Farmers Protest: किसान एक बार फिर दिल्ली की तरफ देख रहे हैं. उनके हाथ हवा में हैं, जुबान पर नारे हैं और नजरों में उम्मीद- कि केंद्र सरकार उनकी मांग पूरी करेगी. हालांकि दोनों में अबतक बात नहीं बनी है. किसानों की जो सबसे बड़ी मांग हैं वो यह है कि सरकार 23 फसलों की न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) पर खरीद की कानूनी गारंटी दे. इसके साथ-साथ उनकी अन्य मांगों में से एक मांग यह भी है कि सरकार भारत को विश्व व्यापार संगठन (WTO) और मुक्त व्यापार समझौतों से बाहर निकाले.
सवाल है कि किसान भारत को WTO से बाहर निकालने की मांग क्यों कर रहे हैं? आखिर किसान WTO को अपने हितों में बाधा के रूप में क्यों देख रहे हैं? MSP, सब्सिडी, एक्सपोर्ट-इम्पोर्ट पर रोक जैसे मुद्दों पर WTO का क्या स्टैंड है?
इस सवालों के जवाब से पहले आपको आसान भाषा में बताते हैं कि WTO क्या है?
WTO क्या है?
विश्व व्यापार संगठन (WTO) की वेबसाइट के अनुसार WTO देशों के बीच व्यापार के नियम तय करने वाला एकमात्र वैश्विक अंतर्राष्ट्रीय संगठन है. इसके केंद्र में विश्व व्यापार संगठन के समझौते हैं. इन समझौते पर दुनिया के अधिकांश व्यापारिक देशों ने बातचीत की है और इनपर हस्ताक्षर किए गए हैं. इन समझौतों पर संबंधित देशों की संसदों ने मुहर भी लगाई है.
WTO का लक्ष्य यह सुनिश्चित करना है कि देशों के बीच व्यापार जहां तक हो सके सुचारू हो, उम्मीद के मुताबिक हो और उनका फ्लो स्वतंत्र रूप से हो.
WTO के अनुसार, उसकी भूमिका व्यापार नियमों की एक वैश्विक प्रणाली को संचालित करना है. यह देशों के बीच व्यापार समझौतों पर बातचीत के लिए एक मंच के रूप में काम करता है. यह अपने सदस्य देशों के बीच व्यापार विवादों को सुलझाता है और यह विकासशील देशों की जरूरतों का समर्थन करता है.
किसान भारत को WTO से बाहर निकालने की मांग क्यों कर रहे हैं?
WTO किसानों या स्थानीय उत्पादकों को दिए जाने वाले सरकारी सब्सिडी को गलत मानता है. वह कहता है कि सदस्य देशों को अपने किसानों को दी जाने वाली सब्सिडी को सीमित करना चाहिए. ऐसा इसलिए है क्योंकि WTO का मानना है कि बहुत अधिक सब्सिडी देने से अंतर्राष्ट्रीय व्यापार पर असर पड़ता है. WTO के नियम के अनुसार यह सदस्य देशों की प्रतिबद्धता है कि वह अपने यहां व्यापार बाधाओं को कम करें और अपने बाजारों को सभी के लिए खोले.
कई देश भारत द्वारा अपने किसानों को दी जाने वाली सब्सिडी को लेकर चिंता व्यक्त करते हुए कहते हैं कि इससे वैश्विक कृषि कारोबार पर असर पड़ेगा.
भारत जनवरी 1995 से ही WTO का सदस्य है. एक तरफ तो भारत के किसान MSP को लेकर कानूनी गारंटी चाहते हैं, वहीं WTO के नियम इसके ठीक उलट हैं. भारत ने WTO से यह वादा किया है कि वह MSP तय करने पर कोई गारंटी नहीं देगा. इसीलिए किसान यह मांग कर रहे हैं कि भारत WTO से बाहर आकर MSP से जुड़ी उनकी मांगों को मान ले. साथ ही उसे सभी मुक्त व्यापार समझौतों को भी रद्द कर देना चाहिए ताकि उसे किसी अन्य देश या संगठन की शर्तों के आगे झुकना न पड़े.
MSP, सब्सिडी, एक्सपोर्ट-इम्पोर्ट.. ऐसे तमाम मुद्दों पर WTO का स्टैंड क्या है?
WTO का नियम कहता है कि खाद, बीज, बिजली, सिंचाई और न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) जैसे इनपुट पर किसी भी देश की सरकार उत्पादन मूल्य के 5 से 10% तक ही सब्सिडी दे सकती है. हालांकि भारत इससे अधिक सब्सिडी देता है.
उदाहरण के लिए, 2019-20 में भारत का कुल चावल उत्पादन 46.07 बिलियन डॉलर था और इसने किसानों 6.31 बिलियन डॉलर (या 13.7%) की सब्सिडी दी, जो 10% की सीमा से ऊपर है. यही वजह है कि भारत को WTO में कई देशों का विरोध झेलना पड़ता है. हालांकि ध्यान देने वाली बात यह है कि भारत की प्रति किसान सब्सिडी अमेरिका जैसे देशों की तुलना में बेहद कम है. भारत जैसे विकासशील देशों के लिए परेशानी यह है कि WTO के नियम प्रति किसान के आधार पर सब्सिडी पर विचार नहीं करते हैं, बल्कि ओवरऑल कुल उत्पादन पर सब्सिडी काउंट किया जाता है.
यहां एक और चौंकाने वाले आंकड़े सामने आए हैं. इंडियन एक्सप्रेस ने सरकारी अधिकारी के हवाले से बताया है कि भारत में किसानों को प्रति किसान 300 डॉलर की सब्सिडी मिलती है, जबकि अमेरिका में प्रति किसान 40,000 डॉलर की सब्सिडी मिलती है.
कई बार भारत की सरकार स्थानीय मार्केट में अनाजों, सब्जियों के दामों को कंट्रोल करने के लिए निर्यात पर बैन लगाती है तो कभी आयत पर बैन. स्थानीय किसानों के हितों के लिए यह कई बार जरूरी होता है. लेकिन WTO इसे स्वतंत्र व्यापर के नियमों का उल्लंघन मानता है.
गौरतलब है कि अबू धाबी में WTO के 13वें मंत्रिस्तरीय सम्मेलन में वैश्विक व्यापार मंत्रियों की बैठक (MC13) 26 से 29 फरवरी के बीच होगी.
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