फूड, सेक्स, वीडियो गेम्स, जुआ, एल्कोहल, शॉपिंग, ड्रग्स- इन सभी में आपको क्या समानता दिखती है? जवाब है, किसी भी शख्स को इन चीजों की लत लग सकती है.
आगे बढ़ने से पहले, यह समझ लेना जरूरी है कि एडिक्शन (लत) वास्तव में है क्या? सीधे शब्दों में कहें, तो यह एक बीमारी है जो आपके तंत्रिका मार्गों (न्यूरल पाथवेज) में बदलाव से होती है. और निश्चित रूप से यह इच्छाशक्ति की कमी, चरित्र की कमजोरी या नैतिक पतन नहीं है.
मुंबई के मनोचिकित्सक डॉ यूसुफ मर्चेंट कहते हैं कि एडिक्शन को चारित्रिक कमजोरी के रूप में नहीं देखा जाना चाहिए.
कोई भी जो एडिक्ट है, वह समाधान ढूंढ रहा है. क्यों न उसके एडिक्शन का समाधान निकाला जाए? असल में हम क्या करते हैं कि उस व्यक्ति को अलग-थलग कर देते हैं, जिससे वह और भी अकेला महसूस करता है.डॉ यूसुफ मर्चेंट, मनोचिकित्सक
डॉ मर्चेंट के मुताबिक एडिक्शन समस्या का एक लक्षण मात्र है.
एडिक्शन: दिमाग की एक बीमारी
यूनाइटेड नेशंस ऑफिस ऑन ड्रग्स एंड क्राइम (UNODC) और भारत के सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्रालय ने साल 2000-01 के बीच एक सर्वे कराया. इस सर्वे की रिपोर्ट साल 2004 में जारी की गई. इसके मुताबिक तकरीबन 7.32 करोड़ लोग शराब और ड्रग्स का सेवन कर रहे थे.
भांग का इस्तेमाल 87 लाख लोगों द्वारा किया जा रहा था, 625 लाख लोग शराब लेते थे और बाकी के 20 लाख लोग अफीम या अन्य नशीले द्रव्य का इस्तेमाल करते थे. सरकारी आंकड़ों के मुताबिक भारत में ड्रग अब्यूज और एडिक्शन के कारण 3,647 लोगों ने आत्महत्या भी की.
नेशनल इंस्टिट्यूट ऑफ ड्रग अब्यूज (NIDA, USA) के मुताबिक एडिक्शन एक “दिमागी बीमारी” है. आगे इसे इस तरह स्पष्ट किया गया है:
एडिक्शन काफी हद तक दूसरी बीमारियों की ही तरह है, जैसे कि दिल की बीमारी. दोनों ही बुनियादी अंगों के सामान्य कामकाज को बाधित करती हैं, इनके नतीजे गंभीर होते हैं, और इनको रोका जा सकता है व इलाज किया जा सकता है, लेकिन अगर इन्हें छोड़ दिया जाए तो पूरी जिंदगी खत्म हो सकती है.
हार्वर्ड मेडिकल स्कूल के साथ साझेदारी में काम कर रहे help.org ने एडिक्शन को “क्रोनिक डिजीज” के रूप में परिभाषित किया है, जिससे “दिमाग की संरचना और कार्य” दोनों में बदलाव हो जाता है.
जिस तरह कार्डियोवैस्कुलर डिजीज दिल को नुकसान पहुंचाती हैं, डायबिटीज पैन्क्रियाज (अग्न्याशय) को नुकसान पहुंचाती है, वैसे ही एडिक्शन दिमाग को नियंत्रण में कर लेता है. यह इसलिए होता है क्योंकि दिमाग में बदलावों की एक पूरी श्रृंखला बन जाती है, जिसकी शुरुआत आनंद की पहचान और अंत बार-बार दोहराए जाने वाले व्यवहार से होती है.Help.org
कैसे और क्यों लग जाती है लत?
