द क्विंट ने इस सात भागों वाली डॉक्युमेंट्री सीरीज में उन घटनाओं की पड़ताल की है, जो अंतत: 23 साल पहले विवादित ढांचे को गिराए जाने का कारण बने.
एक युवा प्रधानमंत्री का आभामंडल धीरे-धीरे धुंधला पड़ चुका था. लोकसभा में 75 फीसदी सीट होने के बावजूद, राजीव गांधी अतीत की कामयाबियों से परे अब बदले हुए हालात में 1989 के आम चुनाव में जा रहे थे.
मीडिया में बोफोर्स घोटाले पर लगातार हो रहे खुलासों ने राजीव गांधी को अत्यधिक दबाव में ला दिया. पंजाब, कश्मीर और श्रीलंका में स्थिति ठीक तरह से न संभालने की वजह से हिंसा लगातार बढ़ती जा रही थी. स्थिति तब और बदतर हो गई, जब केंद्रीय रक्षा मंत्री वीपी सिंह ने कैबिनेट से इस्तीफा दे दिया. बाद में वे कांग्रेस छोड़कर जनता दल में चले गए.
कांग्रेस को इस वक्त फिर से अपने पक्ष में जनता के समर्थन की दरकार थी. इस वक्त तक बीजेपी के महज 2 ही सांसद थे. इस वजह से राम मंदिर बनाने का बीजेपी का इरादा दूसरों को बड़ी चुनौती जैसा नहीं लगा. सियासत के नजरिए से हिंदुओं की भावनाओं को भुनाने का यह बेहतर वक्त था.
इसी माहौल में अक्टूबर, 1989 में राजीव गांधी ने फैजाबाद से अपने चुनावी अभियान की शुरुआत की. अपने भाषण के दौरान उन्होंने ‘रामराज्य’ का जिक्र किया. उनका भाषण मणिशंकर अय्यर ने लिखा था.
वीएचपी ने जुटाया भारी भरकम चंदा
इस साल की शुरुआत में विश्व हिंदू परिषद ने ऐलान किया कि वह 10 नवंबर, 1989 को अयोध्या में राम मंदिर के लिए शिलान्यास कार्यक्रम आयोजित करेगी.
जैसे ही इस निर्णय की घोषणा हुई, विश्व हिंदू परिषद को हर ओर से भरपूर चंदा मिलने लगा. भारत के हर हिस्से के साथ-साथ ब्रिटेन और अमेरिका से भी रकम मिलने लगी.
केवल अपनी पहल से ही वीएचपी ने शिलान्यास के लिए 8.29 करोड़ रुपए जुटाए. समझा जाता है कि कुल जुटाई गई रकम बताई गई रकम से कहीं ज्यादा थी. बाद में आयकर विभाग ने विदेश से मिले धन की जांच भी करवाई.
वीएचपी चैरिटेबल ऑर्गेनाइजेशन होने का दावा करके टैक्स से छूट का फायदा उठा रही थी, जबकि उसका मुख्य मकसद राम मंदिर बनाना हो चला था, जो कि विवादित था.
इस राशि के साथ वीएचपी ने देशभर में 2,00,000 से ज्यादा गांवों से ‘शिला’ या ईंटें जुटाने का अभियान चलाया. इन ईंटों पर ‘श्रीराम’ लिखा होता था और ये केसरिया कपड़ों से लिपटे होते थे.
पूजा करने के बाद इन्हें अयोध्या के लिए भेजा जाता था. इसके बाद अयोध्या से मिट्टी लाकर उन सारे गांवों में बांटी जाती थी. अनुमान है कि करीब 10 करोड़ लोग इस इस पूरी प्रक्रिया का हिस्सा बने.
कानूनी पक्ष और राजनीतिक दायरे पर छाई धुंध
14 अगस्त, 1989 को इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच ने बाबरी मस्जिद विवाद से जुड़ी 4 याचिकाओं पर एक साथ सुनवाई करते हुए विवादित जमीन पर यथास्थिति बरकरार रखने का आदेश दिया. अशोक सिंघल अदालत के इस आदेश की अनदेखी करने को तैयार बैठे थे.
