क्या तनाव कैंसर की वजह हो सकता है? क्या तनाव से कैंसर पेशेंट की हालत और बिगड़ सकती है? ये सवाल इसलिए क्योंकि स्ट्रेस और कैंसर के आपसी लिंक पर कुछ स्टडीज हुई हैं, जो बताती हैं कि तनाव कैंसर डेवलपमेंट को प्रभावित कर सकता है. कुछ स्टडी स्ट्रेस को कैंसर की वजह मानने को एक मिथ बताती हैं.
वहीं जापान में करीब 1 लाख लोगों पर की गई एक स्टडी में पाया गया कि लंबे समय से लगातार हाई लेवल के स्ट्रेस से कैंसर का रिस्क 11 फीसदी बढ़ा.
आइए, समझें कि इन मिली-जुली स्टडीज के क्या मायने हैं.
तनाव और कैंसर
फोर्टिस हॉस्पिटल, शालीमार बाग में कैंसर स्पेशलिस्ट डॉ जसकरण सेठी कहते हैं कि जहां तक बात इसकी है कि तनाव कैंसर की वजह है, तो इसका जवाब 'ना' है.
तनाव को कैंसर का कारण कहने के कोई सीधे प्रमाण नहीं हैं, इसके सपोर्ट में कोई डाटा नहीं है. लेकिन हां, तनाव अप्रत्यक्ष रूप से कैंसर होने का रिस्क बढ़ा सकता है. लेकिन ये कैंसर का मेजर रिस्क फैक्टर नहीं है.डॉ जसकरण सेठी, कैंसर स्पेशलिस्ट, फोर्टिस हॉस्पिटल, शालीमार बाग
फोर्टिस हेल्थकेयर में डिपार्टमेंट ऑफ मेंटल हेल्थ एंड बीहैव्यरल साइंस के डायरेक्टर डॉ समीर पारिख भी कहते हैं कि तनाव अपने आप में कैंसर की वजह के लिए काफी नहीं है.
डॉ सेठी के मुताबिक तनाव और कैंसर के बीच कोई लिंक इस तरीके से हो सकता है कि लगातार स्ट्रेस में रहने से लोग स्मोकिंग, एल्कोहल पीना, ओवर ईटिंग, फिजिकल इनएक्टिविटी जैसी अनहेल्दी आदतें अपनाने लगते हैं, जो कैंसर के लिए रिस्क फैक्टर हो सकती हैं. इसलिए ये कह सकते हैं कि स्ट्रेस कैंसर होने के रिस्क को बढ़ा सकता है.
डॉ सेठी समझाते हैं कि पहली बात, कारण और रिस्क फैक्टर दो अलग चीजें हैं और रिस्क फैक्टर भी दो तरह के होते हैं- मेजर और माइनर रिस्क फैक्टर.
शराब और तंबाकू बड़े रिस्क फैक्टर हैं, लेकिन स्ट्रेस को किसी भी तरह के कैंसर के लिए स्पेशिफिक रिस्क फैक्टर कहना सही नहीं है.
कैंसर होने के रिस्क फैक्टर्स
अमेरिका का नेशनल कैंसर इंस्टिट्यूट कैंसर के 12 रिस्क फैक्टर्स के बारे में बताता है, जिसमें बढ़ती उम्र, एल्कोहल, कैंसरकारक पदार्थ, क्रोनिक इंफ्लेमेशन, डाइट, कुछ हार्मोन, इम्यूनोसप्रेशन, संक्रामक एजेंट, मोटापा, रेडिएशन, सूरज की किरणें और तंबाकू शामिल है.
तनाव, क्रोनिक इंफ्लेमेशन और कैंसर
इन 12 रिस्क फैक्टर्स में जाहिर है स्ट्रेस का नाम नहीं लिया गया है. हालांकि ये जरूर कहा गया है कि समय बीतने के साथ, क्रोनिक इंफ्लेमेशन डीएनए की क्षति का कारण हो सकता है और जिससे आगे कैंसर का खतरा हो सकता है.
लेकिन फिर सवाल ये भी आता है कि अगर क्रोनिक इंफ्लेमेशन का लिंक कैंसर से है, तो स्ट्रेस का कैंसर से संबंध कैसे नहीं हो सकता क्योंकि क्रोनिक स्ट्रेस से शरीर में क्रोनिक इंफ्लेमेशन होता है.
कई स्टडीज में बताया गया है कि तनाव लेने से शरीर में इंफ्लेमेशन हो जाती है. डॉ सेठी समझाते हैं कि तनाव के दौरान बॉडी में कुछ केमिकल रिलीज होते हैं, जिनसे इंफ्लेमेशन होता है. जब लंबे समय तक स्ट्रेस (क्रोनिक स्ट्रेस) रहता है, तो इंफ्लेमेशन भी लगातार बना रहता है और क्रोनिक इंफ्लेमेशन कैंसर का रिस्क फैक्टर हो सकता है.
डॉ सेठी कहते हैं कि मोटापा भी क्रोनिक इंफ्लेमेटरी स्टेट है. क्रोनिक इंफ्लेमेटरी स्टेट से शरीर में कुछ बदलाव हो सकते हैं, जहां ट्यूमर ग्रोथ की आशंका हो सकती है.
अब क्योंकि क्रोनिक स्ट्रेस क्रोनिक इंफ्लेमेशन की वजह बनता है, तो इस तरीके से हाइपोथेसिस जरूर हैं. लेकिन पर्याप्त प्रमाण न होने से हम अभी ये निष्कर्ष नहीं निकाल सकते.डॉ सेठी
क्या कैंसर को और बदतर कर सकता है तनाव?
डॉ समीर पारिख कहते हैं कि कैंसर होने का पता चलना अपने आप में तनावपूर्ण अनुभव है. वास्तव में कैंसर अपने आप में एक जीवन बदलने वाला अनुभव है, जो लोगों के आपसी रिलेशन, आत्म-सम्मान, करियर और लाइफस्टाइल को प्रभावित करता है.
तनाव निश्चित रूप से कैंसर का मुकाबला करने की प्रक्रिया को प्रभावित करता है.डॉ पारिख
डॉ सेठी बताते हैं कि कैंसर से लड़ने में शरीर की इम्यूनिटी बहुत महत्वपूर्ण है और क्रोनिक स्ट्रेस सिचुएशन में बॉडी की इम्यूनिटी में बदलाव आते हैं. लेकिन फिर यही बात आती है कि इसे साबित करने के लिए हमारे पास अभी डायरेक्ट एविडेंस नहीं है, डाटा नहीं है. जिसके आधार पर हम निष्कर्ष निकाल सकें कि तनाव कैंसर का डायरेक्ट रिस्क फैक्टर है या तनाव से कैंसर की बीमारी और बदतर हो जाती है.
डॉ पारिख के मुताबिक कैंसर पेशेंट कई तरह की आशंका, एंग्जाइटी और मूड में बदलाव से गुजरता है. इसलिए यहां साइकोलॉजिकल इंटरवेंशन की भूमिका याद रखने की जरूरत है. जिससे तनाव दूर करने और कैंसर से जिंदगी में आ रहे बदलाव को स्वीकारने में मदद मिल सकती है.
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