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प्रधानमंत्री जी, डिस्लेक्सिया कोई मजाक नहीं है,जानिए क्या है ये

पीएम के इस रवैये को ट्विटर पर कई लोग असंवेदनशील बता रहे हैं.

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युवाओं संग एक लाइव कार्यक्रम में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एक लर्निंग डिसऑर्डर के जिक्र पर भी राजनीतिक व्यंग्य करने से परहेज नहीं किया. रविवार को जब देहरादून की एक छात्रा पीएम के सामने डिस्लेक्सिया से जूझ रहे बच्चों में शुरुआती स्टेज पर इसकी पहचान के लिए अपनी टीम का आइडिया शेयर कर रही थी. इस बीच पीएम ने राजनीतिक विरोधियों पर चुटकी ली.

'स्मार्ट इंडिया हैकॉथन 2019' के ग्रैंड फिनाले में पीएम देश की कई समस्याओं पर युवाओं के सुझाए तकनीकी समाधान के बारे में जानकारी ले रहे थे.

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इस कार्यक्रम में खड़गपुर में पढ़ने वाली उत्तराखंड की एक छात्रा ने कहा,

‘हमारा आइडिया डिस्लेक्सिक लोगों पर आधारित है. डिस्लेक्सिक बच्चों की सीखने और लिखने की रफ्तार धीमी होती है, जबकि इंटेलिजेंस और क्रियटिविटी अच्छी होती है, जैसा कि तारे जमीन पर फिल्म का किरदार...’

छात्रा की बात पूरी होने से पहले पीएम बीच में ही बोल पड़े,

‘क्या 40-45 साल के बच्चे को भी ये योजना काम आएगी?’

इसके बाद पीएम संग सभी हंस पड़े और तालियां बजने लगीं, ठहाकों के बीच जब तक पीएम का ये मजाक थमता, तब तक पीएम ने एक और तीखी चुटकी ली,

‘तब ऐसे बच्चों की मां बहुत खुश हो जाएगी.’

इस राजनीतिक तंज के बाद छात्रा ने बताया कि शुरुआती स्टेज पर डिस्लेक्सिया का पता लगाने के लिए उन लोगों ने सॉफ्टवेयर तैयार किया है, जो कई लेवल पर बच्चों में इस समस्या की जांच करेगा. पीएम ने पूछा कि क्या इसमें बच्चों के क्लिनिकल एनालिसिस का एलिमेंट होगा क्योंकि हरेक में इस कंडिशन के रिफ्लेक्शन अलग-अलग होंगे. टीम ने बताया कि इस पर काम चल रहा है.

राजनीतिक विरोधियों का मजाक उड़ाने के लिए डिस्लेक्सिया से जूझ रहे लोगों को आधार बना कर पीएम की टिप्पणी को ट्विटर पर लोग असंवेदनशील बता रहे हैं.

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नेशनल प्लेटफॉर्म फॉर द राइट्स ऑफ द डिसएबल्ड (NPRD) ने पीएम मोदी की इस टिप्पणी को अपमानजनक और असंवेदनशील बताते हुए इसकी आलोचना की है.

NPRD के मुताबिक एक स्टूडेंट के पूछे सवाल का जवाब देने की बजाए, पीएम मोदी ने अपने राजनीतिक प्रतिद्वंद्वियों पर निशाना साधा. ये सब अधिक अफसोसजनक है क्योंकि डिस्लेक्सिक लोगों के लिए ऐसी असंवेदनशील प्रतिक्रिया एक ऊंचे पद के व्यक्ति की ओर से आई है.

ऐसा रवैया एक ऐसे व्यक्ति का है, जिसने विकलांगता की तुलना दिव्यता से करते हुए 'दिव्यांग' शब्द गढ़ा था. 2014 के लोकसभा चुनाव प्रचार के दौरान भी नरेंद्र मोदी ने अपने प्रतिद्वंद्वियों को नीचा दिखाने के लिए अंधा, बहरा, लंगड़ा जैसे शब्दों का इस्तेमाल किया था.

उनके कुछ राजनीतिक प्रतिद्वंद्वी भी ऐसी ही प्रवृत्ति प्रदर्शित करते हैं. कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने पीएम को सिजोफ्रेनिक कहा था. दूसरे नेताओं ने भी इसी तरह का रवैया दिखाया है.

पीएम को किसी भी परिस्थिति में ऐसी टिप्पणी नहीं करनी चाहिए. यह विकलांग व्यक्तियों के अधिकार अधिनियम, 2016 के मुताबिक उनके प्रति सम्मान के खिलाफ है. कम से कम पीएम अपनी टिप्पणी के लिए माफी मांग सकते हैं.

