देश की राजधानी दिल्ली में साल 2016-2017 में कुल कलेक्ट किए गए ब्लड यूनिट्स में से सिर्फ 45 फीसदी स्वैच्छिक ब्लड डोनेशन (VBD-Voluntary Blood Donation) के जरिए था. जबकि देश के दूसरे राज्यों ने 90 प्रतिशत से अधिक VBD हुआ.
हार्ट प्रोसीजर, कैंसर के इलाज, ट्रांसप्लांटेशन, ट्रॉमा और बर्न जैसे मामलों में क्रिटिकल सर्जरी के लिए ब्लड की जरूरत होती है. इसके साथ ही, इम्यून सिस्टम डिसऑर्डर वाले लोग, जिनको एंटीबॉडी ट्रीटमेंट की जरूरत होती है या हीमोफिलिया जैसी ब्लीडिंग डिसऑर्डर, प्रसव के बाद ब्लीडिंग से पीड़ित महिलाओं को फौरन ब्लड की जरूरत हो सकती है.
ऐसे में, 14 जून को वर्ल्ड ब्लड डोनर डे का बहुत ज्यादा महत्व है, जब दुनिया भर के देश स्वैच्छिक रक्तदान के महत्व के बारे में जागरुकता पैदा करने के लिए और भी अधिक समर्पित प्रयास करते हैं.
कौन डोनेट कर सकता है ब्लड?
कितने तरह का होता है ब्लड डोनेशन?
ब्लड डोनेशन सेंटर में डोनर को रक्तदान के लिए किसी भी प्रारंभिक जांच/ब्लड टेस्ट से पहले एक विस्तृत फॉर्म दिया जाता है. ये फॉर्म रक्त लेने वाले के साथ ही रक्त देने वाले, दोनों की सुरक्षा सुनिश्चित करता है. रक्तदाता के रूप में किसी व्यक्ति की स्वीकृति और स्थगित (स्थायी या अस्थायी) स्वीकृति के लिए राष्ट्रीय गाइड-लाइंस हैं.
ब्लड डोनेशन कई तरह के हो सकते हैं, जैसे:
- रूटीन होल ब्लड डोनेशन: इसमें रक्तदाता से होल ब्लड लिया जाता है. बाद में सेंट्रिफ्यूज की मदद से इस यूनिट से विभिन्न कंपोनेंट्स अलग कर लिए जाते हैं.
- एफेरेसिस: यह ऐसी तकनीक है, जहां एक विशिष्ट कंपोनेंट्स (रोगी की जरूरत के हिसाब से) को खास उपकरण की मदद से रक्तदाता के शरीर से निकाल लिया जाता है. ऐसे मामलों में रक्तदाताओं के लिए, रक्तदान के बीच अंतराल में भी ढील दी जा सकती है, जिससे वे काफी जल्दी-जल्दी रक्तदान कर सकते हैं.
- ब्लड ग्रुप स्पेसिफिक डोनेशन: यह तरीका कुछ अवसरों पर अपनाया जाता है, जब रोगी का ब्लड ग्रुप दुर्लभ होता है. इसके कुछ उदाहरण हैं: AB नेगेटिव, A नेगेटिव, O नेगेटिव और B नेगेटिव. पॉजिटिव ग्रुप में, AB सबसे कम आम (7-9प्रतिशत) है और इसलिए ऐसे मामलों में रक्तदान एक बड़ी मदद हो सकती है.
डब्ल्यूएचओ के मुताबिक, देश की आबादी का सिर्फ 1 प्रतिशत सुरक्षित ब्लड ट्रांसफ्यूजन की जरूरतों को पूरा करने के लिए काफी है.
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