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क्या आपका बच्चा डरावने सपने देखता है? ये हो सकती है वजह

हमारे सपने उन चीजों से जुड़े होते हैं, जो सबसे अधिक हमारे दिमाग में चलती हैं.

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हमारे सपने अक्सर उन चीजों से जुड़े होते हैं, जो सबसे अधिक हमारे दिमाग में चलती हैं. वो चाहे ट्रेन का छूटना हो या इम्तिहान के वक्त एडमिट कार्ड का घर पर छूट जाना या परीक्षा में आपका वक्त पर नहीं पहुंच पाना.

लेकिन क्या कभी आपने ये सोचा है कि मासूम बच्चे जो आज के वक्त टेक्नोलॉजी और गैजेट्स से चारों तरफ से घिरे हुए हैं. उन्हें कैसे सपने आते होंगे?

टेक्नोलॉजी और गैजेट्स का इस्तेमाल डरावने सपनों की वजह कैसे बनता है और बच्चों को उन्हें दिखने वाले डरावने सपनों से कैसे निजात दिला सकते हैं?

ये जानने के लिए फिट हिंदी ने मैक्स हॉस्पिटल में मेंटल हेल्थ डिपार्टमेंट के डायरेक्टर और बिहेवियरल साइंस के डॉ समीर मल्होत्रा से बात की.

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UPI.COM में पब्लिश नवंबर 2016 की एक स्टडी के अनुसार रात सोने से पहले हिंसक फिल्म देखना डरावने सपने की वजह बन सकता है. ये स्टडी बताती है कि हिंसक फिल्म देख कर सोने वालों में उनके मुकाबले डरावने सपने देखने की आंशका 13 गुना अधिक होती है, जो हिंसक वीडियोज बिना देखे सोते हैं.

जून 2011, लॉस एंजेलिस टाइम्स में छपी एक रिपोर्ट बताती है कि टीवी, वीडियो गेम, कंप्यूटर छोटे बच्चों में नींद की समस्या पैदा कर सकते हैं, जिसमें नींद ना आना, डर जाना, डरावने ख्वाब आना, नींद में चलना वगैरह शामिल है.

इस रिपोर्ट में जिन दो वजहों को इसके लिए जिम्मेदार ठहराया गया है, वो हिंसात्मक कॉन्टेंट और इलेक्ट्रॉनिक गैजेट्स इस्तेमाल करने का समय है.

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दिल्ली में रहने वाले 13 साल के जिशान (बदला हुआ नाम) वीडियो गेम्स खेलने में दिलचस्पी रखते हैं. उनसे उनकी नींद और डरावने सपनों के बारे में सवाल करने पर उन्होंने बताया:

हमारे सपने उन चीजों से जुड़े होते हैं, जो सबसे अधिक हमारे दिमाग में चलती हैं.
रात में सोने से पहले इलेक्ट्रॉनिक गैजेट्स का इस्तेमाल नींद पर बुरा असर डालती है.
(फोटो:iStock)
‘जब मैं बहुत फोकस करके गेम खेलता हूं, तब रात में मुझे सोने में परेशानी होती है, कभी-कभी उस गेम से जुड़े ख्वाब देखता हूं, जिसमें ज्यादातर मुझ पर हमला होने वाला होता है और मैं कभी-कभी खुद को बचाने में नाकाम भी हो जाता हूं.’
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जनवरी 2015 NCBI में छपी रिपोर्ट कहती है कि दिन के वक्त या रात में सोने से पहले इलेक्ट्रॉनिक गैजेट्स का इस्तेमाल किशोरों की नींद पर बुरा असर डालती है.

टेक्नोलॉजी हमारा बहुत वक्त बचा रही है, लेकिन अगर टेक्नोलॉजी या गैजेट्स की लत लग जाए तो ये सही नहीं है. गैजेट्स या टेक्नोलॉजी के हम पर बुरे प्रभाव इस बात पर निर्भर करते हैं कि हम किस तरह उसका इस्तेमाल कर रहे हैं.
डॉ समीर मल्होत्रा
हमारे सपने उन चीजों से जुड़े होते हैं, जो सबसे अधिक हमारे दिमाग में चलती हैं.

गैजेट्स का नींद पर असर इन दो बातों पर निर्भर करता है:

1. कितना वक्त दिया जा रहा है?

देर रात तक वीडियो गेम खेलने से बच्चे की नींद प्रभावित होती है, इसका असर लाइफस्टाइल पर पड़ता है. बच्चा इलेक्ट्रॉनिक गैजेट्स का इस्तेमाल कितनी देर तक कर रहा है, इसका नींद और सपनाें से सीधा संंबंध होता है.