एडिक्शन की शुरुआत करने में माहौल बहुत महत्वपूर्ण कारक होता है, लेकिन लत के जैविक कारणों को उसकी असल भूमिका की तुलना में बहुत कम वजन दिया जाता है.
जैविक मनोवैज्ञानिकों के अनुसार जेनेटिक असामान्यताएं कुछ लोगों को एडिक्शन की तरफ धकेलने के लिए ज्यादा जिम्मेदार हैं और डॉक्टर भी इस बात से सहमति जताते हैं.
जी हां, कुछ लोगों के जैविक रूप से किसी लत का शिकार होने की ज्यादा आशंका होती है. इसमें प्रीफ्रंटल कॉरटेक्स की भूमिका होती है. ऐसा देखा गया है कि जो लोग अटेंशन डेफिसिट हाइपरएक्टिविटी, व्यवहार संबंधी समस्याएं, इंपल्स डिसकंट्रोल से ग्रस्त होते हैं या जिन्हें रोमांच का शौक (हाई ऑन सेंसेशन-सीकिंग बिहेवियर/एक्सपेरिमेंटेशन) होता है या एंग्जाइटी की प्रवृत्ति होती है, ऐसे लोग एडिक्शन का आसानी से शिकार हो सकते हैं.डॉ समीर मल्होत्रा, मनोचिकित्सक, मैक्स हॉस्पिटल
डॉ नाइजेल बार्बर इसमें और जोड़ते हैं:
संभव है कि कुछ लोगों में एडिक्शन की संभावना इस कारण अधिक हो क्योंकि उन्हें स्वाभाविक स्रोतों से कम आनंद मिलता है- जैसे कि अपने काम, दोस्ती और रोमांटिक रिश्ते. शायद इससे समझा जा सकता है कि वो क्यों रोमांच चाहने वाले या “उत्प्रेरक के प्यासे” होते हैं.
किसी में ड्रग्स के लिए जरूरत से ज्यादा संवेदनशीलता 40-60 फीसद तक जेनेटिक कारणों पर निर्भर करती है.
इसके अलावा, मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं की मौजूदगी और कच्ची उम्र एडिक्शन के खतरे को और बढ़ा देती है.
हर शख्स क्यों अलग चीज का एडिक्ट होता है, इसका कारण हर व्यक्ति के मामले में अलग-अलग होता है. इसमें साथियों का दबाव, ड्रग्स लेने की तीव्र इच्छा, बेहतर प्रदर्शन की इच्छा (जैसा कि ‘स्टडी ड्रग्स’ या एथलीट्स के मामले में ड्रग्स का सेवन) या बेहतर महसूस करने (जैसा कि एनजाइटी, डिप्रेशन या स्ट्रेस से जुड़े मामलों में पाया गया है) जैसे कारण हो सकते हैं.
मोटे तौर पर कहें तो दो तरह के कारण हो सकते हैं, जो एडिक्शन की तरफ ले जाते हैं:
- माहौलः इसमें सामाजिक माहौल, पारिवारिक पृष्ठभूमि, साथियों का दबाव शामिल हो सकते हैं.
- जैविकः जेनेटिक संरचना, उम्र और यहां तक कि लैंगिक और जातीय कारण भी हो सकते हैं (स्रोतः NIDA)
एडिक्शन के चरण
एडिक्शन में एक जबरदस्त तड़प पाई जाती है, और इस तड़प को अपनी सीमा से बाहर जाकर पूरा करना पड़ता है, जिसके कारण कोई शख्स पूरी तरह उस चीज पर निर्भर हो जाता है. उस चीज के संपर्क में आकर दिमाग ‘अच्छा महसूस कराने वाला’ डोपामाइन हार्मोन रिलीज करता है. इसके अलावा समय के साथ डोपामाइन किसी अन्य गतिविधि पर, जिससे पहले आनंद मिलता था, रिलीज होना बंद हो जाता है.
