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अयोध्या का सच, भाग 5: मंडल कमीशन बनाम बीजेपी का रथ और राम राग

साल 1990 में मंडल कमीशन के बाद आडवाणी ने राम मंदिर बनाने के लिए निकाली थी रथ यात्रा.

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द क्विंट बाबरी विध्वंस के 23 साल बाद इस घटना से जुड़ी सात भागों वाली डॉक्यूमेंट्री सीरीज लाया है. इस सात भागों वाली डॉक्युमेंट्री सीरीज में उन घटनाओं की पड़ताल की गई है, जो 23 साल पहले विवादित ढांचे को गिराए जाने का कारण बने.

अपनी 10,000 किलोमीटर लंबी रथयात्रा शुरू करने से एक दिन पहले लाल कृष्ण आडवाणी को अभिनेता मनोज कुमार ने एक ऑडियो कैसेट भेजा था. इस कैसेट में लता मंगेशकर द्वारा गाया गया एक गीत था जो इस पूरी रथ यात्रा में बजाया जाता रहा. यह गीत एक मशहूर हिंदी फिल्म से था जिसमें नूतन ने काम किया था, और रथ यात्रा के लिहाज से बिल्कुल सटीक बैठता था.

गुजरात के सोमनाथ से शुरू होकर उत्तर प्रदेश की अयोध्या में जाकर खत्म होने वाली इस यात्रा का मकसद देश के लाखों लोगों से संपर्क स्थापित करना था.

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सोमनाथ मंदिर को इस यात्रा का प्रस्थान बिंदु चुनने के पीछे धार्मिक और राजनीतिक प्रतीक भी थे. तुर्क सुल्तान महमूद गजनवी ने सोमनाथ मंदिर पर काफी लूटपाट मचाई थी और 1001-1026 के बीच 25 सालों के दौरान उसने भारत पर 17 बार आक्रमण किया था.

आजादी के बाद जूनागढ़ के नवाब ने पाकिस्तान के साथ जाने की इच्छा दिखाई थी जिसकी वजह से इस हिंदू-बहुल रियासत की जनता ने उनके खिलाफ विद्रोह कर दिया था. जूनागढ़ के भारत में शामिल होने के चार दिन बाद सरदार वल्लभभाई पटेल ने वहां का दौरा किया था और सोमनाथ मंदिर के पुनर्निर्माण का वादा किया था. सोमनाथ मंदिर का विस्तृत इतिहास लिखने वाले आडवाणी के मुताबिक, इस घोषणा को लेकर विरोध भी हुआ, लेकिन ‘सरदार पटेल इस बात को लेकर अड़ गए और इसके बाद इस प्रस्ताव को नेहरू कैबिनेट की मंजूरी मिल गई.’

12 सितंबर, 1990 को बीजेपी अध्यक्ष ने 11 अशोक रोड पर स्थित पार्टी ऑफिस में एक प्रेस कॉन्फ्रेंस बुलवाई और राम मंदिर के लिए 30 अक्टूबर को होने वाली वीएचपी की कार सेवा में शामिल होने की घोषणा की.

जाति आरक्षण की राजनीति

दस सालों से ठंडे बस्ते में पड़ी मंडल कमीशन की रिपोर्ट को प्रधानमंत्री वीपी सिंह ने 7 अगस्त 1990 को स्वीकार किया था. इस कमीशन का गठन मोरार जी देसाई की सरकार में हुआ था, जिसे बाद में इंदिरा गांधी की सरकार ने ‘सामाजिक और शैक्षिक रूप से पिछड़े वर्गों को परिभाषित करने के लिए मानदंड निर्धारित करने’ और ‘इस दिशा में आगे कदम बढ़ाने के लिए’ दो बार आगे बढ़ाया था.

मंडल कमीशन ने अन्य पिछड़ा वर्ग को सभी स्तर की सरकारी सेवाओं में 27 फीसदी आरक्षण देने की सिफारिश की थी. इसका प्रभाव यह हुआ कि उस समय की देश की कुल आबादी की 52 फीसदी आबादी सरकारी संस्थानों और विभागों में आरक्षण पाने के योग्य थी.

उस समय सरकार के इस फैसले के खिलाफ सवर्णों और अल्पसंख्यक छात्रों ने अपनी आवाज उठाई थी.

