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पैदाइशी दिल की बीमारी: ‘दिल में छेद होना’ आखिर है क्या?

‘दिल में छेद’ होने को मेडिकल टर्म में ‘कंजेनाइटल हार्ट डिजीज’ कहते हैं.

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23 साल के फहद कहते हैं, “बचपन में अम्मी परेशान होती थीं, दौड़ूंगा तो थक जाऊंगा, बीमार हो जाऊंगा”. फहद ने बीसीए यानी बैचलर ऑफ कंप्यूटर एप्लिकेशन का कोर्स किया है और अब वो नौकरी की तलाश में हैं.

दरअसल फहद जब 6 दिन के थे, तो डॉक्टरों ने उनके मां-बाप को फहद के दिल में छेद होने की जानकारी दी थी. फहद कहते हैं कि इस बीमारी ने कभी उन्हें रुकने नहीं दिया, लेकिन हां इतना जरूर है कि दूसरे बच्चों के साथ किसी खेल में शामिल होने से वो जल्दी थक जाते थे.

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क्या होता है दिल में सुराख होना?

‘दिल में छेद’ होने को मेडिकल टर्म में ‘कंजेनाइटल हार्ट डिजीज’ कहते हैं.
पैदाइशी दिल की बीमारी चार तरह की होती है.
(फोटो: iStock)
दिल में छेद होना, दिल से जुड़ी पैदाइशी बीमारियों में सबसे आम बीमारी है. इसे कंजेनाइटल हार्ट डिजीज भी कहते हैं, जो मां के पेट में ही बच्चे के ग्रोथ के साथ जुड़ी है.
डॉक्टर विवेक कुमार, कॉर्डियोलॉजिस्ट, मैक्स हॉस्पिटल

वेबमेड के अनुसार, "पैदाइशी हृदय रोग" ये कहने का एक तरीका है कि जब आप पैदा हुए थे तो आपके दिल में कोई समस्या थी. हो सकता है कि वो दिल में एक छोटा छेद हो या कुछ और गंभीर बीमारी हो.

नेशनल सेंटर फॉर बायोटेक्नोलॉजी इंफॉर्मेशन की 2015 की एक रिपोर्ट के अनुसार भारत में हर एक हजार लोगों में 19.14 लोग पैदाइशी दिल की बीमारी से पीड़ित होते हैं.

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कंजेनाइटल हार्ट डिजीज के प्रकार

फहद कहते हैं कि उनके दिल मे दो सुराख थे, जिसका शुरुआती इलाज उनके मां-बाप ने मुंबई के नानावटी हॉस्पिटल में कराया.

वेबमेड के मुताबिक पैदाइशी दिल की बीमारी चार तरह की होती है.

  • हार्ट वाल्व में समस्या- इसमें हार्ट वाल्व बहुत सिकुड़ जाती है या पूरी तरह से बंद हो सकती है. इस कारण खून का पास होना मुश्किल हो जाता है और कई बार तो ऐसा होता है कि खून इससे होकर जा ही नहीं पाता है. कुछ मामलों में हार्ट वाल्व पूरी तरह बंद नहीं होता है और खून का रिसाव पीछे की तरफ होने लगता है.
  • हार्ट वॉल्स (चैम्बर) में– इस समस्या में दिल के दो चैंबर (एट्रिया और वेंट्रिकल्स) के बीच हो सकता छेद या छोटा हिस्सा खुला रह जाता है. इस कारण लेफ्ट और राइट हार्ट के साफ खून और दूषित खून मिल सकते हैं. जबकि ऐसा नहीं होना चाहिए.
  • हार्ट की मांसपेशियों में समस्या– इस समस्या में हार्ट को पंप होने में यानी दिल के धड़कने में दिक्कत होती है. इसके कारण हार्ट फेल भी हो सकता है.
  • हार्ट की नलिका (वेसेल्स) में समस्या- बच्चों में इस समस्या की वजह से खून फेफड़ों में जाने की बजाए शरीर के अन्य हिस्सों में जाने लगता है. या कभी-कभी ठीक इसके उल्टा भी होने लगता है. इस वजह से खून में ऑक्सीजन की कमी हो जाती है और इससे ऑर्गन फेल हो सकते हैं.
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लक्षण

