ADVERTISEMENTREMOVE AD

जीरो से नीचे तेल के दाम, कोरोना ही नहीं सऊदी-रूस ऑयल वॉर भी वजह

ऑयल मार्केट में 20 अप्रैल को क्या हुआ, अब आगे क्या?

Updated
story-hero-img
छोटा
मध्यम
बड़ा
स्नैपशॉट

नोवेल कोरोना वायरस संकट के बीच ऑयल मार्केट में सोमवार को ऐतिहासिक गिरावट दर्ज की गई, जब अमेरिकी वेस्ट टेक्सास इंटरमीडिएट (WTI) कच्चे तेल का भाव माइनस 40.32 डॉलर प्रति बैरल तक गिर गया. कई मीडिया रिपोर्ट्स में इसे कच्चे तेल की अब तक की सबसे कम कीमत बताया जा रहा है.

कीमत का शून्य से नीचे जाना बताता है कि विक्रेता खरीदारों को ही डिलीवरी लेने के लिए भुगतान कर रहे थे. इस स्थिति ने दुनियाभर में लोगों को हैरान कर दिया है.

ADVERTISEMENTREMOVE AD

क्या है कच्चे तेल के दाम में गिरावट की वजह?

ऑयल मार्केट की हालत अचानक खराब नहीं हुई है. कोरोना वायरस के चलते दुनियाभर में पैदा हुए आर्थिक संकट से पहले भी पिछले कुछ महीनों में कच्चे तेल के दाम में गिरावट देखी जा रही थी. जहां साल 2020 की शुरुआत में ये दाम 60 डॉलर प्रति बैरल के करीब थे, वहीं मार्च के आखिर तक ये गिरते-गिरते 20 डॉलर प्रति बैरल के करीब तक पहुंच गए.

इस गिरावट की वजह साफ है. आम तौर पर किसी भी चीज की कीमत में तब गिरावट होती है, जब उसकी सप्लाई डिमांड से ज्यादा हो. ऑयल मार्केट्स भी, दुनियाभर में और खासकर अमेरिका में पिछले कुछ महीनों से इसी स्थिति का सामना कर रहे हैं.

इतिहास की तरफ देखे तो इस स्थिति से निपटने के लिए सऊदी अरब की अगुवाई में उत्पादक संघ की तरह काम करते हुए ऑर्गनाइजेशन ऑफ द पेट्रोलियम एक्सपोर्टिंग कंट्रीज (OPEC) एक उचित बैंड में कीमतें फिक्स कर देता था. इसके लिए कीमतें कम करने को उत्पादन बढ़ाया जा सकता था, जबकि कीमतें बढ़ाने को उत्पादन घटाया जा सकता था. OPEC दुनिया का सबसे बड़ा कच्चा तेल निर्यातक है.

पिछले कुछ वक्त में क्या रही OPEC की भूमिका?

पिछले कुछ समय में OPEC कच्चे तेल की वैश्विक कीमतों और उत्पादन के संतुलन के लिए रूस के साथ मिलकर OPEC+ के तौर पर काम कर रहा था. मगर मार्च की शुरुआत में यह समझौता टूट गया, जब सऊदी अरब और रूस कीमतों को स्थिर रखने के लिए उत्पादन घटाने की नीति पर एक दूसरे से असहमत हो गए. जहां सऊदी अरब उत्पादन घटाने की वकालत कर रहा था, वहीं रूस ऐसा करने के पक्ष में नहीं था.

रूस से समझौता टूटने के बाद सऊदी अरब ने उसे 'सबक सिखाने' का फैसला किया. सऊदी अरब और उसकी अगुवाई वाले तेल निर्यातक देश रूस के बाजार पर कब्जा जमाने के लिए बिना उत्पादन घटाए कीमतों में कटौती की तरफ बढ़ने लगे. वैश्विक बाजार पर इसका बुरा असर पड़ा.

ADVERTISEMENTREMOVE AD

कोरोना संकट का क्या असर पड़ा?

