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क्या प्रदूषण से स्पर्म क्वालिटी पर पड़ रहा है असर ? 

एयर पोलुशन, खासकर बारीक कण, स्पर्म क्वालिटी पर असर डाल सकते हैं और पुरुषों में नपुंसकता उत्पन्न कर सकते हैं

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स्पर्म क्वालिटी में गिरावट के लिए एयर पॉल्यूशन को जिम्मेदार माना जा रहा है. हालांकि स्टडी में इस बात की पूरी तरह पुष्टि नहीं हो सकी है कि इसके लिए सिर्फ यही  जिम्मेदार है. 

एयर पॉल्यूशन खास कर हवा में बारीक धूल कण और जहरीली गैस स्पर्म क्वालिटी पर स्पर्म क्वालिटी पर असर डाल सकती है. इससे पुरुषों में नपुंसकता पैदा हो सकती है. यह चेतावनी एक स्टडी में दी गई है.

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स्पर्म क्वालिटी में गिरावट के लिए पर्यावरण में केमिकल्स की मौजूदगी को संभावित रूप से जिम्मेदार माना जा रहा है, लेकिन अभी यह पक्का नहीं कहा जा सकता क्या इसके लिए हवा की खराब गुणवत्ता भी जिम्मेदार है.

हांगकांग की चाइनीज यूनिवर्सिटी के रिसर्चर्स ने ताइवान में 15 से 49 साल की आयु वर्ग के 6,500 पुरुषों पर बारीक कणों (पीएम 2.5) की मौजूदगी में लंबे समय तक और कम समय तक रहने पर स्टडी की है.

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साल 2001 से 2014 तक चले इस स्टैंडर्ड मेडिकल इक्जामिनेशन के दौरान इसमें हिस्सा ले रहे पुरुषों की स्पर्म क्वालिटी की जांच की गई. स्टडी के तहत तीन महीने तक हर पुरुष के घर पर पीएम 2.5 का स्तर मापा गया, इतना वक्त इसलिए क्योंकि स्पर्म के बनने में इतना ही समय लगता है. और औसतन दो साल के दौरान नए गणितीय फार्मूले व नासा सेटेलाइट डाटा के साथ रिसर्च किया गया.

स्टडी में पीएम 2.5 के असर और स्पर्म के असामान्य आकार में सीधा संबंध साबित हुआ. दो साल के दौरान बारीक कणों की हर पांच माइक्रोग्राम प्रति घनमीटर बढ़ोत्तरी से सामान्य स्पर्म आकार/आयाम में 1.29 फीसद की गिरावट आई.

सिगरेट, शराब, उम्र या ओवरवेट जैसे असरदार कारकों के चलते स्पर्म साइज के सामान्य आकार और आयाम में 10 फीसद के बदलाव से नपुंसकता का खतरा 26 फीसद तक बढ़ जाता है.

हालांकि रिसर्च करने वालों का कहना है कि वैसे इससे स्पर्म की संख्या में बढ़ोतरी भी हुई, जो कि संभवतः नुकसानदायक असर की भरपाई के लिए सप्लीमेंट मैकेनिज्म के कारण हुआ.

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ऐसे ही नतीजे पीएम 2.5 के बीच तीन महीने रहने पर भी सामने आए. यह एक स्टडी के नतीजे हैं, इसलिए कारण और प्रभाव के बारे में निश्चित रूप से नहीं कहा जा सकता है.

हांगकांग में चाइनीज यूनिवर्सिटी के जियांग क्वैन लाओ का कहना है कि

“हालांकि प्रभाव के आकलन बहुत सीमित हैं और क्लीनिकल सेटअप में इनका महत्व बहुत मामूली हो सकता है, लेकिन यह महत्वपूर्ण सार्वजनिक स्वास्थ्य की समस्या है.” लाओ कहते हैं कि “वायु प्रदूषण के सर्वव्यापी खतरे को देखते हुए स्पर्म पर पीएम 2.5 के आकार का प्रभाव भी काफी बड़ी संख्या में जोड़ों की जिंदगी पर नपुंसकता का असर डाल सकता है.”

रिसर्चर्स का कहना है कि यह साफ नहीं है एयर पॉल्यूशन सटीक तरीके से स्पर्म विकास को प्रभावित करता है. बारीक कणों के कौन से कंपोनेंट, जैसे कि हैवी मेटल या पॉलीसाइक्लिक एरोमेटिक हाईड्रोकार्बन स्पर्म डैमेज से जुड़े हैं, इसका पता लगाया जाना है.

उनका कहना है कि एयर पॉल्यूशन के संपर्क में आने से होने वाला सीधा नुकसान इसका संभावित कारण हो सकता है, क्योंकि यह डीएनए को डैमेज कर सकता है और शरीर में सेल्युलर प्रक्रिया में बदलाव ला सकता है. डॉक्टर भी इस बात से इत्तेफाक रखते हैं कि एयर पॉल्यूशन से स्पर्म क्वालिटी पर असर पड़ सकता है और इनफर्टिलिटी पैदा हो सकती है. जानिये, नोएडा के जेपी हॉस्पिटल की इनफर्टिलिटी विशेषज्ञ इस बारे में क्या कहती हैं.

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