संसद के शीतकालीन सत्र में केंद्र सरकार ने ये जानकारी दी कि देश की 53% महिलाएं एनिमिक हैं यानी उनके शरीर में खून की कमी है. नेशनल हेल्थ सर्वे से लगातार ये बात निकलकर आ रही है कि महिलाओं के खानपान और जीवन शैली में ऐसा कुछ जरूर है, जिसकी वजह से ये समस्या बनी हुई है.
महिलाओं में एनिमिया का मतलब ये है कि वे काम के दौरान जल्दी थकान महसूस करती होंगी और तमाम अन्य बीमारियों की शिकार भी बनती होंगी. इसके अलावा बच्चों को जन्म देते समय होने वाली दिक्कतें और मौत की घटनाएं भी ज्यादा होती होंगी.
इसकी वजह से शरीर पीला पड़ जाता है, सांस लेने में तकलीफ हो सकती है और चक्कर आ सकते हैं. सिर में दर्द भी इसका एक लक्षण है.
एनिमिया या रक्ताल्पता का मतलब है कि किसी के खून में पर्याप्त लाल रक्त कोशिकाएं यानी रेड ब्लड सेल्स नहीं हैं. लाल रक्त कोशिकाओं में हीमोग्लोबिन होता है, जिसका काम ऑक्सीजन को शरीर के तमाम हिस्सों में ले जाना होता है.
ये रक्त कोशिकाएं हड्डियों के अंदर मौजूद अस्थि मज्जा यानी बोन मैरो में बनती हैं. इन्हें बनने के लिए आयरन, विटामिन बी12 और फोलेट की जरूरत होती है. ये सब हमारे शरीर में खाने-पीने की चीजों के जरिए पहुंचते हैं. इनकी कमी से ही लाल रक्त कण कम बनते हैं, जो एनिमिया की वजह बनता है. एनिमिया की सबसे आम वजह शरीर में आयरन यानी लौह तत्व की कमी है.
इसके अलावा खासकर महिलाओं में गर्भ के दौरान और पीरियड्स के दौरान ज्यादा खून बहने की वजह से भी एनिमिया होता है. लेकिन खानपान से इसकी भरपाई हो सकती है.
एनिमिया की जो सबसे बड़ी वजह है, यानी खान-पान में आयरन की कमी, उसे अपने रोजमर्रा की खाने-पीने की चीजों से, बहुत सहजता से पूरा किया जा सकता है और इसके सप्लिमेंट भी बेहद सस्ते और आसानी से उपलब्ध हैं.
ऐसे में सवाल उठता है कि भारत की 53% महिलाएं एनिमिक क्यों हैं?
इसे समझने के लिए उस इलाके की स्टडी करते हैं, जहां सामान्य समझदारी के हिसाब से ये समस्या नहीं होनी चाहिए. चंडीगढ़ देश के सबसे समृद्ध इलाकों में है.
साल 2016 के आंकड़ों के मुताबिक, चंडीगढ़ में प्रति व्यक्ति आय 2.42 लाख रुपये सालाना है. ये राष्ट्रीय औसत से ढाई गुना ज्यादा है. प्रति व्यक्ति आमदनी के हिसाब से भारत में सिर्फ दिल्ली ही चंडीगढ़ से आगे है. प्रति व्यक्ति औसत आय से हालांकि आय के मामले में असमानता का पता नहीं चलता, लेकिन कुल मिलाकर ये कहा जा सकता है कि चंडीगढ़ भारतीय औसत के हिसाब से एक अमीर शहर है. चंडीगढ़ पढ़ा-लिखा शहर भी है. यहां पुरुषों में साक्षरता दर लगभग 90 फीसदी और महिलाओं की साक्षरता दर लगभग 82 फीसदी है.
इस मामले में भी चंडीगढ़ देश के औसत से बेहतर है. ये माना जा सकता है कि पढ़े-लिखे समाज में पौष्टिक खान-पान को लेकर जानकारी का स्तर बेहतर होगा.
ऐसे में सवाल उठता है कि चंडीगढ़ की 75.9 फीसदी यानी हर चार में तीन महिलाएं एनिमिक यानी खून की कमी की मरीज क्यों हैं? चंडीगढ़ में पांच साल से कम उम्र के 73 फीसदी बच्चे एनिमिक क्यों हैं? इसी तरह अपेक्षाकृत खाते-पीते प्रदेश हरियाणा में 61.7 फीसदी महिलाएं खून की कमी की शिकार हैं. गुजरात और दिल्ली में भी राष्ट्रीय औसत से ज्यादा महिलाएं एनिमिया की मरीज हैं. सबसे बुरा हाल केंद्र शासित प्रदेश दादर और नगर हवेली का है, जहां 79.5 फीसदी महिलाएं एनिमिक हैं.
वहीं, पूर्वोत्तर के राज्यों, गोवा, जम्मू-कश्मीर, केरल, कर्नाटक, उत्तराखंड उन राज्यों में हैं, जहां महिलाओं में एनिमिया की समस्या कम है. चंडीगढ़ और हरियाणा से बेहतर हाल छत्तीसगढ़, बिहार और झारखंड की महिलाओं का है.
इससे एक बात तो साफ दिखती है कि महिलाओं में खून की कमी का संबंध गरीबी या अशिक्षा के अलावा और चीजों से भी है.
