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सात कार्ड में समझें श्रीलंका में आतंकवाद का पूरा इतिहास

श्रीलंका में पिछले 5 दशक से है आतंकवाद का खतरा

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21 अप्रैल, 2019 को श्रीलंका के बट्टीकलोआ, कोलंबो और नेगोम्बो के  चर्चों और स्टार होटल 7-8 विस्फोटों से दहल गए. इन आतंकवादी हमलों में कम से कम 359 लोगों की मौत हो गई और 500 से ज्यादा लोग घायल हुए. श्रीलंका सरकार मान रही है कि आतंकवादी हमले, सुरक्षा/खुफिया मामलों में लापरवाही का नतीजा थे. दूसरी ओर 9/11 हमलों के बाद इन हमलों को सबसे सुनियोजित आतंकवादी हमला माना जा रहा है.

श्रीलंका सरकार ने इन हमलों के पीछे नेशनल तौहीद जमात (NTJ) का हाथ बताया है. उधर इस्लामिक स्टेट (IS) ने भी इन हमलों की जिम्मेदारी ली है.

NTJ नेता जोहरान हाशिम पर भी IS के साथ रिश्तों का शक है. सवाल है कि अचानक गिरिजाघरों पर हमले क्यों हुए, जबकि श्रीलंका में सांप्रदायिक तनाव का इतिहास सिर्फ मुस्लिम अल्पसंख्यकों और बौद्ध बहुसंख्यकों के बीच रहा है? NTJ कौन है और उनका तमिलनाडु के तमिलनाडु तौहीद जमात के साथ क्या संबंध है?

आइए जानते हैं.

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क्या श्रीलंका सरकार को हमलों के बारे में पहले से जानकारी थी?

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श्रीलंका सरकार को भारतीय खुफिया एजेंसियों ने जिहादी हमलों की आशंका से पहले ही आगाह कर दिया था. The Times of India में छपी रिपोर्ट के मुताबिक एजेंसी ने हमलों के लिए NTJ की साजिश होने की आशंका भी जताई थी.

The New York Times की एक रिपोर्ट के मुताबिक भारतीय खुफिया अधिकारियों ने श्रीलंका में अपने समकक्षों को हमले के पहले चेतावनी दी थी. बताया जाता है कि भारतीय एजेंसियों की दी हुई कई चेतावनियों में ये अंतिम चेतावनी थी. इनमें 4 अप्रैल को दी गई खबर और 11 अप्रैल को दी गई विस्तृत जानकारी भी शामिल है, जिसमें चर्च पर हमलों की आशंका और साजिश रचने वालों के बारे में भी बताया गया था.

“मुझे ये सच स्वीकार करना चाहिए कि रक्षा अधिकारियों से इस मामले में लापरवाही हुई.”
मैत्रीपाला सिरीसेना, विस्फोटों के बाद श्रीलंका के राष्ट्रपति का बयान

इसके बाद श्रीलंका की सरकार ने विस्फोटों के पीछे नेशनल तौहीद जमात का हाथ बताया.

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NTJ कौन है? जोहरान हाशिम कौन है?

NTJ, श्रीलंका तौहीद जमात से अलग हुआ एक कट्टरपंथी वहाबी संगठन है, जो तमिलनाडु तौहीद जमात की श्रीलंकाई इकाई है. ये तीनों संगठन ‘शिर्क’ के खिलाफ हैं. मोटामोटी शिर्क का मतलब है एकाधिक ईश्वर की पूजा करना या वहाबी विचारधारा के विरुद्ध कोई भी विचारधारा.

श्रीलंका तौहीद जमात के नेता अब्दुल राजिक को बौद्धों के खिलाफ भड़काऊ भाषण देने के आरोप में 2016 में गिरफ्तार किया गया था. सैद्धांतिक रूप से SLTJ - बौद्धों, इसाईयों और यहां तक कि इस्लाम के अन्य शाखाओं के भी खिलाफ है. जोहराम हाशिम की अगुवाई वाला NTJ उससे भी अधिक कट्टर है.

जोहराम हाशिम श्रीलंका के बट्टीकलोआ इलाके का एक धार्मिक नेता है. माना जाता है कि उसकी अगुवाई में NTJ ने साल 2014 में कट्टनकुडी में SLTJ से अपनी राह अलग कर ली थी. यूट्यूब और फेसबुक पर उसके हजारों समर्थक हैं. इन सोशल साइट्स पर वह तमिल भाषा में वहाबी विचारधारा के प्रचार के वीडियो पोस्ट करता है. NTJ पर पिछले दिसंबर से तोड़फोड़ की कई घटनाओं में शामिल होने के आरोप लगे, जिनमें मध्य श्रीलंका स्थित मावानेला में बौद्ध मूर्तियां तोड़ना भी शामिल है.