पटना में रहने वाली 65 वर्षीय शमीमा बानो कहती हैं कि उनकी बेटी रजिया को पैदाइशी दिल की बीमारी थी. रजिया के दिल में सुराख था. जब रजिया पैदा हुई, तो वो बहुत रोती थी. उन लोगों को लगता था कि वो भूखी है, तो वो उसे दूध पिलाने लगतीं. रजिया फिर भी चुप नहीं होती थी. डॉक्टर को दिखाया तो डॉक्टर ने उनकी बेटी के हार्ट वाल्व (चैम्बर) में सुराख बताया. डॉक्टर ने उन्हें बताया था कि रजिया 12 साल से अधिक नहीं जी पाएगी. लेकिन रजिया अब 37 साल की है और दो बच्चों की मां है.

शमीमा बानो कहती हैं कि जब रजिया थोड़ी बड़ी हुई तो उसे उल्टियां बहुत होती थी और वो बहुत कमजोर थी.
‘दिल में छेद’ होने को मेडिकल टर्म में ‘कंजेनाइटल हार्ट डिजीज’ कहते हैं.
हर बच्चे में कंजेनाइटल हार्ट डिजीज के लक्षण अलग-अलग हो सकते हैं
(फोटो: iStock)
हर बच्चे में कंजेनाइटल हार्ट डिजीज के लक्षण अलग-अलग हो सकते हैं. नवजात बच्चों का अत्याधिक रोना भी उनमें से एक हो सकता है. 
डॉ विवेक कुमार

डॉ विवेक के अनुसार इसके लक्षण कुछ इस तरह भी हो सकते हैं:

  • मां का दूध पीने में परेशानी
  • खाने में परेशानी
  • बैठने में परेशानी- आमतौर पर 6 महीने के बच्चे बैठने लगते हैं, लेकिन दिल की बीमारी से पीड़ित बच्चे को बैठने में परेशानी हो सकती है.
  • स्किन का नीला रंग- जब लेफ्ट और राइट हार्ट के साफ खून और दूषित खून मिलने की समस्या रहती है, तो स्किन का रंग और उंगलियों का रंग नीला दिखता है.
  • तेज-तेज सांस लेना
  • चेस्ट इंफेक्शन

इसके अलावा क्या दिक्कतें हो सकती हैं?

दिल की बीमारी से पीड़ित बच्चों को तेज चलने-फिरने, व्यायाम करने में परेशानी होती है. वो भाग -दौड़ में अपनी उम्र की बच्चों से पीछे रहते हैं.

शमीमा बानो कहती हैं कि दिल में सुराख होने की वजह से उन लोगों ने रजिया का स्कूल में एडमिशन नहीं कराया था. उन्हें डर था कि स्कूल में एडमिशन कराने का उसकी सेहत पर खराब असर ना पड़े. वहीं फहद कहते हैं कि बीमारी की वजह से उनकी पढ़ाई-लिखाई में कोई रुकावट नहीं आई.

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इसके कारण क्या हैं?

‘दिल में छेद’ होने को मेडिकल टर्म में ‘कंजेनाइटल हार्ट डिजीज’ कहते हैं.

डॉक्टर विवेक के अनुसार पैदाइशी दिल की बीमारी होने के कारणों में से कुछ कारण इस प्रकार हैं.

