नोवेल कोरोनावायरस की वजह से दुनियाभर में अब तक 9,840 से ज्यादा लोगों की मौत हो चुकी है. जबकि इस वायरस से संक्रमण के 2,34,073 से ज्यादा मामले सामने आए हैं. जबकि हम सभी इस बीमारी के बारे में बहुत कुछ पढ़ और सुन रहे हैं, फिर भी कुछ सवाल बने हुए हैं.
फिट की ओर से लगातार हर फील्ड के डॉक्टरों से बात की जा रही है ताकि इसके कारण उपजे हालात को बेहतर तरीके से समझा जा सके और जरूरी कदम उठाए जा सकें.
गुरुग्राम के आर्टेमिस हॉस्पिटल में मेडिकल सर्विसेज के चीफ और क्रिटिकल केयर स्पेशलिस्ट डॉ सुमित रे यहां समझा रहे हैं- सामान्य फ्लू और COVID-19 के लक्षणों में क्या अंतर है, किन लोगों के लिए ये जानलेवा हो सकता है, हर किसी के लिए बचाव के उपाय करना क्यों जरूरी है, भारत के लिए इसे तेजी से फैलने से रोकना क्यों बहुत जरूरी है.
COVID-19 और फ्लू
डॉ रे के मुताबिक लक्षणों के आधार पर कोरोनावायरस का इंफेक्शन और फ्लू में अंतर करना मुश्किल है क्योंकि दोनों में बदन में दर्द, बुखार, खांसी और गंभीर मामलों में सांस का फूलना होता है.
नोवल कोरोनावायरस से किन लोगों को ज्यादा खतरा?
बुजुर्गों के लिए नोवल कोरोनावायरस का संक्रमण ज्यादा खतरनाक हो सकता है, यहां तक कि जानलेवा साबित हो सकता है. डायबिटीज, हाइपरटेंशन, दिल की बीमारी और कमजोर इम्यूनिटी वाले लोगों के लिए ये कोरोनावायरस खतरनाक है.
डॉ रे चीन और इटली के डेटा के मुताबिक बताते हैं:
- 40 साल की उम्र तक 500 संक्रमितों में से 1 की जान जा सकती है, पर 40 के बाद ये खतरा थोड़ा बढ़ जाता है.
- 50 की उम्र तक वाले संक्रमितों में 200 में से 1 की जान जा सकती है.
- वहीं 70 की उम्र के ऊपर बहुत ज्यादा खतरा बढ़ जाता है, इस एज ग्रुप में हर 10 में से 1 जान खतरे में हो सकती है.
ऐसा नहीं है कि युवा लोगों के लिए ये खतरनाक नहीं है और ये भी नहीं है कि जो लोग इससे संक्रमित होते हैं, उन सभी के लिए ये जानलेवा साबित हो.डॉ सुमित रे
हम अगर युवा हैं, तो हो सकता है कि हमारे लिए ज्यादा खतरा न हो, लेकिन ये हमारे जरिए फैल सकता है और हमारे साथ रहने वाले बुजुर्गों, जिनकी उम्र 65-70 साल से ऊपर है, उनके लिए ये बहुत खतरनाक हो सकता है.
COVID-19: भारत में न हों इटली जैसे हालात, ऐसे में क्या जरूरी है?
ये जरूरी है कि हम इसके इंफेक्शन को तेजी से बढ़ने से रोकें. ये इसलिए जरूरी है क्योंकि इसकी कोई दवाई अभी भी नहीं आई है. लक्षणों के आधार पर इलाज करना होता है. वहीं जिनको गंभीर बीमारी होती है, उनके लिए वेंटिलेटर की जरूरत पड़ती है.
डॉ रे समझाते हैं कि अगर किसी बीमारी के 2 दिन में 5 हजार मामले सामने आते हैं, तो हेल्थकेयर सिस्टम पर एक साथ ज्यादा दबाव पड़ेगा और हालात मुश्किल हो जाएंगे, वहीं अगर यही 5 हजार मामले 20 दिन में आते हैं, तो बहुत फर्क पड़ेगा.
वो कहते हैं कि अगर हेल्थ सिस्टम को तैयारी का वक्त मिल जाता है, तो किसी भी प्रकोप पर काबू पाना आसान हो जाता है.
इटली और दक्षिण कोरिया में सामने आए मामलों में ये अंतर है कि इटली में लोगों में ये इंफेक्शन बहुत तेजी से फैला और तेजी से फैलने के कारण अस्पतालों के बेड जल्दी भर गए और सभी का इलाज करना मुश्किल हो गया. वहीं दक्षिण कोरिया में मामले बढ़े हैं, लेकिन धीरे-धीरे बढ़े हैं.डॉ सुमित रे
इसलिए जरूरी है कि ये इंफेक्शन तेजी से बहुत सारे लोगों में न फैलने पाए.
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