हाल ही में साउथ कोरिया और न्यूजीलैंड ने नासा के साथ आर्टेमिस समझौते पर डील की है. इस समझौते का उद्देश्य शांति पूर्वक तरीके से स्पेस एक्सप्लोरेशन (Space mining) करना है. इस समय लगभग दर्जन देश Artemis Accords पर डील कर चुके हैं. यह संख्या यह बताती है कि स्पेस रेस में अब कई देश शामिल हो रहे हैं.
पहले जानते हैं आर्टेमिस समझौता क्या है?
नासा अपने आर्टेमिस प्रोग्राम के तहत 2024 तक चंद्रमा में पहले महिला और उसके बाद पुरुष की लैंडिग कराने की बात कर रही है. नासा द्वारा कहा जा रहा है कि उसके इस प्रोग्राम से स्पेस एक्सप्लोरेशन और यूटिलाइजेशन के एक नए युग की शुरुआत होगी. चांद ही नहीं नासा मंगल पर भी इंसान को भेजने की तैयारी कर रहा है. मंगल पर मानव भेजने का मिशन भी नासा के आर्टेमिस प्रोग्राम का हिस्सा है.
नासा के साथ ही कई अन्य देशों के मून और मार्स मिशन पर काम चल रहा है. चूंकि नासा आर्टेमिस प्रोग्राम के तहत काम कर रहा है और उसके कुछ दिशा-निर्देश और नियम-कानून भी हैं. ऐसे में आर्टेमिस प्रोग्राम से Artemis Accords यानी आर्टेमिस समझौता सामने आया.
यह सिविल एक्सप्लोरेशन और चंद्रमा, मंगल के साथ-साथ अन्य खगोलीय वस्तुओं के शांतिपूर्ण उपयोग पर भी ध्यान केंद्रित करता है. यह कोई बाध्यकारी समझौता नहीं है.
नासा के अनुसार यह समझौता अंतरिक्ष में एक्सप्लोरेशन, साइंस और कमर्शियल एक्टीविटीज के लिए एक स्पष्ट, सुरक्षित और पारदर्शी माहौल बनाने का काम करेगा.
इस समझौते का मुख्य उद्देश्य विभिन्न देशों के और निजी क्षेत्रों के साथ मिलकर स्पेस मिशन का संचालन करने, आउटर स्पेस का उपयोग करने और स्पेस एक्सप्लोरेशन को नियंत्रित करने के लिए सिद्धांत तय करना है. नासा के अनुसार आर्टेमिस समझौता एक साझा दृष्टिकोण है. इसके सिद्धांत 1967 की आउटर ट्रीटी पर आधारित हैं.
क्या है 1967 की आउटर ट्रीटी?
आउटर स्पेस यानी बाह्य अंतरिक्ष में किसी भी गतिविधि को नियंत्रित करने के लिए 1967 में आउटर स्पेस ट्रीटी हुई थी. शीत युद्ध के दौर की इस संधि के तहत अंतरिक्ष के संसाधनों का कोई देश एकतरफा दोहन नहीं कर सकता है. यह संधि सदस्य देशों को शांतिपूर्ण उद्देश्यों के लिये बाहरी अंतरिक्ष का प्रयोग करने की इजाजत देती है. यह संधि यून यानी संयुक्त राष्ट्र द्वारा लागू की गई थी.
50 साल बाद स्पेस एक्सप्लोरेशन के लिए समझौता
वर्ष 2017 में आउटर स्पेस ट्रीटी के 50 वर्ष पूरे हुए है. तब से लेकर कोई भी ऐसी बड़ी संधि नहीं आई है जो बहुत ही खास हो. ऐसे में 50 साल बाद एक बार फिर अंतरिक्ष में शांतिपूर्ण तरीके से काम करने के लिए नया और बड़ा समझौता देखने को मिल रहा है. इस बार यह संधि यूएन नहीं बल्कि नासा की ओर से लायी गई है. नासा ने 2020 में Artemis Accords को स्थापित किया था.
21वीं सदी में दुनिया के कई देश अंतरिक्ष में रेस लगा रहे हैं तो कुछ रेस में शामिल हो रहे हैं. यही वजह है कि नासा के आर्टेमिस समझौते यानी Artemis Accords से अब तक 11 देश जुड़ चुके हैं. 31 मई को न्यूजीलैंड द्वारा इस पर हस्ताक्षर किए गए है.
इस समझौते में न्यूजीलैंड के अलावा ऑस्ट्रेलिया, कनाडा, इटली, जापान, लक्जमबर्ग, रिपब्लिक ऑफ कोरिया (साउथ कोरिया), ब्रिटेन, यूएई, यूक्रेन और यूएस जैसे देश जुड़ चुके हैं. ब्राजील भी इससे जल्द ही जुड़ सकता है.
क्या फायदे का सौदा है Artemis Accords?
