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हर 2 में से 1 डायबिटीज का मरीज अपनी बीमारी से अनजान क्यों?

डायबिटीज से पीड़ित हर दो भारतीयों में से एक को अपने डायबिटिक होने की जानकारी नहीं है.

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डायबिटीज से पीड़ित हर 2 भारतीयों में से करीब 1 को अपने डायबिटिक होने की जानकारी नहीं है. यही नहीं करीब 75 फीसदी मरीज डायबिटीज कंट्रोल नहीं कर पाते. ये बात ‘वैरिएशन इन हेल्थ सिस्टम परफॉर्मेंस फॉर मैनेजिंग डायबिटीज एमॉन्ग स्टेट्स इन इंडिया: ए क्रॉस सेक्शनल स्टडी ऑफ इंडिविजुअल्स एज्ड 15 टू 49 इयर्स’ नाम की स्टडी में सामने आई है.

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डायबिटीज है, तो आप इससे अनजान क्यों?

डायबिटीज पहले ही भारत के लिए एक चुनौती है, वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गनाइजेशन का अनुमान है कि 2030 तक भारत में 9.8 करोड़ लोग डायबिटीज से जूझ रहे होंगे.

ऐसे में ज्यादातर डायबिटिक लोगों को अपनी हालत की जानकारी न होना और भी मुश्किलें खड़ी कर सकता है.

1. साइलेंट डिजीज है डायबिटीज

विशेषज्ञों के मुताबिक डायबिटीज एक साइलेंट बीमारी है, इसलिए लोगों को पता ही नहीं चल पाता, खासकर शुरुआती स्टेज में, कि वे इससे जूझ रहे हैं.

गुरुग्राम के फोर्टिस मेमोरियल रिसर्च इंस्टिट्यूट में डायबिटीज, एंडोक्रिनोलॉजी और मेटाबॉलिक डिसऑर्डर डिपार्टमेंट के एडिशनल डायरेक्टर डॉ अतुल लुथरा फिट को बताते हैं कि पेशेंट को शुरुआत में कुछ बहुत गंभीर महसूस नहीं होता, इसलिए वे कोई जांच नहीं कराते.

2. रेगुलर हेल्थ चेकअप न कराना

डायबिटीज से पीड़ित हर दो भारतीयों में से एक को अपने डायबिटिक होने की जानकारी नहीं है.
हमें भी अपने ब्लड-ग्लूकोज लेवल की निगरानी के लिए रेगुलर हेल्थ चेकअप की जरूरत है.
(फोटो: iStock)

डॉ लुथरा बताते हैं, दूसरी वजह ये है कि हमारे देश में लोग अपना हेल्थ चेकअप नहीं कराते.

30-35 की उम्र के बाद हम जिन सालाना हेल्थ चेकअप की सलाह देते हैं, वो लोग करवाते नहीं हैं. अगर लोग एनुअल हेल्थ चेकअप कराएं या कोई भी लक्षण नजर आने पर टेस्ट कराएं, तो डायबिटीज का जल्दी पता चलेगा.
डॉ अतुल लुथरा, एडिशनल डायरेक्टर, डायबिटीज एंड एंडोक्रिनोलॉजी, फोर्टिस

इंडियास्पेंड की इस रिपोर्ट में पब्लिक हेल्थ फाउंडेशन ऑफ इंडिया (PHFI) में सहायक प्रोफेसर और इस स्टडी के सह-लेखक आशीष अवस्थी के मुताबिक विकसित देशों की तरह, हमें भी अपने ब्लड-ग्लूकोज लेवल की निगरानी के लिए रेगुलर हेल्थ चेकअप की जरूरत है. यहां, हम हेल्थ चेक-अप तभी कराते हैं, जब किसी ऑर्गनाइजेशन में हेल्थ सर्टिफिकेट जमा करना हो.

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3. जागरुकता की कमी

डॉ लुथरा बताते हैं कि कुछ फैक्टर्स और संकेत हैं, जिनके प्रति जागरूक रहने की जरूरत है. वो कहते हैं, डायबिटीज होने का खतरा उन लोगों को ज्यादा होता है, जिनमें कुछ फैक्टर्स पॉजिटिव हों:

  • डायबिटीज की फैमिली हिस्ट्री: पैरेंट्स या भाई-बहनों को डायबिटीज हो
  • मोटापा: जिनमें मोटापा है, उन्हें ज्यादा ध्यान देना चाहिए, हालांकि ऐसा नहीं है कि डायबिटीज सिर्फ मोटे लोगों को होता है
  • एक्सरसाइज न करना: जो लोग कोई एक्सरसाइज नहीं करते, फिजिकली एक्टिव नहीं रहते
  • कमर का माप ज्यादा होना: जिनका वजन ज्यादा हो, पेट निकला हुआ हो
  • कोलेस्ट्रॉल, ट्राइग्लिसराइड ज्यादा होना: ऐसे लोगों में डायबिटीज ज्यादा देखा जाता है
डायबिटीज से पीड़ित हर दो भारतीयों में से एक को अपने डायबिटिक होने की जानकारी नहीं है.
कुछ फैक्टर्स पर ध्यान देने की जरूरत होती है.
(फोटो: iStock)

डॉ लुथरा कहते हैं कि कुछ ऐसे लक्षण हैं, जिनको लेकर अलर्ट रहना चाहिए. जैसे- बहुत ज्यादा प्यास लगे, बहुत ज्यादा पेशाब हो, वजन कम हो रहा हो, बहुत ज्यादा थकान हो रही हो, शरीर में हुआ कोई इंफेक्शन ठीक न हो रहा हो, घाव न भर रहा हो. ये लक्षण दिखने पर डायबिटीज की जांच जरूर करानी चाहिए.

