आंध्र प्रदेश (Andhra Pradesh) के मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू (Chandrababu Naidu) ने शपथ लेने से एक दिन पहले कहा कि अमरावती (Amravati) ही राज्य की राजधानी होगी. इसी के साथ आंध्र में तीन राजधानी बनाए जाने की बहस खत्म भी हुई है और उसे हवा भी मिली है. लेकिन क्या अब तक आंध्र प्रदेश के पास अपनी राजधानी नहीं थी? तीन राजधानी की बहस क्या है? चलिए आपको सबकुछ बताते हैं.
अमरावती के रियल एस्टेट बाजार में आया अचानक उछाल
4 जून को लोकसभा चुनाव के नतीजे आने के एक दिन बाद शेयर बाजार में तेज उछाल आई. लेकिन लोकसभा नतीजों के साथ आंध्र प्रदेश विधानसभा चुनाव के नतीजे भी सामने आए जिसके तीन दिन बाद अमरावती शहर में रियल एस्टेट यानी प्रॉपर्टी के भाव में 50% से 100% का उछाल आया.
ये चौंकाने वाली रिपोर्ट ईकनॉमिक टाइम्स में छपी. वजह ये है कि आंध्र प्रदेश के चुनावी नतीजों में जीत तेलगू देशम पार्टी की हुई और सीएम बनने वाले थे चंद्रबाबू नायडू.
दरअसल पहले से ही नायडू का सपना अमरावती को राजधानी बनाने का है. उनके सत्ता में आने के बाद से रियल एस्टेट बाजार खुश है, क्योंकि अमरावती के राजधानी बनने से वहां विकास के कई प्रोजेक्ट्स आएंगे.
अब तक अमरावती नहीं तो क्या थी आंध्र की राजधानी?
जवाब है हैदराबाद. लेकिन आपको कहानी शुरू से बताते हैं.
1953 के पहले हैदराबाद को छोड़कर आंध्र प्रदेश, तमिल नाडु, केरल का कुछ हिस्सा मद्रास प्रांत का हिस्सा था. फिर इसी से आंध्र प्रदेश को अलग किया गया. जब आंध्र प्रदेश बना तो हैदराबाद को भी इसी में शामिल किया गया. और हैदराबाद इस राज्य की राजधानी बन गई.
फिर हैदराबाद के आसपास के तेलंगाना इलाके में आंदोलन होने लगे और अलग राज्य, तेलंगाना नाम से बनाने की मांग उठी. उधर आंध्र में भी जय आंध्र नाम से आंदोलन शुरू हो गए.
आंदोलन को खत्म करने के लिए मांगें मान ली गईं.
और 2 जून, 2014 में तेलंगाना नाम से नया राज्य बन गया. आंदोलन की समस्या तो खत्म हो गई लेकिन इसके बाद नई समस्याएं सामने आईं. बंटवारे में हैदराबाद तेलंगाना के पास चला गया.
आंध्र प्रदेश के पहले मुख्यमंत्री बने चंद्रबाबू नायडू. उन्होंने आमरावती को अपनी राजधानी बनाने की घोषणा की. 2 जून, 2014 को ये तय हुआ कि अगले 10 साल में अमरावती का राजधानी के हिसाब से विकास किया जाएगा. विधानसभा समेत कई विकास परियोजना तय की गई.
और तब तक हैदराबाद को संयुक्त राजधानी बनाया गया. जैसे चंडीगढ़ पंजाब और हरियाणा की संयुक्त राजधानी है.
फिर आंध्र की तीन राजधानी का मसला कैसे पैदा हुआ?
2014 के बाद नायडू ने अपनी वर्ल्ड क्लास राजधानी बनाने का काम शुरू कर दिया, इसके लिए उन्होंने बीजेपी के नेतृत्व वाली एनडीए सरकार से स्पेशल पैकेज की मांग की. द कारवां की रिपोर्ट के अनुसार, नायडू ने अमरावती के विकास की लागत 50 हजार करोड़ रुपये बताई. इसके अनुसार 2017 तक केंद्र ने उन्हें 2.5 हजार करोड़ रुपये दिए और 1 हजार करोड़ अगले साल मिलने वाले थे.
लेकिन फिर 2019 में आंध्र प्रदेश के चुनाव हुए और सत्ता बदल गई. नए मुख्यमंत्री बने YSR कांग्रेस पार्टी के वाई एस जगन मोहन रेड्डी. इन्होंने सब बदल कर नया आईडिया दिया. इन्होंने कहा कि इससे केवल अमरावती का ही विकास होगा. इसलिए बेहतर होगा की राज्य की तीन राजधानियां हो ताकी इससे तीन शहरों का विकास हो जाए.
जगन मोहन रेड्डी ने नया प्लान बताया. उन्होंने कहा राज्य की तीन राजधानियां होंगी. पहली विशाखापत्तनम जहां विधानसभा होगी यानी यहां से नियम बनेंगे. दूसरी, अमरावती. यहां एडमिन का काम होगा यानी नियम यहां से लागू करवाए जाएंगे. तीसरी, कुरनूल जो जुडिशियल कैपिटल होगी यानी यहां होगा हाई कोर्ट.
लेकिन ये सारा प्लान धरा का धरा रह गया. 2024 में विधानसभा चुनाव आ गए. टीडीपी ने पवन कल्याण और एनडीए के साथ मिलकर चुनाव लड़ा और प्रचंड जीत दर्ज की और एक बार फिर केवल अमरावती को ही राजधानी बनाने की घोषणा कर दी.
नियम के अनुसार संयुक्त राजधानी हैदराबाद केवल 10 सालों के लिए ही थी. इसीलिए 2 जून, 2024 को हैदराबाद केवल तेलंगाना की राजधानी रह गई है. फिलहाल अमरावती राजधानी के लिए पूरी तरह से तैयार नहीं हो पाई.
दस्तावेजों पर अमरावती आंध्र प्रदेश की राजधानी तो बन गई लेकिन वास्तव में राज्य फिलहाल बिना राजधानी का ही है. अब आगे ये होगा कि चंद्रबाबू नायडू अमरावती मास्टर प्लान पर तेजी से काम करेंगे जिसमें कई चीजें शामिल हैं, खासकर फिलहाल अस्थायी अमरावती में अस्थायी रूप से बनी विधानसभा को को स्थायी बनाना.
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