अगर आप भी उन पेरेंट्स में से हैं, जो अपने छोटे बच्चों को खाना खिलाते समय या उन्हें व्यस्त रखने के लिए उनके हाथ में स्मार्टफोन या टैबलेट थमा देते हैं, तो वक्त रहते संभल जाइए क्योंकि ये आदत उन्हें न केवल आलसी बना सकती है, बल्कि उनकी उम्र के शुरुआती दौर में ही उन्हें डिजिटल एडिक्शन की ओर धकेल सकती है.
अमेरिकन अकेडमी ऑफ पीडियेट्रिक्स के अनुसार, 18 महीने से कम उम्र के बच्चों के लिए केवल 15-20 मिनट ही स्क्रीन पर बिताना स्वास्थ्य के लिहाज से सही और स्वीकार्य है.
विशेषज्ञों का मानना है कि व्यस्त दिनचर्या और छोटे बच्चों की सुरक्षा के प्रति जरूरत से अधिक सुरक्षात्मक रुख रखने वाले माता-पिता अपने छोटे बच्चों को स्मार्ट स्क्रीन में व्यस्त कर रहे हैं.
डिजिटल लत का बच्चों पर असर
खिलौनों के साथ खेलने या बाहर खेलने की जगह, इतनी छोटी उम्र में उन्हें डिजिटल स्क्रीन की लत लगा देना बच्चों के हर तरह के विकास में बाधा डाल सकता है, जैसे:
- उनकी आंखों की रोशनी को खराब कर सकता है
- बचपन में ही उन्हें मोटापे का शिकार बना सकता है
- जो आगे चलकर डायबिटीज, हाई ब्लड प्रेशर और हाई कोलेस्ट्रॉल का कारण बन सकता है.
खिलौने छोटे बच्चों के दिमाग में विजुअल ज्ञान और स्पर्श का ज्ञान बढ़ाते हैं.सौम्या मुद्गल, मनोविशेषज्ञ, मैक्स हेल्थकेयर, गुरुग्राम
ज्यादा स्क्रीन टाइम छोटे बच्चों को आलसी बना सकता है और समस्या सुलझाने, अन्य लोगों पर ध्यान देने और समय पर सोने जैसी उनकी ज्ञानात्मक क्षमताओं को स्थाई रूप से नष्ट कर सकता है.
स्वास्थ्य विशेषज्ञ सलाह देते हैं कि बच्चों के लिए स्क्रीन पर सामान्य समय बिताने की सही उम्र 11 साल है.
लेकिन, ब्रिटेन की ऑनलाइन ट्रेड-इन आउटलेट म्यूजिक मैगपाई ने पाया कि छह साल या उससे छोटी उम्र के 25 प्रतिशत बच्चों के पास अपना खुद का मोबाइल फोन है और उनमें से करीब आधे अपने फोन पर हर हफ्ते 21 घंटे तक का समय बिताते हैं. इस दौरान वे स्क्रीन पर गेम्स खेलते हैं और वीडियोज देखते हैं.
पैरेंट्स के लिए एक्सपर्ट सलाह
विशेषज्ञ माता-पिता को अपने बच्चों को स्क्रीन पर 'ओपन-एंडिड' कॉन्टेंट में व्यस्त करने की सलाह देते हैं, ताकि ये एप पर समय बिताने के दौरान उनकी रचनात्मकता को बढ़ाने में मदद करे और यह उनके लिए केवल इनाम या उनका ध्यान बंटाने के लिए इस्तेमाल किए जाने की जगह उनके ज्ञानात्मक विकास में योगदान दे.
हालांकि, थोड़ी देर और किसी की निगरानी में स्क्रीन पर समय बिताना नुकसानदायक नहीं है.
टेक्नोलॉजी बच्चे के सामान्य सामाजिक मेल-जोल और आसपास के परिवेश से सीखने में बाधा नहीं बननी चाहिए.डॉ मुद्गल
एक बार स्मार्ट फोन या टेबलेट की लत लगने पर बाद में उन्हें स्क्रीन पर ज्यादा समय बिताने से रोकने पर बच्चों में चिड़चिड़ा व्यवहार, जिद करना, सोने, खाने या फिर जागने में नखरे करने जैसे विदड्रॉल सिम्पटम की परेशानियां हो सकती हैं.
विशेषज्ञों का मानना है कि बच्चों को डिजिटल लत से दूर रखने के लिए माता-पिता को न केवल बच्चों के लिए बल्कि खुद के लिए भी घर में डिजिटल उपकरणों से मुक्त जोन बनाने चाहिए, खासतौर पर खाने की मेज पर और बेडरूम में.
डॉ मुद्गल के मुताबिक बच्चे वही सीखते हैं, जो वे देखते हैं. बच्चों को इस लत से दूर रखने के लिए माता-पिता को उनके सामने खुद भी सही उदाहरण रखना चाहिए.
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