2. कॉन्टेंट कैसा है?

आजकल कार्टून, टीवी या गेम कॉन्टेंट बहुत हिंसक होते हैं और उनमें बहुत खराब भाषा का प्रयोग किया जा रहा है. जो चीजें बच्चे देख रहे हैं, सुन रहे हैं, वो दिमाग में बसने लगता है तो उन्हें सपने भी वैसे ही आते हैं.

जो हम देखते हैं, सुनते हैं, वो कहीं ना कहीं हमारे विचारों में, हमारी सोच में, हमारी नींद में हमारे सपनों में तब्दील हो जाता है, जाहिर है उसका असर हमारे ब्रेन के लिए अच्छा नहीं है, हमारे माइंड के लिए अच्छा नहीं है.
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पैरेंट्स ऐसे कर सकते हैं मदद

डॉ समीर मल्होत्रा कहते हैं कि मां-बाप बच्चों के गैजेट्स को मॉनिटर करके उन्हें किसी भी तरह के हिंसात्मक कॉन्टेंट को देखने या उन पर बहुत अधिक वक्त देने से रोक सकते हैं.

हमारे सपने उन चीजों से जुड़े होते हैं, जो सबसे अधिक हमारे दिमाग में चलती हैं.
  • बच्चों के साथ वक्त बिताएं- डॉ समीर का कहना है कि बच्चों से उनके मसलों पर बात करें. आजकल हर कोई अपने कमरे में अलग-अलग खाना पसंद करने लगा है, ऐसा ना करें, घर के सभी लोग एक साथ बैठ कर खाना खाएं, एक-दूसरे के साथ ज्यादा से ज्यादा समय बिताएं, अपनी दिनचर्या में ‘वी टाइम’ जरूर शामिल करें, ताकि बच्चे फैमिली के साथ अधिक इन्जॉय करें.
  • त्याग करना - हमें बच्चों को हमेशा सुविधाओं में नहीं रखना चाहिए. कभी-कभी चीजों के अभाव से जिम्मेदारी का एहसास होता है. उन्हें त्याग करना भी सिखाएं, तभी वो किसी आदत को खत्म करना या उससे दूरी बनाना सीख पाएंगे.
  • किताबें पढ़ने की आदत डालें- आजकल हमारे घरों से किताबें पढ़ने की आदत खत्म होती जा रही है, जिसकी वजह से बच्चे गैजेट्स की तरफ जल्दी आकर्षित होने लगते हैं. किताबें उनको अच्छा इंसान बनने में मदद करेंगी, सोते वक्त किताबें पढ़के सोना नींद और सपनों दोनों को अच्छा करेगा.
  • कहानी सुनाएं- पहले हमारे घरों में बच्चों को कहानी सुनाने की प्रथा होती थी, जो कि अब बिल्कुल खत्म हो चुकी है. बच्चों को सोने से पहले कहानी सुना कर सुलाना बच्चों की नींद के लिए बहुत अच्छा होता है, बच्चे अच्छी कहानियां सुनकर सोते हैं, तो उन्हें सपने भी अच्छे आते हैं.
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  • कॉफी-चाय की आदत खत्म करें- बच्चों में सोते वक्त किसी भी ऐसी चीज की आदत ना डालें, जो उनकी नींद के लिए परेशानी बन जाए, चाय-कॉफी की जगह दूध पी कर सोने से नींद अच्छी आती है.
  • स्लीप हाइजीन का ख्याल रखें – साफ सुथरे हो कर सोएं, जिससे नींद अच्छी आए.
  • मां-बाप फिल्टर पॉलिसी फॉलो करें - बच्चों के जरिए इस्तेमाल किए जा रहे गैजेट्स और इलेक्ट़्निक चीजों पर कॉन्टेंट फिल्टर लगाएं ताकि उन्हें हिंसात्मक कॉन्टेंट की पहुंच से बचाया जा सके.
  • सवालों के जवाब दें- आजकल न्यूज में आने वाली चीजों पर अगर बच्चा सवाल करता है, तो उसे अपने जवाब से पूरी तरह संतुष्ट करें, सवालों की बेचैनी बच्चों के स्ट्रेस और एंग्जाइटी की वजह बन सकती है, जो खराब नींद और बुरे सपनों की भी वजह बन सकती है.
  • सरकार भी बच्चों के लिए सेंसर पॉलिसी पर ध्यान दे.
  • आकलन करें- अगर बच्चा नींद में बार-बार डर जा रहा है या बुरे सपने देख रहा है, तो मां-बाप का ये फर्ज है कि वो ये जानने की कोशिश करें कि ऐसा क्यों हो रहा है.

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