इसका नतीजा ये निकलता है कि व्यक्ति आनंद पाने के लिए अपने एडिक्शन पर पूरी तरह निर्भर हो जाता है. मानो यही काफी नहीं है. समय के साथ नशे की वही मात्रा, उतनी ही मात्रा में डोपामाइन रिलीज करना बंद कर देती है, जितनी मात्रा में पहले डोपामाइन रिलीज हुआ करता था. इसे टोलरेंस कहते हैं.
इसी टोलरेंस के कारण पहले जैसा आनंद पाने के लिए नशे की मात्रा बढ़ाना जरूरी हो जाता है. शख्स पर मादक पदार्थ का असर घटता जाता है, लेकिन आनंद का शुरुआती स्तर पाने की ख्वाहिश कायम रहती है.
मैक्स हॉस्पिटल में मनोचिकित्सक डॉ समीर मल्होत्रा एडिक्शन को संक्षेप में समझाते हुए कहते हैं, मनोचिकित्सा में निर्भरता (डिपेंडेंस) शब्द के इस्तेमाल में निम्नलिखित बातें शामिल होती हैंः
- निर्धारित मात्रा की तुलना में बहुत अधिक इस्तेमाल.
- नशे की शुरुआत करने और उसकी मात्रा पर नियंत्रण खत्म हो जाना.
- इसके बहुत ज्यादा इस्तेमाल के कारण अन्य प्राथमिकताओं की उपेक्षा करना.
- वही मात्रा उतना ही आनंद नहीं देती, ऐसे में समय के साथ इसका इस्तेमाल बढ़ता जाता है.
- रोजमर्रा के कामकाज में रुकावट आती है और जीवन की जैविक लय-ताल अव्यवस्थित हो जाती है, जिसमें सोने-जागने का वक्त भी शामिल है.
- मादक पदार्थ के नहीं मिलने पर बेचैनी.
एडिक्शन के बाद क्या?
ऐसे शख्स के लिए भी, जो एडिक्शन से उबर चुका है, बहुत आसान है कि वो उसी राह पर लौट आए. जो तड़प उसे सबसे पहले इस दलदल में ले आई थी, फिर से पलट कर लौट आने की ताकत रखती है.
उस दौर से जुड़ी यादें और अनुकूलन इसे और बढ़ा सकती है. उदाहरण के तौर पर एडिक्शन के इस्तेमाल के उस दौर से जुड़ी कोई चीज-कोई क्रेडिट कार्ड जिससे वह शॉपिंग का एडिक्ट था या एल्कोहल के मामले में शराब का गिलास- कई सालों तक एडिक्शन से दूर रहने के बाद दोबारा उसकी शुरुआत करा सकते हैं.
डॉ मल्होत्रा कहते हैं कि सारे एडिक्शन, चाहे इसमें मादक पदार्थ लिया जाता हो या शॉपिंग की जाती हो जैसी कोई अन्य गतिविधि शामिल हो, सिद्धांत रूप में एक जैसे ही हैं.
पैटर्न या प्रकटीकरण में व्यक्तिपरक अंतर और मादक पदार्थ से जुड़े अंतर हैं, फिर भी बुनियादी जैविक मैकेनिज्म में बदलाव एक जैसा ही होता है.डॉ. मल्होत्रा
इलाज के तौर पर एक ही तरीके का उचित मेडिकल ट्रीटमेंट किए जाने की जरूरत होती है.
एडिक्शन को एक क्रोनिक और आगे बढ़ने वाली बीमारी के तौर पर देखा जाना चाहिए. क्रोनिक इसलिए क्योंकि जिसे एक बार किसी चीज की लत लग जाती है, उसे हमेशा दोबारा लत का शिकार होने की संभावना रहती है और ‘आगे बढ़ने वाली’ यानी प्रोगेसिव इसलिए क्योंकि अगर इसका इलाज नहीं किया गया तो ये लत बढ़ती जाएगी.
वैज्ञानिकों का यह भी कहना है कि अगर कोई शख्स लगी लत छोड़कर पांच साल ठीक से गुजार लेता है, तो उसके दोबारा लत का शिकार होने की आशंका कम हो जाती है.
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