12 सितंबर, 1990 को बीजेपी अध्यक्ष ने 11 अशोक रोड पर स्थित पार्टी ऑफिस में एक प्रेस कॉन्फ्रेंस बुलवाई और राम मंदिर के लिए 30 अक्टूबर को होने वाली वीएचपी की कार सेवा में शामिल होने की घोषणा की.

लाल कृष्ण आडवाणी के मुताबिक मूल योजना यह थी कि कुछ राज्यों के गावों में पैदल जाया जाए और राम मंदिर के निर्माण के लिए समर्थन मांगा जाए. उस समय तक प्रमोद महाजन ने बीजेपी के वरिष्ठ नेताओं के बीच अपनी पहचान बनानी शुरू कर दी थी, हालांकि उनके कदम अभी संसद में नहीं पड़े थे. अपने विश्वासपात्र प्रमोद महाजन से आडवाणी ने अपनी योजना के बारे में बताया, जिस पर महाजन ने उनसे कहा कि पैदल यात्रा की वजह से यह जुलूस की रफ्तार धीमी पड़ जाएगी.
आडवाणी ने फिर पूछा, ‘तो क्या जीप से यात्रा की जाए?’

लेकिन महाजन के दिमाग में कुछ और चल रहा था. उन्होंने एक एयर-कंडीशन की सुविधा वाली टोयोटा मिनी-बस को रथ का रूप दिलवाया. यही ‘रथ’ आठ राज्यों के साथ-साथ केंद्र शासित प्रदेश दिल्ली से गुजरने वाला था.

अब तक, बीजेपी ओबीसी को 27 फीसदी आरक्षण दिए जाने के फैसले के खिलाफ सूक्ष्म तौर पर अपनी आवाज उठा रही थी.

लेकिन एक अपेक्षाकृत नए हिन्दू राष्ट्रवादी पार्टी के तौर पर यह उत्तर भारत में ऊंची जाति के हिंदू जनाधार को खोने का जोखिम नहीं उठा सकता है.

मंडल विरोधी प्रदर्शन

दिल्ली विश्वविद्यालय के देशबंधु कॉलेज के एक छात्र राजीव गोस्वामी ने 19 सितंबर 1990 को दिल्ली में एम्स चौराहे पर विरोध प्रदर्शन करने के दौरान आत्मदाह कर लिया था.

गोस्वामी को इलाज के लिए सफदरजंग अस्पताल के बर्न बार्ड में रखा गया था. अंतत: फरवरी 2004 में लिवर और गुर्दे को गंभीर क्षति पहुंचने की वजह से उनका निधन हो गया. बाद में अनाधिकारिक तौर पर उस चौराहे का नाम ‘राजीव चौक’ रख दिया गया.

इस घटना के बाद कई दूसरे शहरों में भी तेजी के साथ हिंसा फैलने लगी थी. जिससे प्रधानमंत्री के तौर पर वीपी सिंह की कुर्सी को खतरा पैदा हो गया था.

आडवाणी उन वीआईपी लोगों की लिस्ट में से एक थे जो कि अस्पताल जाकर राजीव गोस्वामी से मुलाकात करना चाहते थे. हालांकि राजीव गोस्वामी के समर्थकों ने उन्हें मिलने से रोक दिया. इसके बाद आडवाणी ने न सिर्फ ‘मंदिर वहीं बनाएंगे’(जहां बाबरी मस्जिद थी) का नारा बुलंद किया, बल्कि मंडल आयोग को हिंदुओं के बीच मतभेद पैदा करनेवाला करार देकर इसके खिलाफ जोरदार आवाज उठाई.

रथ यात्रा

तत्कालीन बीजेपी अध्यक्ष लाल कृष्ण आडवाणी ने 25 सितंबर 1990 को सोमनाथ मंदिर में पूजा कर अपनी रथयात्रा की शुरुआत की.

