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Blue hydrogen को अपना रहा जापान: क्या क्लीन एनर्जी का ये सोर्स वाकई 'क्लीन' है?

जापान ने 2030 तक दुनिया में पूर्ण पैमाने पर पहली हाइड्रोजन आपूर्ति श्रृंखला बनाने के अपने इरादे की घोषणा की है

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कुंजी
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2011 में फुकुशिमा में परमाणु आपदा, प्राकृतिक गैस से बिजली उत्पादन की महंगी लागत और कोयला संयंत्रों का 2050 तक कार्बन न्यूट्रल (carbon neutral) होने के टारगेट में रुकावट डालना- ये कुछ ऐसे कठिन सवाल हैं जिसका जवाब जापान (Japan) “ब्लू हाइड्रोजन" (Blue hydrogen) में खोज रहा है.

जापान ने 2030 तक दुनिया में पूर्ण पैमाने पर पहली हाइड्रोजन आपूर्ति श्रृंखला बनाने के अपने इरादे की घोषणा की है. जीवाश्म-ईंधन पर निर्भरता से मुक्त इस भविष्य को "हाइड्रोजन सोसाइटी" के रूप में जाना जाता है.

ऐसे में सवाल है कि ‘ब्लू हाइड्रोजन’ क्या है, क्या ये सचमुच पूरी तरफ से क्लीन एनर्जी का सोर्स है. अगर नहीं तो हाइड्रोजन फ्यूल को क्लीन एनर्जी - ब्लू हाइड्रोजन में कैसे बदला जा सकता है?- इन सवालों के जवाब से पहले जानते हैं कि जापान "हाइड्रोजन सोसाइटी" क्यों बनाना चाहता है.

Blue hydrogen को अपना रहा जापान: क्या क्लीन एनर्जी का ये सोर्स वाकई 'क्लीन' है?

  1. 1. जापान में बिजली का उत्पादन कैसे होता है और वो हाइड्रोजन पर शिफ्ट क्यों कर रहा ?

    2010 में जापान में उत्पादित कुल बिजली का लगभग एक तिहाई परमाणु ऊर्जा से आता था और आगे नए न्यूक्लियर प्लांट बनाने की योजना थी. लेकिन फिर 2011 में फुकुशिमा में परमाणु आपदा आई और जापान के सभी न्यूक्लियर पावर प्लांट बंद हो गए. लगभग 10 सालों से बंद न्यूक्लियर प्लांट की जगह जापान में प्राकृतिक गैस से चलने वाले प्लांट की मदद ली जा रही है और वो काफी ओवरटाइम कर रहे हैं.

    लेकिन दूसरे देशों की तरह जापान के लिए भी प्राकृतिक गैस को जलाकर बिजली उत्पादन का विकल्प सस्ता नहीं है. इसलिए, जापान की सरकार ने ऑस्ट्रेलिया से आयातित सस्ते कोयले के दम पर 22 नए कोयले से चलने वाले बिजली स्टेशन बनाने का फैसला किया. जापान का यह कदम आर्थिक रूप से तो समझ में आता है लेकिन पर्यावरण की दृष्टि से, इतना नहीं. जापान पर अब कोयले का इस्तेमाल बंद करने का भारी दबाव है, खासकर जब उसने 2050 तक कार्बन न्यूट्रल होने की घोषणा की है.

    ऐसे में पुराने कोयला संयंत्रों को बंद करने और नवीकरणीय ऊर्जा पर पूरी तरह शिफ्ट करने के बजाय, जापान अपनी ऊर्जा आवश्यकता को हाइड्रोजन या अमोनिया को जलाकर करना चाहता है. कारण है कि अगर जापान कोयले से चलने वाले बिजली संयंत्रों को एकाएक बंद करता है तो उनमे बिजली कंपनियों द्वारा किया गया निवेश उनकी बैलेंस शीट में किसी भी लाभ के बिना अचानक बेकार हो जाएगा.

    कोयला संयंत्रों को आसानी से हाइड्रोजन या अमोनिया को जलाकर बिजली उत्पादन करने के प्लांट में परिवर्तित किया जा सकता है, जिनमें से कोई भी कार्बन डाइऑक्साइड उत्पन्न नहीं करता है. यही कारण है कि जापान के लिए यह एक अच्छा समाधान प्रतीत होता है.

