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लोकसभा में फिर पेश किया गया व्यावसायिक सरोगेसी पर पाबंदी वाला बिल

इसमें सरोगेट मां का शोषण रोकने और सरोगेट बच्चों के अधिकार तय करने का भी प्रावधान है.

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देश में जल्द ही व्यावसायिक सरोगेसी पर पाबंदी लग जाएगी और कोई निकट संबंधी ही संतान चाहने वाले दंपति के लिए सरोगेट मां बन सकेगी.

किराये की कोख यानी सरोगेसी को देश में वैधानिक मान्यता देने और इसके लिए नियम तय करने को लेकर सरोगेसी विनियमन विधेयक, 2019 सोमवार, 15 जुलाई को लोकसभा में पेश किया गया. जिसके तहत राष्ट्रीय और राज्य स्तर पर सरोगेसी बोर्ड बनाना भी शामिल है.

स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्री डॉ हर्षवर्धन ने इसे सदन में पेश किया.

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स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्री डॉ हर्षवर्धन ने इसे सदन में पेश किया. इस विधेयक में प्रावधान है कि जो विवाहित भारतीय दंपति संतान पैदा नहीं कर सकते उन्हें नैतिक सरोगेसी के इस्तेमाल की मंजूरी होगी.

इसमें महिला की उम्र 23 से 50 साल के बीच और पुरुष की 26 से 55 साल के बीच होनी चाहिए. उनकी शादी को कम से कम पांच साल बीत जाने के बाद ही वे सरोगेसी का इस्तेमाल कर सकेंगे.

इस विधेयक में सरोगेट मां का शोषण रोकने और उनका तथा सरोगेट बच्चों के अधिकार तय करने का भी प्रावधान है. इसमें सरोगेसी के लिए मानव भ्रूण की बिक्री या आयात पर कम से कम 10 साल की सजा और अधिकतम 10 लाख रुपये के जुर्माने की व्यवस्था की गई है.

जिस महिला को सरोगेट मां बनाया जाएगा उसका भारतीय नागरिक और संतान चाहने वाले दंपति का निकट संबंधी होना अनिवार्य होगा. साथ ही ये भी जरूरी किया गया है कि वह कभी न कभी शादीशुदा रही हो और उसकी अपनी संतान हो चुकी हो. उसकी उम्र 25 से 35 के बीच होना जरूरी होगा.
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कांग्रेस के शशि थरूर ने समलैंगिक दंपतियों को भी सरोगेसी से संतान प्राप्ति का अधिकार देने और निजता का ध्यान रखने की मांग की. उन्होंने विवाह के बाद कम से कम पांच साल तक इंतजार के प्रावधान का विरोध किया.

विधेयक के उद्देश्य और कारणों में कहा गया है कि भारत सरोगेसी का केंद्र बन चुका है. इसके अनैतिक और वाणिज्यिक इस्तेमाल के मामले भी सामने आ रहे थे. सरोगेसी के नियमन संबंधी कानून नहीं होने की वजह से सरोगेसी क्लीनिकों द्वारा इसका गलत इस्तेमाल किया जा रहा था.

(इनपुट: PTI)

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