देश में दिवाली के दिन आम तौर पर बैंक और ज्यादातर कारोबारी संस्थान बंद रहते हैं. लेकिन शेयर बाजार दिवाली की शाम को ‘मुहूर्त ट्रेडिंग’ के लिए खुलता है. ऐसे में ये जानना दिलचस्प है कि मुहूर्त ट्रेडिंग आखिर है क्या?
इस ट्रेडिंग के साथ मुहूर्त शब्द जुड़ा हुआ है. जाहिर है कि ये दीपावली के शुभ अवसर पर होने वाली ट्रेडिंग से जुड़ा है. इसे हम आगे थोड़ा और विस्तार से समझते हैं.
दीपावली का कारोबार से क्या संबंध?
दिवाली पर धन की देवी लक्ष्मी की पूजा की जाती है. ऐसा माना जाता है कि जिस पर लक्ष्मी की कृपा होती है, उसे कभी धन-धान्य की कमी नहीं होती है.
वैसे तो फाइनेंशियल ईयर की शुरुआत अंग्रेजी कैलेंडर के मुताबिक अप्रैल की पहली तारीख से होती है. लेकिन देश के कुछ भागों में परंपरागत तौर पर दीपावली से ही नए कारोबारी साल की शुरुआत होती है. इस मौके पर नए कारोबारी खाते की शुरुआत करने का चलन है. जाहिर है, इस मौके पर कारोबार करना शुभ माना जाता है.
शेयर बाजार 'मुहूर्त' से कैसे जुड़ा?
देश में जो लोग संवत की शुरुआत दिवाली से मानते हैं और नए कारोबारी साल की शुरुआत दिवाली से करते हैं, उनमें गुजराती और मारवाड़ियों की तादाद ज्यादा है. व्यापार-कारोबार में गुजराती और मारवाड़ी हमेशा से ही आगे रहे हैं. यहां तक कि स्टॉक ब्रोकिंग सेक्टर में भी हमेशा से इन दोनों समुदायों की अच्छी-खासी मौजूदगी रही है.
ऐसे माना जाता है कि इस शुभ मुहूर्त पर कारोबार करने से बरकत होती है. 'शगुन' के तौर पर खरीद की परंपरा आज भी चलन में है.
'मुहूर्त' पर शेयर बाजार में क्या होता है?
आम तौर पर दिवाली की शाम शेयर बाजार 1 से डेढ़ घंटे के लिए खास तौर पर खोला जाता है, जिसमें 1 घंटे तक खरीद-बिक्री होती है. ब्रोकरों के लिए ये वक्त लक्ष्मी पूजा के साथ-साथ ट्रेडिंग करने का होता है. आम तौर पर इस मौके पर खरीद ज्यादा शुभ माना जाता है, लेकिन बाजार का मूड हमेशा एक जैसा नहीं रहता.
कब से हुई मुहूर्त ट्रेडिंग की शुरुआत?
देश के शेयर बाजार में मुहूर्त ट्रेडिंग का चलन बहुत पुराना है. BSE में साल 1957 से और NSE में 1992 से ही मुहूर्त ट्रेडिंग का सिलसिला चल रहा है. अगर रिकॉर्ड उठाकर देखें, तो मार्केट इस दिन ज्यादातर हरे निशान में बंद होता देखा गया है.
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