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Spy बलून : US में 'चीनी जासूसी' का किस्सा पुराना, क्या फिर cold war देखेगा जमाना

US China: बलून ही नहीं चीन पर हैं सेल फोन टावर, हैकिंग, स्टूडेंट्स, बिजनेसमैन और साइंटिस्टों से जासूसी कराने के आरोप

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कुंजी
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अमेरिका (US) ने चीन के जासूसी बैलून (Chinease Balloon) को ढेर कर दिया है. पिछले कई दिनों से यह गुब्बारा अमेरिका के आसमान में उड़ता हुआ नजर आ रहा था. जैसे ही यह समुद्र की ओर बढ़ा वैसे ही अमेरिकी लड़ाकू विमान ने इसे मार गिराया.  पेंटागन ने इसे चीन का जासूसी गुब्बारा बताते हुए कहा था कि इसे चीन द्वारा जानकारी जुटाने के लिए भेजा है. जासूसी के लिए गुब्बारों का इस्तेमाल पुरानी तकनीकों में से एक है.

अमेरिकी हवाई क्षेत्र का उल्लंघन करने वाले संदिग्ध चीनी 'निगरानी' गुब्बारे की वजह से अमेरिकी विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकन ने अपनी बीजिंग यात्रा को स्थगित कर दिया, इसके साथ ही एक राजनयिक संकट को हवा मिल गई है. चीन-अमेरिका के संबंधों में इस घटना को एक बड़ा झटका माना जा रहा है. चीन की ओर से इस मामले पर चेतावनी दी गई है कि बिना तथ्यों की जांच करे अनुमान लगाने और हल्ला मचाने की जरूरत नहीं है.

ग्लोबल टाइम्स के मुताबिक, चीन ने इस घटना के बाद कड़ा असंतोष जताया है और कहा है कि अमेरिका ने एक सिविलियन एयरशिप पर बल प्रयोग किया है. यह अंतरराष्ट्रीय नियमों का उल्लंघन है और अमेरिका को गंभीर नतीजे झेलने पड़ सकते हैं.

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क्या यहां से एक नया वैश्विक संकट देखने को मिल सकता है?

एक ओर जहां लंबे समय से चले आ रहे रूस-यूक्रेन युद्ध की वजह से पूरी दुनिया प्रभावित हो रही है. तेल कीमतों से लेकर ग्लोबल सप्लाई चेन तक पर असर देखने को मिल रहा है. वहीं अब एक बार फिर दो महाशक्तियों के बीच अगर तनातनी बढ़ती है और आगे इस मुद्दे में गर्माहट बढ़ेगी तो निश्चित तौर पर दुनिया को एक बड़े गंभीर संकट का सामना करना पड़ेगा.

एक्सपर्ट्स और रिपोर्ट्स का दावा है कि पिछले कुछ वर्षों से चीन और अमेरिका के संबंध सबसे बुरे दौर में गुजर रहे हैं. ताइवान को लेकर तनाव, दक्षिणी चीन सागर में चीन के बढ़ते कदम को लेकर दोनों देशों के बीच काफी कड़वाहट है. इससे पहले पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के कार्यकाल के दौरान के ट्रेड वार देखने को मिला था.

रूस-यूक्रेन के लेकर भी अमेरिका-चीन के तनाव तब और बढ़ गया था जब चीन ने यूक्रेन पर हमले के लिए रूस की आलोचना नहीं की थी. कुछ वर्षों से अमेरिका चीन पर आर्थिक प्रतिबंध लगाकर और उसके आसपास के क्षेत्रों में सैन्य विस्तार करके चीन पर दबाव बनाता आया है. इससे भी चीन की नाराजगी अमेरिका के प्रति बढ़ी है. कुछ दिनों पहले ही जापान और नीदरलैंड के साथ अमेरिका का एक समझौता हुआ है. जिसके तहत ये देश चीन को चिप बनाने वाले उपकरण का आयात रोकेंगे. हाल ही में अमेरिकी सेना ने घोषणा की थी कि वो फिलिपींस के इलाके में अपनी मौजूदगी बढ़ाएगा.

