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'CM बीरेन आदिवासी विरोधी एजेंडा बढ़ा रहें': मणिपुर में हिंसक विरोध क्यों हो रहा?

Manipur Violent Protests: हिंसा के बाद आठ जिलों में कर्फ्यू लगा, पूरे मणिपुर में 5 दिनों के लिए इंटरनेट बंद

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"(मणिपुर के) मुख्यमंत्री एन बीरेन सिंह अपनी नियुक्ति के बाद से ही आदिवासी विरोधी एजेंडे को आगे बढ़ाने के आरोपों का सामना कर रहे हैं. अन्य बातों के अलावा, उन पर आदिवासियों को उनके गांवों से खदेड़ने, राजधानी (इम्फाल) में दशकों पुराने चर्चों को ध्वस्त करने और बहुसंख्यक आदिवासी बस्तियों को आरक्षित वनों के रूप में वर्गीकृत करने का आरोप है. इन बस्तियों को आरक्षित वन करार देने से वहां रहने वाले लोग अवैध अप्रवासी हो जाएंगे" मणिपुर के एक स्वतंत्र शोधकर्ता संगमुआंग हैंगिंग ने द क्विंट को बताया.

"ये सभी इन समुदायों के लिए निरंतर चिंता और अनिश्चितता की स्थिति की वजह बन गए हैं"
संगमुआंग हैंगिंग, स्वतंत्र शोधकर्ता

28 अप्रैल को, एक स्थानीय समूह - इंडिजेनस ट्राइबल लीडर्स फोरम (आईटीएलएफ) द्वारा बुलाए गए आठ घंटे के बंद के बाद मणिपुर के चुराचंदपुर जिले में सामान्य जनजीवन अस्त-व्यस्त हो गया है.

मणिपुर सरकार द्वारा "संरक्षित वनों" से कुकी, पैते, हमार, ज़ू, सिमटे, गंगटे, वैफेई, मिज़ो जनजातियों को कथित रूप से निकाले जाने के विरोध में यह बंद बुलाया गया था.

मुख्यमंत्री बीरेन सिंह उसी जिले के न्यू लम्का में एक जनसभा को संबोधित करने वाले थे, लेकिन उन्होंने विरोध के बाद अपनी यात्रा रद्द कर दी.

विरोध शुरू होने से एक दिन पहले, गुरुवार, 27 अप्रैल को भीड़ ने चुराचांदपुर के विधायक एलएम खौटे द्वारा स्थापित एक ओपन जिम में तोड़फोड़ की और लगभग 100 कुर्सियों और अन्य उपकरणों में आग लगा दी. मुख्यमंत्री बीरेन सिंह इसी जिम का उद्घाटन करने वाले थे.

यहां तक कि बुधवार, 3 मई को भी चुराचांदपुर कस्बे में तनाव के बीच भीड़ ने घरों को तोड़ा. पीटीआई की रिपोर्ट के अनुसार अधिकारियों ने जानकारी दी है कि आदिवासियों और गैर-आदिवासियों के बीच हिंसा के बाद मणिपुर के आठ जिलों में कर्फ्यू लगाया गया. साथ ही पूरे मणिपुर में 5 दिनों के लिए इंटरनेट बंद कर दिया गया है.

सवाल है कि लेकिन संरक्षित वनों से आदिवासियों को बेदखल क्यों किया जा रहा है? सीएम बीरेन सिंह पर आदिवासी विरोधी एजेंडे को आगे बढ़ाने का आरोप क्यों लगाया गया है? हम यहां समझाते हैं.

'CM बीरेन आदिवासी विरोधी एजेंडा बढ़ा रहें': मणिपुर में हिंसक विरोध क्यों हो रहा?

  1. 1. चुराचांदपुर के आदिवासी नाराज क्यों हैं?

