रूसी राष्ट्रपति ब्लादीमिर पुतिन के भारत दौरे में S-400 एयर डिफेंस मिसाइल सिस्टम सौदे पर मुहर लग गई है. रूस पिछले काफी वक्त से 5 अरब डॉलर के इस सौदे पर भारत से बात कर रहा था और अमेरिकी की नाराजगी के बावजूद भारत इस मिसाइल डिफेंस सिस्टम को खरीदने को तैयार है.
आइए जानते हैं, क्या है S-400 ट्रायम्फ मिसाइल सिस्टम? क्या है इसकी खासियतें? और अमेरिकी नाराजगी के बावजूद भारत ने आखिर क्यों रूस के साथ ये सौदा किया है.
क्या है S-400 मिसाइल डिफेंस सिस्टम ?
रूस का S-400 ट्रायम्फ मिसाइल सिस्टम मौजूदा दौर का सबसे अच्छा मिसाइल डिफेंस सिस्टम माना जा रहा है. अमेरिका समेत नाटो देश इसे बेहद खतरनाक मानते हैं. जमीन से हवा में मार करने वाली मिसाइलों से लैस इस सिस्टम को नाटो देशों ने SA-21 ग्रोलर नाम दिया है. रूस के अल्माज सेंट्रल डिजाइन ब्यूरो की ओर से विकसित यह मिसाइल सिस्टम S-300 सीरीज का एडवांस वर्जन है.
1990 के दशक में विकसित इस मिसाइल सिस्टम को 'द इकोनॉमिस्ट' ने 2017 में दुनिया के बेहतरीन मिसाइल डिफेंस सिस्टम करार दिया है. रूस ने पहली बार इसका इस्तेमाल 2007 में किया था. इसे अमेरिका के THAAD (Terminal High Altitude Area Defense) सिस्टम से अच्छा माना जा रहा है. हालांकि दोनों की हथियार प्रणाली अलग-अलग है. रूस ने हाल में इसे सीरिया में भी इस्तेमाल किया है.
कितना कारगर है S-400 मिसाइल सिस्टम?
S-400 मिसाइल सिस्टम एक साथ कई काम कर सकता है. इसमें मल्टीफंक्शनल रडार, खुद ब खुद टारगेट ढूंढ़ कर इस पर मिसाइल अटैक करने की क्षमता, एंटी एयरक्राफ्ट मिसाइल सिस्टम, लांचर, कमांड और कंट्रोल सिस्टम है. इससे चार तरह की मिसाइलें दागी जा सकती हैं और यह सुरक्षा का एक के बाद एक कई तहें बना डालता है.
400 किलोमीटर के रेंज में यह 30 किलोमीटर की ऊंचाई पर हर तरह के एयरक्राफ्ट, बैलिस्टिक, क्रूज मिसाइलों और यूएवी (मानवरहित विमान) का सामना कर सकता है और एक साथ 100 हवाई टारगेट पर निशाना साध सकता है. यह मिसाइल सिस्टम अमेरिकी एफ-35 जैसे सुपर फाइटर लड़ाकू विमानों का भी सामना कर सकता है. S-400 एक साथ छह एफ-35 सुपर फाइटर का मुकाबला सकता है.
भारत को S-400 की जरूरत क्यों पड़ी?
भारत के पास इस वक्त आकाश और बराक-8 मिसाइल डिफेंस सिस्टम है. इसके अलावा भारत खुद का मल्टीलेयर बैलिस्टिक मिसाइल डिफेंस सिस्टम विकसित कर रहा है जिसके तरहत कम और ज्यादा ऊंचाई वाले टारगेट को भेदने की सुविधा होगी. भारत एडवांस एयर डिफेंस मिसाइल सिस्टम और पृथ्वी एयर डिफेंस सिस्टम के नाम से दो मिसाइल डिफेंस सिस्टम विकिसत कर रहा है. फिर दिक्कत क्या है? दिक्कत इन सिस्टम की क्षमताओं को लेकर है. आकाश और बराक की रेंज 100 किलोमीटर से ज्यादा नहीं है. ये सिस्टम बैलेस्टिक मिसाइल वाला है यानी अगर भारत पर क्रूज मिसाइलों से हमला होता है तो यह सिस्टम कारगर साबित नहीं होगा.
