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UP में 'हलाल सर्टिफिकेशन' पर बैन से बवाल, आखिर योगी सरकार के निशाने पर कैसे आया?

Halal Certification से क्या मतलब है? कानून इसे लेकर क्या कहता है? स्टोरी में पढ़ें

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उत्तर प्रदेश (Uttar Pradesh) सरकार ने शनिवार, 18 नवंबर को "हलाल सर्टिफाइड खाद्य पदार्थों के उत्पादन, भंडारण, वितरण और बिक्री" पर पूरे राज्य में प्रतिबंध लगा दिया. खाद्य आयुक्त कार्यालय (Food Commissioner Office) ने आदेश जारी किया, जिसमें "तत्काल प्रतिबंध" लगाने की बात कही गई.

हम इस स्टोरी में आपको बताते हैं कि हलाल क्या है? हलाल सर्टिफिकेशन से क्या मतलब है? कानून इसे लेकर क्या कहता है?और योगी सरकार के निशाने पर ये कैसे आया?

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हलाल क्या है?

इस्लाम धर्म में सिर्फ खान-पान ही नहीं पैसे, लेनदेन, जमीन जायदाद के फैसलों, या कहें कि करीब-करीब जिंदगी गुजारने के तरीकों में हलाल-हराम का जिक्र आता है.

'हलाल' और 'हराम'

भारत में अकसर हलाल शब्द को मीट (मांस, गोश्त) के संदर्भ में प्रयोग किया जाता है लेकिन इसका सामान्य मतलब है- 'जायज' या 'मुनासिब'. इसे आप वैध और अवैध की तरह समझ सकते हैं.

हराम शब्द के जरिए उन चीजों को संबोधित किया जाता है जो इस्लामी मान्यताओं में प्रतिबंधित हैं. उदाहरण के लिए- शराब, पोर्क (सुअर का मांस), सूध-ब्याज, जूआ खेलना, दूसरे के पैसे, जमीन जायदाद पर कब्जा करना, किसी के साथ बिना शादी के अवैध संबंध बनाना, इत्यादी.

भारत में कई लोग हलाल शब्द को सिर्फ जानवरों को मारने के तरीके के रूप में समझते हैं. ऐसे तो इस्लाम में हर जानवर के गोश्त को खाने की इजाजत नहीं है, बल्कि कुछ ही जानवर के गोश्त को खा सकते हैं. लेकिन यहां समझने के लिए हम चिकन और मटन का जिक्र कर रहे हैं. हलाल में चिकन या मटन के लिए जानवर के गर्दन की एक नस धीरे-धीरे काटी जाती है ताकी उसके शरीर का सारा खून बह जाए.

हलाल की बात करें तो कुर्बानी में जानवर का जीवित होना अनिवार्य है. मतलब अगर कोई जानवर कुर्बानी से पहले ही मर गया है, तो उसके गोश्त को खा नहीं सकते हैं. मतलब इस्लीमिक मान्यताओं के मुताबिक बिना कुर्बानी किए, पहले से मरे हुए जानवर का गोश्त खाना जायज नहीं है. (लेकिन कुछ अपवाद भी हैं, जैसे कुछ इस्लामिक स्कूल ऑफ थॉट में बिना कुर्बानी पहले से मरे हुए जानवर का गोश्त सिर्फ भूखमरी कि हालत में जायज है वो भी तब जब खाने को कुछ और मैजूद ही नहीं हो और भूखे मरने का डर हो.)

इस्लाम के अनुसार, जानवर का मीट खाया जा सकता है, लेकिन उसमें खून नहीं होना चाहिए. इसीलिए इस्लाम की मान्यता रखकर मांस बेचने वाले ज्यादातर दुकानदार ये दावा करते हैं कि उसका मीट हलाल है. यहां एक बात और समझना होगा कि हलाल सिर्फ कुर्बानी के तरीके से नहीं बल्कि उसके लिए इस्लामिक दुआ (मंत्र) पढ़ा जाता है. मतलब दुआ के साथ हलाल तरीके से (धीरे-धीरे जानवर को जिबह करना) कुर्बानी हलाल मानी जाती है.

इसके लिए एक और तरीका है जिसे 'झटका' कहा जाता है. ज्यादातर हिंदू और सिख इसे अपनाते हैं. इसमें मान्यता है कि जानवर का सिर एक झटके में धड़ से अलग होना चाहिए. इन्हीं मान्यताओं के चलते 'हलाल' और 'झटका' में भेद अहम हो जाता है.

हलाल सर्टिफाइड होने का क्या मतलब है?

हलाल सर्टिफाइड का मतलब है कि उत्पाद को बनाने में हलाल प्रक्रिया का पालन किया गया है. पहले केवल मांस को हलाल सर्टिफिकेट के साथ बेचा जाता था, लेकिन अब दूसरे उत्पादों को भी हलाल सर्टिफाइड का टैग दिया जाने लगा है.

कई तरह की दवाइयों और कॉस्मेटिक उत्पादों में हलाल सर्टिफाइड लिखा जा रहा है. इसका सर्टिफिकेट उत्पाद बनाने वाली कंपनी ही देती है.