    ऑल ट्राइबल स्टूडेंट्स यूनियन मणिपुर (एटीएसयूएम) ने कहा कि चुराचंदपुर में हिंसा कोई अचानक हुई घटना नहीं थी, बल्कि मौजूदा सरकार की "प्रतिकूल और प्रतिगामी" नीतियों के खिलाफ बढ़ते असंतोष का ही बढ़ा रूप है.

    यूनिवर्सिटी ऑफ मिशिगन-एन आर्बर के स्कूल ऑफ इंफॉर्मेशन में पीएचडी कर रहे जैसन टॉन्सिंग ने द क्विंट को बताया कि हिंसा "आदिवासियों के साथ सौतेले व्यवहार" पर असंतोष का परिणाम है. जैसन टोनिंग की मणिपुर पर विशेष ध्यान देने के साथ स्वदेशी अध्ययन में स्पेशलाइजेशन है.

    जैसन टॉन्सिंग ने आरोप लगाया, "लोग मुख्यमंत्री के चुराचंदपुर के लमका के प्रस्तावित दौरे से खुश नहीं थे, क्योंकि वह उस जगह का शोषण कर रहे हैं. उनकी प्रस्तावित यात्रा ऐसे समय में हुई है जब सरकार आदिवासी भूमि और संसाधनों को आरक्षित वन, संरक्षित वन और आर्द्रभूमि/वेटलैंड्स में बदलने के लिए नोटिस तैयार कर रही है. वे सीएम को एक ऐसे क्षेत्र में कदम रखने की अनुमति देने का दर्द सहन नहीं कर सकते थे, जिसके साथ वे भेदभाव करते हैं."

    उन्होंने कहा कि आदिवासी चुराचांदपुर के विधायक एलएम खौटे से भी असंतुष्ट हैं.

    टॉन्सिंग ने कहा, "विधायक अपनी विधायकी की पहली वर्षगांठ का जश्न ऐसे समय में मनाने पर अड़े हैं जब लमका बेदखली अभियान के कारण उथल-पुथल में है. आदिवासियों को उम्मीद थी कि विधायक मणिपुर सरकार द्वारा अत्याचार के खिलाफ मुखर होंगे. मेइतेई राजनीति के खिलाफ बोलने की उनकी अनिच्छा आदिवासियों के लिए अस्वीकार्य थी. इसलिए, उनके वर्षगांठ कार्यक्रम को उन नागरिकों द्वारा बाधित किया गया था जिनकी उन्होंने रक्षा करने की शपथ ली थी."

    हिंसा के मद्देनजर, मुख्यमंत्री बीरेन सिंह ने इसे "जिले का आंतरिक मामला" कहा था. उन्होंने स्पष्ट किया, "ओपन जिम का उद्घाटन राज्य द्वारा आयोजित नहीं किया गया था". सीएम ने कहा कि उन्हें विधायक द्वारा इसके लिए आमंत्रित किया गया था.

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  2. 2. सरकार स्वामित्व/ओनरशिप का सबूत क्यों मांग रही है?

    चुराचंदपुर के लमका शहर के निवासी और ज़ो जनजाति के सदस्य ग्रेस हाओकिप (बदला हुआ नाम) ने द क्विंट को बताया:

    "सरकार में हमें विदेशियों के रूप में ब्रांड करने और हमें खुद के स्वामित्व वाली भूमि से बेदखल करने का प्रयास कर रही है, इसके लिए आरक्षित वन भूमि, आर्द्रभूमि आदि सभी प्रकार की सरकारी पहल की जा रही है. यह बात बहुत से लोगों को नागवार गुजरी है."

    ग्रेस हाओकिप ने कहा "हम (ज़ो जनजाति) आजादी से पहले से ही इन भागों के निवासी रहे हैं. बस हमारे पास उस तथाकथित प्रमाण की कमी है जो सरकार भूमि के स्वामित्व के संबंध में हमसे मांग कर रही है. ये जमीनें तो हमारे बाप-पुरखे अगली पीढ़ी को देते रहें. हमारे पास कोई लिखित रिकॉर्ड या दस्तावेज नहीं है जो यह साबित करे कि हम भी असली मालिक हैं."

