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जानिए विधानसभा में कैसे होता है शक्ति परीक्षण?

जानिए- फ्लोर टेस्ट और प्रोटेम स्पीकर से जुड़े हर सवाल का जवाब

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कर्नाटक में बीती 15 मई को विधानसभा चुनाव के नतीजे आने के बाद से सियासी घमासान मचा हुआ है. सीएम पद की शपथ ले चुके बीजेपी के बीएस येदियुरप्पा अपने पास बहुमत होने का दावा कर रहे हैं, जबकि कांग्रेस-बीजेपी गठबंधन का दावा है कि बहुमत उनके पास है. इस उठापटक के बीच सुप्रीम कोर्ट ने येदियुरप्पा को शनिवार शाम चार बजे विधानसभा में बहुमत सिद्ध करने का फैसला सुनाया है.

लिहाजा, आज शाम विधानसभा में होने वाला शक्ति परीक्षण ही येदियुरप्पा की अगुवाई वाली बीजेपी सरकार के भाग्य का फैसला करेगी.

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कर्नाटक में किसकी देखरेख में होगा शक्ति परीक्षण?

कर्नाटक विधानसभा में शक्ति परीक्षण प्रोटेम या अस्थाई स्पीकर की देखरेख में होगा. 18 मई को आए सुप्रीम कोर्ट के आदेश के मुताबिक, "विधानसभा के निर्वाचित सदस्यों ने अभी तक शपथ नहीं ली है और ना ही अभी तक स्पीकर चुने गये हैं. हम मानते हैं कि फ्लोर टेस्ट आयोजित करने के लिए इन प्रक्रियाओं का पालन किया जाना चाहिए. फ्लोर टेस्ट कराने के लिए तत्काल प्रोटेम स्पीकर को नियुक्त किया जाए."

प्रोटेम स्पीकर कौन होता है और इसकी नियुक्ति कैसे होती है?

संविधान के आर्टिकल 180(1) के तहत, जब स्पीकर या डिप्टी स्पीकर का पद खाली होता है, तो गर्वनर विधानसभा के किसी भी सदस्य को कार्यवाहक स्पीकर नियुक्त कर सकता है. इस कार्यवाहक स्पीकर को बोलचाल की भाषा में प्रोटेम स्पीकर कहते हैं. उदाहरण के तौर पर, साल 2014 के आम चुनावों में राष्ट्रपति ने कमलनाथ को स्पीकर नियुक्त किया था. इससे पहले साल 2009 के आम चुनावों के वक्त माणिकराव गावित को प्रोटेम स्पीकर नियुक्त किया गया था.

माणिकराव गावित और कमलनाथ लोकसभा के सबसे अनुभवी सांसद थे और स्पीकर के तौर पर उनकी नियुक्ति को लेकर कोई विवाद नहीं था.

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कर्नाटक के विधायकों को पद की शपथ कौन दिलाएगा?

संविधान के आर्टिकल 188 में लिखा है कि सदन में अपनी सीट संभालने से पहले विधायकों को शपथ लेनी होगी. विधायकों को राज्यपाल या उनके द्वारा नियुक्त किसी व्यक्ति द्वारा पद की शपथ दिलाई जाएगी.

कर्नाटक में राज्यपाल वजुभाई वाला ने बीजेपी विधायक केजी बोपैया को अन्य विधायकों को शपथ दिलाने के लिए नामित किया है.

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फ्लोर टेस्ट करने की प्रक्रिया क्या है?

सदन में चर्चा के बाद प्रोटेम स्पीकर मौजूद विधायकों से गुप्त मतदान या ध्वनिमत से विश्वासमत के समर्थन और विरोध में वोटिंग कराते है. अगर विश्वास मत प्रस्ताव के समर्थन में ज्यादा विधायकों ने वोट किया या हाथ उठाकर अपना समर्थन जताया या आवाज से समर्थन जताया तब माना जाता है कि सरकार को सदन में बहुमत हासिल है.

लेकिन जब विरोध में ज्यादा वोट पड़ते हैं तो माना जाता है कि सरकार के पास बहुमत नहीं है. नतीजतन, सरकार गिर जाती है.

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फ्लोर टेस्ट जीतने के लिए कितने वोटों की जरूरत है?

कर्नाटक विधानसभा चुनाव की 222 सीटों पर आए नतीजों में बीजेपी को 104 सीटें मिली, और यह संख्या बहुमत से 8 कम है. दूसरी ओर, कांग्रेस को 78 और जेडीएस को 37, बीएसपी को 1 और अन्य को 2 सीटें मिली हैं.

जेडीएस चीफ और सीएम पद के दावेदार एचडी कुमारस्वामी ने रामनगर और चन्नापाटन दो सीटों से जीत दर्ज कराई थी. इसलिए बहुमत के लिए 111 विधायक चाहिए.

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