डिस्लेक्सिया क्या है?

डिस्लेक्सिया एक लर्निंग डिसऑर्डर है, जिससे 3-7 फीसदी बच्चे ग्रस्त होते हैं.

दुनिया के सबसे स्मार्ट लोगों में से भी कुछ लोगों को डिस्लेक्सिया रहा है. लियोनार्डो द विंसी, पिकासो, वॉल्ट डिजनी, एल्बर्ट आइंस्टीन कुछ ऐसे ही नाम हैं.

पीएम के इस रवैये को ट्विटर पर कई लोग असंवेदनशील बता रहे हैं.
डिस्लेक्सिया एक लर्निंग डिसऑर्डर है.
(फोटो: iStock)

ये दिमाग की एक अवस्था है, जिसमें किसी व्यक्ति विशेष को पढ़ने या किसी शब्द की सही स्पेलिंग बोलने में कठिनाई होती है. यह कठिनाई इसलिए होती है क्योंकि डिस्लेक्सिया प्रभावित ब्रेन को निश्चित प्रकार की इंफॉर्मेशन को प्रोसेस करने में मुश्किल होती है.

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फिट के एक आर्टिकल में साइकोलॉजिस्ट प्राची जैन समझाती हैं,

उदाहरण के लिए ‘b’ और ‘d’ में समानता होने के कारण ब्रेन हमेशा इन दोनों में अंतर नहीं कर पाता है. और वह इन दोनों को समान रूप में ही प्रयोग करता है.

स्पेलिंग गलत बोलना और पढ़ने में कठिनाई डिस्लेक्सिया के स्पष्ट लक्षण हैं. इससे प्रभावित बच्चे लेटर्स को मैच करने या उन्हें बोलने में अक्सर कन्फ्यूज हो जाते हैं. ऐसा पढ़ते समय या उन्हें बोलते समय होता है.

देखभाल करने वाले और टीचर्स को यह ध्यान देना होगा कि ऐसे बच्चे हावभाव और ऑब्जर्वेशन के जरिए ही बेहतर तरीके से सीख सकते हैं. कभी-कभी डिस्लेक्सिया प्रभावित को पढ़ते समय देखने में कठिनाई हो सकती है. हालांकि ऐसे में आंखों की जांच से कुछ भी पता नहीं लग सकता है.

ऐसे बच्चे बोलने में कमजोर होते हैं. वे शुरुआती तौर पर इमेज के रूप में (शब्द में नहीं) सोचते हैं. अपनी सोच को शब्दों में रखने में होने वाली कठिनाई के कारण ही वे रुक-रुक कर बोलते हैं.

इसमें दो बातें याद रखनी है. इस संबंध में हमेशा प्रोफेशनल्स से ही सलाह लें. दूसरा, दो डिस्लेक्सिया प्रभावित व्यक्तियों में एक समान लक्षण नहीं होते हैं.

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कैसे करें डिस्लेक्सिक बच्चों की मदद?

डिस्लेक्सिया से जूझ रहे बच्चे की क्लासरूम के साथ-साथ घर पर भी कई तरीके से मदद की जा सकती है. लेकिन सबसे पहले ये भी ख्याल रखना चाहिए कि डिसऑर्डर एडवांस स्टेज पर ना पहुंचा हो. शुरुआत में ही इस डिसऑर्डर का पता लगना और इस संबंध में मदद मिलना, बच्चे के एस्टीम और परफॉर्मेंस के लिए बेहतर होता है.

टीचर्स और पैरेंट्स को बच्चों के साथ समय देना चाहिए. इससे वह शुरुआती स्तर पर बच्चे को लिखना सिखा सकेंगे. लिखने की प्रैक्टिस कराना बहुत जरूरी है.

रिसर्च में भी सामने आ चुका है कि मैनुस्क्रिप्ट लेसन बच्चों को पढ़ने में मदद करता है. बच्चा जितनी जल्दी लिखना और एल्फाबेट पढ़ना सीख जाएगा, वह उतना ही कुशल होगा.

डिस्लेक्सिया प्रभावितों में चीजों को रिपीट करना प्रमुख रूप से होता है. ऐसे में देखभाल करने वाले को धैर्य रखना चाहिए. यह याद रखना सबसे महत्वपूर्ण है कि यह एक धीमी प्रक्रिया है. शुरू से परफेक्शन की उम्मीद न रखें और कभी हिम्मत न हारें.

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