    आदिवासियों का मानना ​​है कि खासकर सरकार की वन संरक्षण और विकास नीतियां उनकी भूमि और संसाधनों को छीन रही हैं, जिससे उनके पास जीवन यापन का कोई साधन नहीं रह गया है. उन्हें यह भी लगता है कि उनकी सहमति के बिना उनकी भूमि को संरक्षित वन और आर्द्रभूमि घोषित करने का सरकार का निर्णय उनकी भूमि को "नो मैन्स लैंड" या टेरा न्यूलियस बनाने का एक प्रयास है, जिस पर सरकार दावा कर सकती है.

    इसके अतिरिक्त, संगमुआंग हैंगिंग ने बताया कि पिछले महीने, इंफाल पूर्व में सरकारी भूमि पर "अवैध निर्माण" के लिए तीन चर्चों को ध्वस्त कर दिया गया था.

    "ये चर्च इंफाल पूर्व में आदिवासी कॉलोनियों में थे. उन्होंने चर्चों के विध्वंस को अपने धार्मिक विश्वासों और प्रथाओं पर हमले के रूप में देखा."
    संगमुआंग हैंगिंग
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  3. 3. विरोध प्रदर्शन को कैसे चिंगारी मिली?

    संगमुआंग हैंगिंग ने विस्तार से बताया कि इन आदिवासी समूहों के लिए ट्रिगर प्वाइंट चुराचंदपुर के 'के सोंगजंग' गांव के लिए 20 फरवरी को निकाली गयी निष्कासन की अधिसूचना थी.

    उन्होंने कहा, "20 फरवरी को चुराचांदपुर के हेंगलेप उपमंडल के के सोंगजैंग गांव को बेदखली की सूचना दी गई थी. इस गांव को चुराचंदपुर-खौपुम के 'संरक्षित वन खंड' पर बनाए जाने का दोषी ठहराया गया था."

    "गांव को कानून की नजर में नहीं बल्कि Google मैप्स द्वारा अवैध पाया गया, जिससे पता चला कि 2021 से पहले इस क्षेत्र में बहुत कम घर बनाए गए थे. सरकार का कहना था कि मैप के अनुसार अधिकांश घर, लगभग 13/14 संरचना, 2021 के बाद बने हैं."

    हैंगिंग ने कहा, "चुरचंदपुर के कंगवई सब-डिवीजन के कुंगपिनाओसेन गांव के लिए भी इसी तरह की प्रक्रिया की गई थी."

    "सरकार के प्रति नाराजगी का मुख्य बिंदु यह है कि सरकार ने हमारी भूमि को आरक्षित और संरक्षित वन क्षेत्र घोषित कर दिया है."

    उन्होंने दावा किया कि 50 से अधिक परिवारों को बेदखल कर दिया गया है.

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  4. 4. 'म्यांमार के अप्रवासी' कहकर ताने 

    हैंगिंग ने कहा कि मामले को बदतर बनाने के लिए, एक स्थानीय समाचार चैनल ने जनजातियों को "म्यांमार का" कह दिया. इससे उनका गुस्सा और बढ़ गया.

    चुराचांदपुर के लमका की रहने वाली मर्सी पैते ने द क्विंट को बताया:

    "हम पाइते भाषा बोलते हैं लेकिन एक स्थानीय टीवी समाचार चैनल ने हमें अप्रवासी के रूप में ब्रांड किया क्योंकि वे हमारी बोली नहीं जानते हैं. यह उच्चतम स्तर की अज्ञानता है. इसने वास्तव में हमें चोट पहुंचाई है."

    हैंगिंग ने कहा, "मणिपुर के सबसे बड़े न्यूज चैनल ने हमें म्यांमार के लोग कहा. उन्हें शायद कुछ पता ही नहीं, क्योंकि मणिपुर की विधानसभा के पहले स्पीकर तोंसिंग क्रिश्चियन तियानखाम पैते भाषा बोलते थे."