अमेरिकी प्रतिनिधि सभा की तत्कालीन अध्यक्ष नैंसी पेलोसी ने कुछ समय पहले जब ताइवान का दौरा किया था तब चीन और अमेरिका के खराब होते रिश्तों में और ज्यादा कड़वाहट आ गई थी. ताइवान को चीन अपना हिस्सा मानता है. इस दौरे को लेकर चीन ने अमेरिका को "भारी कीमत चुकाने" की धमकी तक दे दी थी. नैंसी पेलोसी के दौरे के जवाब में चीन ने अपने लड़ाकू विमान ताइवान के हवाई क्षेत्र में भेज दिए थे, जिसके बाद ऐसी आशंका जताई जाने लगी थीं कि चीन ताइवान पर हमला कर सकता है.

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रूस और अमेरिका के बीच भी सबकुछ ठीक नहीं है

जहां एक ओर चीन-अमेरिका संबंध तल्ख दिख रहे हैं वहीं दूसरी ओर रूस के साथ भी अमेरिका की पटरी नहीं बैठ रही है. 2018 में अमेरिका के तत्कालीन राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने ब्रिटेन में पूर्व रूसी जासूस पर केमिकल अटैक के मामले में 60 रूसी राजनयिकों को निष्कासित करने का आदेश दिया था. इसे शीत युद्ध और सोवियत संघ से टकराव के दौर के बाद रूस के खिलाफ अमेरिका की सबसे बड़ी कार्रवाई कहा गया था. तब रूस के विदेश मंत्रालय ने कहा था कि अमेरिका के इस कदम से स्पष्ट होता है कि टकराव की स्थिति अब भी जारी है. रूस ने कहा था कि वो भी पलटवार करेगा.

इस मामले में भी जासूसी कनेक्शन था. मामला यह था कि इंग्लैंड में रूस के एक पूर्व जासूस सर्गेई स्क्रिपल और उनकी बेटी यूलिया को जहर देकर मारने की कोशिश की गई थी. ब्रिटेन ने आरोप लगाए थे कि उन्हें मारने के लिए रूस में बने नर्व एजेंट का इस्तेमाल किया गया है. इसके बाद दोनों देशों के बीच तल्खी बढ़ गई थी. ब्रिटेन ने कार्रवाई करते हुए 23 रूसी राजनयिकों को निष्कासित करने की घोषणा कर दी थी. इस घोषणा के बाद कई अन्य देशों ने ब्रिटेन का साथ दिया था.

जब रूस-यूक्रेन के बीच युद्ध के बादल मंडरा रहे थे तब जो बाइडन ने रूस को आगाह करते हुए कहा था कि अगर यूक्रेन पर हमला किया तो परिणाम भुगतना होगा. युद्ध शुरु होने के बाद से अमेरिका की ओर से रूस पर समय-समय पर कई प्रतिबंध भी लगाए गए हैं. पुतिन की ओर से भी पश्चिमी देशों को लगातार चेतावनी दी जाती रही है. यहां पर यह भी ध्यान देना चाहिए कि अमेरिका, चीन और रूस तीनों ही महाशक्ति हैं, सभी के पास परमाणु हथियार हैं अगर अब फिर से कोई बड़ा युद्ध होता है उसके दुष्परिणाम पूरी दुनिया को भुगतने होंगे.

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शीतयुद्ध में था जासूसी का बोलबाला

जासूसी सबसे पुराने प्रोफेशन्स में एक है. राजा-महराजाओं के दौर में बाकायदा गुप्तचर विभाग होता था. जिस राज्य का खुफिया तंत्र जितना मजबूत होता था, उससे आक्रमण या बगावत जैसी कई अहम सूचनाएं उतनी ही आसानी से मिल जाती थीं. पुराने साहित्य में जासूसी के लिए विषकन्याओं का तक जिक्र किया गया है. वक्त बीतता गया जासूसी के तौर तरीके बदलते गए, हाइटेक होते गए. बड़ी-बड़ी स्पाई एजेंसियाें की स्थापना की गई. द्वितीय विश्व युद्ध के बाद जासूसी बड़ी ही तेजी बढ़ी है.