बिजनेस स्टैंडर्ड की रिपोर्ट के मुताबिक आर्टेमिस मिशन में शामिल होने के लिए इस समझौता पर हस्ताक्षर करना जरूरी है. चूंकि अन्य देशों की स्पेस एजेंसी की तुलना में नासा का आकार और काम दोनों बड़ा है ऐसे में जो एयरस्पेस एजेंसी इस समझौते से जुड़ेगी उनको बड़ा कमर्शिलय लाभ हो सकता है क्योंकि वे ग्लोबल सप्लाई चेन का हिस्सा बन जाएंगी. इसके साथ ही वे हर जगह से प्राप्त होने वाले साइंटिफिक डेटा को भी एक्सेस कर सकेंगी जो उनके लिए फायदेमंद होगा.
भारत की स्थिति?
रूस और चीन की तरह भारत ने भी अभी तक इस समझौते में हस्ताक्षर नहीं किए है. इससे न जुड़ने का एक अहम कारण यह हो सकता है कि ये देश कुछ खास पहलुओं पर स्पेस माइनिंग कर रहे हैं.
भारत के स्पेस प्रोग्राम में रूस और यूक्रेन का संबंध अहम है. रूस में अंतरिक्ष यात्रियों का प्रशिक्षण होता है और यूक्रेन से क्रायोजेनिक इंजन प्रौद्योगिकी में मदद मिलती है. हालांकि भारत ने चंद्रयान और मंगलयान के समय नासा के साथ भी मिलकर काम किया है. लेकिन अब भारत ने भी प्राइवेट इंडस्ट्री के लिए एयरोस्पेस खोल दिया है ऐसे में इस समझौते पर हस्ताक्षर करना फायदेमंद हो सकता है.
अंतरिक्ष यात्रियों को चांद पर भेजने के अपने आर्टेमिस मिशन के लिए नासा ने अंतरिक्ष यान बनाने के लिए एलन मस्क के स्पेस एक्स को चुना है.
क्या है स्पेस एक्सप्लोरेशन?
2018 में अमेरिका के टेक्सास के सीनेटर टेड क्रूज ने नासा का बजट बढ़ाने को लेकर बिल साइन होने के बाद दावा किया था कि दुनिया का पहला ट्रिलिनियर यानी खरबपति अंतरिक्ष की संपत्ति से बनेगा. यही वजह है कि कई देश स्पेस एस्प्लोरेशन और स्पेस माइनिंग में जोर-शोर से हिस्सा ले रहे हैं. इसमें न केवल देश बल्कि दिग्गज उद्योगपति भी शामिल हैं.
स्पेस एस्प्लोरेशन और स्पेस माइनिंग काफी कुछ हद मिलते-जुलते हैं. ज्ञान-विज्ञान के लिहाज से अंतरिक्ष में अपार संभावनाएं छिपी हुई हैं. स्पेस से जुड़ी रिसर्च ने कम्युनिकेशन, एंटरटेनमेंट, मेडिसिन, पृथ्वी विज्ञान, मौसम का पूर्वानुमान, रीन्यूएबल एनर्जी, रोबोटिक्स और कंम्यूटराइजेशन जैसे क्षेत्रों में क्रांति ला दी है.
वैज्ञानिकों के अनुसार चांद और पृथवी के बीच कम से कम 16 हजार उल्कापिंड हैं जिन पर दुर्लभ खनिज होने का अनुमान है. वैज्ञानिक इन संसाधनों के दोहन की संभावना कई बार जता चुके हैं. वैज्ञानिकों ने जैव आनुवांशिक जानकारी के संरक्षण के तरीके के रूप में अंतरिक्ष में संग्रहीत सभी प्रजातियों के जीनोम की एक डिजिटल लाइब्रेरी बनाने का भी सुझाव दिया है.
अंतरिक्ष में विभिन्न तरह के खनिज, गैस और रसायन की भारी संभावना है. इनमें से कुछ खनिज और रसायन दुर्लभ हैं. इसका विस्तार से पता तभी चलेगा जब वहां ठीक ढंग से एक्सप्लोरेशन होगा.
ऐसे में अंतरिक्ष में मौजूद चांद, मंगल, धूमकेतु और क्षुद्रगहों में खोजने के लिए बहुत है. जो सबसे पहले खोजेगा उसे सबसे ज्यादा लाभ हो सकता है. इसीलिए स्पेस एक्सप्लोरेशन और स्पेस माइनिंग के लिए देश और कंपनियां तेजी से आगे आ रही हैं.
बीबीसी की रिपोर्ट के अनुसार लक्जमबर्ग ने फरवरी 2016 में स्पेस रिसोर्स लॉ यानी खगोलीय संसाधन कानून बनाया था. इसके तहत लक्जमबर्ग की सरकार ने 20 करोड़ यूरो से एक फंड बनाकर स्पेस रिसर्च का काम कर रही कंपनियों को मदद देने का फैसला किया. साथ ही अंतरिक्ष से जुड़े कानूनों में भी काफी ढील दी और अंतरिक्ष में कारोबार करने वाली कंपनियों को भारी टैक्स छूट भी दी गई. यही वजह है कि यूरोप के छोटे से देश लक्जमबर्ग में 10 से अधिक स्पेस माइनिंग कंपनियां काम कर रही हैं. ये कंपनियां चांद पर ही नहीं बल्कि चांद और धरती के बीच चक्कर लगा रहे उल्कापिंडो में भी दुर्लभ खनिज तलाश रही हैं.