आतंकवादी संगठन इस्लामिक स्टेट (IS) ने एक तस्वीर जारी कर विस्फोटों की जिम्मेदारी ली है. इस तस्वीर में जोहराम हाशिम भी आत्मघाती हमलावरों के साथ खड़ा है और उनके पीछे IS का झंडा लहरा रहा है. अब अंतरराष्ट्रीय आतंकवादी संगठनों के साथ उसके रिश्ते खंगाले जा रहे हैं. माना जा रहा है कि आत्मघाती हमलावरों में वो भी एक था. हालांकि अभी तक इस बारे में पुख्ता सबूत नहीं मिले हैं.

“खुफिया एजेंसियों ने बताया कि स्थानीय विस्फोटों के पीछे अंतरराष्ट्रीय संगठनों का हाथ है.”
मैत्रीपाला सिरीसेना, श्रीलंका के राष्ट्रपति

मुस्लिम काउंसिल ऑफ श्रीलंका के उपाध्यक्ष हिल्मी अहमद के मुताबिक सभी वीडियो भारत से अपलोड किए गए हैं.

अंतरराष्ट्रीय आतंकवादी संगठनों के साथ रिश्तों की जानकारी मिलने के बाद पता चलेगा कि किस प्रकार तुलनात्मक दृष्टि से कम जाना-पहचाना NTJ इतने बड़े स्तर पर अपनी कारगुजारियों को अंजाम देने में कामयाब रहा.

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श्रीलंका-पाकिस्तान संबंध

साल 2004 में श्रीलंका और मालदीव में तबाही मचाने वाली सुनामी के बाद इदारा-खिदमत-ए-खल्क संगठन, राहत कार्य करता दिखा था. ये संगठन लश्कर-ए-तैय्यबा का धर्मार्थ हिस्सा है. 2016 में एक बार फिर फतह-ए-इंसानियत के रूप में ये संगठन सामने आया.

श्रीलंका और पाकिस्तान के संबंध विभाजन के समय से ही अच्छे रहे हैं, जब श्रीलंका के मुस्लिम समुदाय ने विभाजन का समर्थन किया था. हालांकि विभाजन में उनकी कोई भूमिका नहीं थी. साल 1971 में बांग्लादेश संकट के समय श्रीलंका ने पाकिस्तान को ईंधन उपलब्ध कराया था, क्योंकि भारत ने वायुमार्ग और अपनी जमीन के इस्तेमाल का अधिकार पाकिस्तान से वापस ले लिया था. उस साल मार्च-अप्रैल में सैनिकों और हथियारों को ले जाने वाले पाकिस्तान के सैनिक और नागरिक विमान श्रीलंका में 174 बार उतरे थे.

बदले में श्रीलंका की सरकार ने साल 2008 में LTTE के सफाए के लिए कई बार पाकिस्तानी एयरफोर्स की मदद ली थी.

श्रीलंका के सुरक्षा बलों और पाकिस्तान के घनिष्ठ रिश्तों ने ISI को स्थानीय संपर्क विकसित करने में मदद दिया. इस बीच लश्कर, अंतरराष्ट्रीय जिहाद के नाम पर श्रीलंका में कट्टरपंथी मुस्लिमों को अपने प्रभाव में लेने की कोशिश करता रहा.

बताया जाता है कि इसी का नतीजा है कि 38 श्रीलंकाई मुस्लिम IS में शामिल हुए हैं.

चिंता की बात ये थी कि 2014 में नेशनल इन्वेस्टिगेशन एजेंसी (NIA) ने एक भारतीय तमिल थमीम अंसारी और एक श्रीलंकाई नागरिक अरुण सेल्वराजन को ISI के लिए जासूसी करने के आरोप में चेन्नई से गिरफ्तार किया.

इन गिरफ्तारियों के अलावा श्रीलंका में तमिलनाडु तौहीद जमात के बढ़ते प्रभाव को देखते हुए दक्षिण भारत और विशेषकर तमिलनाडु में खतरा स्पष्ट हो गया है.

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चर्च को क्यों निशाना बनाया गया?

