चंडीगढ़ (Chandigarh) में मेयर (Mayor), सीनियर डिप्टी मेयर और डिप्टी मेयर पद के लिए 18 जनवरी को चुनाव होने वाले हैं. पिछले सात सालों से मेयर पद पर काबिज बीजेपी (BJP) को हराने के लिए इस बार 'INDIA' गठबंधन की कांग्रेस (Congress) और आम आदमी पार्टी (Aam Aadmi Party) मिलकर चुनाव लड़ेगी.
क्या इससे इंडिया अलायंस की जीत पक्की हो जाएगी? दोनों पार्टियों के साथ आने से उन्हें नंबर गेम में कैसे फायदा मिलेगा? यह चुनाव 2024 के आम चुनाव के लिए कैसे उदाहरण बन सकता है? चलिए समझते हैं.
चंडीगढ़ मेयर चुनाव में साथ आए कांग्रेस और AAP
आम आदमी पार्टी के राज्यसभा सांसद राघव चढ्ढा ने मंगलवार, 16 जनवरी को एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा कि इंडिया गठबंधन पहली बार चुनाव लड़ने जा रहा है, ये पहला मैच है. चंडीगढ़ का मेयर चुनाव आम चुनाव नहीं है, ये इस देश की राजनीति की किस्मत, तस्वीर, दशा और दिशा बदलने वाला चुनाव है. ये चुनाव आने वाले 2024 के लोकसभा चुनाव की नींव रखेगा.
आम आदमी पार्टी और कांग्रेस ने 15 जनवरी को गठबंधन कर लिया. आप मेयर पद पर अपना उम्मीदवार उतारेगी, वहीं कांग्रेस सीनियर मेयर और डिप्टी मेयर के पद पर चुनाव लड़ेगी. ये फैसला ऐसा समय आया है जब कांग्रेस और आप 2024 के आम चुनाव के लिए सीट बंटवारे पर चर्चा कर रही है.
बता दें कि 2016 से चंडीगढ़ के मेयर पद पर लगातार बीजेपी जीत दर्ज करती आ रही है, इससे पहले 2012 में भी बीजेपी का ही मेयर था. 2013, 2014 और 2015 में कांग्रेस का मेयर रह चुका है.
दोनों पार्टियों के साथ आने से कैसे मिलेगा फायदा?
दोनों पार्टियों के साथ आने से उनकी जीत सुनिश्चित होती दिख रही है. दरअसल चंडीगढ़ मेयर चुनाव का गणित कुछ ऐसा है:
चंडीगढ़ नगर निगम में कुल 35 पार्षद हैं. मेयर चुनाव में इन 35 वोटों के अलावा एक सांसद भी वोट डालता है. बीजेपी के 14, आम आदमी पार्टी के 13, कांग्रेस के 7 और एक पार्षद अकाली दल का है. बीजेपी को एक वोट का समर्थन सांसद किरण खेर का भी है.
कांग्रेस और आम आदमी पार्टी के गठबंधन के बाद दोनों के पार्षद मिलाकर 20 वोट होते हैं जो तीनों पदों पर जीत पक्की करने के लिए पर्याप्त हैं.
बीजेपी के 14 पार्षद, एक सांसद और बहुत हद तक अगर अकाली दल का पार्षद भी बीजेपी को समर्थन दें तभी भी बीजेपी जीत के लिए जरूरी आंकड़े को पार नहीं कर पाएगी.
चंडीगढ़ मेयर का चुनाव 2024 के आम चुनाव के लिए उदाहरण बन सकता है?
राघव चढ्ढा ने कहा है कि ये चुनाव इसलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि 2024 में होने वाले लोकसभा चुनाव की नींव भी रखेगा.
2024 के चुनाव में कांग्रेस कर AAP के बीच सीट शेयरिंग पर द क्विंट के राजनीतिक संपादक आदित्य मेनन अपने आर्टिकल में लिखते हैं:
AAP सूत्रों का कहना है कि गठबंधन का दायरा पांच राज्यों को कवर करेगा -
पंजाब: 13 सीट
दिल्ली: 7 सीट
गुजरात: 26 सीट
गोवा: 2 सीट
हरियाणा: 10 सीट
इसके अलावा बातचीत में चंडीगढ़ लोकसभा सीट भी शामिल हो सकती है.