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  2. 2. हाइड्रोजन फ्यूल क्या है और ये कैसे तैयार किया जाता है?

    अंतर्राष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी के अनुसार दुनिया भर में उत्पादित हाइड्रोजन फ्यूल का 96% जीवाश्म ईंधन - कोयला, तेल और प्राकृतिक गैस - का उपयोग करके तैयार किया जाता है. इस प्रक्रिया में जीवाश्म ईंधन को भाप के साथ मिलाया जाता है और उन्हें लगभग 800°C तक गर्म किया जाता है. आखिरकार हमें कार्बन डाइऑक्साइड (CO₂) और हाइड्रोजन मिलता है.

    फिर इन दोनों गैसों को अलग कर दिया जाता है. CO₂ को आमतौर पर वातावरण में छोड़ दिया जाता है जहां ये ग्लोबल वार्मिंग का कारण बनता है. जबकि हाइड्रोजन को फ्यूल के रूप में इकट्ठा किया जाता है और इसका प्रयोग कार के इंजन से लेकर बॉयलर तक एनर्जी के सोर्स के रूप में किया जाता है.
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  3. 3. हाइड्रोजन फ्यूल के अलग-अलग रूप क्या हैं और ‘ब्लू हाइड्रोजन’ कैसे अलग है ?

    हाइड्रोजन फ्यूल का रंग केवल यह दर्शाता है कि ये कैसे बना है और ये कितना क्लीन है.

    • ‘ग्रे हाइड्रोजन’ हाइड्रोजन फ्यूल का सबसे आम रूप है और यह प्राकृतिक गैस (जिसमें ज्यादातर मीथेन और ईथेन होते हैं) और जीवाश्म ईंधन से उत्पन्न होते हैं.

    • ब्राउन हाइड्रोजन को लिग्नाइट कोयले या तेल के उपयोग से तैयार किया जाता है.

    • ब्लैक हाइड्रोजन लो बिटुमिनस कोयले का उपयोग करके बनाया जाता है जो एक टार जैसा पदार्थ है.

    • ग्रीन हाइड्रोजन के उत्पादन के लिए जीरो-कार्बन वाले एनर्जी सोर्स का उपयोग करके पानी को हाइड्रोजन और ऑक्सीजन में अलग-अलग किया जाता है - जैसे कि विंड टरबाइन या सोलर पैनलों द्वारा उत्पन्न - ग्रीन हाइड्रोजन के उत्पादन की प्रक्रिया कार्बन-न्यूट्रल तो है, लेकिन यह प्रक्रिया बहुत महंगी है और कम से कम 2030 तक ऐसा ही रहने की उम्मीद है.

    ब्लू हाइड्रोजन इन सब से अलग है. ब्लू हाइड्रोजन का उत्पादन भी उसी प्रक्रिया द्वारा किया जाता है जिसका उपयोग ग्रे, ब्राउन और ब्लैक हाइड्रोजन बनाने के लिए किया जाता है. लेकिन CO₂ जिसे आमतौर पर छोड़ा जाता है उसे ब्लू हाइड्रोजन के केस में जमा किया जाता है और जमीन के अंदर स्टोर किया जाता है.

    कार्बन कैप्चर करने और स्टोर करने की तकनीक और उपकरण महंगे हैं, जिससे इस फ्यूल की कीमत बढ़ जाती है, लेकिन यह कम से कम ग्रीन हाइड्रोजन की तुलना में कम लागत पर क्लीन एनर्जी देता है.

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  4. 4. क्या ‘ब्लू हाइड्रोजन’ सच में पूरी तरफ कार्बन न्यूट्रल है ?

    ब्लू हाइड्रोजन बनाने की प्रक्रिया में भी बहुत अधिक ऊर्जा की आवश्यकता होती है. प्रक्रिया की शुरुआत में प्राकृतिक गैस में एनर्जी की प्रत्येक इकाई के लिए केवल 70-75% ही ब्लू हाइड्रोजन में स्टोर होता है. आसान भाषा में कहें तो अगर ब्लू हाइड्रोजन का उपयोग किसी चीज को गर्म करने के लिए किया जाता है, तो आपको ब्लू हाइड्रोजन बनाने के लिए 25% अधिक प्राकृतिक गैस का उपयोग करने की आवश्यकता होगी, बजाए आपने यदि इसका उपयोग सीधे उस चीज को गर्म करने के लिए किया होता.