श्रीलंका के रक्षा मंत्री रुवन विजयवर्दने ने मंगलवार को बताया कि आरंभिक जांच से पता चला है कि रविवार को हुए हमले “क्राइस्टचर्च में मुस्लिम समुदाय पर हमले के विरोध में किए गए थे.”

रक्षा मंत्री न्यूजीलैंड के क्राइस्टचर्च में हुए आतंकी हमलों का जिक्र कर रहे थे, जिसमें दो मस्जिदों में 50 मुस्लिमों को मौत के घाट उतार दिया गया था.

हालांकि अभी तक दोनों हमलों के बीच संबंध सिर्फ सैद्धांतिक तौर पर ही है.

श्रीलंका में बौद्ध धर्म प्रमुख है. साल 2011 की जनगणना के मुताबिक देश में 70.2 फीसदी से अधिक बौद्ध, 12.6 प्रतिशत हिंदू, 9.7 फीसदी मुस्लिम और 7.4 प्रतिशत आबादी इसाइयों की है.

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क्या TNTJ, SLTJ और NTJ आपस में संबंधित हैं?

तमिलनाडु तौहीद जमात किसी भी रूप में श्रीलंका में हुए सीरियल ब्लास्ट में शामिल नहीं है, लेकिन सभी तीनों संगठन वैचारिक रूप से आपस में जुड़े हुए हैं और उनकी पैदाइश एक ही संगठन से हुई है.

2004 में पी. जैनुल आबदीन (उर्फ पीजे) ने एक गैर-राजनीतिक धार्मिक संगठन के रूप में TNTJ की शुरुआत की, जो ‘सच्चे इस्लाम’ का उपदेश देता था. पीजे राजनीतिक दल टीएम मुस्लिम मुन्नेत्र कषगम के संस्थापकों में एक था. इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग (IUML) और मनिथानेय मक्कल कच्ची के साथ ये संगठन चुनावों के दौरान मुस्लिम वोट बैंक के रूप में काम करता था. एक सेक्स स्कैंडल में नाम आने के बाद साल 2018 में पीजे को TNTJ से निकाल दिया गया.

TNTJ की विचारधारा काफी हद तक वहाबी विचारधारा से प्रभावित है, जो ISIS और अन्य आतंकवादी संगठनों की जनक है. फरवरी 2016 में TNTJ ने तिरुचिरापल्ली में ‘शिर्क इरैडिकेशन कॉन्फ्रेंस’ का आयोजन किया. वक्ताओं ने हजारों लोगों की भीड़ को दरगाह, मूर्ति पूजा और इस्लाम की अन्य सभी शाखाओं को नेस्तनाबूद करने का आह्वान किया, जो वहाबी विचारधारा से इत्तेफाक नहीं रखते थे. जिस प्रकार दिसंबर 2018 में बौद्ध विरोधी NTJ समर्थकों को बौद्ध मूर्तियां तोड़ने के लिए गिरफ्तार किया गया, उसी प्रकार SLTJ पर भी बौद्धों के विरुद्ध भड़काऊ भाषण देने के आरोप लगे. संगठन के नेता अब्दुल राजिक को भड़काऊ भाषण देने के आरोप में गिरफ्तार किया गया, जिसने बाद में माफी मांगी.

तमिलनाडु में पैदा हुआ वहाबी धर्मगुरु बासित बुखारी (अब यूएई में) के संबंध जोहरान हाशिम (NTJ), पीजे (TNTJ) और जवाहिरुल्ला (MMK) के साथ जगजाहिर हैं.

TNTJ की शाखाएं कतर, यूएई, अमेरिका, ब्रिटेन, फ्रांस, ऑस्ट्रेलिया और श्रीलंका (SLTJ) में भी हैं.

साल 2015 में जब SLTJ ने पीजे को सिंघली कुरान के उद्घाटन के लिए आमंत्रित किया तो श्रीलंका के मुस्लिमों ने उसका पुरजोर विरोध किया. आखिरकार सरकार को उसके आने पर रोक लगानी पड़ी. अपने वीडियो में NTJ नेता जोहरान हाशिम, शिर्क हटाने, दरगाहों को तोड़ने और हिंसक जिहाद की बातें करता रहा है. ये सभी बातें TNTJ और SLTJ की विचारधाराओं के अनुकूल हैं.

ध्यान देने वाली बात है कि TNTJ, SLTJ और NTJ की विचारधाराएं आम लोगों की सोच से उसी प्रकार हटकर हैं, जिस प्रकार कट्टरपंथी बौद्ध संगठन विशाल बौद्ध समुदाय की सोच को प्रतिबिंबित नहीं करते.