  • जेनेटिक
  • रिश्तेदारों की आपस में शादी
  • दवाईयां - कुछ ऐसी दवाईयां जिनके प्रेग्नेंसी के वक्त प्रयोग से होने वाले बच्चे को दिल की बीमारी होने की आशंका रहती है.
  • रूबेला वायरस - प्रेग्नेंसी के दाैरान अगर मां इस वायरस से संक्रमित हो जाती है, तो बच्चे पर उसका असर पड़ सकता है.
  • प्रेग्नेंसी के वक्त मां को दी गई दवा का साइडइफेक्ट
  • अधिक बच्चों के होने पर ( ये कहा जाता है कि अधिक बच्चों के होने पर तीसरे या चौथे बच्चे को दिल के अलावा कोई भी पैदाइशी बीमारी होने के खतरा अधिक रहता है.)
पैदाइशी दिल की बीमारी के साथ और भी बीमारियां जुड़ी हैं, जो पैदाइशी होती हैं और लंबे समय तक के लिए हो सकती हैं.
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कुछ बच्चों को हो सकती हैं ये समस्याएं

‘दिल में छेद’ होने को मेडिकल टर्म में ‘कंजेनाइटल हार्ट डिजीज’ कहते हैं.
  • वजन और हाइट बढ़ने में समस्या
  • मेंटली रिटार्डेड हाेने की आशंका (इसका अनुपात बहुत कम होता है.)
  • बच्चों में हाइपरटेंशन
  • सांस से संबंधित कई तरह के इंफेक्शन बार-बार होने की आशंका

कंजेनाइटिल हार्ट डिजीज से जूझ रहे सभी बच्चों में इस तरह की समस्या नहीं होती है.

शमीमा बानो कहती हैं कि रजिया की हाइट नॉर्मल थी, वजन भी सामान्य था, बस वो किसी भी बात को दिल पर ले लेती थी और सोचने लगती थी, ये बात घरवालों को बहुत परेशान करती थी.
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क्या है इलाज?

‘दिल में छेद’ होने को मेडिकल टर्म में ‘कंजेनाइटल हार्ट डिजीज’ कहते हैं.
दवा से भी इलाज मुमकिन है
(फोटो: iStock)
अमेरिका में कंजेनाइटल हार्ट डिजीज से पीड़ित बच्चों की सर्जरी तब ही कर दी जाती है, जब वो 5 साल के होते हैं. पर भारत में अक्सर इसकी सर्जरी देर से करते हैं.
डॉक्टर विवेक 

रजिया जब 7 साल की थी, तो सर्जरी के जरिए उसके दिल के सुराख को बंद कर दिया गया, उसके बाद वो एक नॉर्मल जिंदगी जीने लगी.

एंजियोग्राफी के जरिए अंब्रैला डिवाइस से छेद को बंद कर दिया जाता है. या अगर दिल में एक से ज्यादा परेशानियां हैं, तो ओपन हार्ट सर्जरी करते हैं. अगर बीमारी बहुत मामूली है, तो दवा से भी इलाज मुमकिन है.
डॉक्टर विवेक कुमार 

फहद ने दिल में सुराख के साथ ही 10वीं बोर्ड का इम्तेहान दिया, एम्स में ऑपरेशन की तारीख उनके बोर्ड के इम्तिहान के बाद थी, इसलिए इम्तेहान देने के बाद ही उनकी ओपन हार्ट सर्जरी हुई.

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‘दिल में छेद’ होने को मेडिकल टर्म में ‘कंजेनाइटल हार्ट डिजीज’ कहते हैं.
पीड़ित बच्चों को फैमिली सपोर्ट, प्यार और देखभाल की जरूरत होती है
(फोटो:iStock)
कंजेनाइटल हार्ट डिजीज से पीड़ित बच्चों को फैमिली सपोर्ट, प्यार और देखभाल की जरूरत होती है. अगर वो स्कूल जा रहे हैं तब भी टीचर्स और साथी बच्चों को सपोर्ट करना चाहिए लेकिन टीचर्स को बताना पड़ता है कि बच्चे हैंडीकैप नहीं हैं. बच्चे का दिल कमजोर है, लेकिन दिमाग और बच्चों की तरह ही है.
डॉ विवेक कुमार

शमीमा बानो कहती हैं कि सर्जरी के बाद रजिया का एडमिशन करा दिया गया, रजिया ने पूरी पढ़ाई भी की और अब वो एक टीचर है.

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