    US एनवायरनमेंट प्रोटेक्शन एजेंसी की रिपोर्ट की रिपोर्ट के अनुसार मीथेन - जो प्राकृतिक गैस का प्राथमिक घटक है और ब्लू हाइड्रोजन के उत्पादन का बाइप्रोडक्ट है - CO₂ की तुलना में कम समय में अधिक शक्तिशाली ग्लोबल वार्मिंग गैस है.

    रिसर्च बताती है कि जीवाश्म गैस का उपयोग न करके ब्लू हाइड्रोजन के उत्पादन से जलवायु कों 20% ज्यादा खतरा है. इस नई स्टडी ने इस भूमिका पर संदेह उत्पन्न किया है कि ब्लू हाइड्रोजन हीटिंग और भारी उद्योग जैसे क्षेत्रों से ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को कम करने में भूमिका निभा सकता है.

    (हैलो दोस्तों! हमारे Telegram चैनल से जुड़े रहिए यहां)

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जापान में बिजली का उत्पादन कैसे होता है और वो हाइड्रोजन पर शिफ्ट क्यों कर रहा ?

2010 में जापान में उत्पादित कुल बिजली का लगभग एक तिहाई परमाणु ऊर्जा से आता था और आगे नए न्यूक्लियर प्लांट बनाने की योजना थी. लेकिन फिर 2011 में फुकुशिमा में परमाणु आपदा आई और जापान के सभी न्यूक्लियर पावर प्लांट बंद हो गए. लगभग 10 सालों से बंद न्यूक्लियर प्लांट की जगह जापान में प्राकृतिक गैस से चलने वाले प्लांट की मदद ली जा रही है और वो काफी ओवरटाइम कर रहे हैं.

लेकिन दूसरे देशों की तरह जापान के लिए भी प्राकृतिक गैस को जलाकर बिजली उत्पादन का विकल्प सस्ता नहीं है. इसलिए, जापान की सरकार ने ऑस्ट्रेलिया से आयातित सस्ते कोयले के दम पर 22 नए कोयले से चलने वाले बिजली स्टेशन बनाने का फैसला किया. जापान का यह कदम आर्थिक रूप से तो समझ में आता है लेकिन पर्यावरण की दृष्टि से, इतना नहीं. जापान पर अब कोयले का इस्तेमाल बंद करने का भारी दबाव है, खासकर जब उसने 2050 तक कार्बन न्यूट्रल होने की घोषणा की है.

ऐसे में पुराने कोयला संयंत्रों को बंद करने और नवीकरणीय ऊर्जा पर पूरी तरह शिफ्ट करने के बजाय, जापान अपनी ऊर्जा आवश्यकता को हाइड्रोजन या अमोनिया को जलाकर करना चाहता है. कारण है कि अगर जापान कोयले से चलने वाले बिजली संयंत्रों को एकाएक बंद करता है तो उनमे बिजली कंपनियों द्वारा किया गया निवेश उनकी बैलेंस शीट में किसी भी लाभ के बिना अचानक बेकार हो जाएगा.

कोयला संयंत्रों को आसानी से हाइड्रोजन या अमोनिया को जलाकर बिजली उत्पादन करने के प्लांट में परिवर्तित किया जा सकता है, जिनमें से कोई भी कार्बन डाइऑक्साइड उत्पन्न नहीं करता है. यही कारण है कि जापान के लिए यह एक अच्छा समाधान प्रतीत होता है.

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हाइड्रोजन फ्यूल क्या है और ये कैसे तैयार किया जाता है?

अंतर्राष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी के अनुसार दुनिया भर में उत्पादित हाइड्रोजन फ्यूल का 96% जीवाश्म ईंधन - कोयला, तेल और प्राकृतिक गैस - का उपयोग करके तैयार किया जाता है. इस प्रक्रिया में जीवाश्म ईंधन को भाप के साथ मिलाया जाता है और उन्हें लगभग 800°C तक गर्म किया जाता है. आखिरकार हमें कार्बन डाइऑक्साइड (CO₂) और हाइड्रोजन मिलता है.

