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कोरोना वायरस किसी व्यक्ति पर क्या दोबारा अटैक कर सकता है?

अगर आप एक बार COVID से उबर चुके हैं तो क्या आपको निश्चिंत हो जाना चाहिए?

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जब हम पहली लहर से जूझ रहे थे, कोरोना के नए संक्रमण को रोकने और लड़ने की कोशिश कर रहे थे, तब हमारी चिंताओं में रिइंफेक्शन(Reinfection- दोबारा संक्रमण) शामिल नहीं था.

लेकिन जैसे-जैसे दुनिया भर में लहर के बाद लहर जारी है और भारत में दिन-प्रतिदिन कोरोना के ज्यादा मामले दर्ज हो रहे हैं, ऐसे हालात में जो सवाल पहले अहम नहीं थे वो ज्यादा अहम हो रहे हैं. रिइंफेक्शन इन्हीं सवालों में से एक है.

ICMR (इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च) की एक हालिया स्टडी, भारत में इस तरह के मामलों पर कुछ अहम जानकारी देती है.

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कैम्ब्रिज एपिडेमियोलॉजी एंड इंफेक्शन जर्नल में पब्लिश एक स्टडी में पाया गया कि COVID से संक्रमित 1300 व्यक्तियों में से 58 व्यक्ति (4.5%) एक बार पहले ही संक्रमित हो चुके थे.

आपको COVID के दोबारा संक्रमण के बारे में क्या पता होना चाहिए? किन लोगों को इसका जोखिम है? एंटीबॉडी प्रोटेक्शन कब तक रहता है? ये समझते हैं.

कोरोना का दोबारा संक्रमण खतरनाक क्यों है?

जब कोई SARS-CoV-2 वायरस से संक्रमित होता है तो शरीर उसकी मेमोरी को बनाए रखने में सक्षम होता है और एंटीबॉडी बनाता है. अगर दोबारा संक्रमण होता है तो शरीर वायरस से लड़ने के लिए तैयार रहता है जैसा कि खसरा और चिकनपॉक्स के मामले में होता है.

ये घटना विशेष रूप से महत्वपूर्ण है, जब बीमारी के खिलाफ वैक्सीन बनाने की बात आती है.

अगस्त 2020 में, कोरोना के दोबारा संक्रमण की पहली सूचना मिली थी.

इत्तेफाक से, नए म्यूटेट वैरिएंट्स के साथ ही रिइंफेक्शन के मामलों में बढ़त दिख रही है.

अगर COVID रिइंफेक्शन मुमकिन है, तो ये महामारी के खिलाफ हमारी सामूहिक लड़ाई के लिए एक बड़ा झटका साबित हो सकता है. हमारे वैक्सीनेशन ड्राइव के लिए एक बाधा के अलावा, इसका मतलब ये भी है कि रिकवर हो चुके मरीज वायरस का फैलाव जारी रखते हैं.

COVID के रिइंफेक्शन का रिस्क किन्हें है?

इंटरनल मेडिसिन स्पेशलिस्ट और 'द कोरोनावायरस: व्हाट यू नीड टू नो अबाउट द ग्लोबल पैंडेमिक' (‘The Coronavirus: What You Need To Know About The Global Pandemic’ ) के लेखक डॉ. स्वप्निल पारिख के मुताबिक, ऐसे लोग जिनका इम्यून रिस्पॉन्स दूसरों की तुलना में लंबा नहीं चलता या वैसे लोग जो COVID वायरस के खिलाफ एक मजबूत इम्यून रिस्पॉन्स विकसित करने में सक्षम नहीं हो सकते, उन्हें ज्यादा रिस्क है.

हाल ही में द लैंसेट द्वारा प्रकाशित एक स्टडी में पाया गया कि 65 साल से ज्यादा आयु के लोगों को इसका खतरा ज्यादा है, हालांकि रिइंफेक्शन दुर्लभ है.

डॉ. पारिख आगे ये कहते हैं, “इसका कारण ये माना जाता है कि संक्रमण के प्रति जो इम्यून रिस्पॉन्स उनमें विकसित होती है वो स्वस्थ युवाओं द्वारा विकसित इम्यून रिस्पॉन्स की तरह मजबूत नहीं होती है.” ये कुछ कोमॉर्बिड(अन्य बीमारी से ग्रसित) केस जैसे थैलेसीमिया वाले लोगों के मामले में भी है.

हालांकि शुरूआत में COVID रिइंफेक्शन को बहुत दुर्लभ माना गया था, लेकिन समय के साथ, ज्यादा टेस्ट और ज्यादा स्टडी से विशेषज्ञों ने 1 से 10% के बीच कहीं न कहीं रिइंफेक्शन होने की संभावना जताई है.

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क्या रिइंफेक्शन ज्यादा गंभीर हो सकते हैं?

डॉ. स्वप्निल पारिख एक केस सीरीज स्टडी जिसमें दुनिया में सबसे पहले ये दिखाया गया कि रिइंफेक्शन ज्यादा गंभीर हो सकते हैं, उसका हिस्सा भी रह चुके हैं, बताते हैं-

“अधिकांश रिइंफेक्शन की संभावना इतनी गंभीर नहीं है. लेकिन लोगों के एक छोटे सबसेट में ये ज्यादा गंभीर हो सकते हैं.”
डॉ. स्वप्निल पारिख
ये उन लोगों के मामले में विशेष रूप से सही है, जिन्होंने पहली बार में कोई भी या हल्के लक्षण भी विकसित नहीं किए थे.

ICMR स्टडी ये भी कहता है कि कुछ केस में पहले के मुकाबले रिइंफेक्शन में ज्यादा गंभीर स्थिति होती है.

