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Expunging क्या है? संसद के रिकॉर्ड से किसी भाषण के अंश को हटाने का क्या नियम है?

सोशल मीडिया के इस युग में सदन की कार्यवाही से हटाए गए शब्दों, वाक्यों, भाषणों के अंश को प्रसारित करने से रोकना बहुत बड़ी चुनौती है.

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संसद के मॉनसून सत्र (Parliament Monsoon Session) में अविश्वास प्रस्ताव (No Confidence Motion) पर चर्चा के दौरान कांग्रेस सांसद राहुल गांधी (Rahul Gandhi) के भाषण के कुछ अंशों को संसद के रिकॉर्ड से हटा दिया गया. वहीं बीजेपी सांसद निशिकांत दुबे (Nishikant Dubey) की कांग्रेस और समाचार पोर्टल न्यूजक्लिक को लेकर दिए गए बयान को पहले संसद के रिकॉर्ड से हटा दिया था, लेकिन बाद में दोबारा बहाल कर दिया गया. विपक्ष ने इन दोनों बातों की जमकर आलोचना की है.

इन सब के बीच सवाल है कि संसद में की गई टिप्पणी या शब्दों को कब हटाया जा सकता है और ऐसा करने की प्रक्रिया क्या है? सोशल मीडिया के युग में ये कितना प्रासंगिक है?

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राहुल गांधी और निशिकांत दुबे ने क्या कहा था?

दरअसल, 9 अगस्त को लोकसभा में अविश्वास प्रस्ताव पर चर्चा के दौरान राहुल गांधी ने मणिपुर में हिंसा को लेकर पीएम मोदी और केंद्र सरकार पर जमकर निशाना साधा था. उन्होंने कहा, "भारत हमारी जनता की आवाज है. दिल की आवाज है. आपने मणिपुर में उस आवाज की हत्या की. इसका मतलब आपने भारत माता की मणिपुर में हत्या की. आपने मणिपुर के लोगों को मारकर भारत माता की हत्या की. आप देशद्रोही हो. आप देशप्रेमी नहीं हो. इन्होंने पूरे हिंदुस्तान की हत्या की है."

"जब तक हिंसा बंद नहीं होगी तब तक हर रोज मेरी मां की हत्या कर रहे हो. एक मेरी मां इस सदन में मेरे साथ बैठी है और दूसरी मां (भारत माता) की हत्या मणिपुर में आप कर रहे हो. हिंदुस्तान की सेना मणिपुर में एक दिन में शांति ला सकती है, लेकिन, आप सेना का प्रयोग नहीं कर रहे हैं. क्योंकि, आप मणिपुर में हिंदुस्तान को मारना चाहते हो."
राहुल गांधी, कांग्रेस सांसद
इसके बाद राहुल गांधी के भाषण से 'हत्या', 'कातिल', 'देशद्रोही', 'हत्यारे' जैसे शब्दों को संसद के रिकॉर्ड से हटा दिया गया.

वहीं झारखंड के गोड्डा से सांसद निशिकांत दुबे ने 7 अगस्त को अपने भाषण में न्यूयॉर्क टाइम्स की एक रिपोर्ट का हवाला देते हुए दावा किया कि न्यूज पोर्टल न्यूजक्लिक को 38 करोड़ रुपये की फंडिंग मिली थी. उन्होंने दावा किया कि इस पैसे का इस्तेमाल भारत विरोधी माहौल बनाने के लिए किया गया था.

इसके साथ ही विपक्ष के हंगामे के बीच बीजेपी सांसद ने आरोप लगाया, “2005 से 2014 के बीच चीनी सरकार ने कांग्रेस को भी पैसे दिए हैं.”

कांग्रेस की आपत्ति के बाद निशिकांत दुबे के बयान को संसद के रिकॉर्ड से हटा दिया गया था. लेकिन बाद में उसे दोबारा बहाल कर दिया गया. निशिकांत दुबे ने भी ट्वीट कर कहा, "मेरी जानकारी के अनुसार मेरे बोले हुए कोई भी शब्द एक्सपंज नहीं हुए हैं."

Expunging का क्या मतलब है?

कैंब्रिज शब्दकोष के मुताबिक, एक्सपंज (Expunge) शब्द का मतलब होता है किसी लेख से जानकारी मिटाना या हटाना.

संसद की कार्यवाही के दौरान सांसदों से बहस के दौरान 'संसदीय भाषा' के इस्तेमाल की अपेक्षा की जाती है. अगर कोई सांसद सदन में संसदीय भाषा का प्रयोग करने में असफल रहते हैं तो उनकी टिप्पणियों को “एक्सपंज” किया जा सकता है या रिकॉर्ड से हटाया जा सकता है.

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संसद के रिकॉर्ड से किसी शब्द को हटाने की क्या प्रक्रिया है?

संसद के रिकॉर्ड से कुछ शब्दों, वाक्यों या भाषण के कुछ हिस्सों को हटाना एक नियमित प्रक्रिया है. कार्यवाही के किन हिस्सों को हटाया जाएगा इसका फैसला सदन के पीठासीन अधिकारी पर निर्भर करता है. यह प्रावधान यह सुनिश्चित करने के लिए पेश किया गया था कि संसद के अंदर दी गई बोलने की स्वतंत्रता का दुरुपयोग न हो.

लोकसभा में 'प्रोसीजर एंड कंडक्ट ऑफ बिजनेस' के नियम 352 में कहा गया है कि सदस्य सदन को संबोधित करते समय क्या कह सकते हैं और क्या नहीं.

