कैंसर भारत में दूसरी सबसे बड़ी जानलेवा बीमारी है. साल 2016 में कुल मौतों में से 8.3 फीसदी मौतें कैंसर के कारण हुईं. मेडिकल जर्नल लैंसेट में हाल में प्रकाशित एक स्टडी में पाया गया कि यह 1990 में कैंसर से होने वाली मौतों का दोगुना है. इन 26 साल में कैंसर से होने वाली मौतों में 112.8 फीसदी की बढ़ोतरी हुई है.
हालांकि, इस अवधि के दौरान भारत में कैंसर की दर स्थिर रही है. ऐसा इसलिए है क्योंकि पिछले कुछ सालों में हमारे एज स्ट्रक्चर में बदलाव हुआ है. कैंसर के ज्यादातर मामले उम्रदराज लोगों में सामने आते हैं और भारत में उम्रदराज लोगों की संख्या बढ़ रही है.
इसलिए शुरुआती स्तर पर ही कैंसर का पता लगाने, बेहतर व सस्ता इलाज उपलब्ध कराने के उपाय करने की जरूरत है.
फिट से बात करते हुए स्टडी के प्रमुख लेखक डॉ. प्रशांत माथुर ने कहा,
कैंसर से होने वाली करीब 60 फीसदी मौतों या मामलों से बचा जा सकता है. कैंसर के मामलों में कमी के लिए जागरुकता और बेहतर इलाज मिलना जरूरी है.
कैंसर के मामलों के बढ़ने के पीछे तंबाकू, शराब, वायु प्रदूषण, असुरक्षित सेक्स और जीवनशैली संबंधी कारक बड़े कारण के तौर पर सामने आए हैं.
कैंसर के मामलों में बढ़ोतरी के लिए 10 प्रकार के कैंसर जिम्मेदार हैं. इनमें पेट, स्तन, फेफड़े, होठ और मुंह, ग्रसिका, कोलोन, मलाशय (रेक्टम), ल्यूकेमिया, गर्भाशय, भोजन नली संबंधी, और दिमाग व तंत्रिका तंत्र से जुड़े कैंसर शामिल हैं.
महिलाओं में ज्यादातर स्तन और गर्भाशय कैंसर के मामले सामने आते हैं. जबकि पुरुषों को फेफड़े और मुंह का कैंसर ज्यादा होता है.
परिणाम दर्शाते हैं कि भारत गर्भाशय और भोजन नलिका संबंधी कैंसर के मामलों में कमी लाने में सफल रहा है. लेकिन स्तन, लिवर और फेफड़ों के कैंसर के मामलों में तेजी से बढ़ोतरी हुई है. आंकड़ों को पेश करते हुए डॉ. माथुर कहते हैं कि 43 फीसदी फेफड़ों का कैंसर वायु प्रदूषण के कारण होता है. वहीं कैंसर के कुल मामलों में प्रदूषण के कारण होने वाले कैंसर के 3.3 फीसदी मामले सामने आए.
उन्होंने कहा कि कुछ कैंसर को रोकने के लिए सभी लोगों को हेपेटाइटिस बी और ह्यूमन पैपिलोमावायरस (एचपीवी) से बचाव के टीके लगवाने चाहिए. हेपेटाइटिस बी से अधिकतर लिवर का और एचपीवी से गर्भाशय का कैंसर होता है.
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