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कैसे चुने जाते हैं राज्यसभा सांसद? 4 कार्ड में समझिए पूरा प्रोसेस

26 मार्च को राज्यसभा की 55 सीटों के लिए चुनाव होना है

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कुंजी
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भारत में संसद के दो सदन हैं, लोकसभा और राज्यसभा. लोकसभा चुनाव अमूमन हर पांच साल में होते हैं. इसकी प्रक्रिया से सभी लोग परिचित हैं. लोग अपने संसदीय क्षेत्र के प्रतिनिधि के लिए सीधे वोटिंग करते हैं और चुने हुए सांसद उस क्षेत्र का लोकसभा में प्रतिनिधित्व करते हैं. लेकिन राज्यसभा के सांसदों का चुनाव कैसे होता है? ये प्रक्रिया थोड़ी जटिल है और इसमें लोग सीधे सांसदों का चुनाव नहीं करते हैं. राज्यसभा की चुनाव प्रक्रिया को ‘इनडायरेक्ट इलेक्शन’ कहा जाता है. 26 मार्च को राज्यसभा की 55 सीटों के लिए चुनाव होना है. इससे पहले ये जान लेते हैं कि ये प्रक्रिया कैसे होती है.

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राज्यसभा में कुल कितनी सीट?

संविधान के अनुच्छेद 80 के मुताबिक राज्यसभा में कुल 250 सदस्य हो सकते हैं. इनमें से 12 सदस्य राष्ट्रपति नामित करता है और बाकी 238 सदस्यों को राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के प्रतिनिधि चुनते हैं. राष्ट्रपति साहित्य, विज्ञान, कला और सामाजिक कामों में विशेष ज्ञान या अनुभव रखने वाले लोगों को नामित करते हैं. देश के उपराष्ट्रपति राज्यसभा के चेयरपर्सन होते हैं. इस सदन के सदस्यों का कार्यकाल छह सालों का होता है. फिलहाल राज्यसभा में मौजूदा उम्मीदवारों की संख्या 245 है.

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प्रदेशों के बीच सीटों का बंटवारा

राज्यसभा में सीटों का बंटवारा राज्यों की जनसंख्या के मुताबिक होता है. मतलब कि कौन सा राज्य सदन में कितने सदस्य भेज सकते हैं, ये उस राज्य या केंद्र शासित प्रदेश की जनसंख्या पर निर्भर करता है. इसलिए राज्यों का बंटना या नए राज्यों का बन जाना राज्यसभा में सीटों के बंटवारे को प्रभावित करता है. उत्तर प्रदेश की जनसंख्या सबसे ज्यादा है, इसलिए वहां से सबसे ज्यादा 31 राज्यसभा सदस्य चुने जाते हैं.

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राज्यसभा की चुनाव प्रक्रिया

राज्यसभा सदस्यों का चुनाव 'इनडायरेक्ट इलेक्शन' प्रक्रिया के तहत होता है. इसमें राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के लोग नहीं, बल्कि उनके चुने हुए विधानसभा प्रतिनिधि यानी कि विधायक वोट करते हैं. राज्यसभा में विधायकों के वोट करने की इस प्रक्रिया को 'केवल एक ही स्थानान्तरणीय वोट के जरिए आनुपातिक प्रतिनिधित्व का सिस्टम' या फिर 'proportional representation with the single transferable vote system' कहते हैं. इसका मतलब ये होता है कि जनसंख्या के अनुपात में प्रतिनिधित्व होगा और विधायक एक ही वोट डालेंगे, जो एक उम्मीदवार से दूसरे उम्मीदवार को ट्रांसफर हो सकता है.

वोट का ट्रांसफर दो सूरतों में होता है. पहली, जब उम्मीदवार को जीतने के लिए जितने जरूरी हैं, उससे ज्यादा वोट मिले हों. दूसरा, जब किसी उम्मीदवार को इतने कम वोट मिले हों कि उसके पास कोई मौका ही न हो.

हर विधायक का वोट एक ही बार गिना जाता है. इसलिए वो हर सीट के लिए वोट नहीं कर सकते हैं. बैलट पेपर पर उम्मीदवारों के नाम होते हैं और विधायक इन नामों पर अपनी वरीयता के मुताबिक 1,2,3,4 और ऐसे ही आगे के अंक लिख देते हैं. जब विधायक किसी उम्मीदवार को '1' वरीयता देता है, तो उम्मीदवार को 'पहली वरीयता' का वोट मिल जाता है. उम्मीदवार को जीतने के लिए ऐसे ही एक 'तय नंबर' के 'पहली वरीयता' वोट चाहिए होते हैं. ये 'तय नंबर' राज्य की कुल विधानसभा सीटों और वहां से राज्यसभा में जाने वाले सांसदों की संख्या पर निर्भर करता है.

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उदाहरण के साथ समझिए

राज्यसभा सीट जीतने के लिए उम्मीदवार को जितने 'पहली वरीयता' के वोट चाहिए होते हैं, उनकी गणना के लिए एक फॉर्मूला है = [कुल विधायकों की संख्या / (चुनाव के लिए राज्यसभा सीटें + 1)] + 1.

अब उत्तर प्रदेश के उदाहरण से समझते हैं. प्रदेश में कुल विधायकों की संख्या 403 होती है. मान लीजिए 10 राज्यसभा सीटों के लिए चुनाव होना है. तो जीत के लिए 'पहली वरीयता' के वोट कुछ इस तरह पता चल सकते हैं- [403 / (10 + 1)] + 1=37. मतलब कि जिस उम्मीदवार को 37 'पहली वरीयता' के वोट मिल जाएंगे, वो राज्यसभा सीट जीत जाएगा.

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