बीजेपी के महासचिव और मुख्य रणनीतिज्ञ गोविंदाचार्य दिल्ली से इस यात्रा की निगरानी कर रहे थे. गुजरात में हुई सारी तैयारियां शंकर सिंह वाघेला और नरेंद्र मोदी ने की थीं. बजरंग दल ने इस यात्रा में लोगों की भागीदारी सुनिश्चित की और उनको 6-इंच के त्रिशूल भी बांटे. बजरंग दल के मुताबिक यह त्रिशूल प्रतीकात्मक था और किसी भी तरह से आर्म्स ऐक्ट का उल्लंघन नहीं करता था. और इस पूरी यात्रा के दौरान आडवाणी के साथ रहे प्रमोद महाजन ने यात्रा के दौरान मीडिया से बातचीत का काम किया.

अपने भाषणों में आडवाणी ने मंडल को हिंदू समुदाय को बांटने वाला करार दिया. इसका नतीजा यह हुआ कि इस रथयात्रा ने बीजेपी को एक जनता दल और कांग्रेस विरोधी पार्टी के रूप में स्थापित कर दिया जो कि न सिर्फ धार्मिक रूप से, बल्कि राजनीतिक रूप से भी हिंदुओं को इकट्ठा करना चाहती थी.

बीजेपी के इस कदम की वजह से वी. पी. सिंह की सरकार, जिसका हिस्सा खुद बीजेपी भी थी, संकट में आ गई.

आडवाणी की रथयात्रा के बाद गुजरात, महाराष्ट्र, कर्नाटक, आंध्र प्रदेश, राजस्थान और हरियाणा में आई सांप्रदायिक हिंसा की खबरों को बीजेपी ने या तो नकार दिया या कोई महत्व ही नहीं दिया.

इसी बीच, जनता दल, बीजेपी, वीएचपी और आरएसएस के बीच बाबरी मस्जिद की जगह राम मंदिर बनाने की मांग को लेकर सुलह तक पहुंचने के लिए बातचीत जारी रही.

आडवाणी की यात्रा का सरकार पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ने के बावजूद भी वीपी सिंह सरकार ने आडवाणी को गिरफ्तार करने के लिए कोई कदम नहीं उठाया. पहले से ही ध्रुवीकृत माहौल में सांप्रदायिक प्रतिक्रिया के डर से प्रधानमंत्री को संयम बरतने के लिए मजबूर होना पड़ा था.

बाबरी मस्जिद वाली जगह पर ही राम मंदिर बनाने की अटूट मांग पर सहमति बनाने के बजाय उन्होंने अपने सहयोगी दल भाजपा और उसके सहयोगी आरएसएस और वीएचपी के साथ वार्ता करने लिए बैठक का आयोजन किया.

इसी बातचीत के बीच 30 अक्टूबर 1990 को आडवाणी दिल्ली पहुंचे थे. जब बातचीत विफल हो गई तो आडवाणी अपनी यात्रा को वहीं से शुरू करने के लिए बिहार पहुंच गए.

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गिरफ्तारी

23 अक्टूबर, 1990 को आडवाणी ने पटना के गांधी मैदान में एक विशाल रैली को सम्बोधित किया. इसके बाद उन्होंने हाजीपुर और ताजपुर में बैठकों में हिस्सा लिया और देर रात 2:30 बजे समस्तीपुर के सर्किट हाउस पहुंचे. सुबह तड़के ही वहां अर्धसैनिक बलों को तैनात कर दिया गया, हवाई पट्टी तैयार की गई और बिहार से देश के बाकी हिस्सों के लिए फोन लाइनों का संपर्क कुछ देर के लिए तोड़ दिया गया.

सुबह 6 बजे आर. के. सिंह ने आडवाणी के कमरे का दरवाजा खटखटाया और उन्हें अरेस्ट वॉरंट दिखाया. गिरफ्तारी से पहले आडवाणी ने राष्ट्रपति को एक चिट्ठी लिखी, जिसमें उन्होंने राष्ट्रपति को वी. पी. सिंह की सरकार से बीजेपी की समर्थन वापसी के बारे में सूचित किया था.

आडवाणी की रथ यात्रा के दो साल बाद बाबरी मस्जिद तोड़ने की घटना ने भी देश की राजनीति को परिभाषित किया.

इस घटना ने धर्मनिरपेक्षता की धारणा को विकसित किया, साथ ही “राष्ट्रवादी” और “धर्मनिरपेक्ष” की बहस को भी जन्म दिया.

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