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MP में 'भोजशाला' का होगा ASI सर्वे, हाई कोर्ट का आदेश- जानें क्या है विवाद और इतिहास?

Dhar Bhojshala: विवादित परिसर 'भोजशाला' के सर्वे के लिए "हिंदू फ्रंट फॉर जस्टिस" ने अपील की थी.

Published
कुंजी
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ज्ञानवापी परिसर के विवाद बाद अब मध्य प्रदेश हाई कोर्ट की इंदौर बेंच ने धार स्थित 'भोजशाला' (Bhojshala) को लेकर अहम फैसला सुनाया है. एक लंबे समय से चले आ रहे विवाद के बाद कोर्ट ने भोजशाला परिसर के ASI सर्वे का आदेश दे दिया है. विवादित परिसर 'भोजशाला' के सर्वे के लिए "हिंदू फ्रंट फॉर जस्टिस" ने अपील की थी. इसे कमाल मौला मस्जिद (Kamal Maula Mosque) के नाम से भी जाना जाता है. आइए आपको भोजशाला का इतिहास और इसको लेकर क्या विवाद है? इसके बारे में बताते हैं.

MP में 'भोजशाला' का होगा ASI सर्वे, हाई कोर्ट का आदेश- जानें क्या है विवाद और इतिहास?

  1. 1. हिंदू पक्ष द्वारा दायर याचिका में क्या मांग की गई थी?

    "हिंदू फ्रंट फॉर जस्टिस" द्वारा इंदौर हाईकोर्ट में एक रिट याचिका दायर की गई थी. इस याचिका में इस परिसर के "असली पहचान" का पता लगाने के लिए एक वैज्ञानिक सर्वेक्षण की मांग की गई थी. साथ ही इसमें हिंदुओं के लिए "भोजशाला" परिसर को फिर से प्राप्त करने और मुसलमानों को इसके परिसर में नमाज अदा करने से रोकने की मांग की गई थी.

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  2. 2. हाईकोर्ट ने क्या फैसला दिया?

    हाईकोर्ट ने हिंदू पक्ष के इस अपील को स्वीकार करते हुए अपना फैसला सुनाया और "भोजशाला" परिसर के वैज्ञानिक सर्वे का आदेश दिया. कोर्ट के आदेश के बाद पुरातत्व विभाग के पांच वरिष्ठ अफसर इस विवादित परिसर का सर्वे करेंगे और 6 हफ्ते के भीतर में अपनी रिपोर्ट कोर्ट में जमा कर देंगे.

    मुस्लिम पक्ष की ओर से मौलाना कमालुद्दीन ने पुनर्न्याय (री- जस्टिस) के सिद्धांत का हवाला देते हुए मुकदमे की स्थिरता को चुनौती दी. साथ ही उन्होंने बताया कि इसी तरह की एक रिट याचिका को 2003 में उच्च न्यायालय की मुख्य पीठ ने खारिज कर दिया था.

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  3. 3. भोजशाला को लेकर क्या विवाद है?

    धार जिले में स्थित 'भोजशाला' को हिंदू धर्म के लोग इसे एक मंदिर मानते हैं. वहीं मुस्लिम समुदाय के लोग इसके कमाल मौलाना मस्जिद होने का दावा करते हैं.

    इस परिसर का मुख्य विवाद साल 1995 में शुरू हुआ. जहां हिंदुओं ने इस जगह पूजा करने की इजाजत मांगी. इसके बाद प्रशासन ने इस जगह पर हिंदूओं को पूजा करने की और इसके साथ ही मुस्लिमों को जुमे की नमाज पढ़ने अनुमति दे दी.

    इसके बाद साल 1997 में इसका विवाद एक बार फिर से बढ़ गया. 12 मई 1997 को आम नागरिकों के इस परिसर में प्रवेश पर प्रतिबंध लगा दिया गया. इसके बाद हिंदुओं को केवल वसंत पंचमी पर पूजा की और मुसलमानों को शुक्रवार के दिन एक से तीन बजे के बीच नमाज पढ़ने की अनुमति मिली.

    इसके बाद साल 2013 में एक बार फिर विवाद गहरा गया था. दरअसल, उस साल जुमा और वसंत पंचमी एक ही दिन था. मामले को देखते हुए एएसआई ने हिंदू धर्म के लोगों के सूर्योदय से दोपहर 1 बजे तक और दोपहर 3 बजे से सूर्यास्त तक प्रार्थना करने के लिए कहा था. वहीं मुस्लिमों को एक से तीन से तीन बजे तक का समय दिया था. हिंदु और मुस्लिम समुदाय के लोग पूजा और नमाज के लिए आमने-सामने आ गए. जिसके बाद शहर में हिंसा की घटनाएं सामने आई थीं.