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  5. 5. और इससे किसे फायदा होगा?

    टॉन्सिंग ने आरोप लगाया कि आदिवासियों के साथ भेदभाव से मेइती लोगों को फायदा होगा, जो राज्य की बहुसंख्यक आबादी हैं और ज्यादातर घाटियों में रहते हैं.

    उन्होंने आरोप लगाया, "मणिपुर अनादि काल से पहाड़ियों से घिरा हुआ है. लेकिन आज, घाटी की आबादी बढ़ रही है. सरकार पहाड़ियों की भूमि और संसाधनों का दोहन और कब्जा करने के तरीके ढूंढ रही है, क्योंकि राज्य में सत्ता और निर्णय लेने की शक्ति मेइती के पास है."

    उन्होंने तर्क दिया कि आदिवासियों की भूमि को आरक्षित वन घोषित करने का अनिवार्य रूप से मतलब होगा कि मेइती इन सभी प्राकृतिक संसाधनों के साथ-साथ मणिपुर की कुकी-चिन-ज़ोमी आबादी (आदिवासी समूह) के पुश्तैनी घर, भूमि संबंध, संस्कृति और इतिहास को नियंत्रित करेंगे."

    उन्होंने कहा, "उन्हें शरणार्थी घोषित करने से सरकार को उनकी भूमि, जंगलों और अन्य संसाधनों पर उनके अधिकारों को वापस लेने में लाभ होता है. इसका मतलब है कि उनके पास कानूनों के माध्यम से जनजातीय भूमि तक पहुंच होगी, जो मेइती आबादी के लिए सामाजिक-राजनीतिक और आर्थिक रूप से फायदेमंद होगा."

    द क्विंट ने कई बार चुराचांदपुर विधायक और सत्तारूढ़ बीजेपी के सदस्यों से संपर्क किया. जैसे ही हमें उनकी प्रतिक्रिया मिलेगी, स्टोरी अपडेट की जाएगी.

    (क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)

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चुराचांदपुर के आदिवासी नाराज क्यों हैं?

ऑल ट्राइबल स्टूडेंट्स यूनियन मणिपुर (एटीएसयूएम) ने कहा कि चुराचंदपुर में हिंसा कोई अचानक हुई घटना नहीं थी, बल्कि मौजूदा सरकार की "प्रतिकूल और प्रतिगामी" नीतियों के खिलाफ बढ़ते असंतोष का ही बढ़ा रूप है.

यूनिवर्सिटी ऑफ मिशिगन-एन आर्बर के स्कूल ऑफ इंफॉर्मेशन में पीएचडी कर रहे जैसन टॉन्सिंग ने द क्विंट को बताया कि हिंसा "आदिवासियों के साथ सौतेले व्यवहार" पर असंतोष का परिणाम है. जैसन टोनिंग की मणिपुर पर विशेष ध्यान देने के साथ स्वदेशी अध्ययन में स्पेशलाइजेशन है.

जैसन टॉन्सिंग ने आरोप लगाया, "लोग मुख्यमंत्री के चुराचंदपुर के लमका के प्रस्तावित दौरे से खुश नहीं थे, क्योंकि वह उस जगह का शोषण कर रहे हैं. उनकी प्रस्तावित यात्रा ऐसे समय में हुई है जब सरकार आदिवासी भूमि और संसाधनों को आरक्षित वन, संरक्षित वन और आर्द्रभूमि/वेटलैंड्स में बदलने के लिए नोटिस तैयार कर रही है. वे सीएम को एक ऐसे क्षेत्र में कदम रखने की अनुमति देने का दर्द सहन नहीं कर सकते थे, जिसके साथ वे भेदभाव करते हैं."

उन्होंने कहा कि आदिवासी चुराचांदपुर के विधायक एलएम खौटे से भी असंतुष्ट हैं.