इसके अलावा भारतीय सिस्टम अभी पूरी तरह तैयार नहीं है और इसे भारतीय सेना में शामिल करने में वक्त लगेगा. जबकि S-400 मिसाइल डिफेंस सिस्टम पूरी तरह तैयार सिस्टम है. इसे पांच मिनट के अंदर तैनात किया जा सकता है और 17 हजार प्रति किलोमीटर की रफ्तार से एक साथ 80 से 100 टारगेट पर निशाना साध सकता है. इसकी सबसे बड़ी खासियतों में एक है इसकी आसान आवाजाही. इसे बड़ी आसानी से एक जगह से दूसरी जगह ले जाया जा सकता है.
400 किलोमीटर के रेंज में यह स्ट्रेटजिक बॉम्बर, इलेक्ट्रोनिक वायफेयर प्लेन, बैलिस्टिक मिसाइल, स्ट्रेटजिक क्रूज मिसाइल, ड्रोन और छिपे हुए विमानों का सामना करने में सक्षम है. यह न्यूक्लियर मिसाइलों को भी रोकने में कारगर है.
भारत को S-400 हासिल करने की जल्दबाजी क्यों?
भारत की सबसे बड़ी चुनौती इस वक्त चीन है. भारत को अगर एक साथ चीन और पाकिस्तान से लड़ना पड़े तो S-400 बड़े काम का साबित हो सकता है. भारत इस डिफेंस सिस्टम को हासिल करने में इसलिए जल्दबाजी दिखा रहा है कि चीन भी रूस से इस सिस्टम की चार बटालियनों के लिए करार कर चुका है और इस साल जनवरी में उसे इस सिस्टम की डिलीवरी शुरू हो चुकी है.
अक्टूबर, 2015 में डिफेंस एक्विजिशन काउंसिल ने 12 यूनिटें खरीदने का विचार किया था लेकिन अब 5 यूनिटें भारत की जरूरत के लिए पर्याप्त मानी जा रही हैं और इनका सौदा 5 अरब डॉलर में होने जा रहा है. भारत के अलावा तुर्की और सऊदी अरब भी इस मिसाइल डिफेंस सिस्टम के रूस से बात कर कर रहे हैं. इराक और कतर ने भी इसमें दिलचस्पी दिखाई है.
अमेरिका क्यों कर रहा है सौदे का विरोध?
अमेरिका, हालांकि चीन के मुकाबले के लिए भारत को उसके सामने खड़ा करना चाहता है. लेकिन S-400 सौदे में रूस का पेच फंसा है. दरअसल अमेरिका ने CAATSA (Countering America’s Adversaries Through Sanctions Act ) के तहत रूस, ईरान और उत्तर कोरिया के खिलाफ दंडात्मक प्रतिबंध लगा रखे हैं. अमेरिका यूक्रेन में सैनिक हस्तक्षेप और अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव में कथित तौर पर दखलंदाजी के लिए रूस की लगभग सभी डिफेंस मैन्यूफैक्चरिंग कंपनियों पर प्रतिबंध लगा चुका है. इन S-400 का प्रोडक्शन करने वाली कंपनी भी शामिल है. CAATSA के तहत जो भी इन रूसी कंपनियों से डील करेगा उसके खिलाफ प्रतिबंध लगाए जाएंगे.
क्या अमेरिका मान जाएगा?
दरअसल, CAATSA के तहत खास छूट का प्रावधान है. उम्मीद है कि अमेरिका भारत एशिया में भारत से अपने खास स्ट्रेटजिक रिश्तों को देखते हुए उसे S-400 सौदे में प्रतिबंध के दायरे से बाहर कर सकता है. पिछले महीने भारत के साथ अमेरिका की 2+2 बातचीत में भारत ने यह मामला उठाया था. कहा जा रहा है कि भारत ने चीन को लेकर अपनी चिंता जाहिर की है. साथ ही उसने यह भी कहा है कि उसे एक साथ चीन और पाकिस्तान से लड़ना पड़ सकता है. ऐसे में भारत की सुरक्षा जरूरतों को ध्यान में रखते हुए रूस से S-400 मिसाइल डिफेंस लेना बेहद जरूरी है. समझा जाता है कि अमेरिका ने भारत को संकेत दिए हैं कि वह इस सौदे के लिए भारत के खिलाफ कदम नहीं उठाएगा.
(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)