शीत युद्ध (1945 से 1991) के दौरान दो महाशक्तियों अमेरिका और सोवियत संघ बीच काफी टकराव देखने को मिला था. धमकी और भयानक हथियारों को लेकर दोनों देशों के बीच काफी तनाव था. एक-दूसरे की खुफिया जानकारी जुटाने के लिए बड़े स्तर पर जासूसी को अंजाम दिया गया था.  अमेरिका ने खुफिया कामों को अंजाम देने का जिम्मा CIA को दिया था. ब्रिटेन में यही काम MI5 और MI6 के पास था, सोवियत संघ के पास KGB और GRU जैसी संस्था थी.

कोल्ड वार के प्रमुख कारकों में एक कारक जासूसी भी था. एक जासूस ने ब्रिटेन के परमाणु बम की खुफिया जानकारी सोवियत संघ को सौंप दी थी, जिससे पश्चिम के साथ रूस की परमाणु तनातनी हो गई और यहां से शीत युद्ध का रुख हुआ. उस जासूस की जानकारी देने के बाद रूस को परमाणु बम बनाने की होड़ में शामिल होने का मौका दिया. द्वितीय विश्व युद्ध खत्म होने के बाद दुनिया दो ध्रुवों के बीच बंट गई थी और ये दो ध्रुव थे अमरीका और सोवियत संघ.

इस दौरान जमकर जासूसी हो रही थी. दोनों ही पक्षों को एक दूसरे के हमले का डर था और इसका नतीजा हथियारों की होड़ के तौर पर देखने को मिला. उन्होंने अपने हथियारों का भंडार बढ़ाना शुरू कर दिया. 1962 में क्यूबा मिसाइल संकट के दौरान अमेरिका और सोवियत संघ आमने-सामने आ गए थे. इतिहास में इस घटना को शीत युद्ध के सबसे नाज़ुक लम्हों के तौर पर याद किया जाता है. अमरीकी राष्ट्रपति रोनाल्ड रीगन ने 80 रूसी राजनयिकों को निष्कासित कर दिया था. उनमें से पांच पर जासूसी का आरोप लगाया गया था.

बीबीसी की एक रिपोर्ट में 'जर्मन म्यूजियम ऑफ एस्पियोनाज' के ​रिसर्च हेड क्रिस्टोफर नेहरिंग के कहा था कि शीत युद्ध के दौरान बर्लिन हजारों जासूसों का शहर बन गया था. अमेरिका, ब्रिटेन, फ्रांस और रूस सभी देशों के जासूस बर्लिन में थे और जासूसी के लिए अलग-अलग तरीके आजमाते थे.

परिस्थितियों को देखते हुए ऐसा लग रहा है जैसे अमेरिका एक बार फिर नए कोल्ड वार की तरफ बढ़ रहा है.

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अमेरिका-चीन अक्सर एक-दूसर पर लगाते रहे हैं जासूसी का आरोप

सीएनएन की एक रिपोर्ट के मुताबिक अमेरिका और चीन, दोनों देशों का एक-दूसरे की जासूसी करने का लंबा इतिहास रहा है. अमेरिकी अधिकारियों का कहना है कि बीजिंग अपने मुख्य जियोपॉलिटिकल प्रतिद्वंद्वी अमेरिका पर रणनीतिक लाभ हासिल करने के लिए हर तरह का तरीका उपयोग करता है. वहीं बीजिंग अतीत में बार-बार अमेरिका पर जासूसी का आरोप लगाता रहा है.

चीन कैसे अमेरिका की जासूसी करता है

CNN की रिपोर्ट के अनुसार, अमेरिकी सुरक्षा अधिकारियों का कहना है कि पिछले एक दशक में अमेरिकी धरती पर चीनी जासूसी में नाटकीय वृद्धि हुई है.

