बिहार में 150 से ज्यादा बच्चों की जान जा चुकी है, तेज बुखार के बाद कई बच्चों ने अस्पताल में इलाज के दौरान दम तोड़ा, तो कुछ अस्पताल पहुंचने से पहले ही चल बसे.
बिहार के मुजफ्फरपुर और आसपास के इलाकों में चमकी बुखार की दहशत है. एक्यूट इंसेफलाइटिस सिंड्रोम (AES)/जापानी इंसेफेलाइटिस (JE)/दिमागी बुखार को बिहार में 'चमकी' बुखार के नाम से जाना जाता है.
बिहार में बच्चों की मौत का कारण?
डॉक्टर और सरकारी अधिकारी बच्चों की मौत का कारण सीधे तौर पर इंसेफेलाइटिस कहने से बच रहे हैं. मौत की वजह पहले हाइपोग्लाइसीमिया ( ब्लड में अचानक शुगर की कमी ) या सोडियम की कमी बताई गई.
अब क्षेत्र में हुई बच्चों की मौत को एक जटिल मुद्दा बताते हुए कहा जा रहा है कि अभी कोई निश्चित कारण नहीं बताया जा सकता.
आइये, ये समझने की कोशिश करते हैं कि बिहार के 11 जिलों में बच्चों के बीमार पड़ने की जिन वजहों का जिक्र हो रहा है, वो क्या-क्या हैं और भारत में अब तक इंसेफेलाइटिस का कॉजेटिव एजेंट क्या पाया गया है.
बीमार बच्चों में देखी जा रही कॉमन बात
फिट से बातचीत में मुजफ्फरपुर के सिविल सर्जन डॉ शैलेश सिंह ने बताया कि बीमार बच्चों में लो ब्लड शुगर (हाइपोग्लाइसीमिया) या सोडियम और पोटेशियम की कमी देखी जा रही है.
ज्यादातर मामलों में यही देखा गया है कि दिन भर धूप में रहने के बाद और रात में ठीक से खाना न खाने या भूखे सोने के बाद बच्चे चमकी बुखार की चपेट में आ गए.डॉ शैलेश सिंह
उनके मुताबिक बच्चे तेज और उमस वाली गर्मी में, भूखे रहने और कुपोषण के कारण बीमार पड़ रहे हैं.
दिमागी बुखार, कुपोषण और हाइपोग्लाइसीमिया
हाइपोग्लाइसीमिया का इन मामलों से क्या कनेक्शन हो सकता है, इसके लिए ये जानना जरूरी है कि हाइपोग्लाइसीमिया है क्या और क्यों होता है.
मेयो क्लीनिक के मुताबिक हाइपोग्लाइसीमिया एक ऐसी कंडिशन है, जब ब्लड शुगर बहुत लो हो जाता है. हाइपोग्लाइसीमिया का संबंध अक्सर डायबिटीज से होता है.
हालांकि, कई तरह की स्थितियां - कई दुर्लभ - बिना डायबिटीज वाले लोगों में लो ब्लड शुगर का कारण बन सकती हैं, जैसे बुखार.
हाइपोग्लाइसीमिया अपने में कोई बीमारी नहीं है- ये किसी हेल्थ प्रॉब्लम का इंडिकेटर है.
बहुत देर तक कुछ न खाने से शरीर में ऐसी चीजों की कमी हो सकती है, जिनकी जरूरत ग्लूकोज जनरेट करने के लिए होती है, जो हाइपोग्लाइसीमिया का कारण बनता है. बच्चों में ग्रोथ हार्मोन की कमी से भी हाइपोग्लाइसीमिया की कंडिशन हो सकती है.
जब ब्लड शुगर 70 मिलीग्राम प्रति डेसिलीटर पर हो, तो हाइपोग्लाइसीमिया के तुरंत इलाज की जरूरत होती है. इसके लिए हाई-शुगर फूड या ड्रिंक या फिर दवाइयों की जरूरत होती है.
हाइपोग्लाइसीमिया का इलाज न करने पर दौरा, बेहोशी और बेहद गंभीर मामलों में मौत हो सकती है.
मैक्स हेल्थकेयर में सीनियर गैस्ट्रोएंट्रोलॉजिस्ट डॉ अश्विनी सेतिया इस पर कहते हैं कि सिर्फ हाइपोग्लाइसीमिया का अपने आप में मौत की वजह होना दुर्लभ है.
इंसेफेलाइटिस में लो हो सकता है ब्लड शुगर
मैक्स सुपरस्पेशिएलिटी हॉस्पिटल, साकेत में पीडियाट्रिक्स डिपार्टमेंट की प्रिंसिपल कसल्टेंट डॉ एस. के अरोड़ा बताती हैं कि इंसेफेलाइटिस के कारण ब्लड शुगर लो हो सकता है.