टॉन्सिंग ने कहा, "विधायक अपनी विधायकी की पहली वर्षगांठ का जश्न ऐसे समय में मनाने पर अड़े हैं जब लमका बेदखली अभियान के कारण उथल-पुथल में है. आदिवासियों को उम्मीद थी कि विधायक मणिपुर सरकार द्वारा अत्याचार के खिलाफ मुखर होंगे. मेइतेई राजनीति के खिलाफ बोलने की उनकी अनिच्छा आदिवासियों के लिए अस्वीकार्य थी. इसलिए, उनके वर्षगांठ कार्यक्रम को उन नागरिकों द्वारा बाधित किया गया था जिनकी उन्होंने रक्षा करने की शपथ ली थी."

हिंसा के मद्देनजर, मुख्यमंत्री बीरेन सिंह ने इसे "जिले का आंतरिक मामला" कहा था. उन्होंने स्पष्ट किया, "ओपन जिम का उद्घाटन राज्य द्वारा आयोजित नहीं किया गया था". सीएम ने कहा कि उन्हें विधायक द्वारा इसके लिए आमंत्रित किया गया था.

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सरकार स्वामित्व/ओनरशिप का सबूत क्यों मांग रही है?

चुराचंदपुर के लमका शहर के निवासी और ज़ो जनजाति के सदस्य ग्रेस हाओकिप (बदला हुआ नाम) ने द क्विंट को बताया:

"सरकार में हमें विदेशियों के रूप में ब्रांड करने और हमें खुद के स्वामित्व वाली भूमि से बेदखल करने का प्रयास कर रही है, इसके लिए आरक्षित वन भूमि, आर्द्रभूमि आदि सभी प्रकार की सरकारी पहल की जा रही है. यह बात बहुत से लोगों को नागवार गुजरी है."

ग्रेस हाओकिप ने कहा "हम (ज़ो जनजाति) आजादी से पहले से ही इन भागों के निवासी रहे हैं. बस हमारे पास उस तथाकथित प्रमाण की कमी है जो सरकार भूमि के स्वामित्व के संबंध में हमसे मांग कर रही है. ये जमीनें तो हमारे बाप-पुरखे अगली पीढ़ी को देते रहें. हमारे पास कोई लिखित रिकॉर्ड या दस्तावेज नहीं है जो यह साबित करे कि हम भी असली मालिक हैं."

आदिवासियों का मानना ​​है कि खासकर सरकार की वन संरक्षण और विकास नीतियां उनकी भूमि और संसाधनों को छीन रही हैं, जिससे उनके पास जीवन यापन का कोई साधन नहीं रह गया है. उन्हें यह भी लगता है कि उनकी सहमति के बिना उनकी भूमि को संरक्षित वन और आर्द्रभूमि घोषित करने का सरकार का निर्णय उनकी भूमि को "नो मैन्स लैंड" या टेरा न्यूलियस बनाने का एक प्रयास है, जिस पर सरकार दावा कर सकती है.

इसके अतिरिक्त, संगमुआंग हैंगिंग ने बताया कि पिछले महीने, इंफाल पूर्व में सरकारी भूमि पर "अवैध निर्माण" के लिए तीन चर्चों को ध्वस्त कर दिया गया था.

"ये चर्च इंफाल पूर्व में आदिवासी कॉलोनियों में थे. उन्होंने चर्चों के विध्वंस को अपने धार्मिक विश्वासों और प्रथाओं पर हमले के रूप में देखा."
संगमुआंग हैंगिंग

विरोध प्रदर्शन को कैसे चिंगारी मिली?

संगमुआंग हैंगिंग ने विस्तार से बताया कि इन आदिवासी समूहों के लिए ट्रिगर प्वाइंट चुराचंदपुर के 'के सोंगजंग' गांव के लिए 20 फरवरी को निकाली गयी निष्कासन की अधिसूचना थी.