सूत्रों का कहना है कि AAP दिल्ली और पंजाब में जगह छोड़ने को तैयार है, जहां उसकी राज्य सरकारें हैं, बशर्ते कांग्रेस उसे हरियाणा, गुजरात और गोवा में जगह दे.
कांग्रेस के अंदरूनी सूत्रों का कहना है कि उन्हें गुजरात में AAP को एक सीट देने में कोई आपत्ति नहीं है, लेकिन गोवा और हरियाणा में उसे एडजस्ट करना मुश्किल होगा.
हरियाणा के एक कांग्रेस नेता ने द क्विंट को बताया, "हरियाणा में उनकी क्या उपस्थिति है? उनके पास यहां एक विधानसभा सीट भी नहीं है."
इसके साथ ही कांग्रेस नेता ने कहा, "AAP, कांग्रेस के समर्थन से हरियाणा में प्लेयर बनना चाहती है."
कांग्रेस को लगता है कि इस साल के अंत में होने वाले विधानसभा चुनाव में वह अपने दम पर हरियाणा में बीजेपी-जेजेपी गठबंधन को उखाड़ फेंकेगी और वह नहीं चाहती कि AAP चुनौती के रूप में उभरे.
2024 चुनाव को लेकर गठबंधन की तस्वीर साफ नजर नहीं आती?
चंडीगढ़ मेयर चुनाव में गठबंधन का फैसला तो हो गया लेकिन लोकसभा चुनाव को लेकर तस्वीर इतनी साफ नजर नहीं आती. कांग्रेस की दिल्ली और पंजाब, दोनों इकाइयां AAP के साथ किसी भी तरह के गठबंधन के खिलाफ है. उनका तर्क है कि AAP और कांग्रेस का आधार समान है और AAP के साथ गठबंधन करके, कांग्रेस AAP को मजबूत करेगी और खुद को कमजोर करेगी. वैचारिक रूप से भी, दोनों मोटे तौर पर मध्यमार्गी पार्टियां हैं जिनका जनकल्याण पर जोर है.
दिल्ली में विधानसभा स्तर पर, कांग्रेस का वोट लगभग पूरी तरह से AAP में स्थानांतरित हो गया. राज्य इकाई का कहना है कि अगर कांग्रेस ने 2013 में AAP के साथ चुनाव बाद गठबंधन नहीं किया होता तो यह इतना आसान नहीं होता.
गठबंधन होने की कितनी संभावना है?
ऐसा नहीं है कि दोनों पार्टियों के बीच गठबंधन की कोई गुंजाइश ही नहीं है.
विडंबना यह है कि चुनाव पूर्व गठबंधन बनाने के लिए दोनों पार्टियों के लिए सबसे आसान राज्य दिल्ली है. भले ही दिल्ली कांग्रेस AAP को नापसंद करती हो.
ऐसा इसलिए है क्योंकि 2019 में बीजेपी ने सभी सात लोकसभा सीटों पर 50 प्रतिशत से अधिक वोट हासिल किए, जिससे उसे अपराजेय बढ़त मिली. अगर AAP और कांग्रेस मिलकर भी चुनाव लड़ते तो भी बीजेपी को हरा नहीं पाते.
दिल्ली में बीजेपी का दबदबा दरअसल दोनों पार्टियों को एक साथ आने की वजह देता है. अगर वो सही उम्मीदवारों का चयन करते हैं, वोट ट्रांसफर प्रभावी ढंग से करते हैं और बीजेपी वोटर्स के एक बड़े हिस्से को अपनी ओर करने में कामयाब रहते हैं, तो गठबंधन के पास कुछ सीटों पर प्रतिस्पर्धी मौका हो सकता है.
यही बात गुजरात के लिए भी सच है. बीजेपी फिलहाल अपराजेय दिख रही है, लेकिन शायद कांग्रेस और AAP के बीच गठबंधन और उनके पक्ष में एक छोटा सा झुकाव एक या दो सीटों को प्रतिस्पर्धी बना सकता है.
पंजाब में भी कुछ सीटों पर सामंजस्य की गुंजाइश है. उदाहरण के लिए, संगरूर और बठिंडा जैसी सीटों पर AAP स्पष्ट रूप से जमीन पर मजबूत है. यहां तक पटियाला में भी, जब कैप्टन अमरिन्दर सिंह और परनीत कौर भी कांग्रेस में नहीं हैं. दूसरी ओर, गुरदासपुर और होशियारपुर में कांग्रेस बीजेपी के लिए मजबूत चुनौती हो सकती है.
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