इंफेक्शन या इंफ्लेमेशन की वजह से ब्रेन के सिस्टम पड़ असर पड़ सकता है, इसमें हो सकता है कि इनटेक अच्छे से नहीं हो, हार्मोनल बैलेंस बिगड़ जाए, ब्लड शुगर लो हो जाए.डॉ एस. के अरोड़ा
लीची और इंसेफेलाइटिस
बिहार का मुजफ्फरपुर लीची के लिए जाना जाता है और यहां हर साल 1995 से लीची के मौसम में ही इंसेफेलाइटिस का प्रकोप देखा जाता रहा है.
साल 2014 में इंडियन एकेडमी ऑफ पीडीऐट्रिक्स के Misery of Mystery of Muzaffarpur लेख में बताया गया कि कुछ एक्सपर्ट्स ने लीची और मुजफ्फरपुर में अप्रैल-जुलाई में सामने आने वाले दिमागी बुखार के बीच संबंध होने की हाइपोथीसिस दी थी.
हालांकि मुजफ्फरपुर के नेशनल सेंटर फॉर लीची और इंडियन काउंसिल ऑफ एग्रीकल्चरल रिसर्च (ICAR) ने टॉक्सिकोलॉजी टेस्ट के आधार पर इस थ्योरी का खंडन किया.
मैक्स सुपरस्पेशिएलिटी हॉस्पिटल, साकेत में इंटरवेंशनल न्यूरोलॉजी के सीनियर कंसल्टेंट और हेड डॉ चंद्रिल चुग कहते हैं कि लीची से जुड़े टॉक्सिन को लेकर कुछ चिंता जताई गई है, लेकिन इसके इंसेफेलाइटिस के कारण के तौर पर अब तक पुष्टि नहीं हुई है.
लीची और हाइपोग्लाइसीमिया
न्यूट्रिशनिस्ट विश्रुता बियानी ने फिट पर पब्लिश अपने एक लेख में इस बात का जिक्र किया है कि खाली पेट लीची खाने से बचना चाहिए, खासकर जो पके न हों क्योंकि इनमें हाइपोग्लाईसीन A और मिथाइलीनसाइक्लोप्रोपाइल-ग्लाइसिन (MCPG) होता है, जिससे उल्टी और बुखार हो सकता है. हाइपोग्लाइसीन ग्लूकोज प्रड्यूस करने की शरीर की क्षमता को रोकता है और हाइपोग्लाइसीमिया का कारण हो सकता है.
भारत में इंसेफेलाइटिस
भारत में इंसेफेलाइटिस का मुख्य कारण वायरस माना जाता रहा है, हालांकि पिछले कुछ दशकों से बैक्टीरिया, फंगस, पैरासाइट, स्पिरोकैट्स, केमिकल और टॉक्सिन से भी इसके मामले रिपोर्ट किए गए हैं.
वायरल इंसेफेलाइटिस के अलावा लेप्टोस्पायरोसिस और टॉक्सोप्लाज्मोसिस का गंभीर रूप AES का कारण हो सकता है. इंसेफेलाइटिस का रोग कारक मौसम और लोकेशन के साथ बदलता है.
किसी जगह पर इंसेफेलाइटिस की मुख्य वजह का पता लगाने के लिए पुख्ता स्टडी की बात कही जाती रही है. इसलिए मुजफ्फरपुर में भी प्रभावित गांवों के हालात पर अध्ययन किए जाने की जरूरत है.
हर साल कहीं न कहीं इंसेफेलाइटिस का प्रकोप देखने को क्यों मिलता है, इसकी कोई असल वजह मालूम न होने के हालात में एक्सपर्ट बेहतर पोषण, साफ-सफाई का ख्याल, वैक्सीनेशन, लक्षणों को लेकर जागरुकता और बेहतर मेडिकल व्यवस्था के साथ जल्द से जल्द इलाज कराने की सलाह देते हैं.
इंसेफेलाइटिस की मुख्य वजह का पता करने के लिए स्टडी
मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक राजेंद्र मेमोरियल रिसर्च इंस्टिट्यूट ऑफ मेडकल साइंसेज (RMRI), पटना और नेशनल सेंटर फॉर डिजीज कंट्रोल (NCDC) चमकी तेज बुखार के पीछे मुख्य वजह का पता लगाने के लिए विशेष पहल करेगा. आरएमआरआई पटना के एक्सपर्ट्स की टीम मुजफ्फरपुर के प्रभावित गांवों में जाएगी और वहां बच्चों के रहन-सहन, भोजन पर स्टडी करेगी.
वहीं डॉक्टरों का कहना है कि गर्मी और उमस से राहत मिलने पर ही चमकी बुखार के मामलों में कमी आने की उम्मीद की जा सकती है.
(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)