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एंथ्रोपोफोबिया: जब लोगों से लगता है डर

कहीं अकेले रहने की वजह एंथ्रोपोफोबिया तो नहीं...

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क्या अपने आसपास लोगों की मौजूदगी आपको बुरी तरह परेशान करती है. आप किसी से बात करना ही नहीं चाहते, किसी का सामना नहीं करना चाहते. तो हो सकता है कि आप एंथ्रोफोबिक हों. मतलब आपको लोगों का डर हो. हां, ये डर उस डर से अलग है, जो हम सामान्य रूप से महसूस करते हैं. ये फोबिया है.

आपने कई तरह के फोबिया के बारे में सुना होगा. जैसे किसी को पानी से डर लगता है, किसी को अंधेरे से, किसी को ऊंचाई से. लेकिन एक फोबिया है, जिसमें लोगों की मौजूदगी डराती है, लोगों के साथ रहने और उनका सामना करने से डर लगता है. इसे एंथ्रोपोफोबिया कहते हैं.

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एंथ्रोपोफोबिया या एंथ्रोफोबिया शर्मीलेपन और घबराहट की चरम सीमा है. एंथ्रोपोफोबिक शख्स दूसरों की नजर में नहीं आना चाहता, लोगों की मौजूदगी में उसे घबराहट होती है.

एंथ्रोपोफोबिया असल में कोई बीमारी नहीं है, ये सिर्फ व्यवहार की एक दशा है. शर्मीलेपन की एक्सट्रीम कंडीशन है, जिसमें इंसान किसी से बात करना पसंद नहीं करता.
डॉ रचना खन्ना सिंह, आर्टेमिस हॉस्पिटल

फोबिया सोर्स डॉट कॉम के मुताबिक एंथ्रोपोफोबिया की परिभाषा भीड़भाड़ में लोगों से डरने के तौर पर दी जाती है, लेकिन ये स्थिति इससे भी परे जा सकती है, जिसमें इंसान को किसी एक शख्स की मौजूदगी भी परेशान कर देती है.

हर शख्स की स्थिति अलग-अलग होती हैं. इसके कुछ मामले इतने गंभीर हो जाते हैं कि एंथ्रोफोबिक शख्स समाज से पूरी तरह कट जाता है. इसमें स्थिति यहां तक पहुंच सकती है कि मरीज किसी के भी सीधे संपर्क में आने से बचे. खुद को बाहरी दुनिया से अलग-थलग करते हुए कमरे में बंद रहना पसंद करे.

किसी एंथ्रोपोफोबिक को ये लग सकता है कि लोग उसकी शारीरिक बनावट, इंटेलिजेंस और पहनावे को लेकर कुछ सोच रहे होंगे. यहां तक कि उसे अपने लोगों की संगति में भी, जिनसे वो प्यार करता है, जिन पर उसे भरोसा हो, उनके साथ भी बेहतर महसूस नहीं होता.

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एंथ्रोपोफोबिक लोग किसी से आंख तक मिलाना पसंद नहीं करते, किसी की नजर में नहीं आना चाहते. आर्टेमिस हॉस्पिटल की डॉ रचना खन्ना सिंह मुताबिक इस तरह का व्यवहार चिंता से भी जुड़ा हो सकता है.

इसका इलाज एक हेल्थकेयर प्रोफेशनल कर सकता है. डॉ रचना खन्ना सिंह बताती हैं कि इसके लिए काउंसलिंग की जरूरत होती है. साथ ही एक अनुभवी प्रोफेशनल ही इसकी पहचान कर सकता है. काउंसलिंग में इस स्थिति की वजह का पता लगाया जाता है. भारत में एंथ्रोपोफोबिया के कम ही मामले सामने आते हैं और वे अधिकतर चिंता से जुड़े होते हैं.

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