फिर इन दोनों गैसों को अलग कर दिया जाता है. CO₂ को आमतौर पर वातावरण में छोड़ दिया जाता है जहां ये ग्लोबल वार्मिंग का कारण बनता है. जबकि हाइड्रोजन को फ्यूल के रूप में इकट्ठा किया जाता है और इसका प्रयोग कार के इंजन से लेकर बॉयलर तक एनर्जी के सोर्स के रूप में किया जाता है.
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हाइड्रोजन फ्यूल के अलग-अलग रूप क्या हैं और ‘ब्लू हाइड्रोजन’ कैसे अलग है ?

हाइड्रोजन फ्यूल का रंग केवल यह दर्शाता है कि ये कैसे बना है और ये कितना क्लीन है.

  • ‘ग्रे हाइड्रोजन’ हाइड्रोजन फ्यूल का सबसे आम रूप है और यह प्राकृतिक गैस (जिसमें ज्यादातर मीथेन और ईथेन होते हैं) और जीवाश्म ईंधन से उत्पन्न होते हैं.

  • ब्राउन हाइड्रोजन को लिग्नाइट कोयले या तेल के उपयोग से तैयार किया जाता है.

  • ब्लैक हाइड्रोजन लो बिटुमिनस कोयले का उपयोग करके बनाया जाता है जो एक टार जैसा पदार्थ है.

  • ग्रीन हाइड्रोजन के उत्पादन के लिए जीरो-कार्बन वाले एनर्जी सोर्स का उपयोग करके पानी को हाइड्रोजन और ऑक्सीजन में अलग-अलग किया जाता है - जैसे कि विंड टरबाइन या सोलर पैनलों द्वारा उत्पन्न - ग्रीन हाइड्रोजन के उत्पादन की प्रक्रिया कार्बन-न्यूट्रल तो है, लेकिन यह प्रक्रिया बहुत महंगी है और कम से कम 2030 तक ऐसा ही रहने की उम्मीद है.

ब्लू हाइड्रोजन इन सब से अलग है. ब्लू हाइड्रोजन का उत्पादन भी उसी प्रक्रिया द्वारा किया जाता है जिसका उपयोग ग्रे, ब्राउन और ब्लैक हाइड्रोजन बनाने के लिए किया जाता है. लेकिन CO₂ जिसे आमतौर पर छोड़ा जाता है उसे ब्लू हाइड्रोजन के केस में जमा किया जाता है और जमीन के अंदर स्टोर किया जाता है.

कार्बन कैप्चर करने और स्टोर करने की तकनीक और उपकरण महंगे हैं, जिससे इस फ्यूल की कीमत बढ़ जाती है, लेकिन यह कम से कम ग्रीन हाइड्रोजन की तुलना में कम लागत पर क्लीन एनर्जी देता है.

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क्या ‘ब्लू हाइड्रोजन’ सच में पूरी तरफ कार्बन न्यूट्रल है ?

ब्लू हाइड्रोजन बनाने की प्रक्रिया में भी बहुत अधिक ऊर्जा की आवश्यकता होती है. प्रक्रिया की शुरुआत में प्राकृतिक गैस में एनर्जी की प्रत्येक इकाई के लिए केवल 70-75% ही ब्लू हाइड्रोजन में स्टोर होता है. आसान भाषा में कहें तो अगर ब्लू हाइड्रोजन का उपयोग किसी चीज को गर्म करने के लिए किया जाता है, तो आपको ब्लू हाइड्रोजन बनाने के लिए 25% अधिक प्राकृतिक गैस का उपयोग करने की आवश्यकता होगी, बजाए आपने यदि इसका उपयोग सीधे उस चीज को गर्म करने के लिए किया होता.

US एनवायरनमेंट प्रोटेक्शन एजेंसी की रिपोर्ट की रिपोर्ट के अनुसार मीथेन - जो प्राकृतिक गैस का प्राथमिक घटक है और ब्लू हाइड्रोजन के उत्पादन का बाइप्रोडक्ट है - CO₂ की तुलना में कम समय में अधिक शक्तिशाली ग्लोबल वार्मिंग गैस है.

रिसर्च बताती है कि जीवाश्म गैस का उपयोग न करके ब्लू हाइड्रोजन के उत्पादन से जलवायु कों 20% ज्यादा खतरा है. इस नई स्टडी ने इस भूमिका पर संदेह उत्पन्न किया है कि ब्लू हाइड्रोजन हीटिंग और भारी उद्योग जैसे क्षेत्रों से ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को कम करने में भूमिका निभा सकता है.

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