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  4. 4. क्या है इस "भोजशाला" का इतिहास ?

    मध्य प्रदेश के धार जिले की ऑफिशियल वेबसाइट के अनुसार, राजा भोज ने धार में एक कॉलेज की स्थापना की थी. राजा भोज (1000-1055 ई0) परमार वंश के सबसे महान राजा थे. यह कॉलेज आगे चलकर 'भोजशाला' के नाम से जाना जाने लगा. 'भोजशाला' को सरस्वती मंदिर भी कहा जाता है. वेबसाइट के अनुसार, 'भोजशाला' को बाद में 14 वीं सदी में यहां के मुस्लिम शासक ने मस्जिद में परिवर्तित कर दिया था.

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हिंदू पक्ष द्वारा दायर याचिका में क्या मांग की गई थी?

"हिंदू फ्रंट फॉर जस्टिस" द्वारा इंदौर हाईकोर्ट में एक रिट याचिका दायर की गई थी. इस याचिका में इस परिसर के "असली पहचान" का पता लगाने के लिए एक वैज्ञानिक सर्वेक्षण की मांग की गई थी. साथ ही इसमें हिंदुओं के लिए "भोजशाला" परिसर को फिर से प्राप्त करने और मुसलमानों को इसके परिसर में नमाज अदा करने से रोकने की मांग की गई थी.

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हाईकोर्ट ने क्या फैसला दिया?

हाईकोर्ट ने हिंदू पक्ष के इस अपील को स्वीकार करते हुए अपना फैसला सुनाया और "भोजशाला" परिसर के वैज्ञानिक सर्वे का आदेश दिया. कोर्ट के आदेश के बाद पुरातत्व विभाग के पांच वरिष्ठ अफसर इस विवादित परिसर का सर्वे करेंगे और 6 हफ्ते के भीतर में अपनी रिपोर्ट कोर्ट में जमा कर देंगे.

मुस्लिम पक्ष की ओर से मौलाना कमालुद्दीन ने पुनर्न्याय (री- जस्टिस) के सिद्धांत का हवाला देते हुए मुकदमे की स्थिरता को चुनौती दी. साथ ही उन्होंने बताया कि इसी तरह की एक रिट याचिका को 2003 में उच्च न्यायालय की मुख्य पीठ ने खारिज कर दिया था.

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भोजशाला को लेकर क्या विवाद है?

धार जिले में स्थित 'भोजशाला' को हिंदू धर्म के लोग इसे एक मंदिर मानते हैं. वहीं मुस्लिम समुदाय के लोग इसके कमाल मौलाना मस्जिद होने का दावा करते हैं.

इस परिसर का मुख्य विवाद साल 1995 में शुरू हुआ. जहां हिंदुओं ने इस जगह पूजा करने की इजाजत मांगी. इसके बाद प्रशासन ने इस जगह पर हिंदूओं को पूजा करने की और इसके साथ ही मुस्लिमों को जुमे की नमाज पढ़ने अनुमति दे दी.

इसके बाद साल 1997 में इसका विवाद एक बार फिर से बढ़ गया. 12 मई 1997 को आम नागरिकों के इस परिसर में प्रवेश पर प्रतिबंध लगा दिया गया. इसके बाद हिंदुओं को केवल वसंत पंचमी पर पूजा की और मुसलमानों को शुक्रवार के दिन एक से तीन बजे के बीच नमाज पढ़ने की अनुमति मिली.

इसके बाद साल 2013 में एक बार फिर विवाद गहरा गया था. दरअसल, उस साल जुमा और वसंत पंचमी एक ही दिन था. मामले को देखते हुए एएसआई ने हिंदू धर्म के लोगों के सूर्योदय से दोपहर 1 बजे तक और दोपहर 3 बजे से सूर्यास्त तक प्रार्थना करने के लिए कहा था. वहीं मुस्लिमों को एक से तीन से तीन बजे तक का समय दिया था. हिंदु और मुस्लिम समुदाय के लोग पूजा और नमाज के लिए आमने-सामने आ गए. जिसके बाद शहर में हिंसा की घटनाएं सामने आई थीं.

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क्या है इस "भोजशाला" का इतिहास ?

मध्य प्रदेश के धार जिले की ऑफिशियल वेबसाइट के अनुसार, राजा भोज ने धार में एक कॉलेज की स्थापना की थी. राजा भोज (1000-1055 ई0) परमार वंश के सबसे महान राजा थे. यह कॉलेज आगे चलकर 'भोजशाला' के नाम से जाना जाने लगा. 'भोजशाला' को सरस्वती मंदिर भी कहा जाता है. वेबसाइट के अनुसार, 'भोजशाला' को बाद में 14 वीं सदी में यहां के मुस्लिम शासक ने मस्जिद में परिवर्तित कर दिया था.

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