वीएचपी ने देशभर से ईंटे जमा करने और कीर्तन आयोजित करने का अभियान जारी रखा. आम चुनाव से पहले सांप्रदायिक माहौल पूरी तरह बदल चुका था. ऐसे में राजीव गांधी ने केंद्रीय गृहमंत्री बूटा सिंह को अयोध्या दौरे पर भेजा.
27 सितंबर को बूटा सिंह ने उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री नारायण दत्त तिवारी के साथ वीएचपी के संयुक्त सचिव अशोक सिंघल से मुलाकात की.
सरकार एक शर्त के साथ वीएचवी की रामशिला यात्रा जारी रखने पर सहमत हो गई. शर्त यह थी कि वीएचपी के नेता लिखित रूप में यह वादा करें कि वे इलाहाबाद हाईकोर्ट के निर्देशों का पूरी तरह पालन करेंगे और शांति व्यवस्था बरकरार रखेंगे.
[...] इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच के 14.8.89 के निर्देशों के मुताबिक इस मामले के सभी संबंधित पक्षों को निर्देश दिया जाता है कि संपत्ति के स्वरूप में किसी तरह का बदलाव नहीं किया जाएगा. साथ ही शांति और सांप्रदायिक सौहार्द बरकरार रखा जाएगा.
हजारों-हजार कारसेवक रामशिला लेकर अयोध्या में दाखिल हुए. यह देखते हुए कि वीएचपी अपने लिखित करार का पालन करने को लेकर गंभीर नहीं है, केंद्र ने यह कोशिश की कि वीएचपी विवादित जमीन से सटी उस जगह पर शिलान्यास कार्यक्रम आयोजित करे, जो अदालत के मुताबिक विवादित संपत्ति नहीं थी.
वीएचपी ने केंद्र के प्रस्ताव को मानने का विचार किया. पर शिलान्यास के तय वक्त से एक दिन पहले, 2 नवंबर को उस प्लॉट पर केसरिया झंडा देखा गया, जिस पर सुन्नी वक्फ बोर्ड का दावा था.
सरकार ने हाईकोर्ट का रुख किया. शिलान्यास से तीन दिन पहले, 7 नवंबर, 1989 को अदालत ने स्पष्ट किया कि 14 अगस्त को दिया गया यथास्थिति बरकरार रखने का आदेश 2.77 एकड़ के पूरे प्लॉट पर लागू होता है.
शिलान्यास इस प्लॉट के भीतर ही प्रस्तावित था. जज ने यह भी पाया, ‘इस बात में संदेह है कि इस विवाद से जुड़े कुछ सवाल अदालती प्रक्रिया से हल हो पाएंगे.’
यूपी सरकार ने 8 नवंबर, 1989 को राज्य के एडवोकेट जनरल एसएस भटनागर की सलाह पर इस बात का ऐलान किया कि शिलान्यास वाला प्लॉट विवादित जमीन नहीं थी. समझा जाता है कि यूपी सरकार ने उन पन्नों की अनदेखी की, जिसमें विवादित प्लॉट का पूरा ब्योरा दर्ज था.
वीएचपी को उत्तेजक और सांप्रदायिक तनाव से रोकने की कोशिश करने वाली सरकार का रुख 2 महीने के दौरान बदल गया. वीएचपी विवादित प्लॉट पर शिलान्यास कार्यक्रम आयोजित करने जा रही थी.
शिलान्यास अयोध्या आंदोलन में मील का पत्थर साबित हुआ, जिसके पीछे सियासी और धार्मिक संकेत छिपे हुए थे. तब तक कांग्रेस फिर से सत्ता पाने को लेकर निराश हो चुकी थी.
9 नवंबर, 1989 को वीएचपी ने शिलान्यास कार्यक्रम आयोजित किया. राम मंदिर की आधारशिला रखी जा चुकी थी. जमीन पर 7फुट x7फुट x7फुट का गड्ढा बनाया गया था.
कैमरा पर्सन: सिद्धार्थ सफाया
वीडियो एडिटर: हितेश सिंह
प्रोड्यूसर: ईशा पॉल
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