बलून्स

हाल ही में अमेरिकी सीमा में कई बाद चीन का गुब्बारा देखा गया जिसे ढेर कर दिया गया. यह कोई पहला ऐसा मौका नहीं है जब इस तरह की गतिविधि देखी गई है. सीएनएन की रिपोर्ट में एक अमेरिकी अधिकारी ने कहा है कि हाल के वर्षों में हवाई और गुआम में इसी तरह की घटनाएं हुई हैं. वहीं एक अन्य अधिकारी ने कहा है कि इस तरह की गतिविधि के उदाहरण पिछले कई वर्षों में देखे गए हैं.

गुब्बारों को जासूसी प्लेटफॉर्म के रूप में इस्तेमाल करना शीत युद्ध के शुरुआती दिनों की बात है. उस समय कई देश इसका इस्तेमाल करते थे. बलून्स का पेलोड सैटेलाइट की तुलना में कम होता है, इसलिए गुब्बारे छोटे, सस्ते और लॉन्च करने में आसान होते हैं.

सेलफोन टावर्स

सेंट्रल मोंटाना में माल्मस्ट्रॉम एयर फ़ोर्स बेस कई हजार वर्ग मील में फैला हुआ है, जहां जमीन के नीचे 100 से अधिक अंतरमहाद्वीपीय बैलिस्टिक मिसाइल तैयार हैं. जिस साइलो में मिसाइले हैं वे साइलो में सेल फोन टावर के क्लस्टर्स लगे हुए हैं जोकि पास के एक छोटे ग्रामीण वायरलेस कैरियर द्वारा संचालित होते हैं. फेडरल कम्युनिकेशंस कमिशन फाइलिंग के अनुसार, उन सेल टावरों में चीनी तकनीक का इस्तेमाल होता है. इसको लेकर ऐसी चेतावनी भी जारी की जा चुकी है कि इस नेटवर्क से चीन को आसपास के क्षेत्रों और अन्य संवेदनशील सैन्य प्रतिष्ठानों में संभावित रूप से बढ़ते नेटवर्क हमलों के दौरान खुफिया जानकारी इकट्ठा करने की अनुमति मिल सकती है. चीनी कंपनी हुआवेई टॉवर तकनीक पर काम करती है.

2018 में FBI और CIA सहित प्रमुख अमेरिकी खुफिया एजेंसियों के प्रमुखों ने अमेरिकियों को Huawei उपकरणों और उत्पादों का उपयोग करने के खिलाफ चेतावनी दी थी. सुरक्षा विशेषज्ञों का कहना है कि देश के शस्त्रागार के इतने करीब यह तकनीक होने से कहीं अधिक खतरा पैदा हो सकता है.
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जमीन की खरीदारी

चीनी सरकार ने 2017 में वाशिंगटन, डीसी के नेशनल अर्बोरेटम में एक चीनी गार्डन बनाने के लिए 100 मिलियन डॉलर खर्च करने की पेशकश की थी. प्रस्ताव यह था कि वहां 70 फुट का पैगोडा बनाया जाएगा, मंदिर बनाए जाएंगे और पावेलियन्स का निर्माण किया जाएगा जिससे यहां हर साल हजारों पर्यटक आएंगे.

लेकिन जब अमेरिकी काउंटर इंटेलिजेंस अधिकारियों ने इसको गहराई से खंगाला तो उन्हें कई खतरे मिले. उन्होंने नोट किया कि जो पैगोडा तैयार किया जाएगा उसे रणनीतिक तौर पर वाशिंगटन के सबसे ऊंचे स्थानों में से एक पर बनाया जाएगा.जोकि यूएस कैपिटल US Capitol से महज दो मील की दूरी पर होगा. जोकि सिग्नल इंटेलिजेंस जुटाने के लिए एक आदर्श स्थान था.