उदाहरण के लिए, सांसद ऐसे तथ्यों का उल्लेख नहीं कर सकते जो न्यायाधीन हैं, “सांसद, किसी राज्य विधानमंडल के आचरण या कार्यवाही के बारे में आपत्तिजनक अभिव्यक्तियां” या “गंभीर रूप से देशविरोधी, देशद्रोही या अपमानजनक शब्द” का उपयोग नहीं कर सकते हैं.

लोकसभा में 'प्रोसीजर एंड कंडक्ट ऑफ बिजनेस' के नियम 380 ("निष्कासन") में कहा गया है, "अगर अध्यक्ष को लगता है कि बहस में ऐसे शब्दों का इस्तेमाल किया गया है जो 'अपमानजनक या अशोभनीय या असंसदीय' हैं, तो अध्यक्ष अपने विवेक का प्रयोग करते हुए आदेश दे सकता है कि ऐसे शब्दों को सदन की कार्यवाही से हटा दिया जाए."

वहीं नियम 381 कहता है कि सदन की कार्यवाही के जिस हिस्से को इस प्रकार हटाया गया है, उसे तारांकन द्वारा चिह्नित किया जाना चाहिए और कार्यवाही में एक व्याख्यात्मक फुटनोट डालना होगा, जिसमें कहा जाएगा: 'सभापति के आदेश के अनुसार हटाया गया'.

संविधान के अनुच्छेद 105(2) के तहत, 'भारत की संसद में कही गई किसी भी बात के लिए कोई सांसद किसी कोर्ट के प्रति उत्तरदायी नहीं होता है. आसान भाषा में समझे तो सदन में कही गई किसी भी बात को कोर्ट में चैलेंज नहीं किया जा सकता है. इसका मतलब ये नहीं है कि सांसदों को संसद में कुछ भी बोलने की छूट मिली हुई है.
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भाषण के किसी अंश को हटाने का फैसला कैसे लिया जाता है?

अगर कोई सदस्य किसी ऐसे शब्द का प्रयोग करता है जो 'अपमानजनक या अशोभनीय या असंसदीय' हो और सदन की मर्यादा या गरिमा को ठेस पहुंचाता हो, तो रिपोर्टिंग अनुभाग का प्रमुख इसे अध्यक्ष या पीठासीन अधिकारी को प्रासंगिक नियमों का हवाला देते हुए हटाने के लिए सिफारिश करता है.

नियम 380 के तहत अध्यक्ष के पास किसी शब्द या भाषण के अंश को हटाने का अधिकार है. एक बार स्पीकर जब उस शब्द या भाषण के अंश को हटाने की अनुमति दे देता है, तो वह वापस रिपोर्टिंग अनुभाग के पास आ जाता है और फिर उसे रिकॉर्ड से हटा दिया जाता है. इसके साथ ही कार्यवाही में उल्लेख किया जाता है- 'सभापति के आदेश के अनुसार हटाया गया'.

सत्र के अंत में रिकॉर्ड से हटाए गए शब्दों का एक संकलन, कारणों सहित, स्पीकर के कार्यालय, संसद टीवी और संपादकीय सेवा को जानकारी के लिए भेजा जाता है.

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रिकॉर्ड से टिप्पणियां हटाने के बाद क्या होता है?

कार्यवाही से हटाए गए हिस्से संसद के रिकॉर्ड में नहीं रहते हैं. ऐसे में उन्हें मीडिया संस्थानों द्वारा रिपोर्ट नहीं किया जा सकता है, भले ही उन्हें कार्यवाही के लाइव टेलीकास्ट के दौरान सुना गया हो.

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सोशल मीडिया के युग में ये कितना प्रासंगिक है?

हालांकि, सोशल मीडिया के इस युग में सदन की कार्यवाही से हटाए गए शब्दों, वाक्यों, भाषणों के अंश को प्रसारित करने से रोकना बहुत बड़ी चुनौती है.

जब पीठासीन अधिकारी शब्दों या भाषण के अंश को हटा देते हैं, तो वे संसद के रिकॉर्ड का हिस्सा नहीं रह जाते हैं. लेकिन आज के समय में सदन की कार्यवाही का लाइव प्रसारण होता है, जिसे लोग देखते हैं, रिकॉर्ड करते हैं और ट्वीट करते हैं. जब तक संसद अपना रिकॉर्ड अपडेट करती है, तब तक कार्यवाही से हटाए गए हिस्से पहले ही सोशल मीडिया पर बड़े पैमाने पर शेयर हो चुके होते हैं.

ऐसी स्थिति में हटाए गए अंशों के साथ सोशल मीडिया पर किसी सांसद के भाषण को शेयर करना संसद के विशेषाधिकार का उल्लंघन है. इससे संस्थान की छवि पर भी असर पड़ता है.

इसके साथ ही एक और सवाल उठता है कि- अगर लोगों ने पहले ही भाषण देख लिया है, रिकॉर्ड कर लिया है और वो सोशल मीडिया पर शेयर हो रहा है, तो फिर उसे हटाने का क्या मतलब है?

बहरहाल, आपको यहां बता दें कि संसद टीवी ने अपने यूट्यूब चैनल पर राहुल गांधी का संशोधित भाषण अपलोड किया है. वीडियो के डिस्क्रिप्शन में भी लिखा है, "सभापति के आदेश के अनुसार वीडियो को एडिट किया गया है."

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