उदाहरण के लिए दवाइयों में खासकर कैप्सूल बनाने में कई कंपनी जिलेटिन का इस्तेमाल करती हैं, जो माना जाता है कि सूअर की चर्बी से बना होता है. लेकिन ऐसा नहीं भी होता है. कई बार मुस्लिम अपनी मान्यता के चलते कैप्सूल खाने से मना करते हैं, इसीलिए हलाल सर्टिफिकेट होने से उस प्रोडक्ट की पहचान हो जाती है कि वो हलाल है या नहीं.

हालांकि, इसमें नहीं लिखा होता कि प्रोडक्ट में मीट है या नहीं. इसका उद्देश्य केवल ये स्पष्ट करना है कि इस्लाम धर्म के अनुयाई उस उत्पाद का प्रयोग कर सकते हैं.

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हलाल सर्टिफिकेट कौन जारी करता है, नियम क्या कहता है?

हलाल सर्टिफिकेट को जारी करने के लिए भारत में कोई आधिकारिक संस्था नहीं है. न ही वैध ठहराने के लिए किसी तरह का कानून है. प्राइवेट कंपनियां ही इसे जारी करती हैं. किसी भी खाद्य उत्पाद या मेडिकल से जुड़ी चीज पर हलाल सर्टिफिकेट जारी करने के लिए कोई सरकारी अथॉरिटी नहीं है.

ड्रग्स एंड कॉस्मेटिक एक्ट 1940 के अनुसार, दवाओं, मेडिकल डिवाइसेस और कॉस्मेटिक प्रोडक्ट्स पर हलाल सर्टिफिकेशन का लेबल लगाना अपराध है. खाद्य उत्पादों के सर्टिफिकेशन का अधिकार फूड सेफ्टी एंड स्टैंडर्ड अथॉरिटी ऑफ इंडिया (FSSAI) के पास है.

हालांकि, भारत के बाहर UAE और मलेशिया जैसे कई देशों में हलाल सर्टिफिकेशन जरूरी है. वहां के मंत्रालय और सरकार इसे मान्यता देते हैं. ये देश अगर बाहर से भी खाद्य उत्पादों का आयात करते हैं तो वो हलाल सर्टिफाइड होना जरूरी है.

इसके लिए ये दूसरे देशों में उन्हीं कंपनियों के साथ कारोबार करते हैं जिनके हलाल सर्टिफिकेट पर उन्हें पूरा भरोसा होता है.

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सरकार के निशाने पर कैसे आया?

देश में इसके पहले कई बार 'हलाल' और 'झटका' पर अलग-अलग मान्यताओं को लेकर छिटपुट विवाद सामने आए हैं, लेकिन उत्तर प्रदेश में योगी सरकार के निशाने पर हलाल सर्टिफाइड प्रोडक्ट 17 नवंबर 2023 को आया.

शैलेन्द्र नाम के एक व्यक्ति ने लखनऊ के हजरतगंज थाने में एक शिकायत दर्ज कराई कि कुछ कंपनियां और एक विशेष वर्ग अपनी बिक्री बढ़ाने के लिए हलाल सर्टिफिकेट जारी कर रहे हैं. शिकायत में इसे बाकी धर्मों की आस्था के खिलाफ बताया गया और कहा गया कि इसे दूसरे खास धर्म के उत्पादों की बिक्री गिराने के लिए किया जा रहा है.

अपनी शिकायत में युवक ने चेन्नई की हलाल इंडिया प्राइवेट लिमिटेड, मुंबई की हलाल काउंसिल ऑफ इंडिया और जमीयत उलेमा महाराष्ट्र, दिल्ली की जमीयत उलेमा-ए-हिंद के साथ-साथ अज्ञात कंपनियों और लोगों को आरोपी बनाया.

इस शिकायत के आधार पर पुलिस ने केस दर्ज कर लिया. इसके अगले ही दिन योगी सरकार ने हलाल सर्टिफाइड प्रोडक्ट्स को राज्य में तत्काल प्रभाव से बैन करने का आदेश जारी कर दिया.

बैन का आदेश जारी होते ही प्रशासन भी एक्शन में आ गया है. खाद्य विभाग की टीम ने मुरादाबाद में KFC में छापेमारी की. इसके अलावा हलाल सर्टिफाइड प्रोडक्ट बेचने वाले मॉल्स, सुपर मार्केट पर भी छापेमारी की गई.

टीम ने मुजफ्फरनगर के मॉल में भी छापेमारी की, जिसमें अनाज के प्रोडक्ट चना, मूंगफली और राजमा पर हलाल सर्टिफिकेशन पाया गया. इन प्रोडक्ट्स को जप्त कर लिया गया.

उत्तर प्रदेश सरकार के मुताबिक हलाल सर्टिफाइड करने से न केवल खाद्य उत्पादों को लेकर दुविधा की स्थिती पैदा होती है, बल्कि ये कानून का उल्लंघन भी है.

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