हालांकि निर्माण शुरू होने से पहले फेडरल अधिकारियों ने चुपचाप उस प्रोजेक्ट को खत्म कर डाला. 2017 के बाद से फेडरल अधिकारियों ने महत्वपूर्ण अमेरिकी इंफ्रास्ट्रक्चर्स के पास चीनी भूमि खरीद की जांच की है. इस दौरान एक क्षेत्रीय वाणिज्य दूतावास को बंद कर दिया गया है, जिसे अमेरिकी सरकार चीनी जासूसों का गढ़ मानती है.

हैकिंग

बीबीसी की खबर के अनुसार, 2015 में चीन और अमेरिका ने एक समझौता किया था, जिसके तहत दोनों देशों ने वादा किया था कि वो 'साइबर तकनीक की मदद से बौद्धिक संपदा की चोरी नहीं करेंगे. इनमें कारोबारी बढ़त देने वाली गोपनीय तकनीकी जानकारी और दूसरे व्यापारिक राज भी शामिल थे.' लेकिन, इसके अगले ही साल अमेरिका की राष्ट्रीय सुरक्षा एजेंसी ने चीन पर इस समझौते के उल्लंघन का आरोप लगाया था. चीन द्वारा अमेरिका की साइबर जासूसी बहुत व्यापक है और इसने अमेरिकी प्रयोगशालाओं तक में घुसपैठ बना ली है.

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स्टूडेंट, व्यापारी वाले और वैज्ञानिक

वर्तमान और पूर्व अमेरिकी खुफिया अधिकारियों, सांसदों और कई विशेषज्ञों के अनुसार सीएनएन की रिपोर्ट में यह भी बताया गया है कि प्रवासी चीनी वैज्ञानिकों, व्यापारियों और यहां तक कि अमेरिका में रहने वाले चीनी स्टूडेंट्स पर भी बीजिंग जासूसी के लिए निर्भर है. कई हाई प्रोफाइल गिरफ्तारियां देखने को मिली हैं.

पिछले महीने जनवरी में ही अमेरिका की खुफिया जानकारी चुराने पर चीनी इंजीनियर (जी चाओचिन) को आठ साल की सजा सुनाई गई. अमेरिकी जस्टिस डिपार्टमेंट के मुताबिक जी चाओचिन लगभग एक दशक पहले स्टूडेंट वीजा पर अमेरिका आया था. और बाद में अमेरिकी सेना रिजर्व में भर्ती हुआ, उसे 2018 में गिरफ्तार किया गया था.

बीबीसी की रिपोर्ट के मुताबिक पिछले साल नवंबर में पेशेवर जासूस बताए जा रहे चीन के नागरिक शू यानजुन को 20 साल कैद की सजा सुनाई गई थी. शू पर अमेरिका के हवाई और अंतरिक्ष उद्योग की कई कंपनियों से गोपनीय तकनीकी जानकारियां चुराने का जुर्म साबित हुआ था. इन कंपनियों में जनरल इलेक्ट्रिक भी शामिल है.

2020 में अमेरिका ने वीजा के धोखाधड़ी मामले में चीन के कुछ नागरिकों को गिरफ्तार कर लिया था. अमरीकी न्याय विभाग के अनुसार गिरफ्तार किए गए चीनी नागरिकों ने कथित तौर पर चीनी सेना के सदस्य होने के बार में झूठ बोला था.

इस मामले पर अमेरिका वकीलों का कहना था कि ये चीनी योजना का हिस्सा है जिसके तहत चीन खुफिया तौर पर अपनी सेना के वैज्ञानिकों को अमेरिका भेजता है. जिन चार लोगों के पर आरोप थे उनके नाम वांग शिन, सॉन्ग शेन, जाओ कायकाय और तांग जुआन था. वांग शिन को लॉस एंजेल्स हवाई अड्डे पर गिरफ्तार किया गया था. उन्होंने इस बात को स्वीकार कर लिया था कि वो चीनी सेना के साथ सैन्य यूनिवर्सिटी लैब में काम करते हैं, लेकिन वीज़ा आवेदन में लिखा था कि उन्होंने सेना की नौकरी 2016 में छोड़ दी थी.

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