ADVERTISEMENTREMOVE AD

Explained: असम-अरुणाचल के बीच 123 गांवों पर बनी सहमति, क्या था सीमा विवाद?

मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा और पेमा खांडू ने समझौते पर साइन कर इस लंबे विवाद पर विराम लगा दिया.

Published
कुंजी
3 min read
story-hero-img
i
छोटा
मध्यम
बड़ा
Hindi Female

लंबे समय से चले आ रहे असम और अरुणाचल प्रदेश सीमा विवाद (Assam-Arunachal Pradesh Border Dispute) पर अब विराम लग गया है. 800 किमी की विवादित सीमा पर दोनों राज्यों के मुख्यमंत्रियों ने मेमोरेंडम ऑफ अंडरस्टैंडिंग (MoU) साइन किया है.

दिल्ली में नॉर्थ ब्लॉक में केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह (Amit Shah) और कानून मंत्री किरेन रिजिजू की मौजूदगी में असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा (Himanta Biswa Sarma) और अरुणाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री पेमा खांडू (Pema Khandu) ने समझौते पर साइन किया. गृहमंत्री अमित शाह ने इस समझौते को ऐतिहासिक बतया है.

विवाद 123 गांवों को लेकर था, जो अरुणाचल प्रदेश के 12 जिलों और असम के 8 जिलों में स्थित हैं. साल 2017 में अरुणाचल प्रदेश ने इन गांवों पर अपना दावा किया था. लेकिन इस विवाद की जड़ें सालों पहले तक जाती हैं.
ADVERTISEMENTREMOVE AD

क्या है विवाद का इतिहास?

दोनों राज्यों के बीच सीमा विवाद की शुरुआत 1873 में हुई जब अंग्रेजों ने असम के उत्तर में मैदानी और पहाड़ी क्षेत्रों के बीच एक काल्पनिक सीमा बनाते हुए इनर-लाइन रेगुलेशन शुरू किया. असम से अलग हुए इस क्षेत्र को पहले नॉर्थ ईस्ट फ्रंटियर ट्रैक्ट्स के नाम से जाना जाता था, जिसे बाद में नॉर्थ ईस्ट फ्रंटियर एजेंसी (NEFA) नाम दिया गया.

भारत को आजादी मिलने के बाद यह क्षेत्र असम के प्रशासनिक अधिकार क्षेत्र में था. 1972 में NEFA का नाम बदलकर अरुणाचल प्रदेश कर दिया गया और इसे केंद्र शासित प्रदेश का दर्जा दिया गया, इसके बाद यह 1987 में पूरी तरह से एक राज्य बन गया.

0

हालांकि, असम से अलग होने के पहले, असम के तत्कालीन मुख्यमंत्री गोपीनाथ बोरदोलोई की अध्यक्षता में एक उप-समिति ने NEFA के प्रशासन के संबंध में कुछ सिफारिशें कीं और 1951 में एक रिपोर्ट प्रस्तुत की. बोरदोलोई समिति की रिपोर्ट के आधार पर बालीपारा और सादिया तलहटी के प्लेन इलाके के लगभग 3,648 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र को अरुणाचल प्रदेश (तत्कालीन NEFA) से असम के तत्कालीन दरांग और लखीमपुर जिलों में ट्रांसफर कर दिया गया.

1972 में जब अरुणाचल को केंद्र शासित प्रदेश बनाया गया, तो उसने तर्क दिया कि मैदानी इलाकों में कई जंगली इलाके, जो परंपरागत रूप से पहाड़ी आदिवासी प्रमुखों और समुदायों से संबंधित थे, एकतरफा रूप से असम को ट्रांसफर कर दिए गए थे.
ADVERTISEMENTREMOVE AD

इसे सुलझाने के लिए क्या-क्या किया गया?

अप्रैल 1979 में सर्वे ऑफ इंडिया के नक्शों के साथ-साथ दोनों पक्षों के साथ बातचीत के आधार पर बॉर्डर को चिन्हित करने के लिए एक समिति का गठन किया गया था.

1989 में ये मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा और दोनों राज्यों के बीच विवाद को सुलझाने के लिए कोर्ट ने 2006 में सुप्रीम कोर्ट के एक रिटायर्ड जज अध्यक्षता में एक लोकल बाउंड्री कमीशन की नियुक्ति की. सितंबर 2014 में कमीशन ने अपनी रिपोर्ट पेश की, जिसमें कई सिफारिशें की गईं और यह सुझाव दिया गया कि दोनों राज्यों को आपसी चर्चा के जरिये सहमति पर पहुंचना चाहिए. हालांकि, कोई हल नहीं निकला.

24 जनवरी 2022 को असम और अरुणाचल के मुख्यमंत्रियों ने इस मुद्दे पर सीएम-स्तरीय वार्ता शुरू की. 20 अप्रैल 2022 को अपनी दूसरी बैठक में उन्होंने कुछ महत्वपूर्ण फैसले लिए. पहला ये था कि दोनों राज्यों के बीच सीमा विवाद उन 123 गांवों तक ही सीमित होगा, जिनपर अरुणाचल प्रदेश ने 2007 में दावा किया था.

ADVERTISEMENTREMOVE AD

MoU समझौते में किन बातों पर बनी सहमति?

123 गांवों में से अब तक 71 का सौहार्दपूर्ण समाधान किया जा चुका है. इसमें 15 जुलाई, 2022 को नमसाई घोषणा के जरिये हल किए गए 27 गांव और इस समझौते के तहत सुलझाए गए 34 गांव शामिल हैं.

  • इन 71 गांवों में से एक गांव अरुणाचल प्रदेश से असम में शामिल किया जाएगा, 10 गांव असम में ही रहेंगे और 60 गांव असम से अरुणाचल प्रदेश में शामिल किए जाएंगे.

  • बचे 52 गांवों में से 49 गांवों की सीमा को अगले छह महीनों में क्षेत्रीय समितियों द्वारा अंतिम रूप दिया जाएगा. वहीं, इंडियन एयरफोर्स की बमबारी रेंज के अंदर तीन गांवों का पुनर्वास किया जाएगा.

समझौते के तहत दोनों राज्य की सरकारें इस बात पर सहमत हो गई हैं कि इन 123 विवादित गांवों के संबंध में ये फैसला अंतिम होगा और भविष्य में कोई भी राज्य किसी भी क्षेत्र या गांव से संबंधित कोई नया दावा पेश नहीं करेगा.

(हैलो दोस्तों! हमारे Telegram चैनल से जुड़े रहिए यहां)

सत्ता से सच बोलने के लिए आप जैसे सहयोगियों की जरूरत होती है
मेंबर बनें
अधिक पढ़ें
×
×