बच्चे, वैप (vape) से दूर रहें. अगर आप वैपिंग नहीं करने की कोई और वजह ढूंढ रहे हैं- तो ये पढ़ें जो आगे बताया गया है. सीएनएन की रिपोर्ट के मुताबिक, अमेरिका में एक शख्स इलेक्ट्रॉनिक सिगरेट पी रहा था और इस दौरान ई-सिगरेट फट जाने से उसकी मौत हो गई. धमाके से उसके चेहरे, गर्दन और गले में मेटल के टुकड़े धंस गए थे और उसकी कैरोटिड आर्टरी फट गई थी.
ई-सिगरेट या वैप पेन, जैसा कि इसका लोकप्रिय नाम है, में एक बैटरी, मेटल स्टिक और निकोटिन, प्रोपिलीन ग्लाइकोल व ग्लिसरीन जैसे केमिकल भरे होते हैं. बैटरी से चलने वाली मशीन भाप बनाने के लिए एक लिक्विड को गर्म करती है, जिसे आम सिगरेट के धुएं की तरह सांस से अंदर खींचा जा सकता है.
इसलिए अगर आप इस मशीन को अपने मुंह में लगाना चाहते हैं, तो जान लीजिए कि केमिकल से होने वाले नुकसान के अलावा मशीन में भी गड़बड़ी हो सकती है.
टेक्सास निवासी 24 वर्षीय शख्स के डेथ सर्टिफिकेट (मृत्यु प्रमाण पत्र) में कहा गया है कि उसकी मौत सेरिब्रेल इन्फार्क्शन (दिमागी रोधगलन) और हर्नियेशन से हुई. इस तरह का ये कोई पहला मामला नहीं है और अतीत में ऐसी घटनाएं हुई हैं. सीएनएन की रिपोर्ट में कहा गया है कि अमेरिका में 2009 और 2016 के बीच ई-सिगरेट में आग लगने और धमाके की 195 घटनाएं हुई हैं.
क्या स्मोकिंग से बेहतर है वैपिंग?
अध्ययन और विशेषज्ञों की कोई पक्की राय नहीं हैं. वर्षों से, जैसा कि सभी मेडिकल अध्ययनों में होता है, जिसमें कई हितधारक शामिल हैं, इस बात को लेकर अलग-अलग मत हैं कि ई-सिगरेट कितनी नुकसानदायक है और क्या वे वाकई स्मोकिंग छोड़ने में मददगार उपकरण है.
इन्हें पहली बार 2000 के दशक की शुरुआत में तंबाकू स्मोकिंग को छोड़ने के “सुरक्षित तरीके” के रूप में बनाया और बाजार में उतारा गया था, लेकिन डिवाइस का पेटेंट बहुत पहले 1963 में कराया था, जब स्मोकिंग को इतने बड़े हेल्थ रिस्क के रूप में नहीं देखा जाता था.
हालांकि, 2008 में भी विश्व स्वास्थ्य संगठन ने स्मोकिंग छोड़ने के एक सुरक्षित उपाय के रूप में ई-सिगरेट की आलोचना की और कहा कि इसकी सुरक्षा और असर के पीछे कोई साक्ष्य नहीं हैं. इसके बाद, एक ई-सिगरेट निर्माता द्वारा फाइनेंस किया एक अध्ययन जारी किया गया, जिसमें इसे तंबाकू स्मोकिंग की तुलना में 100 से 1,000 गुना कम खतरनाक घोषित किया गया.
वैपिंग को सही साबित करने और खारिज करने का यह सिलसिला जारी है. हाल के अध्ययनों ने सख्ती से चेतावनी दी है कि यह एक सुरक्षित विकल्प नहीं है, जबकि कुछ यह दावा करते हैं कि यह स्मोकिंग की तुलना में “बेहतर” है.
यह बात कि स्मोकिंग से वैपिंग सिर्फ “बेहतर” है, शक की गुंजाइश छोड़ देती है. अगर तुलना करते हुए नहीं देखा जाए, तब भी इंसान इससे बड़ी मात्रा में विषाक्त पदार्थों के संपर्क में आता है.
भारत में वैपिंग कल्चर
वैपिंग को स्मोकिंग छोड़ने के एक उपाय के रूप में प्रचारित किया जा सकता है, लेकिन अमेरिका जैसे देशों की संस्कृति में यह उन किशोरों का आकर्षित कर रहा है, जिन्होंने कभी स्मोकिंग नहीं की है, वह टशन मारने की नई (और स्वीकार्य) चीज के रूप में अपनाते हैं. इस तरह, ये उन्हें स्मोकिंग की दुनिया में एक सहज दाखिला देता है.
किशोरावस्था और किशोरावस्था से पहले की उम्र के नौजवान वैपिंग को अपना रहे हैं, जो उन्हें ऊंचे स्तर के खतरनाक केमिकल्स के संपर्क में लाती है क्योंकि निकोटिन, आखिरकार जहरीला ही है, फिर चाहे वह किसी भी तरह लिया जाए.
लेकिन भारत के कूल नौजवान भी पीछे नहीं रहना चाहते हैं. ग्लोबल एडल्ट टोबैको सर्वे 2017 के मुताबिक, भारत के छोटे लेकिन तेजी से बढ़ते वैपिंग समुदाय में 2.60 लाख से अधिक वैपर्स हैं और इसमें दिन-ब-दिन बढ़ोतरी हो रही है.
भारत के कुछ राज्यों, जिनमें जम्मू-कश्मीर, कर्नाटक, पंजाब, महाराष्ट्र और केरल शामिल है, ने ई-सिगरेट की बिक्री पर रोक लगा दी है, जबकि तंबाकू सिगरेट कानूनी है.
मीडिया रिपोर्टों के अनुसार, केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने अनुसंधान निष्कर्षों को देखते हुए 2017 में ई-सिगरेट की स्वीकार्यता को खारिज कर दिया था. अनुसंधान में विशेषज्ञों का निष्कर्ष था कि इनमें कैंसर पैदा करने वाले गुण हैं और यह नशे की तेज लत वाली है, और यह तंबाकू की स्मोकिंग का सुरक्षित विकल्प नहीं हैं.
हालांकि स्वास्थ्य विशेषज्ञ, इस दोमुंहेपन की बातों से खुश नहीं हैं. उनका कहना है कि सरकार तंबाकू सिगरेट जैसे निकोटिन युक्त घातक उत्पादों की बिक्री की इजाजत देते हुए तुलनात्मक रूप से काफी कम नुकसानदायक विकल्प पर प्रतिबंध लगा रही है.
तंबाकू उद्योग के पैरोकार जबकि यह सुनिश्चित करने में लगे हैं कि देश में तंबाकू वाली सिगरेट फलती-फूलती रहे, क्या यही पर्याप्त कारण है कि एक दूसरे जहर को भी “किशोर महामारी” बनने दिया जाए? या पाबंदी लगाने की बजाए उचित संदेश दिया जाना चाहिए कि वैपिंग किसी भी तरह से स्मोकिंग का सुरक्षित विकल्प नहीं है, और इसलिए निर्माताओं और विज्ञापनदाताओं पर उचित पाबंदियां लगाई जानी चाहिए?
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