संयुक्त राष्ट्र (United Nations) के नेतृत्व में जलवायु पर होने वाली चर्चा के कम से कम 28 सालों में पहली बार, 3 दिसंबर को वैश्विक नेताओं ने जलवायु परिवर्तन का स्वास्थ्य पर असर को लेकर बात की. लगभग 124 देश एक साथ आए और 'जलवायु और स्वास्थ्य पर डिक्लेरेशन' के दस्तावेज पर हस्ताक्षर किए.
लेकिन बड़ी खबर ये है कि भारत ने जलवायु और स्वास्थ्य पर COP28 डिक्लेरेशन पर हस्ताक्षर करने से इनकार कर दिया.
भारत ने शिखर सम्मेलन में आयोजित 'स्वास्थ्य दिवस' में भी भाग नहीं लिया.
लेकिन भारत ने ऐसा क्यों किया? चलिए समझते हैं.
COP28 के डिक्लेरेशन में क्या था?
3 दिसंबर को ग्रीनहाउस गैस का उत्सर्जन कम करने के लिए डिक्लेरेशन लाया गया. इसके अनुसार:
कोयले की बिजली पर निर्भरता कम करना
डि-कार्बनाइजेशन (कार्बन उत्सर्जन में कमी लाना)
स्वास्थ्य क्षेत्र में उत्पन्न होने वाले कचरे को कम करें
सप्लाय चेन और स्वास्थ्य सिस्टम के लिए बेहतर/क्वालिटी के मानकों को लागू किया जाए
ऐसे हेल्थकेयर सिस्टम विकसित करना जो "जलवायु-संबंधी स्वास्थ्य प्रभावों" से निपटने में सक्षम हों (जलवायु परिवर्तन से स्वास्थ्य पर पड़ने वाले प्रभाव से निपटा जा सके)
भारत ने COP28 के डिक्लेरेशन पर हस्ताक्षर क्यों नहीं किया?
समाचार एजेंसी पीटीआई के अनुसार, भारत ने कहा कि स्वास्थ्य क्षेत्र में कूलिंग के लिए ग्रीनहाउस गैसों पर रोक लगाना देश के लिए व्यावहारिक (संभव) नहीं है, क्योंकि वैक्सीन, दवाओं आदि के लिए कोल्ड स्टोरेज रूम की जरूरी होती है.
भारत ने यह भी कहा कि वह घोषणा पत्र पर हस्ताक्षर करने से इसलिए बच रहा है क्योंकि इतने कम समय में डिक्लेरेशन की शर्तों को पूरा करना संभव नहीं है.
द हिंदू के अनुसार, पर्यावरण और वन मंत्रालय की सचिव लीना नंदन ने कहा:
“हमें वैक्सीन और दवाओं के स्टोरेज के लिए कोल्ड स्टोरेज की जरूरत है और ये हमारे हेल्थकेयर सिस्टम को मजबूत बनाने में प्रभावी हैं. हालांकि, यह सुझाव कि इनका उपयोग जलवायु उत्सर्जन में योगदान दे रहा है और हमें एनर्जी बनाने के लिए दूसरे विकल्प देखना चाहिए - यह स्वीकार्य नहीं हैं."
भारत ने ऐतिहासिक रूप से कार्बन और ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन में चार प्रतिशत से भी कम योगदान दिया है.
जलवायु क्षेत्र में प्रोक्लाइम के सीईओ कविन कुमार कंडास्वामी, जो वर्तमान में COP28 में हैं, उन्होंने द क्विंट को बताया कि:
"हेल्थकेयर मामले में दुनिया को निर्यात करने वाले भारत के लिए हेल्थकेयर सेक्टर को डीकार्बोनाइजिंग करने का मतलब आर्थिक अवसरों पर प्रहार करना होगा."
क्या डिक्लेरेशन को लेकर कोई चिंताएं हैं?
जब डिक्लेरेशन की लिमिटेशन की बात आती है, तो यह कानूनी रूप से बाध्यकारी दस्तावेज नहीं है यानी अगर देश चाहे तो वे अपना सकते हैं और ना चाहे तो छोड़ भी सकते हैं.
जलवायु और स्वास्थ्य विशेषज्ञों के बीच हैरानी की बात यह है कि डिक्लेरेशन में ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन में कटौती और डी-कार्बोनाइजेशन का आह्वान किया गया है, लेकिन इसमें जीवाश्म ईंधन (फॉसिल फ्यूल) के बारे में कुछ भी उल्लेख नहीं किया गया है.
बता दें कि भारत एकमात्र देश नहीं है जिसने डिक्लेरेशन पर हस्ताक्षर करने से इनकार किया है बल्कि संयुक्त राज्य अमेरिका ने भी हस्ताक्षर नहीं किए हैं.
हालांकि, टेलीग्राफ इंडिया के अनुसार, विश्व स्वास्थ्य संगठन के वरिष्ठ अधिकारी अभी भी डिक्लेरेशन के संबंध में भारत के साथ बातचीत कर रहे हैं.
WHO के सार्वजनिक स्वास्थ्य और पर्यावरण विभाग की निदेशक मारिया नीरा ने अखबार को बताया कि “भारत एक महत्वपूर्ण पार्टनर है, एक विशाल आबादी वाला विशाल देश है, साथ ही, बड़ी टेक्नोलॉजी वाला देश... मुझे यकीन है कि हम कोई रास्ता निकाल लेंगे.”
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