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4. प्री-डायबिटीज स्टेज को नजरअंदाज करना

डॉ अतुल लुथरा बताते हैं कि डायबिटीज से पहले एक स्टेज होती है, जिसे प्री-डायबिटीज कहते हैं, इस पर ज्यादातर लोग ध्यान नहीं देते. उनके मुताबिक हमारे देश में जितने डायबिटिक लोग हैं, उतने ही प्री-डायबिटिक लोग भी हैं.

हमारे यहां अगर साढ़े सात करोड़ डायबिटिक लोग हैं, तो साढ़े सात करोड़ प्री-डायबिटिक लोग भी हैं और इन लोगों को डायबिटीज होने की आशंका बहुत ज्यादा होती है. 

डॉ लुथरा सुझाव देते हैं कि प्री-डायबिटीज स्टेज में ही डाइट, एक्सरसाइज और मेडिसिन शुरू कर देनी चाहिए.

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स्टडी में निकाले गए कुछ और निष्कर्ष

ग्रामीण भारत की औरतों के मुकाबले पुरुषों को ज्यादा खतरा

इस स्टडी में पाया गया कि ग्रामीण भारत के उन आदमियों में जो कम पढ़े-लिखे हैं और जिनकी घरेलू संपत्ति कम है, उनमें डायबिटीज का प्रसार ज्यादा था. जबकि महिलाओं की स्थिति बेहतर पाई गई और अनुमान है कि इसकी वजह प्रसवपूर्व देखभाल के दौरान गर्भकालीन डायबिटीज के लिए रेगुलर टेस्ट है.

सर्वेक्षण में शामिल 729,829 प्रतिभागियों में से 3.3 फीसदी (19,453) डायबिटीज से पीड़ित थे. इनमें से, 52.5 फीसदी (10,213) जानते थे कि उन्हें डायबिटीज था, जबकि 40.5 फीसदी ने इसके लिए उपचार की मांग की थी और केवल 24.8 फीसदी लोग डायबिटीज कंट्रोल कर पाए थे. बाकी 75.2 फीसदी रोगियों की "देखभाल तक पहुंच" नहीं थी, जिसमें एक बड़ी तादाद इसे लेकर जागरुकता के स्तर पर ही पीछे रह गई.

स्टडी में ये भी पाया गया कि 47 फीसदी रोगियों की जान ‘देखभाल नहीं हो पाने’ और कई की फॉलोअप की कमी के कारण गई.

वायु प्रदूषण भी जिम्मेदार

डायबिटीज से पीड़ित हर दो भारतीयों में से एक को अपने डायबिटिक होने की जानकारी नहीं है.
टाइप 2 डायबिटीज से होने वाली मौतों के लिए पार्टिकुलेट मैटर (पीएम 2.5) तीसरा प्रमुख जोखिम कारक था.
(फोटो: iStock)

इस अध्ययन में भारतीयों में डायबिटीज के प्रसार में तेजी से वृद्धि के लिए एक प्रमुख कारक के रूप में वायु प्रदूषण को माना गया है.

स्टेट ऑफ ग्लोबल एयर-2019 की रिपोर्ट के अनुसार, हाई ब्लड शुगर और अधिक वजन के बाद, 2017 में टाइप 2 डायबिटीज से होने वाली मौतों के लिए पार्टिकुलेट मैटर (पीएम 2.5) तीसरा प्रमुख जोखिम कारक था.
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डायबिटीज का पता चलने पर भी इलाज में देरी क्यों?

डायबिटीज से पीड़ित हर दो भारतीयों में से एक को अपने डायबिटिक होने की जानकारी नहीं है.
कुछ ऐसे लक्षण हैं, जिनको लेकर अलर्ट रहना चाहिए.
(फोटो: iStock)

मद्रास डायबिटीज रिसर्च फाउंडेशन के डॉ विश्वनाथन मोहन इसके लिए नैदानिक जड़ता को जिम्मेदार मानते हैं. इसका जिक्र उन्होंने जर्नल ऑफ डायबेटोलोजी में नवंबर 2018 के संपादकीय में किया है.

मद्रास डायबिटीज रिसर्च फाउंडेशन के डॉ विश्वनाथन मोहन इंडियास्पेंड को बताते हैं कि कभी-कभी किसी रोगी में शुगर का लेवल अधिक हो सकता है और हम उन्हें इंसुलिन लेना शुरू करने की सलाह दे सकते हैं. कई रोगी परिवार में शादी जैसे बहाने देते हैं, जिसके कारण बहुत अधिक मिठाई का सेवन किया जाता है.

वे शुगर लेवल को नीचे लाने के लिए कुछ महीनों का समय मांगते हैं, लेकिन कम से कम एक साल तक वापस नहीं आते, तब तक बहुत देर हो जाती है.
इंडियास्पेंड से डॉ विश्वनाथन मोहन, मद्रास डायबिटीज रिसर्च फाउंडेशन

इसके अलावा वे व्हाट्सएप और सोशल मीडिया पर फर्जी खबरों को भी एक कारण मानते हैं, जिससे कई मरीज गुमराह हो जाते हैं.

हालांकि, लगभग आधे मरीज जो जागरूक हैं, वे भी अपने डायबिटीज पर काबू क्यों नहीं पाते, इसके जवाब में तिरुवनंतपुरम के डायबेटोलॉजिस्ट ज्योतिदेव केसवदेव इंडियास्पेंड से बताते हैं, "लोगों का मानना है कि आधुनिक दवाओं के दुष्प्रभाव होते हैं और दूसरी चीजों के नहीं. रोगी वैकल्पिक दवाओं की तलाश करते रहते हैं या फिर मामला बहुत जटिल हो जाने के बाद ही आधुनिक चिकित्सा तक पहुंचते हैं, इसलिए ऐसा होता है."

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