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सोच की समस्या

श्रीलंका में इस्लाम का प्रवेश मध्य-पूर्व के व्यापारियों के जरिए 11वीं सदी में हुआ था. उन दिनों समुद्री व्यापार पर मध्य-पूर्व का वर्चस्व था. उनमें कई व्यापारी श्रीलंका में बस गए और वहीं शादी कर अपनी पत्नियों का मुस्लिम धर्म में परिवर्तन कराया.

यहां बौद्ध धर्म का हमेशा से वर्चस्व रहा है. 19वीं सदी में पुनर्जागरण के बाद बौद्धों का इस्लाम और इसाई धर्मावलम्बियों के साथ शांतिपूर्ण सहअस्तित्व रहा है.

श्रीलंका के संविधान में बौद्ध धर्म को अन्य सभी धर्मों से ऊपर रखा गया है, जिसके कारण अन्य धर्मों की स्थिति दोयम दर्जे की है. यही कारण है कि LTTE को मुस्लिम समुदाय का साथ नहीं मिला.

मुस्लिम समुदाय को LTTE की हिंसा झेलनी पड़ती थी, और जब तक इस संगठन का अस्तित्व रहा, उन्हें कई तटीय इलाकों से बाहर निकाला जाता रहा. अन्य गुटों के साथ कट्टरपंथी इस्लाम का उद्भव लश्कर और अंतरराष्ट्रीय आतंकवादी संगठन IS की मदद से साल 2013 से शुरु हुआ.

इनके समानान्तर श्रीलंका में सर्वाधिक सक्रिय बौद्ध कट्टरपंथी संगठन, ‘बोडू बाला सेना’ मुस्लिम संगठनों पर देश को पिछड़ा बनाने का आरोप लगाता रहा. साल 2012 के बाद से ये भी एक राजनीतिक दल है. कैंडी में साल 2018 के आरम्भ में मुस्लिमों के खिलाफ हुए दंगे, तटीय इलाकों में मुस्लिमों के प्रति नफरत का नतीजा थे.

श्रीलंका में गिरजाघरों पर हुए हमलों ने धर्म के आधार पर तनाव उत्पन्न कर दिया है, जो पहले कभी नहीं था.

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तमिलनाडु में आतंकवाद का खतरा

तमिलनाडु की क्षेत्रीय भाषा के ऑनलाइन समुदाय में भारी संख्या में ISIS और वहाबी विचारधारा के समर्थक हैं. वो ISIS के क्रियाकलापों के अलावा NTJ और TNTJ नेताओं की तस्वीरें तथा ISIS के न्यूज अपडेट, पोस्ट करते रहते हैं. अब तक तमिलनाडु पुलिस TN मुस्लिमों की बढ़ती संख्या पर चुप्पी साधे हुए है, जो आतंकवादी संगठनों को समर्थन देते हैं.

साल 2016 से MMK, TnMMK और अन्य मुस्लिम संगठनों को चुनाव प्रक्रिया से दूर कर दिया गया है. उनपर यूएई, सऊदी अरब और तुर्की से वित्तीय सहायता प्राप्त करने के आरोप लगे हैं.

कट्टरपंथी वहाबियों ने त्रिप्लिकेन के जुम्मा मस्जिद, वलाजाह मस्जिद और माउंट रोड दरगाह में भी अपनी पहुंच बना ली है. ये सभी सुन्नी धार्मिक स्थल हैं. इसके अलावा वहाबी कट्टरपंथियों पर 4,500 करोड़ की संपत्ति पर भी घुसपैठ करने के आरोप हैं. तमिलनाडु में और विशेषकर नागूर, चेन्नई और नेल्लोर स्थित दरगाहों में भारी संख्या में हिंदू भी जाते हैं. अब इन धार्मिक स्थलों को तोड़ डालने की कोशिश की जा रही है.

ISIS में शामिल होने के शक में तुर्की से चेन्नई के दो युवकों का प्रत्यर्पण, 2015 में आयोजित ‘शिर्क इरैडिकेशन कॉन्फ्रेंस’, ISI के लिए काम करने वाले श्रीलंकाई और भारतीय तमिल जासूसों की चेन्नई से गिरफ्तारी और ऐसी अन्य घटनाएं साफ करती हैं कि दक्षिण भारत की सुरक्षा खतरे में है.

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