“प्रतिभागियों का एक बड़ा अनुपात एसिम्प्टोमेटिक था और उनमें पहले एपिसोड के दौरान उच्च सीटी(CT Value) वैल्यू थी.”

इसका मतलब है कि रिइंफेक्शन की गंभीरता पैथोजेन से लड़ने के लिए आपके शरीर की तैयारी पर निर्भर करेगी. ऐसा भी हो सकता है कि एक हल्के या एसिम्प्टोमेटिक संक्रमण से आपके शरीर में पर्याप्त एंटीबॉडी न बन सके या वैसी मेमोरी डेवलप न हो सके ताकि दूसरी बार वायरस से आसानी से लड़ा जा सके.

क्या वैक्सीनेशन मदद कर सकता है?

वैक्सीन गंभीरता को कम करने और संक्रमण को रोकने में कारगर सिद्ध होते हैं, लेकिन वैक्सीन से मिलने वाली सुरक्षा कितने लंबे समय तक चलेगी, इसे लेकर कोई निश्चित डेटा नहीं है.

हालांकि वैक्सीन लेने के बाद भी COVID होने के मामले दुर्लभ हैं.

वैक्सीनेशन और प्राकृतिक संक्रमणों से किसी व्यक्ति को कम से कम कुछ महीनों के लिए संक्रमण से बचाव मिलता है. फाइजर-बायोएनटेक ने एक बयान जारी करते हुए कहा था कि उनके COVID वैक्सीन से कम से कम 6 महीने तक सुरक्षा मिलती है.

लेकिन फिर सवाल वही है कि कोई व्यक्ति कितने समय तक बचा रह सकता है, ये कुछ चीजों पर निर्भर करेगा, जिसमें उनके शरीर का अपना इम्यून रिस्पॉन्स भी शामिल है.

“अभी ये कहना बहुत मुश्किल है कि वैक्सीनेशन के बाद कितने समय तक इम्यूनिटी बनी रहेगी. इसके 2 कंपोनेंट हैं. एक ये है कि हमारा इम्यून रिस्पॉन्स (मेमोरी और एंटीबॉडी) कब तक चलेगा और एक ये है कि वायरस कितनी तेजी से हमारे इम्यून रिस्पॉन्स को मात दे सकता है. “
डॉ. स्वप्निल पारिख
डॉ. पारिख बताते हैं कि वैक्सीनेशन के बाद इम्यूनिटी के ज्यादा मजबूत होने की संभावना होती है और वो लंबे समय तक रहती है (प्राकृतिक संक्रमण के बाद मिली इम्यूनिटी की तुलना में).

वे कहते हैं- “भले ही एंटीबॉडी टाइटर्स बाद में नीचे जा सकते हैं, फिर भी शरीर पैथोजेन को लेकर अपनी मेमोरी को बरकरार रखता है, इसलिए दोबारा वायरस से संपर्क के मामले में, इम्यून रिस्पॉन्स जल्दी विकसित होगी. इसलिए एक व्यक्ति संक्रमित तो हो सकता है लेकिन उसके ज्यादा गंभीर होने की संभावना नहीं है.”

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वैरिएंट और रिइंफेक्शन का जोखिम

वैरिएंट एक बड़ी चुनौती है जो हमारे वैक्सीनेशन की कोशिशों पर पानी फेरने की धमकी देता है.

यूके वैरिएंट (B 1.1.7) और साउथ अफ्रीकन वैरिएंट (B.1.351) समेत कुछ वैरिएंट न सिर्फ ज्यादा संक्रामक माने जा रहे हैं, बल्कि फिलहाल इस्तेमाल में आने वाले वैक्सीन को भी बेअसर करने में सक्षम प्रतीत होते हैं.

“जब तक वायरस में बदलाव नहीं होता है, तब तक व्यापक प्रसार की संभावना नहीं होती है. साउथ अफ्रीका में पहचाने गए B.1.351 जैसे कुछ वैरिएंट के मामले में, अगर एंटीजेनिक बदलाव होता है, तो रिइंफेक्शन मुमकिन हो सकता है.”

डॉ. स्वप्निल पारिख

पिछले लेख में फिट से बात करते हुए, अशोका यूनिवर्सिटी में त्रिवेदी स्कूल ऑफ बायोसाइंसेज के डायरेक्टर और वायरोलॉजिस्ट डॉ. शाहिद जमील ने बताया थी कि कैसे व्यापक वैक्सीनेशन म्यूटेशन और वैरिएंट के खतरे पर काबू रखने में मदद कर सकता है.

वे कहते हैं- "जितना ज्यादा आप वायरस के प्रसार को सीमित करते हैं, उतना ही आप म्यूटेशन को रोकेंगे. थोड़ी देर बाद, ये म्यूटेशन वायरस के लिए हानिकारक हो जाते हैं और ये इवॉल्यूशन (विकास) में स्वाभाविक है."

आप संक्रमण को कैसे रोक सकते हैं?

इस सवाल का जवाब बहुत हद तक संक्रमण की रोकथाम की तरह ही है.

यहां तक कि स्वस्थ युवा व्यक्तियों को भी ये सलाह दी जाती है कि वे सार्वजनिक रूप से मास्क का इस्तेमाल और सामाजिक दूरी का पालन जारी रखें क्योंकि आप अभी भी वाहक हो सकते हैं जिससे अन्य लोगों को संक्रमित कर सकते हैं जो इस वायरस के प्रति ज्यादा वल्नरेबल(कमजोर) हैं.

सलिए इभले ही आप एक बार संक्रमित हो चुके हों या आपको वैक्सीन लग चुकी हो- COVID उपयुक्त व्यवहार जारी रखें खासतौर पर तब जब आप बजुर्ग हों और कोमॉर्बिड हैं.

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