अमेरिका ने भारत समेत आठ देशों को ईरान से तेल मंगाने पर लगे प्रतिबंध से मिली छूट खत्म करने का ऐलान कर दिया. इसके बाद अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल तेल के दाम बढ़ गए. भारत सऊदी अरब और इराक के बाद सबसे ज्यादा तेल ईरान से ही खरीदता है.
भारत दुनिया भर में तेल खरीदने वाला तीसरा बड़ा देश है. अपनी जरूरत के 80 फीसदी से अधिक तेल यह बाहर से खरीदता है. ऐसे में अमेरिकी प्रतिबंध से मिली छूट खत्म होना भारत के लिए चिंता की बात है. हालांकि पेट्रोलियम मंत्री धर्मेंद्र प्रधान ने ऐलान किया है कि भारत ने ईरानी तेल की सप्लाई बंद होने की आशंका के मद्देनजर अपनी तैयारी पूरी कर ली है. आइए देखते हैं कि भारत की क्या तैयारी है. इस पर अमेरिकी बैन का कितना असर पड़ेगा और कैसे वह इससे पैदा हालातों का सामना करेगा.
भारत ईरान के तेल का कितना बड़ा ग्राहक ?
भारत अपनी जरूरत का 80 फीसदी से अधिक तेल आयात करता है. भारत में प्राकृतिक गैस की जितनी खपत है उसका 40 फीसदी भी बाहर से ही आता है. भारत की इकोनॉमी तेजी से बढ़ रही और इसके साथ ही इसकी ऊर्जा खपत भी बढ़ती जा रही है. चीन के बाद ईरान के तेल का सबसे बड़ा ग्राहक भारत ही है.
भारत ने वित्त वर्ष 2018-19 के 11 महीनों में ईरान से 128 अरब डॉलर का तेल मंगाया था. इस दौरान ईरान से लगभग ढाई करोड़ टन कच्चा तेल मंगाया गया. यह भारत की तेल जरूरत का लगभग दसवां हिस्सा है. नवंबर में अमेरिका के कहने पर भारत ने ईरान से आयात घटा दिया था नहीं तो आयात और ज्यादा हो सकता था.
कमी पूरा करने का क्या है इंतजाम ?
ईरान से तेल मंगाने में कटौती के अमेरिकी फरमान के बाद भारत ने सप्लाई में कमी की भरपाई की तैयारी शुरू कर दी थी. भारत ईरानी तेल में कमी की भरपाई सऊदी अरब, कुवैत, यूएआई और मेक्सिको से अतिरिक्त सप्लाई के जरिये करेगा.
भारतीय कंपनियों ने अपनी-अपनी तैयारियां शुरू कर दी हैं और रिफाइनरियों में अतिरिक्त सप्लाई की प्रोसेसिंग की लगभग व्यवस्था भी कर ली है. मसलन, इंडियन ऑयल कॉरपोरेशन ने मेक्सिको से 7 लाख टन तेल मंगाने का कांट्रेक्ट किया है. इसके अलावा इसने अतिरिक्त 7 लाख टन मंगाने का इंतजाम किया है. सऊदी अरब से इसका 56 लाख टन तेल खरीदने का कांट्रेक्ट है. इसके ऊपर से इसने 20 लाख टन तेल मंगाने की व्यवस्था की है. कुवैत से यह 15 लाख और यूएई से दस लाख टन अतिरिक्त तेल मंगा सकती है. इस तरह दूसरी सरकारी तेल कंपनियों ने वैकल्पिक व्यवस्था कर रखी है.
जरूरतों के लिए दूसरे बाजारों से इंतजाम
भारत ने पिछले दो साल के दौरान अपनी तेल जरूरतों के लिए डाइवर्सिफाई बाजारों से इंतजाम शुरू कर दिया है. भारत पिछले दो साल से अमेरिका से भी कच्चा तेल मंगा रहा है. अक्टूबर 2017 से अब तक यह अमेरिका से 1.18 करोड़ बैरल तेल खरीद चुका है.
भारतीय तेल कंपनियों ने ऑस्ट्रेलिया, ब्राजील, कनाडा, कोलंबिया, रूस और यूएई समेत 27 देशों की तेल कंपनियों में हिस्सेदारी खरीदी है. हाल में OVL, IOC and Bharat Petroresources Ltd (BPCL की कंपनी) ने मिल कर यूएई में की तेल फील्ड में दस फीसदी हिस्सेदारी खरीदी . IOCL ने ओमान के तेल फील्ड में 17% हिस्सा खरीदा है. आड़े वक्त में यहां से सप्लाई हो सकती है.
तेल के दाम बढ़ने का डर
अमेरिका ने प्रतिबंध से छूट खत्म करने का कदम ऐसे वक्त उठाया है, जब भारत के कच्चे तेल बास्केट (दुबई, ओमान और ब्रेंट क्रूड का औसत) की कीमत बढ़ रही है. भारत चाहेगा कि वैकल्पिक सप्लाई के लिए तमाम देशों से आगे का सौदा लांग टर्म हो ताकि दाम बढ़ने पर पहले की तय कीमत पर तेल मिले. लेकिन हर देश के साथ ऐसा होगा यह संभव नहीं.
अमेरिकी कदम से अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल के दाम बढ़ने शुरू हो गए हैं. आगे ओपेक देशों ने उत्पादन में और ज्यादा कटौती करने का फैसला लिया तो दाम और बढ़ेंगे. भारत में पेट्रोल-डीजल के दाम बढ़ना तय माना जा रहा है. चुनाव की वजह से इसे रोके रखा गया है. आम लोगों पर इसकी मार तो पड़ेगी ही. पेट्रोल-डीजल के दाम बढ़ने से महंगाई बढ़ना भी तय है. देश की अर्थव्यवस्था पर इसका क्या असर होगा यह जानना भी जरूरी है.
तेल के दाम बढ़े तो ये होगा असर
कच्चे तेल के दाम बढ़े तो महंगाई में इजाफा तय है. चुनाव की वजह से सरकारी तेल कंपनियां पेट्रोल-डीजल के दाम बढ़ाने का फैसला नहीं कर रही है. लेकिन चुनाव के बाद महंगाई पर महंगे तेल का असर दिखने लगेगा.
- कच्चे तेल की अंतरराष्ट्रीय कीमत में 1 डॉलर बढ़ने से भारत का सालाना आयात बिल 10,500 रुपये बढ़ जाएगा. साफ है कि इससे भारत के चालू खाते घाटे पर दबाव बढ़ जाएगा.
- भारत को तेल खरीदने के लिए ज्यादा डॉलर की जरूरत पड़ेगी और इससे रुपया कमजोर होने लगेगा. जाहिर है भारत का आयात बिल इससे बढ़ जाएगा. हमारा विदेशी मुद्रा भंडार कमजोर होगा.
- ज्यादातर माल की ढुलाई डीजल ट्रकों से होती है. किसान भी सिंचाई के लिए डीजल पंपिंग सेटों का इस्तेमाल करते हैं. जाहिर है किसानों की लागत बढ़ेगी तो फसलें महंगी होगी. अगर सरकार ने कच्चे तेल के बढ़े दाम का असर आम लोगों पर पड़ने से नहीं रोका तो महंगाई बढ़ना तय है. महंगाई बढ़ने से रिजर्व बैंक ब्याज दरों में कटौती बंद कर सकता है. इससे लोन भी महंगे हो सकते हैं.
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