उन्होंने कहा, "20 फरवरी को चुराचांदपुर के हेंगलेप उपमंडल के के सोंगजैंग गांव को बेदखली की सूचना दी गई थी. इस गांव को चुराचंदपुर-खौपुम के 'संरक्षित वन खंड' पर बनाए जाने का दोषी ठहराया गया था."

"गांव को कानून की नजर में नहीं बल्कि Google मैप्स द्वारा अवैध पाया गया, जिससे पता चला कि 2021 से पहले इस क्षेत्र में बहुत कम घर बनाए गए थे. सरकार का कहना था कि मैप के अनुसार अधिकांश घर, लगभग 13/14 संरचना, 2021 के बाद बने हैं."

हैंगिंग ने कहा, "चुरचंदपुर के कंगवई सब-डिवीजन के कुंगपिनाओसेन गांव के लिए भी इसी तरह की प्रक्रिया की गई थी."

"सरकार के प्रति नाराजगी का मुख्य बिंदु यह है कि सरकार ने हमारी भूमि को आरक्षित और संरक्षित वन क्षेत्र घोषित कर दिया है."

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हैंगिंग ने कहा कि मामले को बदतर बनाने के लिए, एक स्थानीय समाचार चैनल ने जनजातियों को "म्यांमार का" कह दिया. इससे उनका गुस्सा और बढ़ गया.

चुराचांदपुर के लमका की रहने वाली मर्सी पैते ने द क्विंट को बताया:

"हम पाइते भाषा बोलते हैं लेकिन एक स्थानीय टीवी समाचार चैनल ने हमें अप्रवासी के रूप में ब्रांड किया क्योंकि वे हमारी बोली नहीं जानते हैं. यह उच्चतम स्तर की अज्ञानता है. इसने वास्तव में हमें चोट पहुंचाई है."

हैंगिंग ने कहा, "मणिपुर के सबसे बड़े न्यूज चैनल ने हमें म्यांमार के लोग कहा. उन्हें शायद कुछ पता ही नहीं, क्योंकि मणिपुर की विधानसभा के पहले स्पीकर तोंसिंग क्रिश्चियन तियानखाम पैते भाषा बोलते थे."

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और इससे किसे फायदा होगा?

टॉन्सिंग ने आरोप लगाया कि आदिवासियों के साथ भेदभाव से मेइती लोगों को फायदा होगा, जो राज्य की बहुसंख्यक आबादी हैं और ज्यादातर घाटियों में रहते हैं.

उन्होंने आरोप लगाया, "मणिपुर अनादि काल से पहाड़ियों से घिरा हुआ है. लेकिन आज, घाटी की आबादी बढ़ रही है. सरकार पहाड़ियों की भूमि और संसाधनों का दोहन और कब्जा करने के तरीके ढूंढ रही है, क्योंकि राज्य में सत्ता और निर्णय लेने की शक्ति मेइती के पास है."

उन्होंने तर्क दिया कि आदिवासियों की भूमि को आरक्षित वन घोषित करने का अनिवार्य रूप से मतलब होगा कि मेइती इन सभी प्राकृतिक संसाधनों के साथ-साथ मणिपुर की कुकी-चिन-ज़ोमी आबादी (आदिवासी समूह) के पुश्तैनी घर, भूमि संबंध, संस्कृति और इतिहास को नियंत्रित करेंगे."

उन्होंने कहा, "उन्हें शरणार्थी घोषित करने से सरकार को उनकी भूमि, जंगलों और अन्य संसाधनों पर उनके अधिकारों को वापस लेने में लाभ होता है. इसका मतलब है कि उनके पास कानूनों के माध्यम से जनजातीय भूमि तक पहुंच होगी, जो मेइती आबादी के लिए सामाजिक-राजनीतिक और आर्थिक रूप से फायदेमंद होगा."

द क्विंट ने कई बार चुराचांदपुर विधायक और सत्तारूढ़ बीजेपी के सदस्यों से संपर्क किया. जैसे ही हमें उनकी प्रतिक्रिया मिलेगी, स्टोरी अपडेट की जाएगी.

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