एक रिपोर्ट के अनुसार लैरी पेज, एरिक श्मिट और हॉलीवुड के बड़े फिल्म निर्माता जेम्स कैमरोन ने Planetary Resources Inc. में खूब सारा पैसा लगाया है. ये कंपनी स्पेस माइनिंग के लिए बनाई गई है जिसका उद्देश्य उपग्रहों से बहुमूल्य पदार्थों का खनन कर उन्हें पृथ्वी पर लाना है.
दुर्लभ खोज से लेकर मानव बस्ती बसाने तक का इरादा
अंतरिक्ष में अब दुर्लभ खनिज का पता लगाने के साथ-साथ मानव बस्ती बसाने की बात भी कही जा रही है. आईस्पेस कंपनी के सीईओ ताकेशी हाकामाडा के अनुसार उनकी कंपनी का इरादा चांद पर इंसानों को बसाने का है. बीबीसी के अनुसार उन्होंने कहा था कि “हम चांद से सामान ढोकर लाने की अपनी क्षमता दुनिया को दिखाएंगे. अगर हम चांद पर पानी का स्रोत पा गए, तो इससे चांद में एक नए उद्योग की बुनियाद पड़ जाएगी. अगर चांद पर पानी मिल गया, तो ये इंसान के लिए बहुत बड़ी उपलब्धि होगी. इसकी वजह से इंसान लंबे वक़्त तक धरती से दूर कहीं और वक़्त बिता सकेगा.”
मई 2020 में ह्यूमन एंड रोबोटिक एक्सपोलेरेशन के लिए यूरोपियन स्पेस एजेंसी ESA ने दो यूरोपीय इंडस्ट्री ग्रुप को लूनर सैटेलाइट सिस्टम पर स्टडी के लिए कॉन्ट्रैक्ट जारी किया है. ये दोनों कंपनियां संचार और नेविगेशन की सर्विस प्रदान करेंगी. इसके जरिए चांद के चारों ओर एक टेलिकम्युनिकेशन नेटवर्क बनाया जाएगा. इन दोनों कंपनियों को एजेंसी के ‘मूनलाइट मिशन' इनिशिएटिव का अध्ययन करना है.
रेस में छोटे देश और प्राइवेट कंपनियां भी
1967 में जब आउटर स्पेस ट्रीटी आई थी तब USSR यानी अमेरिका और रूस का ही अंतरिक्ष में दबदबा था. उसके बाद यूरोपियन स्पेस एजेंसी ESA और फ्रांस ने अपनी अलग पहचान बनाई. वहीं चीन अपना खुद का स्पेस स्टेशन बनाते हुए चांद और मंगल तक पहुंच गया. इसके अलावा उसने सेटेलाइट को मार गिराने की क्षमता भी हासिल कर ली. लेकिन अब जापान, भारत, यूएई जैसे देश भी अंतरिक्ष को खंगालने में जुटे हुए हैं. अब न केवल देश बल्कि स्पेस एक्स, वर्जिन और ब्लू ओरिजिन जैसी बड़ी प्राइवेट कंपनियां भी स्पेस में खोजबीन करने में जुट गई हैं.
स्पेस एक्स के मालिक एलन मस्क भी चांद और मंगल पर बस्ती बसाकर इंसानों को स्थायी तौर पर बसने की सुविधा देना चाहते हैं.
वहीं वर्जिन कंपनी के रिचर्ड ब्रैनसन और ब्लू ओरिजिन के जेफ बेजोस जीरो ग्रैविटी ट्रिप के लिए पर्यटकों को तैयार करना चाहते हैं.
अंतरिक्ष के अन्य प्रमुख नियम और संधि
वर्ष 1979 में सोवियत संघ की पहल के बाद मून एग्रीमेंट Moon Agreement पर कई देशों द्वारा हस्ताक्षर किये गए थे. यह समझौता अन्य राष्ट्रों की अनुमति के बिना सभी खगोल पिंडों की जांच-पड़ताल या उनके प्रयोग को प्रतिबंधित करता है.
संयुक्त राष्ट्र महासभा द्वारा वर्ष 1967 में ‘रेस्क्यू एग्रीमेंट’ Rescue Agreement को अपनाया गया था. इस समझौते के अनुसार, सभी देशों का यह दायित्त्व है कि वे सभी संकटग्रस्त अंतरिक्ष यात्रियों को बचाने और उन्हें अपने देश वापस लाने का हरसंभव प्रयास करें.
लायबिलिटी कन्वेंशन Liability Convention को यूएन महासभा द्वारा वर्ष 1971 में अपनाया गया था. इसके अनुसार यदि किसी देश के स्पेस ऑब्जेक्ट के कारण अंतरिक्ष में किसी अन्य देश को कोई नुकसान होता है तो उसके मुआवजे का भुगतान करने के लिये स्पेस ऑब्जेक्ट से संबंधित देश ही उत्तरदायी होगा.
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