दुनिया का सबसे मशहूर खेल है फुटबॉल. फीफा रैंकिंग के मुताबिक कुल 222 देश इस खेल को खेलते हैं. कई देशों में इसे सॉकर भी कहा जाता है. फिलहाल रूस में फीफा वर्ल्ड कप 2018 खेला जा रहा है. ऐसे में भारत में कई ऐसे स्पोर्ट्स फैन हैं जो इस खेल के बारे में ज्यादा से ज्यादा जानना चाहते हैं. आइए हम आपको इस ‘ब्यूटिफुल गेम’ के बारे में एक-एक बात बताते हैं और पूरे नियम समझाते हैं...
कितने खिलाड़ी, उपकरण और रेफरी
एक फुटबॉल मैच दो टीमों के बीच खेला जाता है. मैदान की चौड़ाई 64 से 75 मीटर की होती है तो वहीं लंबाई 100 से 110 मीटर की होती है. दोनों टीमों में गोलकीपर समेत 11-11 खिलाड़ी होते हैं. अगर कोई टीम मैदान पर कम से कम 7 खिलाड़ियों के साथ नहीं होती है तो उसे फाइन किया जाता है और या मैच में हारा हुए घोषित किया जाता है. फीफा के मैचों के दौरान एक टीम को तीन सब्स्टिटूशन चांस मिलते हैं यानी मैच के दौरान कोई टीम तीन बार अपने खिलाड़ी को बदल सकती है. जैसे शुरुआती 11 खिलाड़ी फील्ड पर उतरे तो उनमें से तीन खिलाड़ियों को मैच में कभी भी बदला जा सकता है.
फुटबॉल मैच के दौरान हरएक खिलाड़ी को जर्सी, शॉर्ट्स, शिन गार्ड्स, सॉक्स और जूते पहनने होते हैं. सॉक्स को शिन गार्ड पूरी तरह से कवर करना होता है. अगर रेफरी को किसी खिलाड़ी की जर्सी में दिक्कत नजर आती है तो वो उसे मैदान से बाहर कर सकता है. मैदान पर एक रेफरी होता है जो सब कुछ देखता है और उसका हर फैसला मान्य होता है. दो एसिसटेंट रेफरी मैदान पर उसकी मदद करते हैं जैसे अगर बॉल मैच से बाहर जाए तो झंडा दिखाना, या फिर किसी खिलाड़ी के फाउल पर या फिर ऑफसाइड होने पर वो अपने फैसले देते हैं. इसके अलावा अब एक टीवी रेफरी भी होता है और कभी-कभी गोल के पीछे गोललाइन रेफरी भी होता है.
मैच की अवधि और किक-ऑफ
फुटबॉल का मैच कुल 90 मिनट का होता है. मैच को दो 45-45 मिनट के हाफ्स में खेला जाता है. रेफरी की मर्जी पर एक्स्ट्रा टाइम दिया जाता है. दोनों हाफ के 45 मिनट खत्म होने के बाद ही एक्सट्रा टाइम की अवधि का पता लगता है. दोनों हाफ के बीच कुछ वक्त का ब्रेक होता है जो 15 मिनट से ज्यादा नहीं हो सकता. किसी भी टूर्नामेंट के डिसाइडर मैचों (क्वार्टर फाइनल, सेमीफाइनल और फाइनल) में अगर 90 मिनट तक मैच का नतीजा नहीं आता है तो 15-15 मिनट के दो हाफ में 30 मिनट का एक्सट्रा टाइम खेल और होता है. अगर तब भी नतीजा न आए तो फिर पेनल्टी शूट आउट होता है जिसमें दोनों टीमों को 5-5 चांस मिलते हैं और तब भी अगर नतीजा न निकले तो पेनल्टी शूट आउट चलता रहता है जब तक कि कोई टीम अपनी पेनल्टी मिस न कर दे. इसे सडन डेथ भी कहा जाता है.
मैच की शुरुआत यानी किक ऑफ सिक्के से टॉस के जरिए होता है. टॉस जीतने वाली टीम गेंद स्टार्ट करने या फिर पसंदीदा गोलपोस्ट में से एक चीज चुनती है. मुकाबले में जो टीम सबसे ज्यादा गोल करती है वो जीती हुई मानी जाती है.
बाकी नियम और टर्मिनोलॉजी
स्ट्राइकर/फॉरवर्ड खिलाड़ी: मुख्य जिम्मेदारी गोल करना होती है और ये विरोधी टीम के हाफ में खेलते हैं.
डिफेंडर: खासतौर पर अपने विरोधियों को गोल स्कोर करने से रोकता है.
मिडफील्डर: विरोधी से बॉल छीन कर अपने आगे खेलने वाले(फॉरवर्ड/स्ट्राइकर) खिलाड़ियों को बॉल देने का काम करता है.
गोलकीपर: गोल कीपर इकलौता ऐसा खिलाड़ी होता है, जिसे अपने हाथ में बॉल पकड़ कर खेलने की इजाजत होती है, लेकिन वो अपने गोल के सामने पेनल्टी एरिया तक ही ऐसा कर सकता है.
पेनल्टी एरिया: हर गोल के सामने का एरिया पेनल्टी एरिया के रूप में जाना जाता है. यह एरिया हाफ सर्किल लाइन से पहचाना जा सकता है. यह गोल पोस्ट से 16.5 मीटर की दूरी तक होता है.
पेनल्टी किक: गोलकीपर की पोजिशन के आसपास डिफेंस करने वाली टीम अगर फॉउल करती है तो सजा के तौर पर विरोधी टीम को पेनल्टी दी जाती है.
