से हिंसक हो गई हैं.

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नाइजीरिया में गरीबी की वजह से समाज के कई वर्ग हाशिए पर नजर आ रहे हैं. अनुमान लगाया गया है कि 2050 तक देश की जनसंख्या दोगुनी हो जाएगी, जिससे आने वाले वर्षों में देश में कई सुरक्षा संकट पनप सकते हैं.

विद्यार्थियों के लगातार अगवा होने की घटनाएं

नाइजीरिया में स्कूली बच्चों को सामूहिक रूप से अगवा किये जाने की घटनाएं रिपोर्ट की गईं और स्टूडेन्ट्स के लिए खतरे की घंटी बनी रहीं. यूएन चीफ ने पश्चिमोत्तर के क्षेत्रों में एक स्कूल से अगवा किये गए 30 विद्यार्थियों की बिना शर्त रिहाई करने के लिए आवाज उठाई. बीते वक्त में बहुत से बच्चे अगवा किए जाने की वजह से लापता हैं, जिनका कोई सुराग नहीं मिल सका है.

पूर्वोत्तर क्षेत्रों में मानवीय पहुंच पर प्रतिबंध और संघर्ष की वजह से प्रभावित क्षेत्रों में रहने वाले 10 लाख लोगों की जरूरतें बढ़ जाएंगी. उत्तर पश्चिम में, दस्यु और सशस्त्र समूह एक अलग मानवीय संकट पैदा कर रहे हैं.

दक्षिण-पूर्व में फैली हुई राजनीतिक अशांति 2023 के चुनाव से पहले सरकार की परीक्षा ले रही है.

जलवायु परिवर्तन के प्रभाव स्थानीय चिंताओं को बढ़ा रहे हैं क्योंकि किसान-चरवाहे संघर्ष की वजह से अधिक हिंसक हो गए हैं. देश में साफ पानी की कमी के कारण बीमारी का प्रकोप एक बड़ा मुद्दा बन चुका है. साफ पानी न मिल पाने की वजह से देश में गंदगी भी अपने चरम पर है.

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6- यमन: लंबे संघर्ष से देश में अकाल की स्थिति

यमन के परेशान लोगों ने साल 2015 में हिंसक रूप ले चुकी स्थितियों की शुरुआत से गम्भीर रूप से कुपोषण के उच्चतम स्तर का सामना किया. देश की करीब आधे से अधिक आबादी को खाद्य किल्लतों से जूझना पड़ रहा है.

वर्ल्ड फूड प्रोग्राम के चीफ डेविड बीजली ने मार्च महीने में चेतावनी देते हुए कहा था कि देश के लाखों नागरिक अकाल के कगार पर पहुँच गए हैं.

यमन तीन साल में पहली बार आईआरसी (International Rescue Committee) की वॉचलिस्ट में टॉप पर था, इसके बाद देश की स्थिति लिस्ट में सुधरती दिखी लेकिन इसका मतलब ये नहीं है कि यमन में सुधार हुआ बल्कि अन्य देशों में संकट तेजी से बढ़ने के कारण लिस्ट में इसकी स्थिति सुधरती दिखी.

कई क्षेत्रों में नागरिकों की पहुंच पर प्रतिबंध लगा दिया गया है, जिससे यमन के नागरिकों को 2022 में कई बढ़ती हुई जरूरतों का सामना करना पड़ेगा.

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संघर्ष से हॉस्पिटल्स और स्कूल प्रभावित

मंगलवार, 28 दिसंबर को विशेष दूत की ओर से जारी बयान के मुताबिक यमन की राजधानी में हवाई कार्यवाई हुई, जिसमें कई आम लोगों की जानें चली गईं और देश के कई इलाकों में भारी नुकसान देखने को मिला. देश में पहले से ही हालात बेहद गंभीर हैं, और साल 2021 यमन की जनता के लिये एक बेहद चिंताजनक हालात के साथ समाप्त हो रहा है.

देश में 2015 से 229 स्कूल और 148 अस्पताल लड़ाई के दौरान क्षतिग्रस्त हो गए हैं या सेना के द्वारा उपयोग किए गए हैं.

संयुक्त राष्ट्र बाल कोष (UNICEF) की एक नई रिपोर्ट के मुताबिक लड़ाई शुरू होने के बाद से अब तक 10 हजार बच्चे हताहत हो चुके हैं.