इस बारे में विशेष तौर पर स्टडी कराई जानी चाहिए कि ऐसा क्यों है. क्योंकि इसे समझे बगैर देश के बड़े हिस्सों में महिलाओं की इस गंभीर समस्या का हल नहीं हो सकता है. ये कहना काफी नहीं है कि महिलाओं में पोषक तत्वों की कमी दूर करने के लिए कई योजनाएं हैं और इन पर हर साल करोड़ों रुपए खर्च किए जाते हैं.
ये सही है कि भारत में महिलाओं और बच्चों में कुपोषण खत्म करने की कई योजनाएं हैं. खासकर आंगनबाड़ी कार्यक्रम के तहत पोषाहार उपलब्ध कराने पर 2016-17 में 6,800 करोड़ रुपये खर्च किए गए. इसके अलावा प्रधानमंत्री मातृवंदन योजना है और नेशनल न्यूट्रिशन मिशन तो है ही. ये जरूरी कार्यक्रम हैं और इनका फायदा भी है.
लेकिन कुछ खास इलाके में महिलाओं का एनिमिक होना एक विशिष्ट समस्या है और इसका अलग से समाधान ढूंढने की जरूरत है. इसके कई कारण हो सकते हैं और असली तथ्य तो स्टडी के बाद ही सामने आ सकते हैं. स्टडी करते समय कुछ संकेतों और हायपोथिसिस को ध्यान में रखा जा सकता है.
मिसाल के तौर पर, महिलाओं का ज्यादा एनिमिक होना कहीं ये तो नहीं दिखाता कि कुछ इलाकों में महिलाओं के साथ समानता का व्यवहार नहीं होता और उन इलाकों में महिलाओं और खासकर बच्चियों के खान-पान में भेदभाव किया जाता है.
ये गौर करने की बात है कि जिन इलाकों में महिलाएं एनिमिया की शिकार ज्यादा हैं, वे संयोग से वही इलाके हैं, जहां जेंडर (सेक्स) रेशियो बेहद खराब है. मिसाल के तौर पर, चंडीगढ़, दिल्ली, हरियाणा और दादर और नगर हवेली में प्रति 1,000 पुरुष पर क्रमश: 818, 868, 879 और 774 महिलाएं हैं, जो राष्ट्रीय औसत से काफी कम है.
पूर्वोत्तर और दक्षिण भारतीय राज्यों में जेंडर रेशियो अच्छा है और महिलाएं एनिमिक भी कम हैं. मुमकिन है कि जिन इलाकों में बच्चियों को गर्भ में मारा जा रहा है, वे वही इलाके हैं, जहां बच्चियों और महिलाओं को पौष्टिक खाना नहीं दिया जाता या खानपान के मामले में उनसे भेदभाव होता है. हो सकता है कि इन इलाकों में महिलाएं परिवार में सबके खाने के बाद बचा-खुचा या बासी खाना खाती हैं और इसे महिलाओं के त्याग का नाम दे दिया जाता हो.
जेंडर रेशियो और एनिमिया के संबंध को स्थापित करने के लिए और रिसर्च की जरूरत है. ये एक ऐसी समस्या है, जिसका कोई तात्कालिक समाधान भी मुमकिन नहीं है. इसके अलावा मुमकिन है कि खान-पान से जुड़े सांस्कृतिक-धार्मिक पहलुओं का भी एनिमिया से कोई संबंध हो.
जिन इलाकों में महिलाओं में एनिमिया की समस्या है, वे इलाके आम तौर पर शाकाहारी ज्यादा हैं. मिसाल के तौर रजिस्ट्रार जनरल ऑफ इंडिया के राष्ट्रीय सर्वे के मुताबिक, हरियाणा में 70 फीसदी से ज्यादा महिलाएं शाकाहारी हैं, जबकि गुजरात में 61 फीसदी लोग शाकाहारी हैं.
शाकाहार और एनिमिया में संबंध है या नहीं, ये भी रिसर्च का विषय होना चाहिए. अगर ऐसा कोई संबंध है तो जिन इलाकों में शाकाहार का ज्यादा प्रचलन है, वहां आयरन सप्लिमेंट उपलब्ध कराने के लिए सरकार को पहल करनी चाहिए.
ये तथ्य है कि मांस, मछली, अंडा आदि आयरन के अच्छे सोर्स हैं. लेकिन खाने की आदत एक सांस्कृतिक-धार्मिक मामला है और इसे बदलना आसान नहीं है. इसलिए इसके विकल्पों पर विचार करना चाहिए. कई शाकाहारी चीजों, जैसे हरी पत्तेदार सब्जियों, बिना छिलका उतारा अनाज, दाल और ड्राई फ्रूट्स में भी आयरन पर्याप्त होता है.
बहरहाल, सबसे पहले तो जरूरी है कि समाज और परिवार महिलाओं में एनिमिया को एक गंभीर समस्या के तौर पर ले. और इससे भी जरूरी है कि महिलाएं खुद समझें कि एनिमिया एक गंभीर समस्या है, जिनका उनके जीवन में बहुत बुरा असर हो रहा है. खान-पान में आयरन बहुलता वाली चीजों को शामिल करके वे खुद भी इस समस्या से छुटकारा पाने की दिशा में महत्वपूर्ण कदम उठा सकती हैं.
(लेखिका भारतीय सूचना सेवा में अधिकारी हैं. इस आर्टिकल में छपे विचार उनके अपने हैं. इसमें क्विंट की सहमति होना जरूरी नहीं है.)
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