राजस्थान में गुर्जर आंदोलन एक बार फिर जोर पकड़ता जा रहा है. नौकरियों और शिक्षण संस्थानों में 5 फीसदी आरक्षण की मांग को लेकर इस आंदोलन ने राज्य और केंद्र सरकार की नाक में दम कर दिया है.
लेकिन गुर्जरों का ये कोई पहला आंदोलन नहीं है. पिछले 13 सालों में ये छठा मौका है, जब आंदोलनकारी रेल पटरियों पर बैठकर सरकार से आरक्षण की मांग कर रहे हैं. पिछले एक दशक में ये आंदोलन कभी नेशनल हाइवे पर उतरा, तो कभी रेल पटरियों पर जम गया. लेकिन अभी तक इस आंदोलन को अपनी मंजिल न मिल सकी.
8 फरवरी से गुर्जरों ने राजस्थान के सवाई माधोपुर के मलारना रेलवे स्टेशन के पास पटरियों पर अपना कब्जा जमाकर छठी बार आंदोलन शुरू किया. आंदोलनकारी पटरी पर ही टैंट लगाकर बैठ गए हैं, जिस कारण दिल्ली-मुंबई रेल मार्ग पर खासा असर पड़ा है.
आइए जानते हैं, आखिर क्यों बार-बार आंदोलन करने लगता है गुर्जर समुदाय? क्या है इतिहास, क्यों नहीं हो पाई गुर्जरों की मांग पूरी?
13 साल पुराना है गुर्जर आरक्षण आंदोलन
देश में आरक्षण की चिंगारी तो जब-तब भड़कती ही रही है. लेकिन राजस्थान में गुर्जरों ने सबसे पहले आरक्षण के लिए आंदोलन की शुरुआत साल 2006 में की थी. तब से अब तक गुर्जर छह बार आंदोलन कर चुके हैं. 2006 के बाद 2007, 2008, 2010, 2015 और अब 2019 में गुर्जरों का आंदोलन भड़क उठा है.
इस बीच राज्य और केंद्र में अलग-अलग पार्टियों की सरकारें रहीं. लेकिन कोई भी सरकार गुर्जरों की इस मांग का कोई स्थाई समाधान नहीं ढूंढ पाई.
क्या है गुर्जर समुदाय की मांग?
साल 2006 में गुर्जर समुदाय ने राजस्थान में करौली जिले के हिंडौन से पहली बार अपने आंदोलन की शुरुआत की थी. तब गुर्जर अनुसूचित जनजाति (ST) वर्ग में खुद को शामिल करने की मांग कर रहे थे. फिर अति पिछड़ा वर्ग में शामिल होने के लिए राजी हो गए. लेकिन 2008 के आंदोलन के बाद से गुर्जर राज्य की सभी सरकारी नौकरियों और शिक्षण संस्थानों में अलग से 5 फीसदी आरक्षण की मांग कर रहे हैं.
सरकार ने क्या एक्शन लिया?
साल 2006 में पहले आंदोलन के बाद से ही सरकार एक्शन में आ गई थी. गुर्जरों को आरक्षण देने के लिए सरकार ने जस्टिस जसराज चोपड़ा कमेटी का गठन किया. 2007 में इस कमेटी ने अपनी रिपोर्ट में गुर्जरों को एसटी के तहत आरक्षण देने के लायक नहीं समझा. इसके बाद 2008 के आंदोलन में सरकार ने गुर्जरों को 5 फीसदी आरक्षण देने का वादा किया. लेकिन हाईकोर्ट ने सरकार के इस फैसले पर रोक लगा दी.
बिल्कुल ऐसा ही 2010 और 2015 के गुर्जर आंदोलन के दौरान हुआ. सरकारों ने 5 फीसदी गुर्जर आरक्षण लागू किया, लेकिन हाईकोर्ट ने रोक लगा दी. संविधान का हवाला देते हुए हाईकोर्ट ने गुर्जरों के लिए सिर्फ 1 फीसदी आरक्षण की मंजूरी दी है.
क्यों नहीं हो पाई गुर्जरों की मांग पूरी?
हमारी संविधान की व्यवस्था और समय-समय पर दिए गए सुप्रीम कोर्ट के निर्देश के मुताबिक, सामाजिक आधार पर आरक्षण की कुल सीमा 50 फीसदी से ज्यादा नहीं हो सकती है. इससे ज्यादा आरक्षण सामान्यता: स्वीकार्य नहीं है. इसी वजह से हाईकोर्ट ने सरकार के आरक्षण देने के फैसले पर बार-बार रोक लगा दी.
लेकिन जब से केंद्र की मोदी सरकार ने संविधान में संशोधन करके जनरल कैटेगरी के आर्थिक रूप से कमजोर तबकों के लिए 10 फीसदी आरक्षण लागू किया है. तब से गुर्जरों ने एक बार फिर आंदोलन शुरू कर दिया है. उनकी मांग की है सरकार संविधान में संशोधन करके इसी तरह उनको भी आरक्षण दे.
गुर्जरों के आंदोलन का तरीका वही पुराना!
गुर्जरों के आंदोलन में एक बात कॉमन है और वो है उनके आंदोलन करने का तरीका. 2006 में गुर्जरों ने करौली जिले के हिंडौन से रेल पार्टियों पर कब्जा करके और ट्रेनों को रोककर अपना आंदोलन शुरू किया था. आज भी इनकी यही शैली है. हालांकि नेशनल हाइवे को बंद करके और सरकारी प्रॉपर्टी को आग के हवाले करके भी गुर्जरों ने अपने आंदोलन को खूब हवा दी है.
कई बार गुर्जरों का आंदोलन हिंसक भी हो गया. पुलिस प्रशासन और आंदोलनकारियों के बीच झड़प भी हुई. इस दौरान साल 2007 में 28 लोगों ने अपनी जान गवां दी. 2008 के आंदोलन में फिर झड़प हुई, जिसमें 30 लोगों की जान चली गई. 2010 और 2015 के आंदोलन में 14 लोगों की जान चली गई. इस तरह अब तक 72 आंदोलनकारी इस हिंसक आंदोलन की भेंट चढ़ चुके हैं.
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