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एम्स में मनाया गया पहला वार्षिक शोध दिवस, खास हैं ये चार रिसर्च

ये रिसर्च मेडिकल फील्ड में बड़ा बदलाव ला सकते हैं.

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एम्स, दिल्ली ने 26 मार्च, 2019 को अपना पहला वार्षिक शोध दिवस मनाया, जिसमें कई रिसर्च पेपर पेश किए गए. ये रिसर्च मेडिकल फील्ड में बड़ा बदलाव ला सकते हैं, जानिए ऐसे ही चार मेडिकल रिसर्च के बारे में.

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1. 30 मिनट में ब्रेन टीबी की जांच रिपोर्ट

टीबी की जांच रिपोर्ट आने में दो से आठ हफ्तों का समय लगता है. लेकिन एम्स और ट्रांसलेशनल स्वास्थ्य विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी संस्थान (THSTI) के रिसर्चर्स ने एक ऐसी विधि तैयार की है, जिससे फेफड़ों और आसपास की झिल्ली में टीबी और दिमाग को प्रभावित करने वाले टीबी की जांच रिपोर्ट सिर्फ 30 मिनट में मिल जाएगी.

एम्स में डिपार्टमेंट ऑफ बायोटेक्नोलॉजी की रिसर्चर डॉ जया त्यागी और THSTI के डॉ तरुण कुमार शर्मा ने इसके लिए एक टेस्टिंग मेथड तैयार किया है.

2. योग के जरिए ग्लूकोमा का इलाज

नियम से योग आंखों की बीमारी ग्लूकोमा या काला मोतिया का इलाज कर सकता है. इंट्राओकुलर दबाव (आंखों का दबाव) कम करना ग्लूकोमा के मरीजों के लिए एकमात्र उपचार है. एम्स की प्रोफेसर रीमा दादा और तनुज दादा के शोध के मुताबिक योग से आंख का दबाव कम करने में मदद मिलती है.

डॉ तनुज दादा के मुताबिक इस स्टडी के तहत ग्लूकोमा के 90 मरीजों को दो ग्रुप में बांटा गया. एक ग्रुप ने ग्लूकोमा की दवाइयों के साथ एक योग ट्रेनर की निगरानी में 21 से अधिक दिनों तक हर सुबह 60 मिनट तक ध्यान लगाया और प्राणायाम किया.

वहीं दूसरे ग्रुप ने सिर्फ दवाइयां ही लीं. तीन हफ्ते के बाद ध्यान लगाने वाले ग्रुप में इंट्राओकुलर दबाव में कमी देखी गई.

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3. हार्ट के लिए थ्री-डी चश्मा

हार्ट सर्जरी से पहले उसे सीटी स्कैन के जरिए देखा जाता है. कई बार दिल के अंदर के हिस्से की स्पष्ट तस्वीरें नहीं मिल पाती. हृदय रोग विभाग के एसोसिएट प्रोफेसर डॉ सौरभ गुप्ता ने बताया कि अब सिर्फ 70 रुपए के थ्री-डी चश्मे को सॉफ्टवेयर में लगाकर दिल के अंदर का हिस्सा थ्री-डी तस्वीर में देख सकते हैं. इस तकनीक से 16 साल बच्ची के दिल का छेद बिना सर्जरी के ठीक कर दिया गया.

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4. स्पाइनल सर्जरी में 3D प्रिंटिंग

रीढ़ की हड्डी झुकने की स्कोलियोसिस बीमारी चलने-फिरने के अलावा फेफड़ों और दिल को भी प्रभावित करती है. इसकी जटिल सर्जरी में लापरवाही जानलेवा हो सकती है. एम्स के स्पाइन रोग विशेषज्ञ डॉ भावुक गर्ग ने थ्री-डी प्रिंटिंग के जरिए मॉडल बनाकर सर्जरी का तरीका निकाला है जिससे स्क्रू बिल्कुल सही जगह ही जाकर लगता है. इस सर्जरी में दो से तीन घंटे कम समय लगता है.

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