ऑयल मार्केट की पहले से खराब हालत तब और बिगड़ने लगी, जब वैश्विक अर्थव्यवस्था पर नोवेल कोरोना वायरस संकट की मार पड़ने लगी. इस वायरस के प्रसार को रोकने के लिए कई देशों ने लॉकडाउन लागू कर दिया. दुनियाभर में फ्लाइट्स और वाहन चलने की संख्या काफी कम हो गई और तेल की मांग तेजी से घट गई.

अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के दबाव के बीच पिछले हफ्ते सऊदी अरब और रूस की कलह तो सुलझ गई, मगर तब तक बहुत देर हो चुकी थी. सऊदी अरब की अगुवाई वाले OPEC देशों और रूस की अगुवाई वाले बाकी तेल उत्पादक देशों के बीच 12 अप्रैल को वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए उत्पादन में कटौती के लिए एक समझौता हुआ.

OPEC के महासचिव मोहम्मद बरकिंडो ने कटौती को ‘‘ऐतिहासिक’’ बताया. उन्होंने कहा, ‘‘ये कटौती मात्रा के लिहाज से सर्वाधिक है और सबसे लंबे समय तक है और इसके दो साल तक चलने की योजना है.’’ इस समझौते के बारे में मैक्सिको के ऊर्जा मंत्री रोशिया नहले ने बताया कि इसके तहत मई से हर दिन 970 लाख बैरल की कटौती पर सहमति बनी है.

ADVERTISEMENTREMOVE AD

20 अप्रैल को क्या हुआ, अब आगे क्या?

शीर्ष उत्पादक देशों के बीच हुए समझौते के लागू होने की शुरुआत हो पाती उससे पहले ही मांग और उत्पादन में भारी अंतर हो गया. जिस तेजी से मांग नीचे गिरी उस तेजी से उत्पादन नीचे नहीं आ पाया. इसका नतीजा यह हुआ कि विक्रताओं के पास स्टोरेज की जगह कम पड़ने लगी. साल 2018 में दुनिया के सबसे बड़े कच्चे तेल उत्पादक देश के तौर पर उभरे अमेरिका के लिए स्टोरेज की जगह में कमी वाली बात बड़ी मुसीबत बन गई.

यहां यह समझना जरूरी है कि तेल के उत्पादन में अचानक बड़ी कटौती या उसे रोक देना काफी मुश्किल फैसला होता है क्योंकि उत्पादन की बहाली एक महंगा और जटिल कदम होता है.

WTI के लिए मई कॉन्ट्रैक्ट्स 21 अप्रैल को एक्सपायर हो रहे हैं. इस डेडलाइन के पास आते ही 20 अप्रैल को कई तेल उत्पादक स्टोरेज की जगह में कमी के बीच किसी भी तरह पहले के स्टोरेज से छुटकारा पाने की कोशिश में दिखे. मगर मांग में भारी कमी की वजह से खरीदार भी पास आते नहीं दिख रहे थे.

ऐसे में माना जा रहा है कि इन उत्पादकों को पहले के स्टोरेज को खाली करने के लिए 40 डॉलर प्रति बैरल चुकाना, तेल को स्टोर करने और प्रोडक्शन बंद करने से कम नुकसान वाला कदम लगा. इसी की नतीजा हुआ कि WTI कच्चे तेल का भाव माइनस में चला गया.

हालांकि कीमतों में इस गिरावट के बाद थोड़ा सुधार आया है. इस बीच तेल उत्पादक उम्मीद लगा रहे हैं कि सोमवार को जो हुआ, वैसा दोबारा न हो. मगर जब तक तेल की मांग में अच्छा उछाल नहीं आता, तब तक ऑयल मार्केट के भविष्य पर कुछ भी कहना जल्दबाजी होगी.

(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)

Published: 
सत्ता से सच बोलने के लिए आप जैसे सहयोगियों की जरूरत होती है
मेंबर बनें
अधिक पढ़ें
×
×