थ्रो-इन: अगर किसी खिलाड़ी के शरीर या पैर से लगकर बॉल पूरी तरह से फील्ड रेखा पार कर जाती है, तो विरोधी टीम के खिलाड़ी को हाथ से गेंद फेंकने का चांस मिलता है.
गोल-किक: जब गोल करने के प्रयास में अटैकिंग टीम के खिलाड़ी की वजह से बॉल पूरी तरह गोल रेखा को पार कर जाती(बिना गोल हुए) है तो डिफेंस करने वाली टीम को गोल किक दी जाती है.
कॉर्नर किक: जब बॉल बिना गोल के ही गोल रेखा को पार कर जाती है तो डिफेंस करने वाली टीम द्वारा बॉल को आखिरी बार छूने की वजह से अटैकिंग टीम को कॉर्नर किक मिलती है.
फ्री किक: जब कोई खिलाड़ी फाउल करता है तो ये विरोधी टीम को ईनाम में मिलती है, इसमें फ्री-किक मारने वाला खिलाड़ी डायरेक्ट गोलपोस्ट में गोल कर सकता है लेकिन इनडायरेक्ट फ्री-किक में खिलाड़ी को पहले किसी दूसरे खिलाड़ी को पास करना होता है.
ड्रॉप्ड बॉल: जब रेफरी किसी दूसरी वजह से गेम को रोक दे, जैसे प्लेयर को गंभीर चोट लगना या बॉल का खराब हो जाना.
यैलो कार्ड: रेफरी प्लेयर को सजा के रूप में उसके गलत बर्ताव के लिए पीला कार्ड दिखाकर चेतावनी देता है. हालांकि यैलो कार्ड से पहले भी खिलाड़ी को एक चेतावनी दी जाती है.
रेड कार्ड: एक ही खेल में दूसरी बार पीला कार्ड मिलने का मतलब है रेड कार्ड का मिलना और उसके बाद मैदान से बाहर. अगर एक प्लेयर को बाहर निकाल दिया जाता है तो उसकी जगह कोई दूसरा प्लेयर नहीं आ सकता. बहुत ज्यादा खराब व्यवहार या फाउल पर डायरेक्ट रेड कार्ड भी दिखाया जा सकता है.
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फाउल
एक डायरेक्ट फ्री किक मिलती है जब:
* कोई खिलाड़ी विरोधी को लात मारता है या मारने की कोशिश करता है
* विरोधी को गिराता या गिराने की कोशिश करता है
* विरोधी खिलाड़ी के ऊपर उछलता है
* विरोधी खिलाड़ी पर चढ़ता है
* विरोधी खिलाड़ी को धक्का मारने की कोशिश करता है
* विरोधी खिलाड़ी को पकड़ता है
* विरोधी खिलाड़ी पर थूकता है
अगर इनमें से कुछ भी कोई खिलाड़ी अपनी टीम के पेनल्टी एरिया में करता है तो विरोधी टीम को पेनल्टी किक मिल जाती है.
यैलो कार्ड मिलता है जब...
* खिलाड़ी खराब व्यवहार करता है
* शब्दों या एक्शन से खराब व्यवहार करता है
* खेल के कानूनों का लगातार उल्लंघन
* खेल शुरू करने में देरी करना
* कॉर्नर किक, फ्री किक और थ्रो-इन के वक्त विरोधी टीम के खिलाड़ी से सही दूरी न रखने पर
* रेफरी की इजाजत के बिना फील्ड पर एंट्री या रीएंट्री
* अगर कोई खिलाड़ी गोल मारने के बाद जर्सी उतारकर जश्न मनाता है.
रेड कार्ड मिलता है जब....
* खिलाड़ी सीरीयस फाउल प्ले करता है
* लड़ाई-झगड़ा करता है
* किसी खिलाड़ी या दूसरे व्यक्ति पर थूकता है
* जब कोई टीम गोल की तरफ बढ़ती है तो गलत तरीके से बॉल के साथ छेड़खानी करना
* जब विरोधी फ्री-किक या पेनल्टी किक ले रहा हो तो गलत तरीके से उसे रोकना
* मैदान पर गाली-गलौज या गंदी भाषा का इस्तेमाल करना
* अगर दूसरा यैलो कार्ड मिलता है तो उसे रेड कार्ड ही माना जाएगा
ऑफसाउड क्या होता है?
ये सबसे कठिन रूल है. अक्सर आपने देखा होगा कि किसी टीम के खिलाड़ी द्वारा गोल किए जाने पर भी उसे रेफरी गोल नहीं मानते हैं और कमेंटेटर ऑफसाइड के बारे में बात करते हैं. दरअसल इस नियम के मुताबिक कोई खिलाड़ी अगर विरोधी टीम के गोलपोस्ट लाइन के पास गेंद और आखिरी डिफेंडर से पहले पहुंच जाता है तो वो ऑफसाइड हो जाता है. फीफा नियमों के मुताबिक जब खिलाड़ी के टीममेट को गेंद टच करती है या वो किक करता है तो उस वक्त उस खिलाड़ी का हाथ, दांत, घुटना, उंगलियां विरोधी टीम के आखिरी डिफेंडर के सामने होने चाहिएं. अगर गेंद पास होने से पहले उसने आखिरी डिफेंडर को पार कर लिया तो फिर वो ऑफसाइड कहलाएगा. आप ये वीडियो देखकर भी समझ सकते हैं.
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