दुनिया भर में करीब 8 करोड़ लोग मध्यम से गंभीर स्तर की क्रॉनिक ऑब्स्ट्रक्टिव पल्मोनरी डिजीज (COPD) की समस्या से जूझ रहे हैं.विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO)
ऐसा अनुमान है वैश्विक स्तर पर COPD मौत का तीसरा सबसे बड़ा और विकलांगता का पांचवां सबसे बड़ा कारण बन जाएगा.
डॉक्टर्स का कहना है कि क्रॉनिक ऑब्स्ट्रक्टिव पल्मोनरी डिजीज (COPD) को आसानी से पहचाना जा सकता है.
COPD के लक्षणों की पहचान
अगर किसी को लगे कि उसे दो महीने से लगातार बलगम वाली खांसी आ रही है, तो वो समझ ले कि उसे डॉक्टर से तुरंत मिलने की जरूरत है.
सरोज सुपर स्पेशियलिटी हॉस्पिटल के रेस्पिरेटरी मेडीसिन के सीनियर डॉक्टर राकेश चावला का कहना है, "सीओपीडी को हम 'कालादमा' भी कहते हैं. इसमें फेफड़े में एक काली तार बन जाती है. ये अस्थमा के दमा से अलग होता है. अस्थमा एलर्जी से जुड़ी बीमारी है, जो जेनेटिक और पर्यावरण कारकों की वजह से होता है."
COPD में इतनी खांसी आती है कि फेफड़ा बढ़ जाता और रोगी चलने लायक नहीं रहता. यहां तक कि उसे मुंह से सांस छोड़ना पड़ता है. सीओपीडी की सबसे बड़ी वजह स्मोकिंग है. जहां लकड़ी पर खाना बनता है, वहां अधिकतर महिलाएं भी इसकी चपेट में होती हैं.डॉक्टर राकेश चावला, सरोज सुपर स्पेशियलिटी हॉस्पिटल
ऐसा नहीं है कि सीओपीडी का खतरा सिर्फ धूम्रपान करने वालों को होता है, नॉन स्मोकिंग COPD अब विकासशील देशों में एक बड़ी समस्या बन चुकी है.
क्या खांसी के सिरप का कोई फायदा नहीं हो रहा?
डॉ. राकेश ने बताया कि सीओपीडी के प्राथमिक लक्षणों को पहचानना काफी आसान है. खांसी के सामान्य सिरप और दवाएं इसमें कारगर नहीं होंगी. जांच के बाद ही आपको दवाएं लेनी होंगी. सीओपीडी की दवाइयां लंबे समय तक चल सकती हैं.
अगर आप COPD के मरीज हैं, तो यह ध्यान रखिए कि डॉक्टर की सलाह के बिना दवाइयां बंद नहीं करनी है.डॉक्टर राकेश चावला, सरोज सुपर स्पेशियलिटी हॉस्पिटल
डॉ चावला के मुताबिक लोगों में नॉन इन्वेसिव वेंटीलेशन (NIV) के बारे में जागरूकता की कमी है. सीओपीडी की मध्यम या गंभीर स्टेज वाले मरीजों को एनआईवी दवाई दी जा सकती है. ये खून में कार्बन डाई ऑक्साइड का लेवल कम कर देती है और इससे मरीज सामान्य ढंग से सांस ले पाता है. सीओपीडी या सांस की समस्या की जोखिम वाले मरीजों को घर के अंदर ही रहने की सलाह दी जाती है.
(इनपुट- आईएएनएस)
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