आयुर्वेद में अल्जाइमर रोग को 'मानस रोग व्याधि' यानी मानसिक रोग के अंतर्गत चिन्हित किया गया है. ये रोग ज्यादातर बढ़ती उम्र में होता है, जो मस्तिष्क की कार्यप्रणाली और क्षमता को प्रभावित करता है.
अल्जाइमर रोग का सबसे बड़ा लक्षण भूलने की प्रवृति है, लेकिन याददाश्त जाने के साथ-साथ रोगी के व्यवहार और व्यक्तित्व में भी परिवर्तन हो जाता है.
ज्यादातर मामलों में रोगी खुद या फिर उसके रिश्तेदार या दोस्त इसकी सूचना चिकित्सक को देकर परामर्श लेते हैं. तब चिकित्सक गहन निरीक्षण के बाद निष्कर्ष या रोग के निदान के अंतिम निर्णय पर पहुंचता है.
लेकिन अफसोस की बात है कि विज्ञान और प्रौद्योगिकी में भारी प्रगति के बावजूद अल्जाइमर रोग का कोई सटीक उपचार अब तक मौजूद नहीं है. बाजार में जो आधुनिक दवाइयां हैं, वे इस रोग के निदान में या उसे कम करने में बहुत कम प्रभावी साबित हुई हैं.
आयुर्वेद में अल्जाइमर का उपचार
दूसरी तरफ आयुर्वेद में अल्जाइमर रोग के प्रबंधन को लेकर कई तरह की औषधियां और थेरेपी हैं, जिनके बारे में दावा किया जाता है कि ये रोग को ठीक कर सकती हैं या फिर उसके असर को कम कर सकती हैं.
इनमें अश्वगंधा, ब्राह्मी, शंखपुष्पी, ज्योतिष्मती, जटामांसी प्रमुख हैं, जिनका उल्लेख आयुर्वेद के प्राचीन ग्रंथों में भी मिलता है.
इसके अलावा आयुर्वेदिक पौधों से बने सैंकड़ों ऐसे और प्रोडक्ट हैं, जिनका क्लिनिकल ट्रायल अब भी चल रहा है.
आयुर्वेदिक फार्माकोपिया में ऊपर बताई गई सभी दवाइयां 'मेध्य द्रव्य' के अंतर्गत लिस्टेड हैं, जो अल्जाइमर जैसे न्यूरोलॉजिकल विकारों में बेहद प्रभावी मानी जाती हैं.
हालांकि ये हर्बल दवाइयां कैसे काम करती हैं, उस पर बड़े क्लिनिकल ट्रायल होना अभी बाकी हैं, लेकिन इसमें कोई शक नहीं कि इनमें टैनिन, स्टेरोल्स, पॉलीफेनोल, फ्लेवोनॉइड पाए जाते हैं, जिनमें एंटी-इंफ्लेमेटरी, एंटी-कोलीनस्टेरेज और एंटीऑक्सिडेंट प्रभाव मौजूद होते हैं.
इन सभी पौधों में अल्जामाइर रोग को रिवर्स करने की क्षमता होने का दावा किया गया है.
अश्वगंधा
अश्वगंधा एक चमत्कारी औषधि है. इसका उपयोग अमूमन नसों में आराम पहुंचाने या फिर कामोत्तेजक दवा के रूप में किया जाता है. इसके अलावा शारीरिक और मानसिक थकान को दूर करने में भी यह खासा प्रभावी है. दरअसल ये सेंट्रल नर्वस सिस्टम/केंद्रीय तंत्रिका तंत्र पर एक शांत प्रभाव लाता है और अल्जाइमर के प्रभाव को कम करने मददगार साबित होता है.
ब्राह्मी
ब्राह्मी भी नसों को आराम देने वाला टॉनिक (तंत्रिका टॉनिक) है, जो मिर्गी, अनिद्रा के खिलाफ काम करता है.
शंखपुष्पी, जटामांसी और ज्योतिष्मती
शंखपुष्पी, जटामांसी और ज्योतिष्मती के पौधों का उपयोग आयुर्वेद में सदियों से चिकित्सकों द्वारा मानसिक तनाव कम करने, कार्यक्षमता में सुधार और रोगियों में थकान कम करने के उद्देश्य से किया जाता रहा है.
पंचकर्म थेरेपी
आयुर्वेदिक दवाइयों के अलावा आयुर्वेद की पंचकर्म थेरेपी भी अल्जाइमर रोग में बहुत कारगर साबित होती है. खासकर 'शिरोधारा' और 'नस्या' बेहद प्रभावी साबित होते हैं.
इनमें औषधीय तेल और घी द्वारा अलग-अलग प्रक्रियाओं से थेरेपी की जाती है, जिससे काफी आराम मिलता है और मानसिक अवसाद खत्म होता है.
आयुर्वेदिक औषधियां आयुर्वेद के मूल सिद्धांत के तहत अल्जाइमर रोग के इलाज का एक महत्वपूर्ण घटक हैं, जो 'आहार-विहार-औषध' चिकित्सा के सिद्धांत या बेहतर आहार, जीवन शैली और औषधीय उपचार के रूप में जाना जाता है. आयुर्वेद के ये तीन महत्वपूर्ण स्तंभ रोगियों को रोगों से लड़ने के लिए मजबूत बनाता है.
अल्जाइमर के रोगियों को केवल ताजा, गर्म और सुपाच्य भोजन ही करना चाहिए, जिससे स्वास्थ्य संबंधित दूसरी समस्याओं को काफी हद तक रोका जा सकता है.
अल्जाइमर से बचाव
अगर आप अपने स्वास्थ्य को लेकर जागरूक हैं और चाहते हैं कि कभी अल्जाइमर रोग हो ही न तो आपको योग, प्राणायाम या श्वास संबंधी व्यायाम नियमित रूप से करना चाहिए.
धूम्रपान और शराब के सेवन से भी बचना चाहिए.
अल्जाइमर रोग के मैनेजमेंट में दवाएं, आहार और जीवनशैली महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं, लेकिन परिवार के सदस्यों और करीबी दोस्तों का साथ भी बेहद जरूरी है. नैतिक समर्थन रोगी को इस रोग से लड़ने और इससे उबरने की शक्ति देता है.
[डॉ भूपेश वशिष्ठ निरोग स्ट्रीट के एसिस्टेंट वाइस प्रेसिडेंट (AVP) हैं.]
(नोट: ये आर्टिकल आपकी सामान्य जानकारी के लिए है. किसी भी नए उपचार की शुरुआत से पहले हमेशा प्रोफेशनल हेल्थकेयर प्रोवाइडर से सलाह लें. )
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