खाद्य पदार्थों की किल्लत

वाटिकन न्यूज की रिपोर्ट के मुताबिक यमन में बढ़ती तंगी की वजह से विश्व खाद्य कार्यक्रम (WFP) को देश के आठ लाख लोगों की सहायता करने के लिए मजबूर होना पड़ा है. देश में लगातार स्थिति खराब होती जा रही है.

डब्ल्यूएफपी का कहना है कि खाद्य भंडारों में कमी होने के साथ देश को गंभीर चुनौतियों का सामना करना पड़ सकता है.

देश 2015 से ही संघर्ष की वजह से तबाह होता दिख रहा है, युद्ध की वजह से कथित तौर पर लाखों लोगों के मारे जाने की खबर है और देश की अर्थव्यवस्था बिल्कुल नीचे गिर गई है. रिपोर्ट्स के मुताबिक देश में लगभग 16 मिलियन लोगों के पास पर्याप्त भोजन नहीं है.

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7- इथियोपिया: जलवायु परिवर्तन और संघर्ष के बीच गहराती अनिश्चितता

इथियोपिया का नॉर्थ टीगरे रीजन, सरकारी सेक्योरिटी फोर्सेज और क्षेत्रीय गुट टीगरे पीपल्स लिबरेशन फ्रंट के बीच लड़ाई का गढ़ बना हुआ है. पिछले एक साल से सरकार से लड़ रहे टीगरे के कुछ लोग एक अन्य विद्रोही समूह के साथ सेना में शामिल हो गए हैं.

टीगरे में मानवाधिकार हनन के मामले लगातार सामने आते रहे हैं, जिनमें आम नागरिकों के साथ दुर्व्यवहार होने और राहत कार्य करने वाले कर्मचारियों को निशाना बनाये जाने की बात कही गई.

यूएन न्यूज की रिपोर्ट के मुताबिक जून महीने में ‘डॉक्टर्स विदाउट बॉर्डर्स’ नाम के ऑर्गनाइजेशन के तीन कर्मचारी मारे गए.

नागरिकों के सामने जिंदा रहने की चुनौती

इस संघर्ष पर नजर रखने वाले विदेशी अधिकारियों ने कहा कि इस बात के संकेत मिले हैं कि इथियोपियाई सेना की कई यूनिट्स या तो ध्वस्त हो गईं या पीछे हट गईं.

2021 के फरवरी महीने में हिंसात्मक गतिविधियों की वजह से विस्थापित होने वाले लोगों को जिंदा रहने के लिये कथित तौर पर पत्तियां खाकर गुजारा करना पड़ा.

जून महीने में यूएन खाद्य एजेंसी ने संभावना जताई कि करीब साढ़े तीन लाख लोग अकाल के कगार पर हैं.
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यूएन के मानवाधिकार कार्यालय के अनुसार टीगरे के नागरिकों को राजधानी अदीस अबाबा और अन्य इलाकों में गिरफ्तार कर लिया गया.

पिछले साल 4 नवंबर को इथोपिया के प्रधानमंत्री अबी अहमद ने उत्तरी टीगरे क्षेत्र में एक सैन्य अभियान शुरू किया था, जिसमें अपने पॉलिटिकल दुश्मन क्षेत्रीय सत्ताधारी पार्टी टीगरे पीपुल्स लिबरेशन फ्रंट को हराने की तैयारी थी, लेकिन एक तेज और शांत अभियान का वादा करने के बाद अबी की सेना ने अपने कदम पीछे खींच लिए.

इसके बाद जून में इथियोपिया की सेना ने एक बड़ी हार का सामना किया, जब सेना को टीगरे से पीछे हटने के लिए मजबूर होना पड़ा. इसके बाद कई हजार सैनिकों को कैद कर लिया गया और अब लड़ाई तेज गति के साथ राजधानी आदिस अबाबा की ओर बढ़ रही है.

देश में अकाल जैसी स्थिति

अमेरिका का अनुमान है कि टीगरे में 9 लाख नागरिक अकाल की स्थिति का सामना कर सकते हैं. हालांकि मानवीय पहुंच पर प्रतिबंध के कारण इन आंकड़ों को सत्यापित नहीं किया जा सकता है, लेकिन इसमें कोई संदेह नहीं है कि इथियोपिया पर जलवायु परिवर्तन का प्रभाव पड़ा है.

मौजूदा वक्त में देश में कोरोना की वैक्सीन भी सही तरीके से नहीं लगवाई गई है जिसकी वजह से आने वाले दिनों में इथोपिया कोरोना की लहरों के दौरान अधिक संवेदनशील क्षेत्र होगा.

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